डूँगा कोई बड़ी गाड़ी, बंगला वगैरह-वगैरह जैसी चीज पाने का सपना नहीं देखता है। वह तो अपनी जी (माता जी) के लिए एक नयी लुगड़ी जैसी छोटी वस्तु का सपना देखता है और वह भी पूरा नहीं कर पाता। होरी जिसे डूँगा का साहित्यिक पुरखा कह सकते हैं उनका भी एक छोटा सा सपना था जो पूरा नहीं होता।
सपना देखना सत्यनारायण पटेल के जीवन का अनिवार्य हिस्सा है। अनायास नहीं है कि इस संग्रह की दो कहानियां- सपने के ठूँठ पर कोंपल और लाल छींट वाली लुगड़ी का सपना में न केवल सपना शब्द का प्रयोग हुआ है बल्कि सतीश और डूंगा के सपने की कहानी है। सतीश सामाजिक-आर्थिक गैर-बराबरी को मिटाकर एक बेहतर समाज निर्माण का सपना देखता है। वहीं डूंगा का सपना एक नयी लाल छींट वाली लुगड़ी का है। दोनों अपने सपने को साकार करने के लिए भरपूर कोशिश भी करते हैं। दिन-रात मेहनत करते हैं। हालांकि दोनों के संघर्ष भिन्न हैं। लेकिन दोनों अपने सपने को पूरा नहीं कर पाते हैं। पंजाबी का एक क्रांतिकारी कवि अवतार सिंह ‘पाश’ कहता है- ‘सबसे खतरनाक होता है हमारे सपनों का मर।’ सपना का पूरा न होना इतना खतरनाक नहीं है जितना कि सपना न देखना। सपना मनुष्य को संघर्ष करने के लिए प्रेरित करता रहता है।
कथा- भाषा, चरित्र एवं वातावरण आदि दृष्टि से सत्यनारायण पटेल प्रेमचन्द और फणीश्वरनाथ रेणु के परम्परा को आगे बढ़ाने वाले कथाकार हैं। चित्रित विषय, चरित्र एवं वातावरण के अनुरूप भाषा का वैविध्य कहानी की भाषा का प्रमुख गुण होता है। भाषा की अपनी सृजनात्मकता से कहानीपन के साथ-साथ यथार्थ के सटीक और प्रभावपूर्ण अंकन में भी सहायता मिलती है।
लाल छींट वाली लुगड़ी का सपना मूल रूप से भारतीय गांव के बदलते स्वरूप की कहानी है। ग्रामीण लोगों के जीवन में भी बाजारवाद के दखल को यहां देखा जा सकता है। ‘डूँगा का गांव ए बी रोड के किनारे बसे अनेक गांवों में से एक था। गांव की एक बाजू में प्रदेश की व्यावसायिक राजधानी के नाम से विख्यात शहर और दूसरी बाजू में एक औद्योगिक शहर। दोनों शहर गांव के विकास और उद्धार का डंका बजाते, अपनी मस्ती में मस्त सांड की तरह डुकराते, गांव की ओर बढ़ते, शहर के हस्तक्षेप से गांवों के हुलिए जिस गति से बदल रहे थे, उस तेजी से डूँगा सरीखे देख-समझ भी नहीं पा रहे थे।’ डूँगा सरीखे लोग भले ही इस बदलाव को नहीं देख पा रहे हों, पर युवा पीढ़ी इससे अछूती नहीं है। वह पूरी तरह से बाजारवाद के गिरफ्त में है। डूँगा की बेटी बारहवीं तक पढ़ी है। दिनभर टीवी देखती है। डूँगा की पत्नी को अंदेशा है कि कहीं पवित्रा भी टीवी की डाकनों जैसी करने लगी तो? पवित्रा की कुछ आदतें थीं भी ऐसी, जो पारबती को लगता कि वह डाकनों से सीखी होगी। डूँगा की पत्नी इस बदलाव को महसूस कर रही है।
