जन और लोकतांत्रिक समाज के प्रति समर्पित, बेधड़क रचनाकार विष्णु नागर रचनाधर्मिता के ऐसे शलाका व्यक्तित्व हैं जिन्होंने हर विधा में अपनी खुद की शैली, भाषा, वर्तनी और बुनावट गढ़ी और साहित्य को सार और रूप दोनों तरह समृद्ध किया। शाजापुर(मध्यप्रदेश) में जन्मे विष्णु नागर की आरम्भिक शिक्षा दीक्षा यहीं हुयी। 1971 से उन्होंने दिल्ली में रहकर स्वतन्त्र पत्रकारिता आरंभ की। ‘नवभारत टाइम्स’ में पहले मुम्बई तत्पश्चात् दिल्ली में विशेष संवाददाता सहित विभिन्न पदों पर रहे। विष्णु नागर ने जर्मन रेडियो, ‘डोयचे वैले’ की हिंदी सेवा का 1982-1984 तक संपादन किया। वे ‘हिंदुस्तान’ दैनिक के विशेष संवाददाता रहे तथा 2003 से 2008 तक हिंदुस्तान टाइम्स की लोकप्रिय पत्रिका
कादंबिनी के कार्यकारी संपादक रहे। वे दैनिक ‘नई दुनिया’ से भी जुड़े रहे। दिल्ली से प्रकाशित साप्ताहिक शुक्रवार का सम्पादन भी उन्होंने किया।
उनकी प्रकाशित पुस्तकों में, मैं फिर कहता हूँ चिड़िया, तालाब में डूबी छह लड़कियाँ, संसार बदल जाएगा, बच्चे, पिता और माँ, हंसने की तरह रोना, कुछ चीजें कभी खोई नहीं, कवि ने कहा, कविता संग्रह आज का दिन, आदमी की मुश्किल, आह्यान, कुछ दूर, ईश्वर की कहानियाँ, बच्चा और गेंद कहानी संग्रह- तथा आदमी स्वर्ग में नामक उपन्यास शामिल हैं। उनके निबंध संग्रह- हमें देखती आँखें, यर्थाथ की माया, आज और अभी, आदमी और समाज आलोचना संग्रह- कविता के साथ-साथ आदि शीर्षक से प्रकाशित हुए हैं।
[bs-quote quote=”जसिंता उरांव आदिवासी समुदाय से हैं। हिंदी में कविताएं लिखती हैं। अब तक उनके दो कविता संग्रह प्रकाशित है। पहला कविता संग्रह अंगोर आदिवाणी, कोलकाता से और जड़ों की ज़मीन भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली से प्रकाशित है। पहले संग्रह का अनुवाद संथाली, इंग्लिश, जर्मन, इतालवी, फ्रेंच में भी प्रकाशित है। तीसरा संग्रह ईश्वर और बाज़ार राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली से प्रकाशाधीन है। 2020 में उन्हें हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने उनके अनुभवों को सुनने-जानने के लिए आमंत्रित किया।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
जसिंता केरकेट्टा एक ऐसी कवियित्री हैं जिनकी कविताएं आदिवासियों के संघर्ष और प्रकृति से जुड़े उनके अलग नजरिए पर बात करते हुए भी पूरे मनुष्य जगत के संघर्षों की बात करती हैं। उन्होंने आदिवासी जगत की सच्ची और निर्मल अनुभूतियों और उनकी पीड़ाओं तथा उनसे जूझने के साहस को नए शब्द और व्यंजनाएँ दी हैं। उनके सृजन में वैश्विक दृष्टिकोण है इसलिए बहुत ही कम समय में उनकी कविताओं ने अंतर्राष्ट्रीय पहचान हासिल की है। वे दुनिया भर में पढ़ी जा रहीं हैं तथा कई देशों के अलग-अलग विश्वविद्यालयों में उनकी कविताएं पढ़ाई जा रहीं हैं। जसिंता ने हिंदी साहित्य को सार और रूप दोनों तरह से समृद्ध किया है, विवेकवान बनाया है ।
जसिंता उरांव आदिवासी समुदाय से हैं। हिंदी में कविताएं लिखती हैं। अब तक उनके दो कविता संग्रह प्रकाशित है। पहला कविता संग्रह अंगोर आदिवाणी, कोलकाता से और जड़ों की ज़मीन भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली से प्रकाशित है। पहले संग्रह का अनुवाद संथाली, इंग्लिश, जर्मन, इतालवी, फ्रेंच में भी प्रकाशित है। तीसरा संग्रह ईश्वर और बाज़ार राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली से प्रकाशाधीन है। 2020 में उन्हें हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने उनके अनुभवों को सुनने-जानने के लिए आमंत्रित किया। 2014 में एशिया इंडीजिनस पीपुल्स पैक्ट, थाइलैंड ने उन्हें वॉयस ऑफ एशिया के रिकॉगिनेशन अवार्ड से सम्मानित किया। वर्तमान में वे मध्य भारत के आदिवासी इलाकों में घूम-घूम कर स्वतंत्र रूप से पत्रकरिता करती हैं। आदिवासियों की भाषा, संस्कृति के संरक्षण और आदिवासी लड़कियों की शिक्षा के लिए गांवों में सामाजिक काम भी करती हैं।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ आलोचक एवं साहित्यकार प्रो. विजय बहादुर सिंह ने सरोज जी को समाज के सच को उजागर कर मनुष्यता को रास्ता दिखाने वाला कवि बताया। उनका एक एक शब्द मारक और अर्थवान था जो सदियों तक प्रासंगिक रहेगा। उन्होंने कहा कि आज के समय में सच बोलना ही सबसे जरूरी साहित्य कर्म है। दोनों सम्मानित रचनाकार भी बोले। और अपनी रचनाओं का पाठ किया। विष्णु नागर और जेसिंता केरकेट्टा के अलावा अतुल अजनबी (ग्वालियर) मालिनी गौतम (गुजरात) ने भी रचना पाठ किया। संचालन युवा रचनाकार शेफ़ाली शर्मा (छिंदवाड़ा) ने किया।
कार्यक्रम की शुरुआत में न्यास की सचिव मान्यता सरोज ने कहा कि इस आयोजन की निरंतरता पर कईयों को आश्चर्य है । ईमानदारी की बात कहें तो हमे भी अचरज है। मगर सपना सरोज बन गया और मशहूर है। उसकी वजह ग्वालियर की सांस्कृतिक साहित्यिक परम्परा और सरोज जी के साथ सबका नेह है। जब तक यह है तब तक यह आयोजन जीवित रहेंगे।
उन्होंने कहा कि अनेक शुभचिंतक पूछते हैं कि पैसा कहां से आता है। न्यास का सीक्रेट यह है कि उसके पास अधिक पैसा कभी रहा नहीं और आयोजन के लिए कभी कम पड़ा नहीं। पैसे के लिए कभी किसी मठ, संस्थान या कार्पोरेट के आगे हाथ नही फैलाये गये। तय करके किया गया कि पूंजी की गटर और धनपशुओं के अस्तबल से कभी कुछ नही लिया जाएगा । सरोज जी का कार्यक्रम है उन्ही के अंदाज में किया जाएगा। उन्होंने कहा कि यह मेहनत के पसीने का आयोजन है जिसके घट में कोई चोंच भरकर तो कोई अंजुरी भर कर पानी लाया है ताकि आग बुझाई जा सके, मनुष्यता हरियाई जा सके ।