Saturday, July 12, 2025
Saturday, July 12, 2025




Basic Horizontal Scrolling



पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

होमपूर्वांचलकर्नाटक चुनाव में फेल हुआ मोदी मैजिक, काँग्रेस ने भाजपा से छीना...

इधर बीच

ग्राउंड रिपोर्ट

कर्नाटक चुनाव में फेल हुआ मोदी मैजिक, काँग्रेस ने भाजपा से छीना सत्ता का ताज

यह जीत राहुल के विजन ‘घृणा के खिलाफ प्यार’ के मिशन को आगे बढ़ा सकती है चुनावी सर्वेक्षण की उम्मीदें सच साबित हुई और कांग्रेस, भाजपा के कट्टरता और विभाजन के एजेंडे को पराजित करके कर्नाटक में सरकार बनाने की तरफ आगे बढ़ी। स्पष्ट बहुमत मिलने से जेडीएस के ‘किंग मेकर’ बनने के सपना आँखों […]

यह जीत राहुल के विजन ‘घृणा के खिलाफ प्यार’ के मिशन को आगे बढ़ा सकती है

चुनावी सर्वेक्षण की उम्मीदें सच साबित हुई और कांग्रेस, भाजपा के कट्टरता और विभाजन के एजेंडे को पराजित करके कर्नाटक में सरकार बनाने की तरफ आगे बढ़ी।

स्पष्ट बहुमत मिलने से जेडीएस के ‘किंग मेकर’ बनने के सपना आँखों की किरकिरी बनकर रह गया।  

मुख्यमंत्री पद के लिए डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया हो सकते हैं प्रबल दावेदार।

 भाजपा के पुराने हथकंडे देखते हुए स्पष्ट बहुमत के बावजूद कांग्रेस अपने विधायकों की बाड़ा बंदी कर सकती है।

चुनावी सर्वेक्षण की उम्मीदें सच साबित हुई और कांग्रेस, भाजपा की कट्टरता और विभाजन के एजेंडे को पराजित करके कर्नाटक में सरकार बनाने की तरफ बढ़ चुकी है। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा को जिस तरह से पराजित किया है, उसके दूरगामी असर देखे जाने लगे हैं। 224 विधान सभा वाले इस राज्य में बहुमत के लिए 113 सीट की जरूरत थी।  136  सीटों पर जीत दर्ज कर कांग्रेस ने ना सिर्फ अपने लिए ऑक्सीजन जुटाने का काम किया है बल्कि यह भी बता दिया है कि भाजपा के विभाजनकारी एजेंडे पर लगाम लगाने की कुवत अब भी उसमें है। भाजपा की तरफ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर लड़े गए इस चुनाव में नरेंद्र मोदी-मैजिक का गुब्बारा फुलाने की भाजपा ने पूरी कोशिश की थी पर उस पर राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा और ‘घृणा के खिलाफ प्यार’ का मिशन भारी पड़ गया है। कर्नाटक ने पूरे देश को बता दिया है कि राजनीति में संभावनाएं कभी अंतिम नहीं होती हैं। कांग्रेस ने साल भर से कम समय के अंदर दूसरे राज्य में भाजपा से सत्ता छीनकर यह स्पष्ट कर दिया है कि भाजपा को अपने उस ख्याल से बाहर आ जाना चाहिए कि वह  भारत को कांग्रेस मुक्त कर सकती है। इस चुनाव से भले ही उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की स्थिति में अंतर ना पड़े पर दक्षिण भारत समेत शेष भारत की राजनीति में राहुल गांधी की स्वीकृति एक बार फिर से बढ़ती दिख रही है।

राहुल गांधी ने कर्नाटक की जनता और कार्यकर्त्ताओं  को धन्यवाद ज्ञापित करते  हुए कहा कि ‘कर्नाटक के चुनाव में एक तरफ पूँजीपतियों की ताकत थी तो दूसरी तरफ जनता की ताकत थी। हमने गलत शब्दों और नफरत से यह लड़ाई नहीं लड़ी। हमने मोहब्बत से यह लड़ाई लड़ी। कर्नाटक ने दिखा दिया दिया कि इस देश को नफरत नहीं मोहब्बत अच्छी लगती है। राहुल गांधी ने कर्नाटक चुनाव में 18 रैलियाँ और दो रोड शो किये थे जबकि भारत जोड़ो यात्रा के दौरान भी उन्होंने सबसे ज्यादा 21 दिन कर्नाटक में बिताए थे।

[bs-quote quote=”कर्नाटक की जनता ने पिछले 38 सालों में कभी किसी भी सत्ता को रिपीट नहीं होने दिया है। 1999 और 2013 के बाद 2023 में सिंगल पार्टी को बहुमत मिला है जबकि 2004, 2008, और 2018 में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के रूप में जरूर सामने आई थी पर स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने की स्थिति में गठबँधन सरकार बनी थी।” style=”style-2″ align=”center” color=”#1e73be” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

कांग्रेस अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय अध्यक्ष और शायर तथा राज्य सभा सदस्य इमरान प्रतापगढ़ी जो कि कर्नाटक में कांग्रेस कैम्पेन के स्टार प्रचारक भी थे, उन्होंने कांग्रेस की इस जीत को  ‘नफरत के खिलाफ मोहब्बत की जीत’ बताया है और कहा कि  हिन्दुस्तानी अवाम भाजपा के नफरत के खेल को समझ चुकी है। पहले हिमाचल प्रदेश और अब कर्नाटक से भाजपा को बेदखल कर इस देश के लोगों ने अपना मंसूबा दिखा दिया है।

कर्नाटक में स्पष्ट बहुमत आता देखकर कर्नाटक काँग्रेस चीफ डी के शिवकुमार भावुक हो गए थे। भरे हुए गले से उन्होंने इस बात का जिक्र किया कि राहुल गांधी, सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी से मैंने कर्नाटक जीत का वादा किया था। कर्नाटक कांग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार कनकपुरा सीट से खुद भी चुनाव जीत गए हैं। फिलहाल कल होने वाली विधायक दल की बैठक में वह भी विधायक दल के नेता बनाए जाने की उम्मीद कर सकते हैं। डीके शिवकुमार के साथ सिद्धारमैया भी मुख्यमंत्री बनने की रेस में शामिल हैं उनके बेटे यतीन्द्र का बयान भी आ चुका है कि उनके पिता को मुख्यमंत्री बनाया जाना चाहिए।

‘एक देश-एक चुनाव’ का प्रस्ताव लोकतंत्र की हत्या तो नहीं?

कर्नाटक की जनता ने पिछले 38 सालों में कभी किसी भी सत्ता को रिपीट नहीं होने दिया है। 1999 और 2013 के बाद 2023 में सिंगल पार्टी को बहुमत मिला है जबकि 2004, 2008, और 2018 में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के रूप में जरूर सामने आई थी पर स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने की स्थिति में गठबँधन सरकार बनी थी।

कर्नाटक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस तरह बजरंग बली को बजरंग दल का पर्याय बता कर हिन्दू मुस्लिम एजेंडे के माध्यम से नफरती नैरेटिव सेट करने की कोशिश की थी उसकी पूरी तरह हार हुई है। प्रियंका गांधी  ने उनके उस खेल को भी बेनकाब कर दिया, जिसमें वह खुद को गाली दिए जाने की दुहाई देकर संवेदना के आधार पर जनता को अपने पाले में लाने की कोशिश कर रहे थे। प्रियंका के लगातार हमलों ने प्रधानमंत्री मोदी को सेट होकर खेलने का अवसर ही नहीं दिया। फिल्म द केरल स्टोरी मोदी कैम्पेन की वजह से भले ही बड़ी कमाई कर रही है पर कर्नाटक के चुनाव में उसका  हिन्दू-मुस्लिम एजेंडा सफल नहीं हो सका है। भाजपा के  धार्मिक ध्रुवीकरण का हर प्रयास कर्नाटक की राजनीति में बेअसर हो गया है।

[bs-quote quote=”फिलहाल भाजपा के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने हार स्वीकार करते हुए हार की जिम्मेदारी ली है और 2024 के लोकसभा चुनाव में कम बैक करने की उम्मीद भी दिखाई है। इस बात से फौरी तौर पर प्रधानमंत्री मोदी को कुछ राहत मिल सकती है पर सच्चाई यही है कि यह हार सीधे-सीधे नरेंद्र मोदी की हार है।” style=”style-2″ align=”center” color=”#1e73be” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

कांग्रेस की इस जीत से पार्टी के अंदर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का कद भी मजबूत होगा। वहीं भाजपा के कर्नाटक के केवट कहलाने वाले येदियुरप्पा का राजनीतिक कद ढह सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सबसे ज्यादा उम्मीद येदियुरप्पा  से ही थी। इस हार के लिए बलि का बकरा किसी को भी बनाया जाए पर इसका सबसे ज्यादा प्रभाव नरेंद्र मोदी की ही छवि पर पड़ेगा। भाजपा ने पूरी तरह से नरेंद्र मोदी के चेहरे को सामने रखकर ही यह चुनाव लड़ा था। यह अलग बात है कि एग्जिट पोल में कांग्रेस की बढत दिखने के साथ नरेन्द्र मोदी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा के पीछे खड़े हो गए थे। इस हार से संघ भी नरेंद्र मोदी के चेहरे पर गंभीर सवाल उठा सकता है।

प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में RTE के तहत निजी स्कूलों में आरक्षित सीटों पर हो रही सेंधमारी

फिलहाल भाजपा के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने हार स्वीकार करते हुए हार की जिम्मेदारी ली है और 2024 के लोकसभा चुनाव में कम बैक करने की उम्मीद भी दिखाई है। इस बात से फौरी तौर पर प्रधानमंत्री मोदी को कुछ राहत मिल सकती है पर सच्चाई यही है कि यह हार सीधे-सीधे नरेंद्र मोदी की हार है। जबकि जीत में राहुल गांधी के बड़ी भूमिका के साथ मल्लिकार्जुन खड़गे और प्रियंका गांधी की भी भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता। जेडीएस के खेमे में फिलहाल शांति है जबकि कल तक वह उम्मीद कर रहे थे कि किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिलेगा ऐसे में वह तय करने की स्थिति में किसके साथ आगे बढ़ना है। कुमार स्वामी एक बार फिर से गठबंधन के सहारे मुख्यमंत्री बनने की फिराक में थे पर कांग्रेस के पूर्ण बहुमत में आ जाने से उनकी उम्मीद बुझ गई है। बावजूद इसके  भाजपा के अब तक के इतिहास को देखते हुए इस बात का अंदेशा पूरी तरह से खत्म नहीं होता है कि वह आने वाले समय में किसी तरह की तोड़-फोड़ का सहारा ले। वह सत्ता की सीढ़ी चढ़ने के लिए कोई भी हथकंडा अपनाने को हमेशा तैयार रहती है।

कुल 224 सीटों में से कांग्रेस को 136 भाजपा को  64  जेडीएस को 20 तथा  04 सीटें अन्य के खाते में गई हैं।

कुमार विजय गाँव के लोग डॉट कॉम के मुख्य संवाददाता हैं।

गाँव के लोग
गाँव के लोग
पत्रकारिता में जनसरोकारों और सामाजिक न्याय के विज़न के साथ काम कर रही वेबसाइट। इसकी ग्राउंड रिपोर्टिंग और कहानियाँ देश की सच्ची तस्वीर दिखाती हैं। प्रतिदिन पढ़ें देश की हलचलों के बारे में । वेबसाइट को सब्सक्राइब और फॉरवर्ड करें।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Bollywood Lifestyle and Entertainment