Tuesday, July 2, 2024
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पलायन रोकने का सशक्त माध्यम बना बागवानी

पहाड़ों में विगत 10-12 वर्षो से जलवायु परिवर्तन व जंगली जानवरों के प्रकोप के कारण बड़े पैमाने पर पलायन हुआ है। जिससे उत्पादन में कमी आने लगी और कृषि को काफी नुकसान होने लगा। युवा किसान कृषि में ज़्यादा मुनाफा नहीं मिलने के कारण इसे छोड़कर पलायन करने लगे थे।

जलवायु परिवर्तन ने जहां पूरे विश्व को चिंता में डाल दिया है, वहीं, इसके चलते पर्वतीय समुदाय भी कृषि कार्य से विमुक्त हो गया है। परिणामस्वरूप पहाड़ों से पलायन और तेजी से भूमि को बेचना दिखायी दे रहा है। विशाल निर्माण कार्यों ने पहाड़ों के अस्तित्व को खतरे में लाकर खड़ा कर दिया है। कोरोना काल में देश ने जो दर्द सहा, वह असहनीय था। प्रवासियों का अपने क्षेत्रों में वापसी हुई तो ग्रामीण समुदाय ने पहाड़ों के वातावरण व भूमि की कीमत को पहचाना और कृषि कार्य के अतिरिक्त अन्य कौशलों को अपनाया जिसमें लघु उघोग के साथ सघन बाग प्रमुख रहा है। यह वर्तमान समय में आजीविका संवर्धन व आय सृजन का सशक्त माध्यम बन रहा है। इसके लाभ को देखते हुए सरकार भी इस कार्य के लिए सहायता प्रदान कर रही है।

नैनीताल स्थित सुनकिया घारी के युवा किसान संजय सिंह डंगवाल पर्वतीय क्षेत्रों में पलायन को रोकने और भविष्य में स्वरोजगार के लिए आय का सबसे सशक्त माध्यम बागवानी को बताते हुए कहा कि इसके कारण न केवल उनकी आर्थिक में सुधार आया बल्कि आज वह दूसरों को रोज़गार प्रदान कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि परिवार की कमज़ोर आर्थिक स्थिति और तकनीकि जानकारियों के अभाव के बावजूद बागवानी में किस्मत आज़माने का फैसला किया। इंडोडच हॉर्टिकल्चर टेक्नोलॉजी संस्थान की मदद से उन्होंने सेब के 250 पेड़ का बगीचा लगाया। इसके लिए उन्हें 90 हज़ार रुपए खर्च करने पड़े, जिसमें 50 प्रतिशत की उन्हें सब्सिडी दी गयी।

प्रथम वर्ष में ही संजय को 2 लाख रुपए की आय अर्जित हुई। उम्मीद को धरातल पर कर दिखाने की हिम्मत मिली तो उनका हौसला बढ़ा। उन्होंने उद्यान विभाग से सम्पर्क किया और इस कार्य को बड़े स्तर पर करने का संकल्प लिया। उद्यान विभाग की मदद से 500 पेड़ का अतिरिक्त बगीचा बनाया। जिसमें उन्हें उम्मीद से अधिक सफलता मिली। जो खेत कभी पूरे वर्ष में 30 से 40 हजार आय देता था, वह आज 3 से 4 लाख रुपए देने लगा। उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ तो उन्होंने ग्राम के अन्य लोगों को रोजगार देना शुरू किया। वर्तमान में गांव के अन्य युवा भी संजय से प्रेरित होकर इसी क्षेत्र में अपना करियर संवार रहे हैं। इस बागवानी में उन्हें दोहरा लाभ मिल रहा है। सेब उत्पादन के साथ साथ इसमें मिश्रित खेती भी की जा रही है।

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इस संबंध में विशेषज्ञ डाॅ नारायण सिंह लोधियाल बताते हैं कि पारंपरिक विधि में जहां 6 से 7 वर्ष में पौधे फल देना शुरू करते हैं वहीं रूट स्टॉक विधि, जिसे वर्तमान में पर्वतीय क्षेत्रों में अधिक अपनाया जा रहा है, में प्रथम वर्ष से ही फल प्राप्त होने लगता है। साथ ही एक एकड़ में जहां पारंपरिक विधि में 100 पेड़ लगाये जाते थे, वहीं इसमें उससे 10 गुना अधिक पेड़ लगाये जाते हैं, जिससे कहीं न कहीं आय भी 10 गुना बढ़ रही है। इस विधि में पेड़ो को 10 फ़ीट से अधिक ऊंचा नहीं किया जाता है ताकि भूमि से मिलने वाला तत्व फल बनाने में अधिक से अधिक उपयोग में आ सके।

समुद्र तल से 12000 मीटर की ऊंचाई वाले इलाके दोमट भूमि जहां पानी रुकता न हो, पी.एच मान 6 से 7 के बीच हो व जिस भूमि में आलू की खेती हो वह इस बागवानी के लिए उपयुक्त होती है। उन्होंने बताया कि इस बागवानी के लिए फरवरी-मार्च का माह उचित होता है। रूट स्टाक पेड़ों की जड़े अधिक गहरी नहीं जाती है। इसके लिए पेड़ों को मजबूती देने के लिए ड्रेनेज सिस्टम का प्रयोग किया जाता है। साथ ही पेड़ों के बीच एक मीटर की दूरी रखी जाती है। इसमें ड्रिप सिस्टम, मल्चिंग, पेड़ों की कटाई-छटाई की जाती है जो अत्यन्त ही जरूरी होता है। जिस प्रकार मनुष्य के लिए संतुलित भोजन आवश्यक है उसी प्रकार पेड़ों के लिए उपरोक्त कार्य अत्यन्त ही आवश्यक है जिससे पेड़ों का उचित विकास होगा और बेहतर परिणाम देखने को मिलेंगे।

उद्यान विभाग, भीमताल के अधिकारी आनन्द सिंह बिष्ट बताते हैं कि पहाड़ों में विगत 10-12 वर्षो से जलवायु परिवर्तन व जंगली जानवरों के प्रकोप के कारण बड़े पैमाने पर पलायन हुआ है। जिससे उत्पादन में कमी आने लगी और कृषि को काफी नुकसान होने लगा। युवा किसान कृषि में ज़्यादा मुनाफा नहीं मिलने के कारण इसे छोड़कर पलायन करने लगे थे। ऐसे में आशा की किरण के रूप में सघन बाग के लिए विभाग द्वारा 10 नाली में निर्माण हेतु 80 प्रतिशत की सब्सिडी लाभार्थियों को प्रदान की जाने लगी। जिसमें 20 प्रतिशत यानि 1.2 लाख लाभार्थी को देना होता है जिसमें निर्माण सामग्री के साथ साथ 500 पेड़ उपलब्ध करवाये जाते हैं। आनंद सिंह कहते हैं कि पर्वतीय समुदाय के लोग बागवानी के प्रति काफी उत्साहित हैं। वास्तव में यह पर्वतीय समुदाय की आजीविका को बढ़ावा देने का एक सशक्त माध्यम है। इसमें संस्थाएं भी सहायता प्रदान कर रही हैं।

 

नैनीताल स्थित आरोही संस्था द्वारा आयोजित सामुदायिक आजीविका कार्यक्रम के अन्तर्गत ग्रामीणों को सघन बाग बनाये जाने हेतु पेड़ उपलब्ध करवाये गये जिसके चलते वर्ष 2023 में घारी विकासखण्ड में लाभार्थियों द्वारा 6 सघन बाग का निर्माण किया गया। जिसके तहत संस्था द्वारा उन्हें तकनीकी जानकारियां प्रदान की गईं। सुन्दरखाल स्थित जलना नीलपहाड़ी में सेब के 250 पेड़ों के बाग का निर्माण किया गया है। जहां उमेश जोशी और हरीश मेलकानी जैसे युवा किसान प्रथम वर्ष से ही लाभ अर्जित करने लगे हैं। वह कहते हैं कि वास्तव में यह बाग पर्वतीय जन की आशा का केंद्र बन चुका है। इसने न केवल नई पीढ़ी के किसानों को नई राह दिखाई है, बल्कि पलायन को रोकने का भी विकल्प बढ़ा दिया है।

(सौजन्य से चरखा फीचर)

 

 

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