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केरल से दुबई तक प्रवास और मलयालम सिनेमा

भारत दुनिया में सबसे ज्यादा रेमीटेन्स प्राप्त करने वाला देश है। वैसे तो बिहार और उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल से बड़ी संख्या में प्रवासी खाड़ी देशों मे रोजगार की तलाश में जाते हैं लेकिन दक्षिण भारतीय राज्य केरल में गल्फ प्लेस ऑफ डेस्टिनेशन के रूप सर्वाधिक लोकप्रिय रहा है। ‘सन 1930 में पूर्वी अरब में […]

भारत दुनिया में सबसे ज्यादा रेमीटेन्स प्राप्त करने वाला देश है। वैसे तो बिहार और उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल से बड़ी संख्या में प्रवासी खाड़ी देशों मे रोजगार की तलाश में जाते हैं लेकिन दक्षिण भारतीय राज्य केरल में गल्फ प्लेस ऑफ डेस्टिनेशन के रूप सर्वाधिक लोकप्रिय रहा है। ‘सन 1930 में पूर्वी अरब में विशालकाय तेल के भंडारों की खोज के बाद केरल से खाड़ी  देशों की तरफ तेजी से प्रवास बढ़ा। केरल से मध्य-पूर्व के देशों को बड़ी संख्या में प्रवास सन 1972 से 1983 के बीच बढ़ा जिसे केरल गल्फ बूम कहते हैं। केरल में बढ़ती बेरोजगारी और गल्फ देशों में बढ़ती रोजगार की संभावनाओं ने मलयाली लोगों को अपनी तरफ आकर्षित किया।‘ (रेफ़ना थराईल 2021)

केरल से उस दौर में बड़ी संख्या में प्रवासी कामगारो ने दुबई और अन्य खाड़ी देशों (जीसीसी Gulf Co-Operation Council) के सदस्य देशों कुवैत, सऊदी अरब, ओमान, कतर, बहरीन, संयुक्त अरब अमीरात में नौकरी और बेहतर आय की तलाश में प्रवास किया। सन 2018 के बाद से केरल से खाड़ी  देशों के प्रवास में भारी गिरावट आई है। कोरोना महामारी के दौरान पिछले दो वर्षों में भी प्रवासियों की बड़ी संख्या केरल में वापस आई है। केरल की अर्थव्यवस्था में प्रवासियों द्वारा भेजे गए धन (Remittance Economy) का बहुत बड़ा योगदान है। बेरोजगारी और ज्यादा पैसा कमाने की इच्छा से केरल के लोग पुनः खाड़ी देशों को वापस जाना चाहते हैं। दुनिया भर में प्रवास के जीतने भी अध्ययन हैं यह बताते हैं कि प्रवासी अपनी मातृभूमि को याद करते हैं वह उनकी Place of Memory होती है लेकिन सरक्युलर माइग्रेशन के कारण केरल के लोगों की चेतना में दुबई या गल्फ याद करने की जगह है जिसके फोटोग्राफ वे लोग अपने घरों मे लगाकर रखते हैं। केरल के पब्लिक स्फीयर में गल्फ शामिल रहता है।

केरल एक रेमिटेन्स आधारित अर्थव्यवस्था वाला प्रदेश है। दुबई और खाड़ी के देश वहाँ के पुरुषों ही नहीं महिलाओं के लिए भी एक ड्रीम लैंड की तरह आकर्षक जगह है। चूंकि खाड़ी देश मलयालम लोगों के जीवन में एक यादगार जगह के रूप में स्थान रखते हैं और सिनेमा इस बात को दर्ज करता है इसलिए इसका अध्ययन विश्लेषण किया जाना बहुत ही आवश्यक अकादमिक कार्य है।

दुनिया के नक्शे पर केरला और दुबई को देखें तो दोनों पड़ोसी देश लगते हैं। केरल को लोगों को ऐसा प्रतीत होता है कि दोनों देशों के बीच में फैले अरब सागर को नाव से पार कर लो और पहुँच जाओ दुबई और वे पानी के जहाज से आते-जाते भी हैं। यह दोनों स्थान ऐसे लगते हैं जैसे मेरे गाँव के दो टोलों के बीच बहती छोटीे नहर हो जिसके एक तरफ छोटा टोला और दूसरी तरफ तेली टोला है। नहर में जब पूरा पानी भरा हो तो या तो उसके अंदर घुसकर पार करो, नहीं तो कूदकर या टेम्परेरी पुल (बास या लकड़ी का) बनाकर आओ-जाओ।

केरल के पुरुष और महिला कामगार खूब सारा पैसा कमाने और अपने सपने पूरे करने के लिए दुबई और अन्य खाड़ी देशों की तरफ जाते हैं। दुबई और केरल के बीच कुल 2726 किमी. की दूरी है। कभी पानी के जहाज तो कभी हवाई जहाज से मलयाली प्रवासी दोनों स्थानों के बीच आते-जाते रहते हैं।

फिल्म शरजा टू शरजा का एक दृश्य

सिनेमा और गल्फ का रिश्ता 

रोजगार और बहुत सारा पैसा कमाने की चाह में बड़ी संख्या में केरल के नौजवानों ने खाड़ी देशों में प्रवास किया। सिनेमा और साहित्य में भी प्रवासियों के मुद्दों को पर्याप्त स्थान मिला। एम मुकुंदन के साहित्य ने खाड़ी देशों में प्रवास के सामाजिक-आर्थिक प्रभावों पर विस्तार से लिखा है। इस विषय पर बनी प्रमुख फिल्में निम्न प्रकार हैं-

शरजा टू शरजा (2001), पाथेमारी (Pathemari सलीम अहमद 2015), विलक्कनूनडु स्वपनांगल (Vilkkanundu Swapnangal -Dreams for Sale- निर्देशक आजाद 1980), दुबई (Joshiy 2001), नाडोडीकट्टू (Nadodikattu -Gypsy Breeze), अक्कारे निन्‍नोरू मारान (Akkare Ninnoru Maran-A Groom from Elsewhere), अरबीकथा (Arabikkatha 2007), गद्धामा (Gaddhama 2011), डायमंड नेकलेस (2012), ऑरीदम (Oridam निर्देशक प्रदीप नैयर 2005)।

फिल्म अक्कारे निननोरू मारन

केरल एक समुद्रतटीय प्रदेश है। पुर्तगाली यात्री वास्को डि गामा नई दुनिया की खोज करते हुए 14 मई, 1498 को कालीकट पहुंचा था। उसने अटलांटिक महासागर से अरब सागर अर्थात पश्चिम से पूर्व को जोड़ने का काम किया और दुनिया के जुदा हिस्सों के लोग करीब आ सके। केरल के लोग पाथेमारी यानी कि पानी के बड़े जहाजों में सवार होकर कमाने के लिए दुबई पहुंचे थे। दुबई पहुंचने के लिए पहचान का जो लैंडमार्क स्थान था उसे खोर फक्कन चट्टान कहते हैं। बिना पासपोर्ट और कागज के पानी के जहाज से दुबई में घुसना और वहां काम करके पैसा कमाना और घर भेजना यह सब कुछ केरल के लोगों की चेतना में बसा हुआ है। पाथेमारी फ़िल्म का नायक पालिककल नारायणन (मलयालम मेगास्टार ममूटी) जो है सन 1960 के दशक में दुबई अवैध प्रवासी के तौर पर जाता है। ममूटी ने डॉ जब्बार पटेल की फ़िल्म में डॉ भीमराव अम्बेडकर की यादगार भूमिका निभाई थी।

फिल्म अरबी कथा

पाथेमरी फिल्म का नायक नारायणन अपने परिवार के सदस्यों की ज़रूरतें पूरी करता है और अपने पत्नी-बच्चों को खुश रखने के लिए पूरा प्रयास करता है। लेकिन जब भी वह केरला अपने घर वापस लौटता है तो यह सोचकर लौटता कि अब वह अपने प्यारे लोगों से दूर वापस दुबई नहीं जाएगा लेकिन उसे जाना पड़ता है क्योंकि उसे घर के प्रत्येक सदस्य की ज़रुरतें पूरी करनी है। यहां तक कि उसकी पत्नी भी चाहती है कि वह दुबई रहकर पैसा कमाए ताकि उसका सोशल स्टेटस बना रहे। नारायणन एक ज़िम्मेदार इंसान की तरह काम करता और पैसा कमाता है लेकिन अपने घर से बहुत दूर नास्टेलजिया में जीने को मजबूर है। एक दिन दुबई की विदेशी धरती पर वह मर भी जाता है। मरने से पहले वह अपने बेस्ट फ्रेंड मोईद्दीन के साथ समुद्र तट जाता है और खोर फक्कन की चट्टान को देखते हुए कहता है ‘वह पहला मलयाली कौन रहा होगा, जिसने इस धरती पर कदम रखा होगा’। पाथेमारी फ़िल्म 2015 में आई थी जिसमें सन 1960 के केरल और दुबई के संदर्भ में कहानी कही गई है। केरल के लोगों के लिए दुबई एक यादगार स्थान (Place of Memory) है। इस फ़िल्म में दुबई खाड़ी के सभी देशों के प्रतिनिधिस्थल के रूप में आया है क्योंकि केरल के लोग सभी खाड़ी देशों में बसे हैं।

फिल्म ऑरीदम

खाड़ी देश केरल और अन्य भारतीय राज्यों से गए लोगों को आसानी से नागरिकता नहीं देते जिसके कारण वे एनआरआई स्टेट्स के साथ वहां काम करते हैं। पाथेमारी फ़िल्म यूट्यूब पर उपलब्ध है। इस फ़िल्म को देखते हुए उषा प्रियम्वदा की कहानी वापसी की याद आती है जिसमें रिटायरमेंट के बाद जब कहानी का मुख्य पुरुष पात्र गजाधर बाबू घर वापस लौटता है तो उसे पता चलता है भौतिक दूरियों ने उसकी पत्नी और बच्चों को भावनात्मक रूप से भी उनसे दूर कर दिया है। नारायणन का भी यही हाल है कि वह सबकी ज़रुरतें पूरी करता है, जिसे उसकी जिम्मेदारी समझकर घर के सभी सदस्य Taken for Granted लेते हैं। भौतिक दूरियां धीरे-धीरे भावनात्मक जुड़ाव को कम कर देती हैं। केरला के साहित्य में भी प्रवासी समस्या का वर्णन हुआ है। जोसेफ कोईपल्ली द्वारा अनुदित उपन्यास Goat Days (2012) जो मलयालम साहित्यकार बेन्यामिन के उपन्यास आदूजीविताम (2008) पर आधारित है। यह एक बहु प्रशंसित कृति है जो खाड़ी देशों में मलयाली लोगों के पलायन की कहानी कहती है। ओरीदम (2005) निर्देशक प्रदीप नैयर की फिल्म है जिसमें एक सेक्स वर्कर पैसे कमाने के लिए केरल से दुबई जाना चाहती है लेकिन वीजा पाने के लिए एजेंट द्वारा मांगे जाने वाले रुपये नहीं बचा पाती। दुबई और गल्फ के देश केरल के लोगों के लिए ड्रीमलैंड स्थल हैं। सभी लोग वहाँ जाकर पैसा कमाकर अपने सपनों को पूरा करना चाहते हैं।

फिल्म विलक्कनूनडु स्वपनांगल

विलक्कनूनडु स्वपनांगल (Vilkkanundu Swapnangal -Dreams for Sale निर्देशक आजाद 1980) फिल्म पाथेमरी फिल्म की तरह सूत्रधार के वॉयस ओवर से आरंभ होती है जिसमें खाड़ी देशों की समृद्धि का बखान होता है। केरला के लोग पहले श्रीलंका और मलेशिया गए और अब उनका नया गंतव्य स्थल दुबई है। दुबई केरल के युवाओं के सपनों का शहर है। वे कुछ भी करके यानी अपना घर-खेत बेचकर भी दुबई पहुँचना चाहते हैं। केरल के समुद्री तट से पानी के जहाज पर सवार होकर दुबई को जाने वाले कई लोग तो रास्ते में ही काल कवलित हो जाते हैं। इस फिल्म का नायक अपने अनुभव से कहता है, ‘खाड़ी देश आपको आपकी सोच से भी ज्यादा धनी बना सकते हैं, जरूरी नहीं कि आपकी भौतिक सफलता जैसे गाँव में बड़ा घर और धन आपकी प्यार में भी सफलता दिला दे, और अंत में यह भी सत्य है कि बहुत सारे लोग प्रवास करने को तैयार हैं।’ तात्पर्य यह है कि दुबई एक ड्रीमलैंड है कुछ लोग वहाँ पहुंचकर मनचाहा काम कर पाते हैं तो ज़्यादातर की ख्वाहिशें अधूरी रह जाती हैं। पंजाब के लोग अपनी बेटियों के लिए एनआरआई दूल्हा ढूंढते हैं (प्राइड एंड प्रिज्युडिस) और केरल के लोग दुबई में कमाने वाला लड़का ढूंढते हैं, इस चक्कर में कई बार धोखा खाते हैं (फिल्म- अक्कारे निन्‍नोरू मारान)। लड़के अच्छे घरों और लड़कियों से शादी करने के लिए खाड़ी रिटर्न दिखाने के लिए झूठ सहारा लेकर नाटक करते हैं।

फिल्म नाडोडिकट्टू

महिला प्रवासी और खाड़ी के देश  

प्रवास को सामान्य तौर पर पुरुष के द्वारा चुनी हुई गतिविधि माना गया है लेकिन केरल से आंतरिक और बाह्य दोनों तरह के प्रवास में महिलाओं की बहुत बड़ी संख्या है। वे अध्यापक, नर्स और घरेलू सहायिकाओं के रूप में भारत के कोने-कोने से लेकर दुनियाभर में काम करने के लिए प्रवास करती हैं। उनकी एक बड़ी संख्या महिला कामगारों के रूप में खाड़ी देशों में प्रवास करती है। पी. बिंदुलक्ष्मी ने अपने शोध पत्र The Blurred Boundaries of Migration: Transnational Flows of Women Domestic Workers from Kerala to UAE एथनोग्राफीक पद्धति से अध्ययन कर विस्तार से बताया है कि ये महिलायें किस तरह की समस्याओं का सामना करते हुए विदेशी धरती पर काम करती हैं। केरला की गरीब महिलाएं घरेलू हेल्प का काम करने के लिए खाड़ी देशों में जाती हैं। कभी-कभी तो वे अनौपचारिक यात्री बनकर बिना किसी स्पॉन्सर और एम्प्लायर के वहां जाती हैं और उनका एमिग्रेशन क्लीयरेंस भी नही होता है। कई महिलाएं परिवार की ज़रुरतों के लिए नौकरी करती रहती हैं और शादी भी नही करतीं। वे एक समूह में डोरमेट्री जैसी घरों में रहती हैं, घरों में जाकर काम नहीं करती। वीजा रिन्यूअल के लिए उन्हें काफी मशक्कत करनी पड़ती है और अतिरिक्त पैसा भी खर्च करना होता है।

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संयुक्त अरब अमीरात के स्थानीय नागरिकों के यहां से काम छोड़कर भागी हुई महिलाओं की भी वहां अच्छी-खासी संख्या है और वे भारतीय या अन्य किसी देश से आकर बसे लोगों के घरों में दुबारा रोजगार पा जाती हैं। ऐसी महिला कामगारों को रनअवे डोमेस्टिक वर्कर के नाम से जानते हैं। जिन घरों में ये महिलाएं काम करती हैं उनके मालिक अक्सर उनका कई तरीकों से शोषण भी करते हैं। मारपीट, अपमानित करना, बहुत ज्यादा काम कराना इत्यादि इसमें प्रमुख रुप से शामिल है। लेकिन इसमें मुश्किल यह आती है कि इन कामगार महिलाओं के पासपोर्ट उनके एम्प्लायर के पास रखे रहते हैं जिसको काम छोड़कर भागने की स्थिति में वापस पाना बहुत कठिन होता है। बिना पासपोर्ट और ज़रुरी कागजात के कुछ महिलाएं तो वहां के सरकारी सिस्टम के दलालों के माध्यम से किसी तरह मैनेज करके काम करती रहतीं हैं तो ज्यादातर भारतीय दूतावास की मदद लेकर वापस अपने घर आ जाती हैं।

प्रवासी महिला कामगार चाहे वे लीगल पेपर के साथ आई हों या रनअवे वर्कर हों, वहां बसे मध्यमवर्गीय भारतीय परिवारों के लिए श्रम का बहुत ही आकर्षक स्रोत हैं जो कम पेमेंट पर उपलब्ध होती हैं। ये महिलाएं कभी-कभी केवल एक ही घर में काम करती हैं तो कभी कई घरों में काम करती हैं। कई घरों में काम करने से उनकी बारगेनिंग पॉवर बढ़ती है और वे ज्यादा स्वतंत्र महसूस करती हैं।

फिल्म डायमंड नेकलेस

मोहम्मद शफ़ीक अपने शोध पत्र में बताते हैं कि केरल के मालाबार तट के मुसलमान बड़ी संख्या में खाड़ी देशों में काम करने के लिए जाते हैं और उनके अनुभवों पर आधारित सिनेमा-होम सिनेमा की श्रेणी में कम बजट में कैमरों से शूट कर फिल्में बनाई जाती हैं। मुस्लिम सोशल फिल्मों की तरह इन फिल्मों मे मुस्लिम प्रवासियों के जीवन से जुड़ी समस्याओं और जीवन अनुभवों को विषय बनाया जाता है। इन फिल्मों को सीडी/ डीवीडी के माध्यम से किताब और स्टेशनरी की दुकानों में बेचा जाता है। इस श्रेणी की प्रमुख फिल्म अलियानोरू फ्री वीजा (अ फ्री वीजा फॉर द ब्रदर-इन-ला, निर्देशक कोडियाथुर 2007) है। इसके इतर केरल में उत्तर भारत और पूर्वोत्तर भारत के 25 लाख से ज्यादा प्रवासी मजदूर रहते हैं। उनके मुद्दों पर भी मलयालम सिनेमा में फिल्में बनी हैं जिनमें मसाला रिपब्लिक (विशाख जी.एस.) उल्लेखनीय फिल्म है। यह एक राजनीतिक व्यंग्य फिल्म है जो पान-मसाला खाने के आदती प्रवासी मजदूरों के जीवन के इर्द-गिर्द बुनी गई है। पान-मसाला पर प्रतिबंध लगने पर ये मजदूर ट्रेड यूनियन बनाकर अपनी लड़ाई लड़ते हैं, जिसे आसाम का एक पान वेंडर लीड करता है। तिब्बत के एक अन्य प्रवासी मजदूर ने इस फिल्म में विलेन की भूमिका की है। ये फिल्म सेंट्रल केरला के पेरेमबदूर शहर में फिल्माई गई है। अक्कू अकबर जैसे और फिल्मकार प्रवासी मजदूरों पर फिल्में बनाने की योजना बना रहे हैं, जिसे इंडियन एक्सप्रेस (19 मार्च, 2014) को रिपोर्ट किया है।

फिल्म गद्दामा

इस तरह स्पष्ट होता है कि केरल एक रेमीटेन्स आधारित अर्थव्यवस्था वाला प्रदेश है। दुबई और खाड़ी के देश वहाँ के पुरुषों ही नहीं महिलाओं के लिए भी एक ड्रीम लैंड की तरह आकर्षक जगह है। चूंकि खाड़ी देश मलयालम लोगों के जीवन में एक यादगार जगह के रूप में स्थान रखते हैं और सिनेमा इस बात को दर्ज करता है इसलिए इसका अध्ययन विश्लेषण किया जाना बहुत ही आवश्यक अकादमिक कार्य है।

फिल्म दुबई

संदर्भ –

Karinkurayil, mohammed Shafeeq (2019) Islamic Subject of Home Cinema of Kerala, Bioscope: South Asian Screen Studies, Sage Publications, New Delhi.
Karinkurayil, mohammed Shafeeq (2022) Dubai’ as a Place of Memory in Malayalam Cinema in International Journal of Politics, Culture, and Society .
Radhakrishnan, Ratheesh (2009) The Gulf in the imagination: Migration, Malayalam cinema and regional identity, in Contributions to Indian Sociology, on 27 october 2009, Sage Publications, New Delhi.
Nadukkandiyil, Hashik (2020) Migration and mobility in petrolands: Reflections on home films of Kerala, in south Asian popular culture, vol 18, issue 1.
Tharayil, Refna (2021)The Malayalam Movies Showcasing The Gulf Dreams, in https//nrivision.com.

राकेश कबीर जाने-माने कवि-कथाकार और सिनेमा के गंभीर अध्येता हैं।

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5 COMMENTS
  1. मलयालम सिनेमा के माध्यम से भारत के दक्षिणी राज्यो का विदेश प्रवास व खाड़ी देशों को अपने रोजगार का प्रमुख स्थान बनाना, उनके जीवन शैली रहन सहन का सिनेमा के माध्यम से महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध कराता शानदार लेख।

  2. केरल के प्रवासियों पर लिखा गया शानदार लेख जो केरल से गए खाड़ी देशों में प्रवासियों की जीवन शैली महत्वाकांक्षी योजनाएं से हमें अभिभूत करता है। आपने स्थानीय शब्दों जैसे कि छोटा टोला एवं तेरी टोला का प्रयोग इस लेख को और रोचकदार बनाता है।??????????

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