शब्द महत्वपूर्ण होते हैं। अभिव्यक्ति की आजादी होनी ही चाहिए। लेकिन इसका ध्यान भी रखा ही जाना चाहिए कि संसद के अंदर बोले गए शब्दों की खास अहमियत है और सभी को ऐहतियात बरतनी चाहिए फिर चाहे वह सदन के नेता यानी प्रधानमंत्री हों या फिर कोई और।
गुजरात दंगे के मामले को अब इस दृष्टिकोण से भी देखें (डायरी, 14 जुलाई, 2022)
कोई विपक्षी सांसद भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जुमलाजीवी कह दे, तो क्या हो। जुमलाजीवी जैसे शब्द पूर्व में नरेंद्र मोदी ने भी खूब प्रयोग किये हैं। उन्होंने तो किसानों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को आंदोलनजीवी की संज्ञा संसद के अंदर अपने संबोधन में दी थी। अब उनके लिए जुमलाजीवी का इस्तेमाल करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, क्योंकि लोकसभा के अध्यक्ष ओम बिरला और राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू को यह शब्द नागवार लगता है। ऐसे ही अन्य शब्द भी हैं, जिनके बारे में कल बवाल काटा गया।
नवल किशोर कुमार फ़ॉरवर्ड प्रेस में संपादक हैं।
सिंजाजेविना पहाड़ों और वहां के पशुपालक समुदायों की रक्षा की लड़ाई क्या है?
[…] संसदीय और असंसदीय शब्दों के बीचों-बीच … […]