केजीएमयू में मंगलवार से जारी आउटसोर्सिंग कर्मचारियों की हड़ताल खत्म हो गयी है। इस मामले को लेकर केजीएमयू पहुंचे उप मुख्यमंत्री बृजेश पाठक ने गुरुवार को कहा था कि ‘अस्पताल परिसर में हड़ताल बर्दाश्त नहीं होगी। हड़ताल करने पर एस्मा (एसेंशियल सर्विसेज मैनेजमेंट एक्ट) लगाया जाएगा।’
इस दौरान ट्रॉमा सेंटर पहुंचे डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक ने मरीजों का हाल-चाल लिया। उन्होंने कहा कि मरीजों की जान से खिलवाड़ करने का अधिकार किसी को नहीं है। अगर कोई शिकायत है तो सीधे मिलें। हड़ताल से कोई हल नहीं निकलेगा। कर्मचारियों ने भी अपनी व्यथा डिप्टी सीएम से रखी। इस पर उन्होंने कार्यदायी संस्था के खिलाफ कार्रवाई की बात कही।
आज के०जी०एम०यू० ट्रॉमा सेंटर में वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठक कर कर्मचारियों की शीघ्र हड़ताल समाप्त करवाने विषयक चर्चा करते हुए दोषी कार्यदायी संस्था के विरुद्ध कार्यवाही करने के सख्त निर्देश दिये तथा हड़ताल कर रहे कर्मचारियों से बातचीत कर उनकी समस्यों को सुनकर हड़ताल समाप्त… pic.twitter.com/79GUy0tC7N
— Brajesh Pathak (@brajeshpathakup) December 21, 2023
पाठक ने अस्पताल प्रबंधन और आउटसोर्सिंग कर्मचारियों से बातचीत की। उन्होंने कहा कि अस्पताल में मरीजों को इलाज मिलना चाहिए। कोई भी मरीज बगैर इलाज लिए यहां से न जाए। उन्होंने हड़ताली कर्मचारियों को कड़ी चेतावनी देते हुए कहा कि अगर फिर से हड़ताल की तो एस्मा लगाया जाएगा। अस्पताल परिसर में हड़ताल अस्वीकार्य है। उप मुख्यमंत्री ने बताया कि केजीएमयू में मरीजों को पर्याप्त उपचार मिल रहा है। स्वास्थ्य सेवाएं कतई बाधित नहीं हुई हैं। अगर किसी ने स्वास्थ्य सेवाओं को बाधित किया तो उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
उन्होंने कर्मचारियों को आश्वस्त किया कि संबंधित कार्यदायी संस्था के खिलाफ भी कड़ी कार्रवाई की जाएगी लेकिन अपनी मांगों को मनवाने के लिए हड़ताल कोई जरिया नहीं है। अगर कोई समस्या है तो कर्मचारी किसी भी समय, सीधे उनसे संपर्क कर सकते हैं। डिप्टी सीएम ने केजीएमयू प्रबंधन से बातचीत करते हुए स्वास्थ्य सुविधाओं के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त की। उन्होंने कहा कि हर मरीज को उच्च स्तर की स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराना सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है।
फिलहाल आउटसोर्सिंग कर्मचारियों के वेतन बढ़ोत्तरी को लेकर कोई फैसला नहीं हुआ है। प्राप्त जानकारी के अनुसार केजीएमयू प्रशासन और आउटसोर्सिंग कर्मचारियों के बीच वार्ता के बाद यह तय हुआ है कि आनलाइन बायोमैट्रिक की वजह से कटे हुये मानदेय का भुगतान कर दिया जाएगा।
क्या है एस्मा
एस्मा कानून (आवश्यक सेवा अनुरक्षण कानून) कर्मचारियों की हड़ताल रोकने के लिये लगाया जाता है। एस्मा अधिकतम छह महीने के लिये लगाया जा सकता है और इसके लागू होने के बाद अगर कोई कर्मचारी हड़ताल पर जाता है तो वह अवैध और दण्डनीय माना जाता है।
कब और क्यों शुरू की संविदा कर्मचारियों ने हड़ताल
राजधानी लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के आउटसोर्सिंग कर्मचारियों ने समय व सही वेतन न दिये जाने को लेकर मंगलवार देर रात से काम बंद कर दिया है। इसके बाद मरीजों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। केजीएमयू में प्रदेश भर से मरीजों का तांता लगा रहता है और प्रदेश भर से लोग उचित इलाज के लिए केजीएमयू आते हैं, लेकिन कल देर रात से वेतन की समस्या को लेकर आउटसोर्सिंग कर्मचारियों ने काम बंद कर दिया है।
किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय(केजीएमयू) में समय पर सही वेतन न दिये जाने को लेकर 5000 से अधिक आउटसोर्सिंग कर्मचारियों ने 20 दिसंबर से काम ठप करने का फैसला लिया। कर्मचारियों की इस घोषणा से केजीएमयू में अफरा-तफरी का माहौल बन गया। कर्मचारियों के मुताबिक, उन्हें इस माह पूरा वेतन नहीं मिला है। जो भुगतान हुआ है उसमें कटौती की गई है। अस्पताल प्रशासन की ओर से कहा जा रहा है कि यह कटौती बायोमेट्रिक अटेंडेंस के हिसाब में गड़बड़ी की वजह से हुई है। कर्मचारियों के मुताबिक, आउटसोर्स कंपनी द्वारा एक माह में मिलने वाली चार छुट्टियों तक की सैलरी काट दी गई है।
ज्ञात हो कि स्वास्थ्य सेवाओं में आउटसोर्सिंग कर्मचारियों की संख्या लगातार बढ़ाई जा रही है। यह कर्मचारी सेवा प्रदाता संस्था ज़ेम वेंचर्स के माध्यम से नियुक्त किए गए हैं। ऐसे में हर तरह की स्थिति के लिए वे जिम्मेदार हैं।
इसी पॉलिसी के तहत लखनऊ स्थित केजीएमयू में नियमित और स्थायी स्टाफ से अधिक आउटसोर्स कर्मचारी काम कर रहे हैं। संस्थान को संविदा कर्मचारी किसी गैर सरकारी एजेंसी (आउटसोर्स कंपनी) के माध्यम से उपलब्ध कराये जाते हैं।
प्रदर्शन की वजह से ओपीडी सेवाएं कई घंटों तक ठप रहीं। मरीज अपनी बारी का इंतजार करते हुए परेशान नजर आये। संविदाकर्मियों ने ट्रामा सेंटर पहुंचने के बाद वहां का मेन गेट बंद कर दिया। मरीजों को दूसरे गेट से अंदर भेजा गया लेकिन ओपीडी की सेवाएं बंद होने और प्रदर्शन के कारण ट्रामा सेंटर में एंबुलेंस की लाइनें लग गईं। जिसकी वजह से केजीएमयू का संचालन गंभीर रूप से प्रभावित हुआ।
कर्मचारियों ने सबसे पहले ओपीडी में पर्चा बनाना बंद किया। इसके बाद उन्होंने ट्रामा सेन्टर पर जाकर ताला बंद कर दिया। इस बीच पुलिस बल मौके पर पहुंचकर मरीजों को दूसरे गेट से अंदर भेजा, लेकिन प्रदर्शन के चलते ट्रॉमा सेंटर में एंबुलेंस की लाइनें लग गईं। काम बंद होने पर सबसे ज्यादा प्रभाव ओपीडी और ट्रॉमा सेंटर के मरीजों पड़ा।
कर्मचारियों का कहना है कि आउटसोर्स कंपनी द्वारा एक माह में मिलने वाली चार छुट्टियों तक की सैलरी काट दी गई हैं। पहले भी अस्पताल प्रशासन से इसकी शिकायत की गई थी, पर कोई सुनवाई नहीं हुई।
वेतन न मिलने और दिये जा रहे वेतन में मनमानी कटौती से नाराज कर्मचारियों ने काम बंद करने की घोषणा करने के साथ अपनी मांग को लेकर प्रदर्शन भी किया। कर्मचारियों ने पहले न्यू ओपीडी में नारेबाजी करणे के बाद अस्पताल प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी करते हुए ट्रामा सेंटर पहुंच गये।
स्वास्थ्य जैसे संवेदनशील व्यवस्था के संचालन में जिस तरह से निजी कंपनियों को प्रवेश दिया जा रहा है, उस पर इस प्रदर्शन ने बड़े सवाल खड़े कर दिये हैं। स्वास्थ्य सेवा के संचालन में योग्य, कुशल और प्रशिक्षित कर्मचारियों की आवश्यकता होती है। सरकार की नई नीति में स्थायी कर्मचारियों के बजाय आउटसोर्स कंपनियों को फायदा पहुंचाया जा रहा है। स्किल्ड कर्मचारी औने-पौने मानदेय पर इन कंपनियों के साथ काम कर रहे हैं। इसके बाद भी इन कर्मचारियों को कंपनियों द्वारा अलग-अलग तरह से प्रताड़ित किया जाता है।
केजीएमयू के आउटसोर्स कर्मचारियों का कहना है कि एजेंसी तानाशाही पर उतर आई है। कंपनी वेतन के अलावा बोनस में भी कटौती कर रही है, जिससे उनके लिए जीविका चलाना भी दूभर हो रहा है।
इन आरोपों को लेकर केजीएमयू प्रवक्ता डॉ सुधीर सिंह ने बताया कि केजीएमयू प्रशासन कर्मचारियों की हर समस्या को लेकर गंभीर है। कर्मचारी की बातों को गंभीरता से लिया गया है और उनका हर स्तर पर समाधान किया जाएगा। संविदा कर्मचारी सेवा प्रदाता संस्था जेम वेंचर्स के माध्यम से तैनात किए गए हैं। ऐसे में उनकी हर तरह की जिम्मेदारी जेम वेंचर्स की है। पूरे मामले की जांच कराई जा रही है।
उन्होंने कहा कि यह बात सामने आई है कि अनजाने में वेतन कटौती हुई है। इसकी जिम्मेदारी जेम वेंचर्स की है। सेवा प्रदाता संस्था को निर्देश दिया गया है कि प्रभावित कर्मचारियों को तुरंत उनका भुगतान करे।
आउटसोर्सिंग कर्मचारियों का कहना है कि ‘इस महीने में पूरा वेतन नहीं मिला है। पैसों में कटौती गई है। आउटसोर्सिंग कर्मचारियों को 1 महीने में मिलने वाली चार छुट्टियां के भी पैसे काट लिए गए हैं। इस वजह आज हम लोग प्रदर्शन करने में मजबूर हुए हैं। करीब 5000 कर्मचारियों ने काम बंद करने का फैसला लिया है।
राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के महामंत्री अतुल मिश्रा ने इसे आउटसोर्सिंग कर्मचारियों का उत्पीड़न कहा है। उनका कहना है कि बायोमेट्रिक अटेंडेंस की वजह से कर्मचारी डरे हुये हैं कि कभी भी उनका वेतन कट सकता है। आउटसोर्सिंग कर्मचारी के लिए राजपत्रित और साप्ताहिक अवकाश लेना भी कठिन हो गया है, अवकाश लेने पर वेतन से पैसे कटने का डर हमेशा बना रहता था। उन्होंने बताया कि पहले भी केजीएमयू के कर्मचारियों ने प्रदर्शन किया था तब उनकी मांगों को केजीएमयू प्रशासन ने मान लिया था, लेकिन मांग मान लेने के बावजूद भी इन मांगों पर कोई एक्शन नहीं लिया गया। यह साफ दिखाता है कि जानबूझकर कर्मचारियों का उत्पीड़न किया जा रहा है।
प्रदर्शन में शामिल एक कर्मचारी ने कहा कि रविवार के पैसे भी काटे जा रहे है आखिर यह कौन सी व्यवस्था है? क्या हम आदमी नहीं हैं? क्या हम बीमार नहीं पड़ सकते है?
फिलहाल कर्मचारियों के इस आक्रोश और प्रदर्शन से आउटसोर्सिंग कर्मियों के जीवन की चुनौतियाँ सामने आ गई हैं। एक कर्मचारी ने बताया कि 15-16 हजार सैलरी में से 4 हजार रुपए काट लिए जा रहे हैं। इस स्थिति में घर परिवार चलाना मुश्किल होता जा रहा है।
आउटसोर्सिंग कर्मचारी वेतन काटे जाने के आक्रोश में जहां अपने हक के लिए संघर्ष कर रहे हैं, वहीं इनके मन में यह डर भी दिख रहा है कि कहीं इस प्रदर्शन की वजह से उन्हें काम से निकाल ना दिया जाये।