
जसिंता उरांव आदिवासी समुदाय से हैं। हिंदी में कविताएं लिखती हैं। अब तक उनके दो कविता संग्रह प्रकाशित है। पहला कविता संग्रह अंगोर आदिवाणी, कोलकाता से और जड़ों की ज़मीन भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली से प्रकाशित है। पहले संग्रह का अनुवाद संथाली, इंग्लिश, जर्मन, इतालवी, फ्रेंच में भी प्रकाशित है। तीसरा संग्रह ईश्वर और बाज़ार राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली से प्रकाशाधीन है। 2020 में उन्हें हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने उनके अनुभवों को सुनने-जानने के लिए आमंत्रित किया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ आलोचक एवं साहित्यकार प्रो. विजय बहादुर सिंह ने सरोज जी को समाज के सच को उजागर कर मनुष्यता को रास्ता दिखाने वाला कवि बताया। उनका एक एक शब्द मारक और अर्थवान था जो सदियों तक प्रासंगिक रहेगा। उन्होंने कहा कि आज के समय में सच बोलना ही सबसे जरूरी साहित्य कर्म है। दोनों सम्मानित रचनाकार भी बोले। और अपनी रचनाओं का पाठ किया। विष्णु नागर और जेसिंता केरकेट्टा के अलावा अतुल अजनबी (ग्वालियर) मालिनी गौतम (गुजरात) ने भी रचना पाठ किया।