Saturday, July 27, 2024
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आंबेडकरवाद और एकजुट लड़ाई की जीत है प्रोफेसर रतनलाल की रिहाई

सत्ता का रवैया देखते हुए जिस बात की आशंका थी, वह सामने आ ही गयी। फेसबुक पर ज्ञानवापी मस्जिद में मिले शिवलिंग, जिसे एक तबका फव्वारा बता रहा है, पर खास नजरिये से टिप्पणी करने के कारण आंबेडकरनामा के एडिटर, इतिहास के प्रोफ़ेसर तथा भारत के अन्यतम श्रेष्ठ इतिहासकार काशीप्रसाद जायसवाल के लेखन के शोधकर्ता […]

सत्ता का रवैया देखते हुए जिस बात की आशंका थी, वह सामने आ ही गयी। फेसबुक पर ज्ञानवापी मस्जिद में मिले शिवलिंग, जिसे एक तबका फव्वारा बता रहा है, पर खास नजरिये से टिप्पणी करने के कारण आंबेडकरनामा के एडिटर, इतिहास के प्रोफ़ेसर तथा भारत के अन्यतम श्रेष्ठ इतिहासकार काशीप्रसाद जायसवाल के लेखन के शोधकर्ता प्रो. रतनलाल को 20 मई की रात साढ़े दस बजे गिरफ्तार कर लिया। इस गिरफ्तारी के खिलाफ प्रतिवाद जताने के लिए आधी रात को  दिल्ली पुलिस के साइबर थाना, मौरिस नगर पर सैकड़ों दलित व वाम एक्टिविस्ट, शिक्षक और छात्र जमा हो गए। सुबह होते-होते सोशल मीडिया प्रो. रतनलाल की रिहाई की मांग से पट गयी। यही नहीं उनकी रिहाई की मांग को लेकर देश के विभिन्न अंचलों में लोग सड़कों पर भी उतर आये हैं। उनकी गिरफ्तारी की खबर वायरल होते ही देश के छोटे-बड़े असंख्य बहुजन बुद्धिजीवियों के साथ वाम बुद्धिजीवी व संगठन इस घटना की भर्त्सना करने में जुट गए, लेकिन इन पंक्तियों के लिखे जाने तक बसपा-सपा, राजद-लोजपा इत्यादि बहुजनवादी दलों की ओर से कोई प्रतिवाद नहीं जताया गया है। बहरहाल, इस घटना से सिर्फ बहुजन बुद्धिजीवी और एक्टिविस्ट ही नहीं मुख्यधारा के बुद्धिजीवी भी स्तब्ध हैं।

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सुप्रसिद्ध शिक्षाविद प्रो. अजय तिवारी ने लिखा है, ’डॉ. रतनलाल की शिवलिंग विषयक टिप्पणी से असहमत हूँ, लेकिन उनकी गिरफ्तारी का विरोध करता हूँ। यह जनतांत्रिक आज़ादी का हनन है। उन्होंने पुराण-लेखकों से ज्यादा बुरी बात नहीं लिखी है। ’उनका समर्थन करते हुए कर्मेंदु शिशिर ने लिखा है, ’आपकी बात से शत-प्रतिशत सहमत हूँ।’ वरिष्ठ चिन्तक कनक तिवारी ने लिखा, ’प्रोफेसर रतन लाल को केवल दलित लेखक कहकर हम उनका कद छोटा नहीं करते हुए कहेंगे वे अभिव्यक्ति की आज़ादी के पहरेदार हैं। लेखक हैं। विचारक हैं। इस नाते अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमला उनकी गिरफ्तारी के जरिए हुआ है। यह केवल एक वर्ग विशेष पर नहीं पूरे भारतीय समाज पर है। हम सब इसका पुरजोर विरोध करेंगे। यह अंग्रेजों की मानसिकता की सरकार चल रही है आजकल।’

बहुजन बुद्दिजीवियों में प्रेमकुमार मणि ने लिखा, ’सोशल मीडिया से मिल रही खबरों के अनुसार दिल्ली विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के एसोसिएट प्रोफ़ेसर रतनलाल को पुलिस ने कल गिरफ्तार कर लिया है। प्रोफेसर रतनलाल मेरे पुराने मित्र हैं। उनकी बौद्धिक सूझ-बूझ और विद्वता की मैं कद्र करता हूँ। उनकी तरह विनम्र और सभ्य मैंने बहुत कम लोगों को देखा है। उनकी गिरफ्तारी संभवतः उनके लिखे एक पोस्ट को लेकर हुई है। मेरी मान्यता है कि यह अभिव्यक्ति के संवैधानिक अधिकार पर हमला है। इसे मैं बिलकुल गलत मानता हूँ। मैं प्रोफ़ेसर रतनलाल के प्रति अपना समर्थन व्यक्त करता हूँ। हुकूमत उन्हें अविलम्ब मुक्त करे और पूरे प्रकरण के लिए उनसे मुआफी मांगे।’ प्रो. लाल के गिरफ्तारी की खबर मिलते ही प्रख्यात पत्रकार उर्मिलेश ने लिखा, ’दिल्ली विश्वविद्यालय (हिन्दू महाविद्यालय) के एसो. प्रोफ़ेसर रतनलाल जैसे मुखर और प्रगतिशील बुद्धिजीवी की गिरफ़्तारी अत्यंत निंदनीय है। सत्ता और व्यवस्था के लगातार और तेजी से निरंकुश होते जाने का यह ठोस उदाहरण है। जिस तरह निहायत सतही और निराधार आरोपों मे उन्हें रात के अंधेरे में हिरासत में लिया गया, वह किसी लोकतांत्रिक समाज में संभव नहीं। अल्पसंख्यक समुदाय के सामाजिक कार्यकर्ताओं, छात्रों-युवाओं और प्रगतिशील विचारकों के बाद अब निशाने पर दलित, ओबीसी और अन्य समुदायों के असहमत बुद्धिजीवी! प्रोफ़ेसर रतनलाल को अविलम्ब रिहा करो!’

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सत्येन्द्र पीएस ने बहुत ही तल्ख अंदाज़ में रोष व्यक्त किया, ’दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर रतन लाल को गिरफ्तार कर लिया गया। लाल से पहली मुलाकात समाजवादी पार्टी द्वारा आयोजित एक मंच पर बहुत पहले हुई थी, जहां मुझे भी भाषणबाजी के लिए बुलाया गया था। उसके बाद दिलीप मंडल के साथ कई मुलाकातें और थोड़ी बहुत बात हुई। सोशल मीडिया पर उनको बहुत ज्यादा फॉलो नहीं कर पाता, लेकिन इतना पता है कि वह अम्बेडकरवादी हैं, अत्यंत मृदुभाषी हैं, सहृदय हैं। लिंग, योनि, यौन संबंध आदि आदि के बारे में जो हिन्दूधर्मग्रन्थों में लिखा गया है, वह अगर बताने पर लग जाया जाए तो धार्मिक लोगों को ऐसा फील होने लगेगा कि उनके कान में पिघला शीशा डाला जा रहा है। आश्चर्य की बात है कि एक ऐसे बयान पर गिरफ्तारी हुई है, जिसके बारे में तमाम महान विचारकों कबीर से लेकर ज्योतिबा फुले, भीमराव अंबेडकर, पेरियार आदि ने रतनलाल से 100 गुना उग्र होकर लिखा है। जब अम्बेडकर लिखा करते थे और गांधी से उस पर राय मांगी जाती थी तो गांधी कहा करते थे कि दलितों के साथ जो अन्याय हुआ है और उनके साथ जैसा व्यवहार किया जाता है, उसकी तुलना में अम्बेडकर की प्रतिकिया बहुत शालीन है। आप दलितों को सड़क पर पीट-पीटकर मार डालते हैं, तरह-तरह से जातीय मजाक बनाते हैं। आप या आपकी भावनाओं का कद्र वह क्यों करें? इसलिए कि आप गुंडे हैं, आप सत्ता में हैं? सरकार को न सिर्फ रतन लाल को तत्काल रिहा करने की जरूरत है, बल्कि एक सख्त संदेश देने की जरूरत है कि अगर ऐसे मामलों में आन्दोलन होते हैं या कोई गिरफ्तारी होती है या दलित चिंतकों को पीटा जाता है तो इतनी सख्त कार्रवाई होगी कि गुंडों की रूह कांप जाए। सरकार ऐसे नहीं चलती नरेंद्र मोदीजी जी! कुछ तो लिहाज करिये गांधी और बुद्ध की धरती का, जहां आप पैदा हुए हैं! न्याय कीजिए, कुछ अच्छा कीजिए, जिससे आपको भी इतिहास याद रखे। यह नहीं चलेगा कि आपके शासन में आपके गुजरात में आपके देश में दलित पीटे जाएं और यह कहकर आप अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लें कि दलित भाइयों की जगह हमें पीटें, या इस घटना के लिए खुद को माफ नहीं कर पाऊंगा। आपके सख्त बयान आने चाहिए कि इस तरह के दलितों के उत्पीड़न, दलित चिंतकों के मुंह बंद करने और उन्हें डराने की कवायद पर सरकार की नो टॉलरेंस नीति है। सरकार के कारकुनों, न्यायपालिका और जनता को आप उसी तरह संदेश दे सकते हैं जैसा गांधी ने दिया था। उस समय अंग्रेजों का शासन था, अभी तो आपका शासन है। आस्था पर चोट के नाम पर हम प्रतिरोध की आवाज को दबाने की प्रवृत्ति को क्या कहें क्योकि दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और अम्बेडकरवादी विद्वान रतन लालजी को प्राप्त सूचना के मुताबिक दिल्ली पुलिस के साइबर सेल ने गिरफ्तार कर लिया है हम पुलिस की इस कार्यवाही पर प्रतिरोध जताते हैं।’

बहुजन विरोधी हर घटना पर आवाज उठाने वाले चंद्रभूषण सिंह यादव ने लिखा, ’प्रो. रतन लालजी अम्बेडकरिज्म को मानने वाले हैं। वे तार्किक बातें रखते हैं। यदि किसी को लगता है प्रो. रतन लालजी ने गलत बोला है तो उनसे उनके व्यक्तव्य पर स्पष्टीकरण मांगना चाहिए था, यदि सच में उनके कहने का आशय किसी के धार्मिक भावना को ठेस पंहुचाने वाली होती तो कोई बात नहीं लेकिन यदि इस तरह से एकपक्षीय कार्यवाही की जाएगी तो यह न्यायपूर्ण प्रक्रिया नही कही जाएगी क्योंकि मेरी समझ से उनकी टिप्पड़ी ऐसे चीज पर थी जो शिवलिंग के शेप की नहीं है न कि शिवलिंग पर उन्होंने टिप्पणी की थी। हजारों लोगों द्वारा प्रो. रतन लालजी को गालियाँ और धमकियां दी जा रही हैं, क्या साइबर सेल उन गाली-धमकी देने वालों को गिरफ्तार कर सकेगा? क्या उन गालीबाजों या धमकीबाजो को चिन्हित कर साइबर सेल उनके गिरफ्तारी का प्रयास कर रहा है? क्या एससी-एसटी एक्ट के तहत जातिगत टिप्पणी करने वालों पर कार्यवाही की जा रही है? प्रो. रतन लाल की मुखर आवाज को मुकदमा लिख दबाने की प्रवृत्ति अफसोसनाक व निंदनीय है। देश का सम्पूर्ण बुद्धिजीवी व बहुजन समाज प्रो. रतनलाल के साथ है और उनके रिहाई के साथ सुरक्षा प्रदान करते हुये गालीबाजों और जातिवादी टिप्पणी करने वालो पर मुकदमा लिखने की मांग करता है।’ सुप्रसिद्ध आलोचक वीरेंद्र यादव ने लिखा, ’आंबेडकरवादी बुद्धिजीवी, सबाल्टर्न चिंतक, इतिहास के अध्येता व दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षक रतन लालजी की गिरफ्तारी एक बुलंद स्वर को चुप कराने की सत्ता की धौंसपट्टी है। जनतांत्रिक अभिव्यक्ति पर सत्ता की यह नकेलबंदी संवैधानिक अधिकारों पर हमला और संवाद की संस्कृति का हनन है। हम इसकी निंदा करते हैं और रतन लालजी के साथ एकजुट हैं। रतन लालजी को तुरंत रिहा कर जनतांत्रिक अभिव्यक्ति को सुनिश्चित किया जाना चाहिए।’

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पटना के बुद्धिजीवी श्रवण कुमार पासवान ने कहा, ’रतन लाल के गिरफ्तारी के खिलाफ़ एकजुट दलित एक्टिविस्ट दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रतन लाल की गिरफ्तारी की घोर निन्दा करते हैं। रतन लाल ने कोई गलती बात नहीं की थी। धर्मों के नाम पर राजनीति गुंडागर्दी बंद हो। प्रोफेसर रतन लाल की देर रात गिरफ्तारी मुखर दलित आवाज को दबाने की दिशा में ब्राह्मणवादी सरकार की बड़ी भूमिका है।’ बुद्ध शरण हंस ने लिखा, ’प्रो. रतनलाल विद्वान और मर्यादित व्यक्ति हैं। इनकी लेखनी और वक्तव्य सब मर्यादित होता है। कोई जरूरी नहीं कि रतनलाल अपनी हिफाजत के लिए भाजपा को खुश करने वाली बात बोलें। रतनलाल तो बाबा साहब अम्बेडकर के विचारों पर चलने वाले साहसी व्यक्ति हैं। उन्हें गिरफ्तार कर सरकार ने कायरों का काम किया है। उन्हें शीघ्र रिहा करो।’ इस घटना का जितना रोष चंद्रभान प्रसाद ने दिखाया, वह चौंकाने वाला रहा। उन्होंने एनडी टीवी पर घोषणा किया, ’यह गिरफ्तारी प्रो. रतनलाल के विचारों के वजह से हुई है। मेरा यह सोचना है कि दलितों और आरएसएस के बीच वैचारिक युद्ध की घोषणा हो चुकी है। पिछला दो लोकसभा चुनाव जीतकर  भाजपा को ऐसा वहम हो गया कि उसने भारत पर कब्ज़ा कर लिया है। लेकिन दलित बुद्धिजीवी उनको चुनौती दे रहे हैं। इसीलिए प्रो. रतनलाल को रात साढ़े दस बजे इस अंदाज में गिरफ्तार किया गया मानों वह भारी आतंकवादी हैं। यह एक युद्द की शुरुआत है।’

बहुजन-वाम बुद्धिजीवियों और एक्टिविस्टों ने जिस एकजुटता और संघर्ष का प्रदर्शन 2018 के ऐतिहासिक 2 अप्रैल और 2019 में 13 पॉइंट रोस्टर के खिलाफ किया था, उसकी आज छोटे पैमाने पर एक बार फिर पुनरावृत्ति हो गयी। शून्यकाल.कॉम के संपादक भंवर मेघवंशी ने प्रो. लाल की गिरफ्तारी पर प्रधानमंत्री को जो तल्ख़ पत्र लिखा वह बहुजन आन्दोलन में एक ऐतिहासिक दस्तावेज की  जगह पायेगा। दलित लेखक संघ के संरक्षक के तौर पर हीरालाल राजस्थानी ने जो सन्देश दिया है, उसे भी नहीं भुलाया जा सकता। पटना से दीपंकर भट्टाचार्य ट्विट पर करके तथा हरिकेश्वर राम पोस्ट पर पोस्ट लिखकर सरकार पर लगातार दबाव बनाते रहे। संजीव चंदन, अनीता भारती, रमेश भंगी, डॉ. अनिल जयहिंद, पत्रकार महेद्र यादव, प्रो. हेमलता महिश्वर, मयंक यादव, मनोज अभिज्ञान, डॉ. सिद्धार्थ रामू, पीडीआर, मनीषा बांगर, रवेश कुमार, प्रियदर्शन, नवल  कुमार, पवन कुमार खरवार, जयंत जिज्ञासु इत्यादि भी अतीत की भांति फिर एक बार अपने-अपने तरीके से प्रो. रतनलाल की रिहाई में जुटे रहे। महान पत्रकार दिलीप मंडल और प्रो. लक्ष्मण यादव ने फिर एक बार साबित किया कि बहुजन हितों की लड़ाई में वे बराबर अग्रिम पंक्ति में खड़ा मिलेंगे। बहरहाल, प्रो. रतन लाल की रिहाई एक बड़ी लड़ाई थी, जिसमें कोई भूमिका अदा करने में बहुजन समाज के नेता बुरी तरह विफल रहे।इतना विफल रहे कि कल लोग उनके खिलाफ झंडा लेकर भी खड़े हो जाएँ तो विस्मय नहीं होगा। किन्तु बहुजन लेखक- पत्रकार- एक्टिविस्ट, छात्र और शिक्षकों ने उनकी कमी खलने नहीं दी जिसका परिणाम यह हुआ कि प्रो. रतन लाल को बेल मिल गया। लेकिन यह आसान नहीं था, यह संजीव चंदन के तीन बजे के पोस्ट से साबित होता है। ’रतन लालजी को जमानत मिलने की सूचना है। इन धाराओं में इतना आसान नहीं होता है, मजिस्ट्रेट के स्तर पर। यह आंबेडकरवाद, एकजुट लड़ाई की जीत है। न्याय, लोकतंत्र, संविधान की जीत है!’ लेकिन यह लड़ाई ख़त्म नहीं हुई है! पत्रकार दयाशंकर राय के शब्दों में, ’मौजूदा सत्ता का जो फासीवादी चरित्र है, उसे देखते हुए ये लड़ाई अनवरत और अभी लम्बी चलनी है।’ बहरहाल, फासीवादी सत्ता के खिलाफ हमारी लड़ाई लम्बी चलेगी और हमें ख़ुशी है कि इस लड़ाई में साथ देने के लिए प्रोफ़ेसर रतन लाल के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर संघर्ष करने वाली उनकी फायर ब्रांड जीवनसंगिंनी शालिनी आर्य के शब्दों में, ’सिंघम इज  बैक’!

लेखक बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।

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