भैया की शादी में बारात जाने के लिए मैंने अपनी साइकिल का उपयोग किया था। उस अनुभव को याद करता हूं तो शरीर में अजीब सी हरकत होती है। क्या अनुभव था वह साइकिल चलाने का। पापा बार-बार कहते रहे कि टेम्पू पर चलो। लेकिन बारात में शामिल होने कई लोग साइकिल से जा रहे थे तब मैं भला टेम्पू से कैसे जाता। यह तो समाजवाद के विपरीत ही होता।
मन में ख्वाहिशें तो होती ही थीं कि कोई मुझे भी देखे। यह कोई असामान्य बात नहीं थी। लेकिन मन पढ़ाई में भी रम गया था। भाभी अब हमारे जीवन का हिस्सा थीं। भैया ने उनका एक नामकरण किया था। शायद गंगा-दामोदर एक्सप्रेस या फिर वह हावड़ा एक्सप्रेस। वजह यह कि भाभी को दिन भर के काम से छुटकारा नौ बजे के बाद ही मिलता। भैया उनका इंतजार करता रहता और इसी इंतजार में वह उन्हें इस तरह के संबोधन से संबोधित करता। दोनों थे भी एकदम शानदार कपल।


नवल किशोर कुमार फ़ॉरवर्ड प्रेस में संपादक हैं।
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