लोकसभा चुनाव (2024) की तैयारियों में जहां विपक्ष एकजुटता कायम करने के मोर्चे पर मुस्तैद हो चुका है, वहीं भाजपा मुसलमानों के खिलाफ नफरत की जिस राजनीति के सहारे विपक्ष को लगातार मात देती रही है, उसे हवा देने में पार्टी जुट गई है। इस मामले में यह बात गाँठ बाँध लेनी होगी कि दुनिया इधर से उधर हो जाय, सूरज पूरब के बजाय भले ही पश्चिम से उगने लगे, किन्तु भाजपा चुनाव जीतने के लिए मुसलमानों के खिलाफ नफरत फ़ैलाने से कभी पीछे नहीं हट सकती। यही कारण है वह 2024 को ध्यान में रखते हुए अभी से उनके खिलाफ विषैला माहौल बनाने में जुट गयी है। इस मामले में उसकी मुस्तैदी का यह आलम है कि मई में शुरू हुई राहुल गांधी की जिस अमेरिकी यात्रा में दुनिया को विश्व राजनीति में एक स्वप्नदर्शी नायक के उभरने की झलक दिखी, भाजपा के बुद्धिजीवी वर्ग को उसमें भी मुसलमानों की बड़ी साजिश दिख गयी। वे यह साबित करने की कोशिश करने लगे कि राहुल की यात्रा को सफल बनाने में आईएसआई जैसी संस्थाओं का हाथ था, जो भारत विरोधी प्रचार और भारत विरोधी नीतियाँ बनवाने के लिए प्रयासरत रहती हैं। राहुल गांधी की अमरिकी यात्रा की अहमियत को कमतर करने के लिए उसका सम्बन्ध मुस्लिम अलगाववादी तत्वों से जोड़ने का भाजपा समर्थक बुद्धिजीवियों द्वारा जो अभियान चलाया जा रहा है, उसका प्रतिबिम्बन भाजपा के मुखपत्र के रूप में जाने जाने वाले हिंदी अख़बार में 14 जून को एक राष्ट्रवादी लेखक के इन शब्दों में हुआ, ‘निरंतर रसातल में जाती कांग्रेस के कारण राहुल गांधी एक ऐसी लोकसभा सीट के लिए मोहताज़ बन गए हैं, जहां हार और जीत मुस्लिम समाज तय करता है। आज राहुल की पूरी राजनीति भी अल्पसंख्यकों की राजनीति बनकर रह गयी है।अमेरिका में भी वह अल्पसंख्यकों से घिरे हुए और उन्हीं की बात करते दिखे। ऐसे मंचों पर मुस्लिम लीग जैसी साम्प्रदायिक पार्टी का बचाव और हिन्दू विरोधी तत्वों से मेल राहुल की तुष्टिकरण की नीति और कहीं न कहीं बहुसंख्य हिन्दुओं के प्रति उनकी भड़ास को ही दर्शाता है। राहुल गांधी की अमेरिका यात्रा ने दर्शा दिया है कि 2024 का चुनाव न सिर्फ बेहद कडवाहट भरा एवं द्वेषपूर्ण होने वाला है, बल्कि उसमे विदेशी दखल की भी प्रबल सम्भावना है।’ जिस राहुल गाँधी में लोग जाति-पाति, धर्म- सम्प्रदाय से ऊपर उठ समग्र वर्ग की चेतना से समृद्ध एक विरल नेता के रूप में उतीर्ण होने की उम्मीद लगा रहे हैं, उस राहुल की छवि को मुस्लिम तुष्टिकरण के जरिये म्लान करने में भाजपा पीछे नहीं रहेगी , इसकी हमें मानसिक तैयारी कर लेनी चाहिए।
[bs-quote quote=”दुनिया जानती है कि भाजपा ब्राहमण, ठाकुर, बनियों की पार्टी है और उसकी समस्त गतिविधियां इन्हीं के हित-पोषण के पर केन्द्रित रहती हैं। अपने इसी चहेते वर्ग के लिए ही वह देश बेच रही है, इन्हीं के लिए वह देश को धर्म और जातियों के नाम पर विभाजित कराती है। चूंकि उसकी समस्त नीतियां सवर्ण हित को ध्यान में रखकर लागू की जा रही हैं, इसलिए आज सवर्णों का शक्ति के स्रोतों (आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षिक, धार्मिक) पर बेहिसाब कब्ज़ा हो गया है।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
जिस दिन भाजपा के मुखपत्र के रूप में प्रचारित अख़बार में मुस्लिम तुष्टिकरण के जरिये राहुल गाँधी की छवि धूमिल करने की चेष्टा हुई, उसी दिन उस अख़बार में यह खबर भी बहुत ही महत्त्व के साथ प्रकाशित की गयी गयी थी। ‘पिछले दिनों अपने गृह-राज्य:हिमाचल प्रदेश के दौरे पर पहुंचे बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने गैर भाजपाई राज्यों पर बड़ा हमला किया है। नड्डा ने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की ओर से हाल ही में आई एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए पंजाब, बिहार, राजस्थान और पश्चिम बंगाल की राज्य सरकारों पर ओबीसी वर्ग के लिए तय आरक्षण में सेंधमारी करने का आरोप लगाया है। ओबीसी वर्ग को उनके जायज अधिकारों से वंचित रखा जा रहा है। नड्डा ने बिलासपुर के सर्किट हाऊस में आयोजित प्रेस कांफ्रेंस में आंकड़ों के साथ उपरोक्त राज्यों की सरकारों पर षड्यंत्र रचने का आरोप जड़ा। उन्होंने कहा कि ओबीसी को जानबूझकर उनके आरक्षण से वंचित किया जा रहा है। बंगाल सरकार पर बरसते हुए उन्होंने कहा कि ओबीसी के कोटे को मुस्लिम तुष्टिकरण की भेंट चढ़ाया जा रहा है। पश्चिम बंगाल में 91।5 प्रतिशत आरक्षण का लाभ मुस्लिम ओबीसी के लोगों को दिया गया है। पश्चिम बंगाल में ओबीसी के कुल 179 जातियों के नाम दर्ज किए गए हैं, जिसमें 118 मुस्लिम समुदाय की जातियों को शामिल किया गया है। इस तरह पश्चिम बंगाल राज्य में बांग्लादेशी घुसपैठ व रोहिंग्या को जातिगत लाभ देने का प्रयास किया जा रहा है। आरक्षण की कमोवेश यही स्थिति बिहार, पंजाब व राजस्थान की भी है। उन्होंने कहा कि इन राज्यों में ओबीसी वर्ग को प्रमाणपत्र नहीं दिए जा रहे हैं। बिहार के मुख्यमंत्री व उपमुख्यमंत्री ओबीसी वर्ग के हितों पर कुठाराघात कर रहे हैं। इसी तरह पंजाब राज्य में ओबीसी का आरक्षण 25 प्रतिशत है। यहां 12 फीसदी को ही लाभ दिया गया है, जबकि 13 प्रतिशत लोग आरक्षण से वंचित हैं। राजस्थान राज्य में सात जिले ट्राईबल घोषित किए गए हैं, लेकिन वहां पर भी लोगों को आरक्षण से वंचित रखा गया है।’
जब मैं यह लेख तैयार कर रहा हूँ , उस दौरान मेरे व्हाट्सप पर विचलित कर देने वाली एक खास खबर यूपी से आई है,जहां 7 अगस्त, 1990 को पिछड़ों को आरक्षण सुलभ कराने वाली मंडल रिपोर्ट प्रकाशित होने के एक महीने के अन्दर 25 सितम्बर, 1990 से राम जन्मभूमि मुक्ति के लिए आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या के लिए रथ यात्रा निकालकर मुसलामानों के खिलाफ नफरत की राजनीति का बड़ा आगाज़ किया, जिसके जोर पर भाजपा राज्यों से केंद्र तक की सत्ता में आने की जमीन तैयार हुई। बहरहाल जो खास खबर आई है वह यह है कि उत्तर प्रदेश के योगी सरकार में मत्स्य पालन मंत्री का दायित्व निर्वहन कर रहे संजय निषाद ने दावा किया है कि प्रयागराज में निषादराज के क़िले पर बनी मस्जिद का निर्माण अवैध है। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा है कि अगर मस्जिद को हटाया नहीं गया तो निषाद समाज के लोग इसे ‘गंगा में बहा देंगे’। निषाद ने मस्जिद बहाने के पीछे युक्ति खड़ी करते हुए कहा है, ‘भगवान राम ने जहां रात विश्राम किया, वहां उनकी छाती पर मस्जिद कायम है, इसे कायम रखना कैसे संभव है। लव जिहाद के साथ अब जिहाद की क्या जमीन होगी।’’दुनिया में हम बहुत घूम रहे हैं। दूसरे देशों में शांति के लिए कोई भी सड़क बनती है तो वहां से मस्जिद हटा ली जाती है।वहां हमारे लाखों लोग जाते हैं और गुस्से में आते हैं, हम उन्हें कब तक रोकेंगे।’ निषाद पार्टी के संस्थापक संजय निषाद यूपी विधान परिषद के सदस्य हैं और राज्य में कैबिनेट मंत्री हैं।
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भाजपा अपने पितृ संगठन आरएसएस के आनुषांगिक संगठनों के जरिये 24 घंटे ही मुसलमानों के खिलाफ नफरत का माहौल बनाने में मुस्तैद रहती है, इसलिए विगत कुछ दिनों में राहुल गाँधी पर मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप लगाने के साथ उसके सहयोगी पार्टी के नेता द्वारा मस्जिद गंगा में बहा देने की धमकी में कोई नयापन नहीं है। वह वर्षों से कांग्रेस पार्टी सहित अपने अन्य प्रतिपक्षियों पर तुष्टिकरण का आरोप लगाने सहित गुलामी के प्रतीक के रूप में खड़ी असंख्य मस्जिदों के जमींदोज के लिए माहौल बनाती रही है। लेकिन हाल के दिनों में उसकी स्ट्रेटजी में एक नया बदलाव आया है।वह यह कि ओबीसी के कोटे को मुस्लिम तुष्टिकरण की भेंट चढ़ाया जा रहा है। अर्थात ओबीसी कोटे में शामिल मुसलमान आरक्षण के हकमार वर्ग हैं,जो हिन्दू ओबीसी का आरक्षण भी खा जाते हैं। नफरत की राजनीति में भाजपा ने यह नया बदलाव लाया है, जिसकी शुरुआत उसने पिछले कर्णाटक चुनाव में की थी। मुसलमान आरक्षण का हकमार वर्ग है यह सन्देश प्रभावी तरीके से देने के लिए मार्च में भाजपाई मुख्यमंत्री बसवराज ने एक कैबिनेट मीटिंग बुलाकर 24 मार्च को एक सरकारी आदेश जारी किया जिसके तहत सरकार ने ओबीसी आरक्षण से मुस्लिम कोटे को बाहर कर दिया। कर्णाटक में ओबीसी आरक्षण कुल 32 प्रतिशत था, जिसमे 4 प्रतिशत कोटा मुस्लिमों का था। नए आदेश के तहत नौकरियों और शिक्षा में मुस्लिम कोटे का 4 फीसद आरक्षण वीरशैव-लिंगायत और वोक्कालिगा में दो –दो प्रतिशत बांट दिया गया। कर्णाटक चुनाव में भाजपा इसी मुद्दे पर मुसलमानों के खिलाफ नफरत को अभूतपूर्व उंचाई देकर चुनाव जीतने का उपक्रम चलाया था, जो राहुल गांधी के सामाजिक न्यायवादी एजेंडे के कारण विफल हो गया।
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राम जन्मभूमि मुक्ति आन्दोलन के ज़माने से भाजपा ने मुसलमानों के खिलाफ नफरत का जो लगातार माहौल पैदा करने की कोशिश किया, उसमें अबतक उसने उनको विदेशी आक्रान्ता, हिन्दू धर्म-संस्कृति का विध्वंशक, आतंकवादी, पाकिस्तानपरस्त, भूरि-भूरि बच्चे पैदा करने वाले जमात इत्यादि के रूप में चिन्हित करने की स्क्रिप्ट रचा। किन्तु कर्णाटक में उन्हें आरक्षण का अपात्र बताकर हिन्दुओं के आरक्षण के हकमार- वर्ग के रूप में उसी तरह चिन्हित करने का प्रयास हुआ जैसे भाजपा यादव,कुर्मी, जाटव, चमार, दुसाध इत्यादि को दलित- पिछड़ों के आरक्षण के हकमार वर्ग के रूप में चिन्हित कर बहुजन समाज की अनग्रसर जातियों को इनके खिलाफ आक्रोशित कर चुकी है। 2024 को ध्यान में रखकर मुसलमानों को आरक्षण के हकमार वर्ग की छवि देने का जो भाजपा की ओर से प्रयास चल रहा है, उसका कुछ-कुछ प्रयोग अप्रैल, 2023 में तेलंगाना में हो चुका है। अब जबकि कर्णाटक चुनाव के बाद भाजपा के केंद्र से विदाई के लक्षण स्पष्ट होने लगे हैं, वह मुसलमानों को आरक्षण के हकमार वर्ग चिन्हित करने का अभियान शुरू करने जा रही है, जिसका लक्षण जेपी नड्डा के हालिया बयां में देखा जा सकता है। उसके नए अभियान से दलित, आदिवासी, पिछड़ों इत्यादि में भाजपा के सौजन्य से नफरत की जो व्याप्ति है वह और बढ़ जाएगी। तब बहुजन भाजपा को सत्ता में लाने का उपक्रम इस उम्मीद में चलाएंगे कि भाजपा यदि सत्ता में आएगी तो मुसलमानों का आरक्षण ख़त्म का उनके कोटे का आरक्षण दलित, आदिवासी, पिछड़ों में बंटवारा करा देगी।ऐसे में मुसलमानों के खिलाफ नफरत से भरे बहुजन भाजपा को नए सिरे से समर्थन देने के लिए टूट पड़ेंगे। इससे भाजपा मुसलमानों को आरक्षण का हकमार वर्ग बताने का जो नया अभियान छेड़ी है, उससे चुनाव को प्रभावित करने लायक संख्या बल रखने वाले बहुजनों में नफरत का वह सैलाब उमडेगा जिसके सामने विपक्षी एकता से लेकर अजेंडा एजेंडा इत्यादि तिनकों की भाँती बह जायेंगे।इसलिए इस सैलाब को एक नई दिशा देना जरुरी है। आज जब विपक्ष 2024 में भाजपा के मुकाबले के लिए एकजुटता का सूत्र तलाशने से लेकर मुद्दे की खोज में व्यस्त है, उसे भविष्य में मुसलमानों के खिलाफ उठने वाले नफरत के सैलाब की काट ढूंढने में लग जाना चाहिए। विपक्ष अगर 2024 में भाजपा को शिकस्त देने के प्रति गंभीर है तो उसे ऐसे मुद्दे की तलाश करनी होगी, जिससे मुसलमानों की जगह कोई और बहुजनों के वर्ग-शत्रु की जगह ले ले। और विपक्ष खासकर, सामाजिक न्यायवादी दल यदि चाह लें तो आजाद भारत में सवर्णवादी सत्ता की साजिशों से प्रायः सर्वहारा की स्थिति में पहुंचे मुसलमानों की जगह भाजपा के चहेते वर्ग : सवर्णों को बहुत आसानी से दलित, आदिवासी , पिछड़ों के वर्ग- शत्रु के रूप में खड़ा किया जा सकता है।
दुनिया जानती है कि भाजपा ब्राहमण, ठाकुर, बनियों की पार्टी है और उसकी समस्त गतिविधियां इन्हीं के हित-पोषण के पर केन्द्रित रहती हैं। अपने इसी चहेते वर्ग के लिए ही वह देश बेच रही है, इन्हीं के लिए वह देश को धर्म और जातियों के नाम पर विभाजित कराती है। चूंकि उसकी समस्त नीतियां सवर्ण हित को ध्यान में रखकर लागू की जा रही हैं, इसलिए आज सवर्णों का शक्ति के स्रोतों (आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षिक, धार्मिक) पर बेहिसाब कब्ज़ा हो गया है। यदि कोई गौर से देखे तो पता चलेगा कि पूरे देश में जो असंख्य गगनचुम्बी भवन खड़े हैं, उनमें 80-90 प्रतिशत फ्लैट्स सवर्ण मालिकों के हैं। मेट्रोपोलिटन शहरों से लेकर छोटे-छोटे कस्बों तक में छोटी-छोटी दुकानों से लेकर बड़े-बड़े शॉपिंग मॉलों में 80-90 प्रतिशत दूकानें इन्हीं की हैं। चार से आठ-आठ, दस-दस लेन की सड़कों पर चमचमाती गाड़ियों का जो सैलाब नजर आता है, उनमें 90 प्रतिशत से ज्यादे गाडियां इन्हीं की होती हैं। देश के जनमत निर्माण में लगे छोटे-बड़े अख़बारों से लेकर तमाम चैनल्स प्राय: इन्ही के हैं। फिल्म और मनोरंजन तथा ज्ञान-उद्योग पर 90 प्रतिशत से ज्यादा कब्ज़ा इन्ही का है। संसद विधान सभाओं में वंचित वर्गों के जनप्रतिनिधियों की संख्या भले ही ठीक-ठाक हो, किन्तु मंत्रिमंडलों में दबदबा इन्ही का है। मंत्रिमंडलों में लिए गए फैसलों को अमलीजामा पहनाने वाले 80-90 प्रतिशत अधिकारी इन्ही वर्गों से हैं। न्यायिक सेवा, शासन-प्रशासन,उद्योग-व्यापार, फिल्म-मीडिया, धार्मिक और नॉलेज सेक्टर में भारत के सवर्णों जैसा दबदबा आज की तारीख में दुनिया में कहीं भी किसी समुदाय विशेष का नहीं है। आंकडे चीख-चीख कर बताते हैं कि आजादी के 75 सालों बाद भी हजारों साल पूर्व की भांति सवर्ण ही इस देश के मालिक हैं। समस्त क्षेत्रों में इनके बेहिसाब कब्जे से बहुजनों में वह सापेक्षिक वंचना (रिलेटिव डिप्राईवेशन) का अहसास शिखर पर पँहुच चुका है, जो सापेक्षिक वंचना क्रांति की आग में घी का काम करती है।
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मोदी राज में जिस तरह सवर्णों का बेहिसाब कब्ज़ा हुआ है, जिस तरह उनके खिलाफ दलित, आदिवासी,पिछड़ों और अल्पसंख्यकों में सापेक्षिक वंचना का भाव शिखर पर पहुंचा है, उसे देखते हुए यदि विपक्ष यह घोषणा कर दें कि 2024 में सत्ता में आने पर हम जातीय जनगणना कराकर शक्ति के स्रोतों पर 70-80% कब्ज़ा जमायें 75% आबादी वाले सवर्ण पुरुषों को अवसरों और संसाधनों के बंटवारे में उनके संख्यानुपात पर रोककर उनके हिस्से का 60-70% अतिरिक्त (सरप्लस) अवसर मोदी द्वारा गुलामों की स्थिति में पहुचाये गए जन्मजात वंचित वर्गों के मध्य वितरित करेंगे, स्थिति रातों-रात बदल जाएगी। भाजपा की साजिश से मुसलमानों के खिलाफ बहुजनों में फलीभूत हुई नफरत रातों-रात सवर्णों की ओर शिफ्ट हो जाएगी।और विपक्ष द्वारा ऐसी घोषणा करना समय की पुकार है। अगर सवर्णों की आबादी 15 प्रतिशत है तो उसमे उनकी आधी आबादी अर्थात महिलाएं भी कमोबेश बहुजनों की भांति ही शक्ति के स्रोतों से बहिष्कृत व वंचित है। अगर ग्लोबल जेंडर गैप की पिछली रिपोर्ट के मुताबिक भारत की आधी आबादी को आर्थिक रूप से पुरुषों के बराबर आने में 257 साल लगने हैं तो उस आधी आबादी में सवर्ण महिलाएं भी हैं। सारी समस्या सवर्ण पुरुषों द्वारा सृष्ट है, जिन्होंने सेना, पुलिस बल व न्यायालयों सहित सरकारी और निजी क्षेत्र की सभी स्तर की,सभी प्रकार की नौकरियों; राजसत्ता की संस्थाओं, डीलरशिप, सप्लाई, सड़क-भवन निर्माण इत्यादि के ठेकों, पार्किंग, परिवहन; शिक्षण संस्थानों, विज्ञापन व एनजीओ को बंटने वाली राशि पर 70-80 प्रतिशत कब्ज़ा जमा कर भारत में मानव जाति की सबसे बड़ी समस्या, आर्थिक और सामाजिक गैर-बराबरी को शिखर पर पंहुचा दिया है। सवर्णों को उनके संख्यानुपात में सिमटाने की घोषणा से बहुजनों में उनका छोड़ा 60 से 70 प्रतिशत अतिरिक्त अवसर पाने की सम्भावना उजागर हो जाएगी। ऐसे में वे मुस्लिम आरक्षण के खात्मे से सिर्फ नौकरियों में मिलने वाले नाममात्र के अवसर की अनदेखी कर सवर्णों को निशाने पर लेने का मन बनाने लगेंगे। इससे डॉ. हेडगेवार द्वारा इजाद मुस्लिम विद्वेष का वह हथियार भोथरा हो जायेगा,जिसके सहारे भाजपा अप्रतिरोध्य बनी है। तब सवर्णों के हिस्से का अतिरिक्त 60- 70% पाने की लालच में बहुजन गैर-भाजपा दलों को सत्ता में ला देंगे।
लेखक बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।