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ग्राउंड रिपोर्ट

वाराणसी : ई रिक्शा चालक सीमित रूट तय होने और बार कोड की बाध्यता के विरोध में उठा रहे हैं आवाज

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र में ई रिक्शा चलाकर आजीविका चलाने वालों ने प्रशासन द्वारा एक ही थाना क्षेत्र में रिक्शा चलाए जाने के विरोध में चंदौली से समाजवादी पार्टी के सांसद वीरेंद्र सिंह से मिलकर उन्हें ज्ञापन दिया।

आज वाराणसी के ई रिक्शा चालकों ने चंदौली से समाजवादी पार्टी के सांसद वीरेंद्र सिंह के अर्दली बाजार स्थित कार्यालय में ज्ञापन दिया। ज्ञापन देने के बाद नाराज ई रिक्शा चालकों से गाँव के लोग के प्रतिनिधि ने बात की।

उन लोगों ने बताया कि बनारस प्रशासन द्वारा ई रिक्शाचालकों के लिए लागू किए रूट मैप और बार कोड कीअनिवार्यता के विरोध में 5 सितंबर से चल रहे अनशन को 24 सितंबर को जबर्दस्ती खत्म करा दिया गया और अध्यक्ष प्रवीण काशी को जेल में डाल दिया गया। ई रिक्शा चालकों पर नया नियम लागू कर दिया गया है। उनके रिक्शे पर लाल, पीले, हरे और नीले रंग के बार कोड प्रशासन द्वारा मुफ्त में लगाए जा रहे हैं, जिसके बाद तय किए हुए थाना क्षेत्रों में ही वे अपना रिक्शा चलाकर कमा सकते हैं।

 23 सितंबर को 530 ई रिक्शों का चालान काटा गया और 163 ई रिक्शा जब्त किए गए। इसी तरह 25 सितंबर को बिना बार कोड के चल रहे 275 ई रिक्शों को जब्त किया गया। एडीसीपी ट्रैफिक राजेश पांडे ने बताया था कि ई रिक्शा मैनेजमेंट प्लान के तहत वाहनों के रजिस्ट्रेशन के पते के अनुसार अभी तक 4500 से अधिक कलर कोड स्कैनर लगा दिये गए हैं। जबकि रजिस्टर्ड ई रिक्शों की संख्या 25000 हजार है।

यह कलर कोड लगाने का काम प्रशासन की तरफ से मुफ़्त में हो रहा है। ऐसे में जब बाकी बचे ई रिक्शा पर कलर कोड नहीं लगाया गया है, तब उनके रिक्शे जब्त कैसे किए जा सकते हैं?

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दूसरी तरफ राजेश पांडे का बयान है कि बार कोड लगाने की अंतिम तिथि खत्म होने के बाद ई रिक्शा चालकों का चालान काटा गया।

इस तरह दो अलग-अलग तरह के बयानों से ई रिक्शा चालकों में नाराजगी है। इसके बारे में हमने चंदौली से समाजवादी पार्टी के सांसद वीरेंद्र सिंह के बनारस स्थित कार्यालय में ज्ञापन देने पहुंचे ई रिक्शा चालकों से बात की।

वहाँ मौजूद एक महिला ई रिक्शा चालक किरण चौधरी किराए का ई रिक्शा चलाती हैं। उन्होंने बताया कि जहां तक जाने के लिए बार कोड लगाया गया है, वहाँ तक ट्रैफिक वाले जाने नहीं दे रहे हैं। इनके ई रिक्शे पर पीले रंग का बार कोड लगाया गया है, जो गिरिजाघर तक जा सकता है, लेकिन इन्हें बेनिया बाग पर ही रोक दिया जा रहा है। इससे हमारी सवारी टूट रही है। इससे किराया भी कम मिल रहा है। किरण कहती हैं, नियम भी यही लोग बनाते हैं और तोड़ने का काम भी यही लोग करते हैं।

उन्होंने बताया कि रिक्शा का किराया प्रतिदिन चार सौ रुपये देने पड़ते हैं, लेकिन जब कमाई ही नहीं होगी तब किराया कैसे दे सकेंगे? उनका कहना है कि उनके घर पर वही कमाने वाली हैं, पति बीमार हैं और दो बच्चे हैं।

अलग-अलग रंग के बार कोड अभी तो सभी रिक्शों पर शासन की तरफ से मुफ़्त में लगाया जा रहा है लेकिन इसके बाद हर महीने इस बारकोड को रिचार्ज करवाने के लिए बारह सौ रुपये देने होंगे। यदि समय पर पैसे नहीं चुकाये तो तीन सौ रुपये जुर्माने के साथ पंद्रह सौ रुपये देने पड़ेंगे, और उसके बाद हर दिन जुर्माना बढ़ता जाएगा।

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ई रिक्शा चालकों का कहना है कि जब कमाई ही नहीं होगी, तो कैसे हर महीने बारह सौ रुपये कैसे दे पाएंगे। वैसे भी अधिकतर ई रिक्शा चालक हर महीने आठ हजार से नौ हजार तक बैंक ऋण की मासिक किस्त चुका रहे हैं।

ई रिक्शा चालक संघ के जिला उपाध्यक्ष विजय जायसवाल से बताया कि बार कोड लगाकर रूट नहीं लूट तय कर रहे हैं। यदि बार कोड लगाकर कोई अपने रूट से गलती से भी आगे चला गया तब ट्रैफिक पुलिस हर्जाना वसूलेगी और आगे जाने की अनुमति मिल जाएगी। इससे प्रशासन लूट मचाएगा। यह लूट बार कोड आने के पहले भी थी। जिस रूट पर नों एंट्री होती थी, वहाँ पुलिस को 500 रुपये देकर धड़ल्ले से 24 घंटे जाया जा सकता था।

उनका कहना है कि महंगाई को देखते हुए एक थाना क्षेत्र में चलाने और बार कोड लगाने का निर्णय प्रशासन को वापस लेना चाहिए। पहले भी मुश्किल से घर चल रहा था लेकिन अब बार कोड लगने के बाद कमाई और कम हो जाएगी, जिसके कारण कर्ज में डूबने में समय नहीं लगेगा।

चांदमारी की महिला ई रिक्शा चालक सपना ने बताया कि यह नियम लागू कर सरकार हम चालकों का खुलेआम शोषण कर रही है। सपना ने आक्रोश के साथ कहा कि पूरे देश में आए दिन महिलाओं और लड़कियों के साथ बलात्कार हो रहे हैं, लेकिन प्रशासन उन पर रोक लगाने में असमर्थ है। देश में नौकरी और रोजगार नहीं है, इस वजह से हम महिलाओं को रिक्शा चलाने का काम करना पड़ रहा है।

3 साल से ई रिक्शा चला रही सपना बताती हैं, पुलिस प्रशासन द्वारा परेशान करने का काम पहली बार नहीं हुआ है, बल्कि अनेक बार ट्रैफिक पुलिस उनके रिक्शे पर मुफ़्त में सवारी करती है, उनसे जब किराया मांगते हैं तो फोन निकालकर चालान काटने की धमकी देते हैं।

ई रिक्शा चालकों के जिला उपाध्यक्ष का कहना है कि तीन ज़ोन में बांटकर ई रिक्शा चालकों के लिए रूट तय करने का काम प्रशासन पहले ही कर चुका था। इस मुद्दे पर बातचीत के लिए ई रिक्शा चालक संघ से बातचीत न कर ऑटो संघ और व्यापारी संगठन से बातचीत की गई। जब निर्णय हमारे लिए हो रहा था तो हमको बुलाया जाना था।

नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2016 में जिस तरह ई रिक्शा परिचालन का उद्घाटन किया था, तब लगा था कि बेरोजगारों को काम मिलेगा, लेकिन जब 25 हजार लोगों के हाथ में रोजगार है तब उनसे उनकी रोजी-रोटी छीनने की कवायद की जा रही है।

इस तरह का रूट मैप तैयार करने का मुख्य कारण है कि सरकार यहाँ बड़े उद्योगपति की सौ बस चलाने की परियोजना में सहयोग करना चाहती है, जिसका निशाना ई रिक्शा चालक बन रहे हैं। रिक्शा चालकों को गलियों में सीमित करेंगे और सड़क पर इनकी बसें दौड़ेंगी। अभी यह बसें ट्रायल पर रामनगर से गौदोलिया के बीच चल रही हैं। हम पर नियम का दबाव बनाकर बाकी बसें भी जल्द शहर की सड़कों पर दौड़ेंगी।

‘सबका साथ सबका विकास’ यह नारा बड़े-बड़े पोस्टर और विज्ञापन के लिए ही बनाए गए हैं। कभी भी जमीनी तौर पर इस पर अमल नहीं किया गया है क्योंकि मोदी सरकार कभी गरीबों की सरकार नहीं रही है। पिछले दस वर्षों से उसने मजदूरों, किसानों, आदिवासियों और महिलाओं के विरोध में ही काम किया है। आज बनारस के ई रिक्शा चालक सड़क पर अपने अधिकार की लड़ाई लड़ रहे हैं लेकिन यह लड़ाई किसके पाले में जाएगी यह आने वाले दिनों में ही पता लगेगा।

अपर्णा
अपर्णा
अपर्णा गाँव के लोग की संस्थापक और कार्यकारी संपादक हैं।

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