प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के रोहनिया थाना क्षेत्र के करसड़ा गांव की मुसहर बस्ती में बनने वाले अटल आवासीय विद्यालय के लिए मुसहर बस्ती पर बुलडोजर चलाना अब जिला प्रशासन के लिए किरकिरी का मसला बन गया है। दिवाली के ठीक पहले जिला प्रशासन की इस कार्यवाही पर कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं। बस्ती के लोगों ने दावा किया कि उनके पास जमीन के पक्के कागज हैं, जबकि जिला प्रशासन का दावा है कि 3 महीने पहले उन्हें खाली कराने की नोटिस दी गयी थी और पुनर्वास के तहत ज़मीन के पट्टे भी दिये गये हैं।
मुसहर बस्ती के पीड़ित लोग शुक्रवार की रात ही डीएम आवास घेरने पहुंच थे। बूढ़े- बच्चे, महिलाओं समेत डीएम आवास घेरने जाने के क्रम में सभी को पहले ही रोक दिया गया था।
गांव में रह रहे 13 वनवासी परिवारों के घरों को शुक्रवार को ही राजस्व विभाग ने पुलिस की मौजूदगी में अचानक जेसीबी से ढहवा दिया। इसके चलते इन 13 परिवारों के 60 से ज्यादा बच्चे-बूढ़े, पुरुष और महिलाएं ठंड के मौसम में खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर हैं। शुक्रवार की रात वनवासी लोग 22 किलोमीटर की दूरी पैदल तय कर जिलाधिकारी कौशल राज शर्मा से मिलने के लिए उनके कैंप कार्यालय जा रहे थे। इसी बीच उन्हें छावनी क्षेत्र में पुलिस-प्रशासन की टीम द्वारा रोक लिया गया।
शनिवार को एसडीएम उदयभान सिंह और एडीएम प्रशासन रणविजय सिंह और राजस्व विभाग की टीम समस्या का समाधान हेतु वनवासियों की बस्ती पहुँचे। लेकिन समस्या का समाधान नहीं होने पर पीड़ितों ने आर-पार की लड़ाई लड़ने का एलान कर दिया।
ढहाए गये अपने मकान के सामने खड़े होकर बिलखते पीड़ित मुसहरों ने प्रधान, लेखपाल और रेवेन्यू इंस्पेक्टर पर प्रताड़ित करने का आरोप लगाया।
यहाँ की मुसहर बस्ती के पीड़ित मुसहरों ने कहा कि हम सबका जिस जमीन पर घर बना था, उसका बकायदा सट्टा इकरारनामा हुआ है। हम यहां बहुत लंबे समय से रह रहे हैं हमारे पास वोटर और आधार कार्ड सहित बिजली कनेक्शन भी हैं। गांव के प्रधान, स्थानीय लेखपाल, राजस्व निरीक्षक और भूमाफिया ने मिलकर हम वनवासियों को कमजोर समझ कर बेघर कर दिया है। क्या ऐसे किसी का मकान ढहाया जाता है और सामान निकाल कर फेंक दिया जाता है। प्रशासन के लोग कह रहे हैं कि हम अवैध तरीके से रह रहे हैं। अपना भी कागज दिखाएं और हमारा भी कागज देखें।
प्रधान, लेखपाल, रेवेन्यू इंस्पेक्टर और भूमाफिया हमें लगातार प्रताड़ित कर रहे हैं। लेकिन, कहीं सुनवाई नहीं हो रही है। शुक्रवार की रात जिलाधिकारी से भी नहीं मिलने दिया गया। हम बच्चों को क्या खिलाएं, कहां सोएं और कहां रहें। हमारे साथ न्याय किया जाए और जिन्होंने हमारा घर ढहाया है उन पर कार्रवाई हो।
कानून नाम की भी कोई चीज है या नहीं
करसड़ा में वर्षों से वनवासी रह रहे हैं। ज्ञात हो कि प्रयास करके क्षेत्रीय विधायक सुरेंद्र नारायण सिंह की मदद से हमें बिजली के कनेक्शन दिलाए गये थे। पीने के पानी की व्यवस्था करायी गयी थी। अगर हम सब गलत तरीके से रह रहे होते तो क्या विधायक सरकारी पैसे से उनकी मदद कर पाते। विभिन्न सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधि मौक़े पर पहुँच कर कहा कि वनवासी परिवार के लोगों के साथ गलत हुआ है। दिवाली से पहले उनका घर ढहाकर बेहद ही निंदनीय कार्य किया गया है। पूरे प्रकरण से राष्ट्रीय मानवाधिकार, एससी-एसटी आयोग और उच्चाधिकारियों को अवगत कराकर वनवासियों को न्याय दिलाने का काम किया जायेगा।
ग्रामीणों का आरोप, बाढ़ प्रभावित इलाके में दी जा रही है ज़मीन
बस्ती के रहने वालों ने बताया कि शुक्रवार की शाम तहसीलदार मीनाक्षी पांडे आयीं और हमसे एक कागज पर दस्तखत करवाया। जब हमने अपने वकील से बात कर दस्तखत करने की बात कही, तो उन्होंने हमसे जबरन दस्तखत करवा ली। ज़मीन हमारी पुश्तैनी है। ज़मीन की खतौनी अशोक, चमेली देवी और पिंटू के नाम पर है। जब रात को वनवासी समुदाय के लोग जबरन घर गिराए जाने के खिलाफ शिकायत करने जिला अधिकारी कौशल राज शर्मा के आवास के लिए देर रात निकले, तो उन्हें बीच रास्ते रोक दिया गया। जबकि जिला प्रशासन का दावा है कि 3 महीने पहले उन्हें जमीन खाली करने की नोटिस दी गयी थी और पुनर्वास के तहत ज़मीन के पट्टे भी दिये गये हैं। पीड़ितों ने बताया कि हमें बाढ़ प्रभावित इलाके में पट्टे की ज़मीन दी जा रही है और बिना नोटिस हमें उजाड़ा गया हैं। हम न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाएँगे।
जो कहानी हम लोग पहले फिल्मों में देखा करते थे वह कहानी आज हम लोग आंखों के सामने देख रहे हैं