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रचेल-तेजस्वी और बिहार की सियासत (डायरी,11 दिसंबर 2021)

सियासत सचमुच बहुत खास है। खासकर वह जो कुर्सी पर विराजमान होता है, उसके लिए सियासत का मतलब ही अलहदा होता है। यदि इसे हम बिहार के संदर्भ में देखें तो नीतीश कुमार ने बिहार की सियासत को नीतीशमय बनाने की पूरी कोशिश की है। इसके लिए उन्होंने सबसे अधिक अखबारों का सहयोग लिया है। […]

सियासत सचमुच बहुत खास है। खासकर वह जो कुर्सी पर विराजमान होता है, उसके लिए सियासत का मतलब ही अलहदा होता है। यदि इसे हम बिहार के संदर्भ में देखें तो नीतीश कुमार ने बिहार की सियासत को नीतीशमय बनाने की पूरी कोशिश की है। इसके लिए उन्होंने सबसे अधिक अखबारों का सहयोग लिया है। हालांकि यह कहना अधिक तर्कसंगत है कि उन्होंने बिहार में प्रकाशित अखबारों को अपना गुलाम बना लिया है। यही वजह है कि बिहार में अखबारों के लिए खबर का मतलब वही जो नीतीश कुमार को पसंद आए।
दरअसल, पटना से प्रकाशित एक बड़े हिंदी दैनिक ने एक खास तरह की खबर का प्रकाशन किया है। खबर के निशाने पर लालू प्रसाद व उनका परिवार है। खबर को इस तरीके से लिखा गया है मानो उसे नीतीश कुमार ने डिक्टेट कराया हो। अब चूंकि खबर नीतीश कुमार ने डिक्टेट कराया है तो पत्रकारिता के सारे कायदे-कानून खबर से गायब हैं। खबर में बताया गया है कि लालू परिवार ने अपने घर की नयी बहू रचेल का नाम बदलकर राजेश्वरी यादव रख दिया है। इसमें यह भी बताया गया है कि इसकी कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं की गयी है। मतलब यह कि लालू परिवार ने अपनी तरफ से कोई बयान जारी नहीं किया है। लेकिन अखबार ने खबर की हेडिंग में इसकी घोषणा की है कि लालू परिवार का धर्मसंकट खत्म। इसके अलावा खबर में यह भी कहा गया है कि क्रिश्चियन परिवार की बहू घर में लाने से लालू परिवार दुविधा में था।

[bs-quote quote=”हालांकि एक सच यह भी है कि बिहार की सियासत में लालू प्रसाद का स्थान सबसे अलग है। तेजस्वी ने लालू प्रसाद की विरासत को अधिक मजबूती से विस्तृत किया है। करीब 32 साल के इस नौजवान ने विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार को नैतिकता के सारे मानदंडों को तोड़ने को विवश कर दिया। लेकिन इसके बावजूद नीतीश कुमार तेजस्वी की पार्टी को विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी होने से नहीं रोक सके।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

 

बात केवल इतनी ही नहीं है। लालू परिवार कितना कर्मकांडी और पाखंडवादी है, यह बताने के लिए खबर में यह भी लिखा गया है कि लालू परिवार तेजस्वी-रचेल का रिसेप्शन खरमास यानी 14 जनवरी के बाद करेगा। मजेदार बात यह कि इस घोषणा की भी पुष्टि नहीं की गई है।
हालांकि यह सच है कि लालू प्रसाद का परिवार कर्मकांडी रहा है। यह अकेले केवल लालू परिवार का मामला नहीं है। स्वयं नीतीश कुमार इतने बड़े कर्मकांडी हैं कि उन्होंने सचिवालय में लक्ष्मी-गणेश की पूजा-अर्चना की। विश्वकर्मा पूजा के मौके पर विश्वकर्मा की प्रतिमा की स्थापना बिहार सचिवालय में नीतीश कुमार के रहते हुई और स्वयं नीतीश कुमार ने पूजा की।
वहीं पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी को लेकर बिहार की मीडिया हमेशा उदासीन रही है। उनकी पत्नी भी क्रिश्चियन हैं और यह बात बिहार से प्रकाशित अखबारों में जगजाहिर नहीं किया जाता है। भाजपा के वरिष्ठ नेता और बिहार सरकार में मंत्री शाहनवाज हुसैन की पत्नी हिंदू हैं और एक बड़े भाजपाई नेता की बेटी रही हैं, इस तथ्य को भी बिहार के अखबारों ने लगभग छिपाकर रखा है।
हालांकि एक सच यह भी है कि बिहार की सियासत में लालू प्रसाद का स्थान सबसे अलग है। तेजस्वी ने लालू प्रसाद की विरासत को अधिक मजबूती से विस्तृत किया है। करीब 32 साल के इस नौजवान ने विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार को नैतिकता के सारे मानदंडों को तोड़ने को विवश कर दिया। लेकिन इसके बावजूद नीतीश कुमार तेजस्वी की पार्टी को विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी होने से नहीं रोक सके।
असल में नीतीश कुमार की चुनौती केवल और केवल तेजस्वी यादव हैं। यही वजह है कि नीतीश अब उनके पीछे पड़े हैं। लिहाजा, उनके व्यक्तिगत जीवन पर हमले कराए जा रहे हैं।
बहरहाल, यह जिम्मेदारी लालू परिवार की है कि वह कयासबाजियों पर रोक लगाए। अंतरधार्मिक विवाह के जरिए तेजस्वी ने अपने परिवार की छवि को बदला है। यह एक सकारात्मक पहल है। इसका स्वागत किया जाना चाहिए।
नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस में संपादक हैं।
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