Tuesday, May 13, 2025
Tuesday, May 13, 2025




Basic Horizontal Scrolling



पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

होमसंस्कृतिमीडिया की महाएक्सक्लूसिव कथाएं

इधर बीच

ग्राउंड रिपोर्ट

मीडिया की महाएक्सक्लूसिव कथाएं

(एक) एंकर खबर के लिए अभी इधर-उधर हाथ-पैर मार रहा होता है कि खबर मिलती है कि भीड़ ने दो आदमियों की पीट-पीट कर हत्या कर दी। ‘लिंचिंग! लीचिंग!’ कहकर वह उछल पड़ता है और खिड़की से छलांग लगा देता है। ‘मरने वाला कौन था!’ ‘वह जोश में अपने संवाद सूत्र से पूछता है। (उसका […]

(एक)

एंकर खबर के लिए अभी इधर-उधर हाथ-पैर मार रहा होता है कि खबर मिलती है कि भीड़ ने दो आदमियों की पीट-पीट कर हत्या कर दी। ‘लिंचिंग! लीचिंग!’ कहकर वह उछल पड़ता है और खिड़की से छलांग लगा देता है।

‘मरने वाला कौन था!’

‘वह जोश में अपने संवाद सूत्र से पूछता है। (उसका ऑफिस ग्राउंड फ्लोर पर है।)

‘सर गरीब!’

‘अबे मरने वाले किस धर्म के थे!’ एंकर चीखता है।

‘सर हिन्दू!’ संवाद सूत्र हकलाता है।

‘मारने वाले कौन थे!’

‘भीड़ थी सर!’

‘तुम समझे नहीं! एक्चुवल में कौन थे वे लोग!’ एंकर थोड़ा हड़बड़ी में बोलता है।

‘भीड़ तो भीड़ सर! भीड़ की क्या पहचान!’

‘तुम संवादसूत्र ही रहोगे जिंदगी भर…रिपोर्टर नहीं बन पाओगे! लिख कर ले लो!!!’ एंकर टांट कसता है।

‘हत्या करने वाले किस बिरादरी के थे!’ बहुत ठंडे स्वर में वह फिर बोलता है।

‘सर अभी ये नहीं पता !’

यह भी पढ़ें…

बुल्ली बाई प्रकरण: संवेदनाओं और मूल्यों की नीलामी

‘पता करके जल्दी से बताओ!’ एंकर टहलते हुए वापस अपने ऑफिस में आ जाता जाता है।

कुछ देर बाद उसी संवाद सूत्र का फोन आता है।

‘हां, क्या पता चला!’ एंकर बहुत जोश में पूछता है।

‘सर मारने वाले मरने वाले…’

‘हां-हां…’ एंकर बीच में बोलता है।

‘ दोनों की बिरादरी एक ही है सर!’

‘अच्छा, फोन रखो!’ यह कह कर एंकर फोन काट देता है। वह उठता है। चुपचाप स्टूडियो में दाखिल होता है। दरवाजा बंद करता है और फूट फूट कर रोने लगता है।

अगोरा प्रकाशन की किताबें अब किन्डल पर भी…

(दो)

चिल्लाते हुए रात को वह उठा। बीवी की भी नींद खुल गई। उसने झट से कमरे की लाइट जलाई।

उसने देखा कि उसका पति पसीने से तर-ब-तर था।

‘क्या हुआ!’ बीवी ने पूछा।

‘मैंने एक बुरा सपना देखा!’ वह घबरा कर बोला।

‘क्या इनकम टैक्स वालों का छापा पड़ा!’

‘नहीं भाई!’ वह चिढ़कर बोला।

बीवी ने संतोष की सांस ली। चुप होकर उसका पीठ सहलाती रही।

‘मैंने देखा… मैंने देखा कि एक सांप फन काढ़े मेरे सामने अपनी पूछ पर खड़ा है। उसकी लपलप करती जीभ मेरी नाक से छू रही है…’ यह कहते-कहते वह थोड़ी देर रुका। बीवी ने पीठ सहलाना तेज कर दिया।

‘फिर सांप मुझसे बोला, इतना जहर कहां से लाते हो गुरु!’ यह सुनते ही उसकी बीवी जोर से हंसी।

‘यह टीवी ही सारी खुराफात की जड़ है!’ कहकर वह उठी और  कमरे की लाइट बुझा दी। बिस्तर पर उसके सिर पर हाथ फेरते हुए वह बहुत प्यार से बोली,’ सुनो कल ऑफिस से छुट्टी ले लो! अगर एक दिन सरकार के कसीदे नहीं गढ़ोगेे तो सरकार  गिर नहीं जाएगी!’

(तीन)

जब सम्पादक महोदय, जो कि हमारा मित्र है, नेताजी के बंगले से बाहर निकला तो उसका चेहरा चमक रहा था।

‘का गुरु! गए थे बुझे-बुझे मगर लौटे तो चमक रहे! अपने चेहरे पर पसीने से मालिश की है क्या!’ बाहर उसकी गाड़ी में इंतजार की घड़ियां खत्म होते ही मैंने पूछा।

‘नहीं यार! आज तेल कुछ ज्यादा हो गया…’ड्राइविंग सीट पर बैठते हुए बहुत इत्मिनान से बोला।

अगोरा प्रकाशन की किताबें अब किन्डल पर भी…

(चार)

वक्ता: तुम दल्ले हो

एंकर (भड़कते हुये): तमीज से बात कीजिये और माफी मांगिये

वक्ता: माफ कीजिए, आप दल्ले हैं।

(पांच)

सजा-धजा बड़ी-सी काले रंग की कार में बैठ, केश विन्यास ठीक करते हुए, सब वह सोसाइटी से निकल रहा था, तब खम्बे की तरह खड़ा सिक्योरटी गार्ड खुद से बोला, ‘निकल पड़े आरती करने!’

पास ही खड़े कल ही गांव से आये उसके बाउजी ने पूछा, ‘ई पुजारी है का!’

‘न बाउजी! न्यूज एंकर होखे!’ गार्ड ने गेट बंद करते हुए कहा।

अगोरा प्रकाशन की किताबें अब किन्डल पर भी…

(छह)

नेताजी का फोन बजा। एक बार। दो बार। तीन बार बजा। नेताजी ने पीए को फोन पकड़ा दिया।

‘हां, हेलो!’ पीए बोला।

‘सर प्रणाम!’

‘प्रणाम! प्रणाम! (फोन करने वाला पहचान गया कि यह नेताजी नहीं वरन उनके पीए जी  बोल रहे हैं।)

‘सर आपकी पार्टी के प्रवक्ताजी नहीं आये! फोन ट्राई किया मगर स्विच ऑफ जा रहा है!’

‘हां, उनको अचानक से कहीं जाना पड़ा।कुछ इमरजेंसी आ गयी!’

‘क्या नेताजी आ सकते हैं!’

‘क्या कोई इमरजेंसी है!’

यह भी पढ़ें…

सुविधाहीन अस्पताल में मरीज को बचा पाने का कन्विकशन खतरनाक होता है

नॉट एट ऑल सर!’

‘नेताजी को क्यों तकलीफ देते हो !’

‘आपकी पार्टी का पक्ष कौन रखेगा सर!’

‘तुम हो न!’

यह कहकर पीए ने फोन काट दिया।

(सात)

हैदर मियां जब हरिप्रसाद के दौलतखाने पहुँचे तो उन्होंने देखा कि हरिप्रसाद के  बच्चे टीवी चलाने को लेकर जिद्द कर रहे थे।

‘कहानी घर-घर  की…’ मूढ़े पर बैठते हुए हैदर मियां ने कहा।

‘नाक में दम कर रखा है दोनों ने…” हरिप्रसाद ने अपनी कहानी सुनाई।

‘प्रसाद भाई, हमारे यहां का आलम तो यह है कि बच्चे टीवी देखे बिना खाना नहीं  खाते!!’

इसी बीच बच्चों को अपनी जंग में फतह मिल गई और टीवी का रिमोट उनके हाथ में आ गया था। रिमोट के दबते ही टीवी पर समाचार चैनल लग गया। यह देखकर हैदर मियां के आश्चर्य का ठिकाना न रहा।

‘भाई माशा अल्लाह! आपके बच्चे तो बहुत ही अक्लमंद हैं, एक हमारे हैं कि दिन भर कार्टून…’

हैदर मियां अपनी दीदे फाड़े बच्चों को देखकर बोले। इस बात पर हरिप्रसाद कुछ न बोले, बस मुस्कुरा कर रह गए।

थोड़ी देर बाद हैदर मियां ने देखा कि समाचार चैनल पर समाचार प्रस्तोता ने अपने प्रोग्राम में न्योते मेजबान के सामने अपने  खास अंदाज में जैसे ही बोलना शुरू किया बच्चे ताली पीट कर हँसने लगे।

अनूप मणि त्रिपाठी युवा व्यंग्यकार हैं और लखनऊ में रहते हैं।

गाँव के लोग
गाँव के लोग
पत्रकारिता में जनसरोकारों और सामाजिक न्याय के विज़न के साथ काम कर रही वेबसाइट। इसकी ग्राउंड रिपोर्टिंग और कहानियाँ देश की सच्ची तस्वीर दिखाती हैं। प्रतिदिन पढ़ें देश की हलचलों के बारे में । वेबसाइट को सब्सक्राइब और फॉरवर्ड करें।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Bollywood Lifestyle and Entertainment