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ग्राउंड रिपोर्ट

आर एस एस ने संविधान और डॉ अंबेडकर को कभी महत्व नहीं दिया

आरएसएस का संविधान 'मनुस्मृति' है। जब देश में संविधान लागू हुआ था, तभी आरएसएस के प्रमुख ने संविधान का विरोध किया था। ऐसे में कैसे उम्मीद की जा सकती है कि सत्ता में बैठे लोग, जो वास्तव में आरएसएस के धुर एजेंट हैं, वे संविधान और संविधान निर्माता डॉ अंबेडकर को वैसा सम्मान देंगे, जिसके वे हकदार हैं। स्थिति तो यहाँ तक है कि संविधान और डॉ अंबेडकर को मानने वालों का भी घोर विरोध करते हैं और आपत्तिजनक बयान देने मे भी पीछे नहीं रहते हैं। यही कारण है कि समाज के दलित, पिछड़े और आदिवासी जिन्हें संविधान के अनुसार बराबरी का दर्जा व अधिकार मिला हुआ है, उन्हें भी राजनैतिक, सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक मजबूती पाते देख परेशान हो, उनका शोषण करने में पीछे नहीं रहते। देश की संसद में गृहमंत्री अमित शाह द्वारा दिया गया आपत्तिजनक बयान इस बात का सबूत है।

संविधान को लेकर आमने-सामने कांग्रेस और भाजपा

पिछले छ: महीने से देश की दोनों प्रमुख पार्टियाँ कांग्रेस और भाजपा संविधान को लेकर एक दूसरे के खिलाफ काफी हमलावर हैं। छ: महीना पहले लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस नेता राहुल गांधी अपनी हर जनसभा में संविधान की प्रति हाथ में लेकर भाजपा पर आरोप लगाते रहे कि इस बार सत्ता में आने पर वह संविधान बदल देगी।  इसका चुनाव पर भारी असर पड़ा और 400 पार जाने का मोदी का मंसूबा फेल ही नहीं हुआ, भाजपा बहुमत के आंकडे से दूर रह गई।  यह बात और है कि किसी तरह सहयोगियों के सहारे मोदी तीसरी बार सत्ता में आने में कामयाब हो गये। किंतु सत्ता में आने के बावजूद भाजपा संविधान को लेकर रक्षात्मक हो गई, क्योंकि देश भर में संदेश चला गया कि वह संविधान बदलने पर आमादा है। उसके बाद वह अपने प्रचारतंत्र के जोर से कांग्रेस को संविधान विरोधी साबित करने की मुहिम छेड़ दी, जिसका गहरा असर संसद में 13 दिसम्बर से दो दिनों चली संविधान पर विशेष चर्चा के दौरान देखने को मिला। इस दौरान दोनों पार्टियाँ संविधान को लेकर आमने-सामने आ गई। लोकसभा में दो दिन की हंगामेदार चर्चा के बाद जब संविधान की 75 सालों की गौरवशाली यात्रा पर राज्यसभा में दो दिवसीय चर्चा का दौर चला, तब किसी कों अनुमान नहीं था कि यह भाजपा के खिलाफ एक देशव्यापी आंदोलन का सबब बन जायेगी। लेकिन ऐसा हुआ,जिसके लिये जिम्मेवार रहे गृह मंत्री अमित शाह!

डॉ. अंबेडकर को लेकर गृह मंत्री का हिकारत भरा बयान

राज्यसभा में गृहमंत्री अमित शाह ने संविधान पर अपने एक घंटे के संबोधन के दौरान 12 सेकेण्डों के लिए एक ऐसी बात कह दी जिसे लेकर एक अभूतपूर्व आंदोलन खड़ा हो गया। 17 दिसम्बर की रात शाह ने अपने एक घंटे के संबोधन में संविधान से लेकर अर्थव्यवस्था तक के मामले में कांग्रेस को जमकर घेरा, लेकिन इसके मध्य संविधान के जनक डॉ. अम्बेडकर को लेकर ऐसा कुछ कह दिये जिसे कांग्रेस ने उनके अपमान से जोड़कर एक बड़ा मुद्दा बना दिया, जिसका  देशव्यापी हो रहा है।  शाह के जिस बयान को लेकर अभूतपूर्व आँदोलन खड़ा होता दिख रहा है, वह यह था जो उन्होंने कांग्रेस पर तंज कसते हुए कहा था, ‘अब एक फैशन हो गया है अंबेडकर..अंबेडकर .. अंबेडकर..अंबेडकर..अंबेडकर।  इतना नाम अगर भगवान का लेते तो सात जन्मों तक स्वर्ग मिल जाता!’ रज्यसभा में शाह के बयान पर बोलते हुए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा, ’उन्होंने बाबा साहेब अंबेडकर और संविधान का अपमान किया है। मनुस्मृति और आरएसएस की उनकी विचारधारा यह स्पष्ट करती है कि वह बाबा साहेब अंबेडकर के संविधान का सम्मान नहीं करना चाहते हैं। हम इसकी निंदा करते हैं और उनके इस्तीफे की मांग करते हैं। उन्हें देश के लोगों से माफी मांगनी चाहिए। उन्हें अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए।’ शाह के बयान को लेकर कांग्रेस सहित पूरे विपक्ष ने सदन में ‘जय भीम’ और ‘माफी मांगो’ के नारे लगाये। समूचे विपक्ष का आरोप है कि अमित शाह ने बाबा साहेब अंबेडकर का घोर अपमान किया है और उन्हें इस्तीफा देना चाहिये। स्थिति बिगड़ते देख अमित शाह ने अपने बयान के अगले दिन प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सफाई देते हुये कहा कि जब साबित हो गया कि कांग्रेस अंबेडकर विरोधी पार्टी है, आरक्षण विरोधी पार्टी है, संविधान विरोधी है, तो कांग्रेस ने अपनी पुरानी रणनीति अपनाते हुए बयानों को तोड़ना मरोड़ना शुरु कर दिया है।

कांग्रेस पर हमले के बाद भी चुप्पी साधे रहे मायावती-आठवले-चिराग-मांझी

शाह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर संकेत दे दिया कि वह अपने बयान पर माफी माँगने के बजाय आक्रामक तरीके से आरोप सामना करेंगे.। उनके बयान से बुरी तरह घिरी भाजपा भी आक्रामक तरीके से इस मुद्दे पर कांग्रेस और विपक्ष का सामना करेगी। यही रुख मोदी और किरन रिजूजू से लगाए छोटे-बड़े तमाम भाजपाइयों ने अपना लिया है और गोदी मीडिया भी उनके साथ हो ली है। उधर जिस इंडिया गठबंधन के सहयोगी कांग्रेस को अलग-थलग करने का अभियान शुरु किए थे, वे सब भी इस मुद्दे पर उसके साथ लामबंद होते नजर आ रहे हैं। अकसर देर से जगने के लिए बद्नाम कांग्रेस बाबा साहेब के अपमान के मुद्दे पर संसद से सड़क तक अभूतपूर्व रुप से तत्पर हो गई है। प्रभावी संगठन न होने के बावजूद कांग्रेस हर जिले में भारी संख्यक लोगों को सड़कों पर उतारने में सफल होती दिख रही है। ऐसा इसलिए मुमकिन हुआ है, क्योंकि अंबेडकर को अपना मसीहा मानने वाला दलित, आदिवासी, पिछड़ा, अल्पसंख्यक समुदाय उनके अपमान के मुद्दे पर कांग्रेस के साथ हो लिया है। देखना है कांग्रेस नेतृत्व इस विपुल जन समर्थन को भाजपा के खिलाफ खड़ा करने में कितना कामयाब हो पाता है। इस घटना का सद्व्यवहार करने में जहाँ कांग्रेस बड़े पैमाने पर सफल होती दिख रही है, वहीं मायावती, रामदास आठवले, प्रकाश अंबेडकर, चिराग पासवान, जीतनराम मांझी और भाजपा से जुड़े हजारों भूतपूर्व एवं वर्तमान दलित बहुजन सांसद और विधायक चुप्पी साध कर अपनी भद्द पिटवाते नजर आ रहे हैं।

शाह के बयान के पीछे क्रियाशील कारण

बहरहाल अमित शाह जैसा सधा हुआ वक्ता कैसे बाबा साहेब का चरम अपमान करने वाला बयान जारी कर बैठा, इसे लेकर राजनीतिक विश्लेषक भिन्न-भिन्न राय दे रहे हैं। कुछ को इसके पीछे जुबान का फिसलना नजर आ रहा है तो कुछ विश्लेषकों का मानना है कि भारत को हिंदू राष्ट्र में तब्दील करने के मार्ग में तीन व्यक्तित्व सबसे बड़ी बाधा हैं : गांधी, नेहरू और अंबेडकर! गांधी यदि हिंदू राष्ट्रवादियों के हृदय में काँटे की तरह चुभे हुए हैं, तो नेहरू खंज़र हैं, लेकिन अंबेडकर उनके सीने में इस पार से उस पार तक तलवार की तरह उतरे हुए हैं। हिंदू राष्ट्र की परियोजना को साकार करने मॆं हिंदुत्ववादी अंबेडकर पर सीधा हमला करने से अभी तक बच रहे थे। लेकिन भारत के संविधान के जरिए हिंदू राष्ट्र के मार्ग में चीन की दीवार बने अंबेडकर को रास्ते से ही पड़ेगा, यह बात उनके जेहन में है, जिसकी शुरुआत अमित शाह ने 17 दिसंबर को राज्यसभा में उन पर हमला बोलकर कर किया। लेकिन इस हमले के पीछे एक अन्य कारण को चिन्हित करते हुए बुद्धिजीवियों के एक वर्ग का मानना है कि चूंकि प्योर हिंदुत्ववादी दिल से कभी अंबेडकर और उनके संविधान के प्रति श्रद्धाशील हो ही नहीं सकते, इसलिये अमित शाह जैसे आला दर्जे के हिंदुत्ववादी के अवचेतन में दबी भावना का अनजाने में प्रतिबिम्बन हो गया। बुद्धिजीवियों के एक और तबके को लगता है कि संसद में अमित शाह द्वारा जो बोला गया है, वह उनकी डॉ. अंबेडकर के प्रति असली सोच है। शाह पिछ्ले 5, 6 दिनों से संसद में चल रही बहस में बार-बार आ रहे ‘डॉ. अंबेडकर’ के नाम से बुरी तरह कुंठित हो चुके थे। इस कारण ही धारा प्रवाह बोलने के क्रम में मन में धधकती उनकी कुंठा बाहर आई। उन्होंने जिस लहजे मैं अंबेडकर…अंबेडकर..अंबेडकर…अंबेडकर उच्चारित किया है, उसमें बाबा बाबा साहेब के प्रति बेपनाह घृणा और हिकारत का भाव स्पष्ट परिलक्षित होता है.=।

दलित-वंचितों के लिए सर्वोपरि हैं डॉ. अंबेडकर

वास्तव में जिस डॉ. अंबेडकर ने हिंदुत्व का दर्शन और हिंदू धर्म की पहेलियाँ लिखकर हिंदू धर्म–संस्कृति की धज्जियाँ बिखेर दी हैं; जिस तरह अपने अनुसरणकारियों को हिंदू धर्मशास्त्रों को डायनामाइट से उड़ानें का निर्देश दिया है, जिसे उन्होंने हिंदू राज को देश के बहुसंख्य लोगों के लिए आफत बताया है: हिंदू राष्ट्र के मार्ग चीन की दीवार बने, वैसे अंबेडकर के प्रति किसी हिंदुत्ववादी में सहज श्रद्धा पैदा हो ही नहीं सकती। डॉ.अंबेडकर के प्रति किसी हिंदुत्ववादी में क्रियाशील हो सकता है सिर्फ नफ़रत और हिकारत का भाव, जिसका 17 दिसम्बर की रात बहिर्प्रकाश रोकने में व्यर्थ रहे अमित शाह। इस कारण ही राज्यसभा में अपनी बात रखने के क्रम में वह इस तथ्य को विस्मृत कर गए कि जन्मगत कारणों से सदियों से शक्ति के स्रोतों – आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षिक, धार्मिक रूप से बहिष्कृत किए गये कोटि-कोटि दलित, आदिवासी, पिछड़े उन्हें भगवान से बढ़कर श्रद्धा करते हैं. इसका साक्ष्य मौजूदा घटना पर आये अखिलेश यादव , मायावती इत्यादि के बयान हैं. अमित शाह द्वारा बाबा साहेब का अपमान किए जाने की घटना पर रोष प्रकट करते हुए अखिलेश यादव ने कहा है,’ समाज के वंचित वर्गों के भगवान हैं अंबेडकर। ’मायावती ने ट्वीट कर कहा है, ‘दलितों व अन्य उपेक्षितों के लिए एकमात्र भगवान केवल बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर हैं, जिनकी वजह से इन वर्गों को जिस दिन संविधान में कानूनी अधिकार मिले हैं, उसी दिन से इन वर्गों को सात जन्मों का स्वर्ग मिल गया था।’ मायावती और अखिलेश की भांति उन्हें भगवान से बढ़कर बताने वाले असंख्य बयान सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं। ऐसा नहीं कि गृह मंत्री के बयान पर रोष प्रकट करने के लिए आज ऐसे बयानों की बाढ़ आई है, नहीं वर्षों से वंचित वर्गों के नेता, लेखक, एक्टिविस्ट उन्हें भगवान से बढ़कर घोषित करते रहे। देश के गृह मंत्री निश्चय ही इस तथ्य से अनजान नहीं होंगे, पर सबकुछ जानने के बावजूद वह डॉ. अंबेडकर को भगवान से भी बढ़कर दर्जा इसलिए नहीं दे सकते क्योंकि मनुवाद किसी को भगवान का अवतार होने का एक अलग मानदंड देता है, जिस पर अंबेडकर नहीं, मोदी जैसे लोग ही खरे उतर सक्ते हैं और उन्हें हिंदुत्ववादियों द्वारा भगवान का अवतार साबित करने की मुहिम शुरु हो चुकी है, जिसमें होड़ लगाते नजर आए हैं भाजपा कई ढेरों नेता!

भाजपा नेताओं में मोदी को भगवान का अवतार बताये जाने की मची होड़

मोदी को भगवान का अवतार बताने की सबसे पहले शुरुआत राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने की . वैसे तो राय बहुत पहले से राम मंदिर सहित राष्ट्र निर्माण का श्रेय मोदी को देते हुए कहे थे कि वह अति मानवीय और दिव्य योग्यताओं से युक्त हैं, किंतु दिसंबर, 2023 में उन्होंने एक चैनल को दिए साक्षात्कार में खुली घोषणा कर दिया कि मोदी भगवान विष्णु का अवतार हैं . चंपत राय से पहले 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद विश्व हिंदू परिषद के अशोक सिंहल ने उनके विषय में कहा था की देश और सनातन संस्कृति की रक्षा के लिए जिस नायक की लंबे समय से प्रतीक्षा थी, वह नरेंद्र मोदी ही है. 2014 के बाद न केवल अशोक सिंहल , बल्कि बड़ी संख्या विश्व हिंदू परिषद के समर्थक, सनातन संस्कृति के अनुरागी और राम भक्तों के बीच मोदी को दिव्य पुरुष का दर्जा दिया जाता रहा, किंतु भाजपा नेताओं द्वारा उन्हें भगवान का अवतार बताए जाने की शुरुआत अठारहवीं लोकसभा चुनाव प्रचार से हुई. सबसे पहले पुरी लोकसभा सीट से भाजपा के उम्मीदवार संवित पात्रा यह कहकर सनसनी फैला दिए कि भगवान जगन्नाथ मोदी के भक्त हैं. इसकी भर्त्सना होने के बाद पात्रा ने तो माफी माँगते हुए अपने बयान वापस ले लिए, लेकिन मण्डी सीट की उम्मीदवार कंगना रनौत सहित अन्य भाजपाई नेताओं ने उन्हें भगवान का अवतार बताया पर, जगहंसाई होने के बावजूद न तो अपने शब्द वापस लिए और न ही ग्लानिबोध जाहिर किए! बहरहाल भजपा नेता में क्यों मोदी को भगवान बताने की होड़ मची , इसका संकेत केंद्रीय केन्द्रीय मंत्री गिरिराज सिंह के इस बयान से मिलता है. उन्होंने उनकी तुलना अवतारी पुरुष से करते हुए बताया है,’ जैसे पहले अत्याचार बढ़ने पर भगवान किसी न किसी रूप में जन्म लेते थे , वैसे ही फिर त्रेता युग की स्थापना करने नरेंद्र मोदी अवतरित हुए हैं!‘

कैसे आता है हिंदू धर्म पर संकट और कैसे लेते हैं भगवान अवतार 

हिन्दू धर्मशास्त्रों में अवतार के पीछे के कारणों को चिन्हित करते हुए कहा गया है,’जब-जब धर्म की हानि होती है, जब-जब पृथ्वी पर संकट आता है भगवान किसी न किसी शरीर के माध्यम से अवतार लेकर उस संकट को दूर करते हैं।’ खैर! किसी अवतार की परख करने के लिए सबसे जरूरी है यह जानना कि क्या है हिन्दू धर्म और कैसे आता है इस पर संकट, जिससे निजात दिलाने के लिए भगवान किसी शरीर के माध्यम है अवतार लेते हैं! जहां तक ब्राह्मण उर्फ हिन्दू धर्म में धर्म सवाल है, हिन्दू धर्म वास्तव में वर्ण-धर्म है, जिसमें चार वर्ण : ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्रातिशूद्रों में बंटे भिन्न-भिन्न मानव समूहों के लिए निर्दिष्ट पेशे/ कर्मों का अनुपालन ही हिंदुओं का धर्म है। इसमें प्रत्येक वर्ण के लिए कर्म-शुद्धता का पालन और कर्म-संकरता से दूरी बरतना ही धर्म रहा। कर्म-शुद्धता का आशय यह है कि धर्म शास्त्रों द्वारा जिस वर्ण के लिए, जो पेशे/कर्म निर्दिष्ट हैं, वही पीढ़ी दर पीढ़ी करते जाना है : दूसरे वर्णों के लिए निर्दिष्ट पेश अपनाने पर कर्म- संकरता की सृष्टि होती है, जो पाप व अधर्म है, जिसके लिए इहलोक में राज दंड तो परलोक में नरक का सामना करना पड़ता है।  इस तरह हिन्दू स्व- धर्म पालन के नाम पर सदियों स्व-वर्ण/ जाति के लिए निर्दिष्ट पेश/कर्म करते रहे हैं।

हिन्दू धर्म में ब्राह्मणों का धर्म रहा अध्ययन-अध्यापन, पौरोहित्य एवं राज्य-संचालन में मंत्रणा-दान; क्षत्रिय का धर्म सैन्य कार्य, भूस्वामित्व की देख–रेख एवं राज्यसंचालन, जबकि वैश्यों का धर्म/कर्म रहा पशुपालन एवं कृषि कार्य तथा व्यवसाय- वाणिज्य! हिन्दू धर्म में शुद्रातिशूद्रों का धर्म रहा तीन उच्चतर वर्णों की सेवा, वह भी पारिश्रमिक रहित। हजारों साल से दलित, आदिवासी और पिछड़ों से युक्त शुद्रातिशूद्रों के लिए ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों के लिए निर्दिष्ट कर्म अपनाना ही हिन्दू धर्म में ‘अधर्म’ रहा है। इसी अधर्म से धर्म को बचाने के लिए राज्य की स्थापना हुई। इस अधर्म से बचाने के क्रम में ही सतयुग और त्रेता युग अर्थात रामराज से लेकर द्वापर युग तक दलित,आदिवासियों के लिए लिखना-पढ़ना, पूजा-पाठ, राज और सैन्य कार्य, हथियार स्पर्श, व्यवसाय-वाणिज्यादि के कर्म अधर्म रहे। इसी अधर्म से हिन्दू धर्म की रक्षा लिए भिन्न- भिन्न युगों में हिन्दू ईश्वर ने राम ,कृष्ण, परशुराम, विवेकानंद इत्यादि के रूप मे धरा को धन्य किया।

हिंदू धर्म का अर्थशास्त्र और भारत में वर्ग संघर्ष

अब यदि अर्थशास्त्र के नजरिए से हिन्दू धर्म का अध्ययन किया जाए तो साफ दिखेगा कि यह शक्ति के स्रोतों – आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षिक और धार्मिक – के बंटवारे का धर्म रहा, जिसमें कर्म–शुद्धता की अनिवार्यता और कर्म-संकरता की निषेधाज्ञा के फलस्वरूप शक्ति के समस्त स्रोत चिरकाल के लिए सवर्णों के लिए आरक्षित होकर रह गए और हिन्दू धर्म एक आरक्षण व्यवस्था का रूप ले लिया, जिसे हिन्दू-आरक्षण कहते है। मार्क्स ने जिस वर्ग-संघर्ष की बात कही है, भारत में वह आरक्षण पर संघर्ष के रूप मे क्रियाशील रहा। हिन्दू आरक्षण का सुविधाभोगी वर्ग सवर्ण जहां हिन्दू आरक्षण को अटूट रखने मे सर्वशक्ति लगाते रहे, वहीं मूलनिवासी शुद्रातिशूद्र हिन्दू आरक्षण को ध्वस्त कर इसमें अपनी हिस्सेदारी के लिए संघर्षरत रहे। सदियों से रक्षस, दास, चांडाल इत्यादि मूलनिवासियों का हिन्दू धर्म के खिलाफ जो संघर्ष रहा है, वह मूलतः हिन्दू आरक्षण को ध्वस्त करने का संघर्ष है, जिसमें उत्पादन के समस्त साधन/ स्रोत सवर्णों के लिए आरक्षित रहे! सदियों के संघर्ष के बाद अंततः बाबा साहेब डॉ. आंबेडकर के ऐतिहासिक संघर्षों के फलस्वरूप हिन्दू–आरक्षण का दुर्ग ध्वस्त हुआ।

अंबेडकरी आरक्षण से भ्रांत साबित हुए : हिंदू भगवान और धर्मशास्त्र

हिन्दू आरक्षण को ध्वस्त कर जो आंबेडकरी आरक्षण वजूद में आया, उसका सबसे पहले लाभ हिन्दू धर्म द्वारा मानवेतर की श्रेणी में पहुचाए गए अस्पृश्य और आदिवासियों को मिला। आंबेडकरी आरक्षण की प्रभावकारिता का इल्म हिन्दू धर्म के ठेकेदार बने संघियों को शुरू से ही हो गया था, इसलिए पूना पैक्ट के जमाने से संघ आरक्षण के खात्मे मे जुट गया। बाद में जब भारत के संविधान में आरक्षण की स्थाई व्यवस्था हुई, संघ आरक्षण के साथ–साथ इसका प्रावधान करने वाले संविधान के खात्मे में जुट गया। पूना पैक्ट के जमाने से संघ आरक्षण के खात्मे मे इसलिए जुट गया, क्योंकि इसके जरिए दुनिया के सबसे अधिकारविहीन समुदाय: अस्पृश्य और आदिवासी आरक्षण के सहारे सांसद-विधायक, डॉक्टर, इंजीनियर, प्रोफेसर, आईएएस, आईपीएस बनकर हिन्दू धर्म-शास्त्र और भगवानों को भ्रांत साबित करने लगे क्योंकि आंबेडकरी आरक्षण के फलस्वरूप दुनिया के सबसे अधिकारविहीन लोगों को वह सब पेशे/कर्म अपनाने का अवसर मिलने लगा जो हिन्दू ईश्वर के उत्तमांग से जन्मे सवर्णों के लिए निर्दिष्ट रहे। इस तरह देखा जाए तो हजारों साल के इतिहास में सनातनियों के धर्म को सबसे बड़ी चुनौती संविधान और आरक्षण से मिली। आरक्षण और संविधान हिन्दू धर्म पर सबसे बड़ा हमला था। इसलिए पूना पैक्ट उत्तर काल में संघ की समस्त गतिविधियों का एकमेव लक्ष्य संविधान और आरक्षण का खात्मा तथा शक्ति के समस्त स्रोत सवर्णों के हाथ में देना था! बहरहाल पूना पैक्ट के जमाने से आरक्षण के खात्मे की ताक मे लगा संघ को अवसर तब मिला जब 27 अगस्त, 1990 को मंडलवादी आरक्षण की घोषणा हुई।

हिंदू राष्ट्रवादी मोदी में क्यों देखते हैं अवतारी पुरुष की छवि

मंडलवादी आरक्षण ने परम्परागत सुविधाभोगी वर्ग को सरकारी नौकरियों में 27 प्रतिशत अवसरों से वंचित एवं राजनीतिक रूप से लाचार समूह में तब्दील कर दिया। इसीलिए इसकी घोषणा होते ही हिन्दू आरक्षण के सुविधाभोगी वर्ग के छात्र व उनके अभिभावक, लेखक-पत्रकार, साधु-संत और धन्नासेठों के साथ उनके राजनीतिक दल भी सर्वशक्ति से कमर कस लिए। इसी मकसद से भाजपा के आडवाणी ने रामजन्मभूमि –मुक्ति का आन्दोलन छेड़ दिया, जिसकी जोर से भाजपा एकाधिक बार सत्ता में आई और आज अप्रतिरोध्य बन चुकी है। बहरहाल मंडलवादी आरक्षण से सवर्णों को हुई क्षति की भरपाई ही दरअसल मंडल उत्तरकाल में भाजपा की सभी गतिविधियों का प्रधान लक्ष्य रहा। इस लक्ष्य की पूर्ति में संघ प्रशिक्षित अटल बिहारी वाजपेयी ने भी महत्वपूर्ण काम किया, किन्तु इस मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाजपेयी को भी बौना बना दिया! इनके ही राजत्व में पिछले दस सालों में मंडल से सवर्णों को हुई क्षति की कल्पनातीत रूप से हुई है भरपाई। मोदी ने वर्ग संघर्ष का इकतरफा खेल खेलते हुए मंडल से सवर्णों को हुई क्षति की भरपाई का जो उपक्रम चलाया, उसके फलस्वरूप न्यायिक सेवा, शासन-प्रशासन,उद्योग-व्यापार, फिल्म-मीडिया,धर्म और ज्ञान क्षेत्र सहित शक्ति के समस्त स्रोतों पर सवर्णों का औसतन 80-90 प्रतिशत कब्जा हो गया है। सवर्णों जैसा दबदबा आज की तारीख में दुनिया में कहीं भी किसी समुदाय विशेष का नहीं है। आंबेडकरी आरक्षण से हिन्दू –धर्म की जो हानि हुई थी, मोदी ने उसका काफी हद तक पुनरुद्धार कर दिया है और जिस दिन वह संविधान में मनोनुकूल बदलाव तथा आरक्षण को पूरी तरह कागजों की शोभा बना देंगे, उनका हिन्दू धर्म के पुनरुद्धार का लक्ष्य पूरा हो जाएगा। मोदी मॆं हिंदू धर्म के पुनरुद्धार की प्रबल संभावना देखकर ही उच्च वर्ण समुदायों में जन्मे संबित पात्रा, कंगना रनौत, अमित शाह जैसे चर्चित लोगों से लेकर के आम नेता-अभिनेता-कलाकार उनकी छवि भगवान के अवतार के रूप में स्थापित करने में मुस्तैद हो गए है, जो गलत भी नहीं है, क्योंकि स्व-घोषित नॉन-बायोलॉजिकल मोदी इसके हकदार हैं। अगर वह संविधान को बदलने और आरक्षण को कागजों की शोभा बनाने में पूरी तरह सफल हो जाते हैं, तो हिन्दू धर्म का सुविधाभोगी वर्ग जगह-जगह उनके नाम पर मंदिर बना कर उनको पूजना शुरू करे देगा! अत: जो शाह मोदी को भगवान का अवतार साबित करने में व्यस्त है, वह हिंदू धर्म के यम: डॉ. अंबेडकर को भगवान से बड़ा कैसे बता सकते हैं!

एच एल दुसाध
एच एल दुसाध
लेखक बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं.

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