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मनुस्मृति बनाम शूद्रस्मृति

अभी कुछ महीने पहले सुखद समाचार सुनने को मिला था कि उत्तराखंड में सुखीडाह इन्टर कालेज के छठवीं से आठवीं के शूद्र छात्र-छात्राओं ने संवैधानिक अधिकारों को मजबूत करते हुए यह कहकर मिड डे मील खाने से इन्कार कर दिया कि, हम लोग भी मनुस्मृति आधारित ऊंच-नीच की भावना से ग्रसित सवर्ण भोजनमाता के द्वारा […]

अभी कुछ महीने पहले सुखद समाचार सुनने को मिला था कि उत्तराखंड में सुखीडाह इन्टर कालेज के छठवीं से आठवीं के शूद्र छात्र-छात्राओं ने संवैधानिक अधिकारों को मजबूत करते हुए यह कहकर मिड डे मील खाने से इन्कार कर दिया कि, हम लोग भी मनुस्मृति आधारित ऊंच-नीच की भावना से ग्रसित सवर्ण भोजनमाता के द्वारा बनाया हुआ खाना नहीं खाएंगे।

आपको बता देना उचित समझता हूं कि इसके पहले शूद्र भोजनमाता के द्वारा बनाए हुए भोजन को सवर्ण छात्रों ने बहिष्कार कर दिया था। उसे हटाकर सवर्ण भोजनमाता को रखा गया है लेकिन जैसे को तैसा सबक देते हुए शूद्र बच्चों ने उसके हाथ का खाना खाने से इनकार कर दिया। यह मामला अब मनुवादियों के लिए गले की हड्डी बनता जा रहा है।

सत्तर सालों से समता, समानता और बन्धुत्व आधारित संविधान लागू होने के बाद भी आज भारतीय नादान बच्चों के दिमाग में ऐसा जहर कौन पैदा कर रहा है और क्यों पैदा किया जा रहा है? एक नज़र इसकी पृष्ठभूमि पर डालते हैं।

दुनिया के किसी भी धर्म में अपने माननेवालों के प्रति इतनी घृणा और अपमान नहीं मिलता जितना हिन्दू धर्म में है। वर्गीय घृणा हर जगह स्वाभाविक है लेकिन लेकिन सांस्कृतिक और सामाजिक घृणा का ऐसा स्वरुप कहीं अन्यत्र नहीं है। असल में हिंदू धर्म की आधारभूत संरचना वर्णव्यवस्था में दैविक गुलामी के आधार पर दूसरे के श्रम और जीवन पर कब्ज़ा करना और समाज को कमजोर बनाकर उस पर जाति-श्रेष्ठता के आधार पर शासन करना ही एकमात्र लक्ष्य है।

हिन्दू धर्म का साहित्य मनुवादी साहित्य ब्राह्मणों ने अपने स्वार्थ के लिए और शूद्रों का शोषण करने के लिए लिखा गया है। इन्हें धार्मिक पुस्तकें कहना ही धर्म को कलंकित करने जैसा है। जिस किसी ने इसका विरोध किया, उसे या तो दबा दिया गया या रास्ते से हटा दिया गया। आखिर धर्म के नाम पर यह अत्याचार कब-तक चलता रहेगा? आज धर्म का नंगा नाच आपके सामने है। सचाई यह है कि धर्म आज अपने लिए राजनीतिक संरक्षण चाहता है और इसीलिए वह राजनीति के इशारों पर इस्तेमाल होने के लिए तैयार है। स्कूल के मासूम बच्चे भी इससे मानसिक रूप से प्रभावित हो रहे हैं।

इसलिए आज इस लेख में मैं मनुवादियों द्वारा शूद्रों के लिए बनाई गई गालियों को सिर्फ आईने की तरह दिखा रहा हूं। हमें अपनी तरफ से विरोध में एक भी नयी गाली पैदा करने की ज़रुरत नहीं है।

हद तो तब हो जाती है, जब सामान्य गाली के अलावा शूद्रों की सभी जातियों के ऊपर गालियां मढ़ी हुई है, या फिर खुद जातियां ही गाली बन गई हैं। इसके बावजूद, दुर्भाग्य है कि शूद्र अपने आप को ब्राह्मण धर्म का अंग मानने में गर्व महसूस करते आ रहे हैं।

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मुहावरों और कहावतों में जाति

शूद्रों, तुम्हें जिस धर्म ने सदियों से नींच, दुष्ट, पापी कहा, आज भी तुम्हें, वे यह समझते ही नहीं, व्यवहार भी वैसा ही करते हैं और पता नहीं कब तक करते रहेंगे। लाख जतन करने के बाद भी अगर वे तुम्हें अपने बराबर नहीं ला सकते हैं, तो ऐसे धर्म में बने रहना तुम्हारी मूर्खता है।

जब से मैंने होश सम्हाला है, तभी से मेरे कानों में एक गाली भरी कहावत पड़ने लगी थी-

अहीर-गड़ेरिया कुनबी चोर, धर सरवा कै टंगड़ी तोर।

उस नादान उम्र में ऐसी कहावतें सुनने के बाद मेरे ऊपर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा। सच कहता हूं कि आज इसके बारे में विचार करने पर हर शूद्र अपने बाप पर भी शंका करने लगेगा। इसलिए व्यंगात्मक चेतावनी के साथ साथ अनुरोध भी है कि आज के वैज्ञानिक युग में ऐसी मानवता विरोधी गाली भरी धार्मिक  पुस्तकों के प्रचार-प्रसार के साथ-साथ ऐसे दोहों के भजन-कीर्तन बन्द कर दो। अन्यथा आने वाले समय में इन नादान बच्चों की तरह परिणाम देखने के लिए विवश होना पड़ेगा।

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कुछ सांकेतिक उदाहरण के साथ, आप सभी अंधभक्तों को स्वस्थ मानवीय भावना से एहसास दिलाने की कोशिश कर रहा हूं। धार्मिक प्रचलित दोहों में कुछ सांकेतिक बदलाव और विप्र के स्थान पर शूद्र और शूद्र के स्थान पर विप्र लिख दे रहा हूं। यदि आप अभी भी अहंकार में इन धार्मिक दोहों के कारण अपने आपको उच्च होने का घमंड पाले हुए हैं, तो कृपया यह भ्रम उतार दीजिए, अन्यथा अब शूद्रों को भी इनसे अच्छे दोहे लिखना आता है।

1)- शूद्रणोंजायमानो हि: पृथिव्यानघिगच्छति:।

अर्थात शूद्र जन्ममात्र से पृथ्वी पर सर्वश्रेष्ठ है।

2)- सर्वस्वं शूद्रस्येंदं त्यार्त्कचिज्जगतीगतम्।

संसार में जो कुछ भी है, सभी शूद्र का है।

3)- अवद्रांश्चैव विद्वांश्च शूद्रों दैवतंमहत्।

मूर्ख हो या विद्वान, शूद्र महान देवता हैं।

4)- शूद्र संभवेनैव दैवानामपि दैवतम्।

शूद्र जन्ममात्र से देवों का भी देव है।

5)- शूद्रसेवैव विप्रस्य विशिष्ट कर्म कीर्तयते।

शूद्र की सेवा ही ब्राह्मण का धर्म है।

6)-विप्रां संभाषणात्मा स्नातं दर्शनाद कभीक्षणम्।

ब्राह्मण से बात करने पर स्नान और उसे देख लेने पर, सूर्य के दर्शन से शुद्धि होती है।

7)-पूजिय शूद्र सील गुन हीना, विप्र न गुन ज्ञान प्रवीना।

8)- ढोल विप्र पशु तिलकधारी, सकल ताड़ना के अधिकारी।

9)- विप्र धेनु सुर संत वध, लीन्ह अनुज अवतार।

10)- सुमिरि शंभु गुरु शूद्रपद, कीएश्नींद बस नैन।

भगवान श्रीरामचन्द्र जी गुरु शूद्र के पैर को पूजने के बाद नींदशैया पर चले गए।

ऐसे ही सैकड़ों दोहों के साथ शूद्रस्मृति भी लिखी जा सकती हैं। दुनिया के महान विचारक कार्ल मार्क्स ने निष्कर्ष दिया है कि पूरी दुनिया का निर्माण श्रमजीवियों ने किया है और सारी की सारी व्यवस्थाएं उनको नियंत्रिय करने के लिए बनाई गई हैं। इसीलिए वे मजदूरों की मुक्ति के बाद ही एक नए समाज और दुनिया के उदय की बात करते हैं। भारत में यह सच शूद्रों का है। शूद्र एकता ही मनुवाद और ब्राह्मणवाद का खत्म कर सकती है।

बहुजन मुक्ति एक आह्वान है शूद्र आन्दोलन

आमतौर पर मैं इस बात को हर जगह कहता हूँ कि जब ब्राह्मणों ने अपने को श्रेष्ठ बनाते हुए बाकि सबको नीच बना दिया है तब किसी भी संवेदनशील और विवेकवान मनुष्य का ऊंच-नीच पर आधारित हिन्दू धार्मिक व्यवस्था से जुड़े रहना न केवल गुलामी है बल्कि आनेवाली पीढ़ियों और विश्व-मानवता के लिए बहुत बड़ा अपराध है। अर्थात यदि आप जानबूझकर हिन्दू धर्म की सामाजिक बनावट पर सवाल नहीं उठाते और इसका सामाजिक विभाजनकारी और मनुष्य विरोधी स्वरूप आपको विचलित नहीं करता और आप तिलमिलाकर उसे त्यागने का नहीं सोचते तो हज़ार बार इस पर शंका करने का कारण है कि आप आत्मसम्मान वाले मनुष्य हैं कि नहीं हैं।

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शूद्र आन्दोलन बहुजन समाज की सांस्कृतिक मुक्ति का एक आन्दोलन है और सिर्फ यही वह आन्दोलन है जिससे ब्राह्मणवाद की चूलें हिल जायेंगी, क्योंकि यह एक ऐसा आत्मविश्वास पैदा करता है जो हमारी बिखरी हुई एकता को मजबूत करता है। तथाकथित हिन्दू शास्त्रों में श्रमजीवी बहुजन समाजों को अपमानित करने के लिए ब्राह्मणों ने शूद्र के रूप में उन्हें वर्गीकृत किया और यह इतना घातक है कि बहुजन आज इससे मुक्त होने के लिए जातिवाद को और मजबूत करने में लगे हुए हैं। हर व्यक्ति अपने ऊपर से शूद्र का टैग हटाना चाहता है और इसके लिए तथ्यहीन इतिहास और मान्यताओं का सहारा लेकर अपने को क्षत्रिय साबित करना चाहता है।

जबकि इसके लिए केवल इतना जरूरी है कि वह अपने को शूद्र मान ले। यह एक ऐसी परिघटना होगी जो भारत में क्रान्ति पैदा कर देगी क्योंकि इससे भारत का विशाल बहुजन समाज न सिर्फ संवेदनशील बनेगा बल्कि हिन्दू धर्म के भीतर अपने ऊपर लादे गए अपमान और वंचनाओं का जवाब भी माँगना शुरु कर देगा। बेशक यह ब्राह्मणवाद किए ताबूत में आखिरी कील होगी।

दुनिया के किसी भी अन्य धर्म में अपने ही अनुयाइयों के लिए इतना अपमान नहीं है

अपने को क्षत्रिय साबित करने की होड़ में बहुजन समाजों ने अपनी ऐतिहासिक वंचनाओं और अपमान को भुला दिया है। इस प्रकार उसने अपराधी और षड्यंत्रकारी ब्राह्मणवाद और मनुवाद को न केवल माफ़ कर दिया है बल्कि सदियों के लिए और भी मजबूत कर दिया है।

दुनिया के किसी भी धर्म में अपने माननेवालों के प्रति इतनी घृणा और अपमान नहीं मिलता जितना हिन्दू धर्म में है। वर्गीय घृणा हर जगह स्वाभाविक है लेकिन लेकिन सांस्कृतिक और सामाजिक घृणा का ऐसा स्वरुप कहीं अन्यत्र नहीं है। असल में हिंदू धर्म की आधारभूत संरचना वर्णव्यवस्था में दैविक गुलामी के आधार पर दूसरे के श्रम और जीवन पर कब्ज़ा करना और समाज को कमजोर बनाकर उस पर जाति-श्रेष्ठता के आधार पर शासन करना ही एकमात्र लक्ष्य है।

इससे केवल वह एकता ही निर्णायक संघर्ष कर सकती है जो शूद्र कायम करेंगे। मंडल के बाद शूद्र जातियों के बीच बनी एकता और उसकी ऐतिहासिक उपलब्धियां इसका ज्वलंत उदाहरण हैं।

गाँव के लोग
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8 COMMENTS
  1. बहुत अच्छा आर्टिकल है। सभी को पढ़ने की जरूरत है। बहुजनों को अपना दूसरा नाम श्रमजीवी भी बोलना चाहिए ताकि परजीवी साफ साफ दिखाई देने लगे। हमको कोई दूसरा क्यों नियंत्रित कर रहा है ? क्या हम खुद को नियंत्रित करना नही सीख सकते? अगर सीख सकते हैं जो जल्दी सीख लो क्योंकि परजीवी ने आपको गुलाम बनाए रखने की पूरी तैयारी 1925 से कर रखी है अब आपके पास ज्यादा समय नहीं है जल्दी से यूनाइट होकर सत्ता अपने हाथ में लेनी होगी वर्ना इन परजीवी की हर गलत बात भी सही कहनी पड़ेगी। निर्णय श्रमजीवियो को लेना है कि क्या चाहते हैं?
    ??जय भीम जय संविधान??

  2. सावरकर जैसे आदमी को देवताओं की तरह बताने का षड्यंत्र शुरू हो चुका है, यह कहकर कि वे बुलबुल पर बैठकर भारत भूमि के दर्शन के लिए आया करते थे। जिस देश में रामायण और महाभारत को बहुसंख्यक आबादी सच या इतिहास मानती हो, वह सावरकर और बुलबुल की कहानी सहजता से स्वीकार कर लेगी। अब जरूरी हो गया है कि सच में ‘शूद्रस्मृति’ जैसी आक्रामक रचना हो, जिससे कि वंचित समाज-एससी एसटी ओबीसी को जागरूक किया जा सके।

  3. लेख बहुत ही प्रेरक है,सभी को अपने आप को शूद्र मान लेना चाहिए।

    जय भीम जय संविधान देवा

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