मणिपुर हिंसा के समाधान और पड़ताल के लिए राहुल गांधी ने की सर्वदलीय प्रतिनिधि मंडल भेजने की मांग
नित्यानंद गायेन
नागरिक समाज ने जारी की विज्ञप्ति, प्रधानमंत्री से की जिम्मेदारी लेने की मांग
बीते करीब 40 दिनों से मणिपुर में जारी जातीय हिंसा के चपेट में अब केन्द्रीय मंत्री का घर जलकर राख हो गया है। गुरुवार, 15 जून की रात को राजधानी इंफाल के कोंगबा बाजार इलाके में स्थित केन्द्रीय विदेश राज्य मंत्री आरके रंजन सिंह का घर आग में जला दिया गया।इस घटना के समय मंत्री अपने घर पर नहीं थे। प्राप्त सूचना के अनुसार, उपद्रवियों ने पेट्रोल बम फेंक कर केन्द्रीय मंत्री के घर को आग लगाई। हालांकि इस घटना में मंत्री के परिवार के किसी सदस्य को कोई क्षति नहीं हुई, लेकिन घर को काफी ज्यादा नुकसान हुआ है।
#WATCH | Manipur: A mob torched Union Minister of State for External Affairs RK Ranjan Singh's residence at Kongba in Imphal on Thursday late night. https://t.co/zItifvGwoG pic.twitter.com/LWAWiJnRwc
— ANI (@ANI) June 16, 2023
इस घटना के बाद मीडिया से बात करते हुए आरके रंजन सिंह ने कहा, “ मैं स्तब्ध हूँ, मणिपुर में कानून व्यवस्था की स्थिति पूरी तरह से विफल हो चुकी है।” उन्होंने आगे कहा कि, राज्य की वर्तमान सरकार और मशीनरी पूरी तरह से फेल हो चुकी है। लेकिन सवाल यह बनता है कि, राज्य में सरकार किसकी है? उस पर भी सवाल है कि यह सवाल पूछेगा कौन?
बकौल दिवंगत शायर राहत इंदौरी-‘लगेगी आग तो आएंगे घर कई जद में, यहां पे सिर्फ हमारा मकान थोड़ी है’। बीते सोमवार की रात को खामेनलोक इलाके में चरमपंथियों के हमले में 9 लोग मारे गये और 10 लोग ज़ख़्मी हुए थे।
राज्य में जारी हिंसा में अब तक 100 से अधिक लोग मारे गये हैं, सैकड़ों घर जल गये और 60 हजार से अधिक लोग विस्थापित हो गये हैं।
इसके बावजूद मणिपुर में जारी हिंसा के मुद्दे पर प्रधानमंत्री लगातार चुप्पी साधे रहे। जबकि इस बीच कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार करने में उन्होंने कोई कमी नहीं की।
गौरतलब है कि, मई के पहले सप्ताह में मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने के मुद्दे पर हाईकोर्ट की अनुशंसा के बाद ही हिंसा शुरू हुई थी। दरअसल मैतेई संगठन की ओर से दायर एक याचिका पर बीते 19 अप्रैल को अदालत ने राज्य सरकार से इस मांग पर विचार करने कहा था। साथ ही, चार महीने के भीतर केंद्र को अपनी सिफारिश भेजने का भी निर्देश दिया था। हाईकोर्ट के इस निर्देश के बाद ही दोनों समुदायों के बीच हिंसा शुरू हो गई थी।
कांग्रेस नेता और पूर्व सांसद राहुल गांधी ने राज्य में जारी हिंसा के समाधान और पड़ताल के लिए एक सर्वदलीय प्रतिनिधि मंडल को वहां भेजने की मांग की है।
BJP’s politics of hatred has burnt Manipur for over 40 days leaving more than a hundred people dead.
The PM has failed India and is completely silent.
An all-party delegation must be sent to the state to end this cycle of violence & restore peace.
Let’s shut this ‘Nafrat ka…
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) June 15, 2023
वहीं दर्जनों नागरिक, सामाजिक संगठन और बुद्धिजीवियों ने एक विज्ञप्ति जारी कर मणिपुर में जारी हिंसा की निंदा करते हुए वहां शांति स्थापना की मांग की है। जारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि, “मणिपुर में मेइती समुदाय और आदिवासी कुकी तथा ज़ो समुदायों के बीच लगातार चल रही सजातीय हिंसा के विषय में हम सब अत्यंत चिंताग्रस्त हैं। हमारी मांग है कि इस हिंसा को तुरंत रोका जाए, क्योंकि इसके कारण लोगों के जीवन, आजीविकाओं और संपत्तियों की हानि हो रही है तथा लोगों के बीच दहशत फैल रही है। अप्रैल 2023 में मणिपुर उच्च न्यायालय के आदेश जिसमें राज्य सरकार को सलाह दी गई कि मेइती समुदाय (जिसके सदस्य अब या तो अन्य पिछड़ी जाति के हैं, या कुछ मामलों में अनुसूचित जाति श्रेणी में आते हैं) को अनुसूचित जनजाति की मान्यता दे दी जाए – यही आदेश इस हिंसा की शुरुआत का कारण बन गया। इसके अनुसार मेइती समुदाय को आदिवासी समुदायों के लिए आरक्षित भूमि का अधिकार मिल जाएगा। मई के महीने में जगह-जगह हिंसा भड़की जिसके परिणामस्वरूप क्षेत्र में नागरिक युद्ध की स्थिति बन गई है, चूंकि दोनों समुदाय हथियारों से लैस हैं, और कानून व्यवस्था पूरी तरह से ठप्प हो गई है। उसके बाद से हम देख रहे हैं कि नागरिकों के खिलाफ़ सुरक्षा दल, पुलिस और आर्मी अभूतपूर्व क्रूरता और व्यापक अत्याचार करती आ रही है।
भाजपा और केंद्र तथा राज्य में उसकी सरकारों की विभाजनकारी राजनीति के कारण आज मणिपुर जल रहा है। और उन्हीं की ज़िम्मेदारी बनती है कि और लोगों की जानें जाएँ उससे पहले इस नागरिक युद्ध को रोकें। यह हिंसा पुरुषों, महिलाओं और बच्चों पर गंभीर प्रभाव डाल रही है, 50,000 से भी अधिक लोग लगभग 300 रेफ्यूजी कैम्पों में रह रहे हैं और लाखों लोग विस्थापित हो चुके हैं। स्थिति तो इस वर्ष जनवरी से ही गंभीर हो चली थी, जब भाजपा सरकार ने आरक्षित वन क्षेत्रों से ‘गैर-कानूनी आप्रवासियों’ को हटाने के प्रयास शुरू किए, जो उनके अनुसार मणिपुर में 1970 के दशक के बाद से रहने लगे थे। राज्य सरकार ने चुरचंदपुर, कंगपोकपी और टेंगनुपाल ज़िलों से लोगों को हटाना शुरू किया और आदिवासी वन निवासियों को ‘अतिक्रमण करने वाले’ घोषित कर दिया। देश भर में अपनी कार्यप्रणाली की विशेषता के अनुरूप, भाजपा एक बार फिर अपने स्वयं के राजनीतिक लाभ के लिए समुदायों के बीच सदियों पुराने जातीय तनाव को बढ़ावा दे रही है। स्पष्ट रूप से, भाजपा की भूमिका राज्य में अपनी पैठ जमाने के लिए बल और ज़बरदस्ती का उपयोग करने में निहित है। दोनों समुदायों के सहयोगी होने का ढोंग करते हुए, यह केवल उनके बीच ऐतिहासिक तनाव की खाई को बढ़ा रही है, और उन्होंने आज तक समाधान की दिशा में किसी संवाद का कोई प्रयास नहीं किया है।
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केंद्र और राज्य दोनों सरकारें लोकतांत्रिक संवाद, संघवाद और मानवाधिकारों की सुरक्षा की अवधारणाओं को नष्ट करने के लिए संवैधानिक प्रावधानों को हथियार बना रही हैं। वर्तमान परिदृश्य में, अराम्बाई तेंगगोल और मेइतेई लेपुन जैसे सशस्त्र मेइती बहुसंख्यक समूह कुकियों के खिलाफ़ हिंसा कर रहे हैं, जिसमें नरसंहार संबंधी घृणास्पद भाषण और दंडमुक्ति के सर्वोच्चतावादी प्रदर्शन शामिल हैं। इनमें से पहला समूह धार्मिक पुनर्जागरणवादी समूह है जो चाहता है कि मेइती सनमही परंपरा में “वापस” आ जाएँ; और दूसरा समूह स्पष्ट रूप से हिन्दू सर्वोच्चतवादी सोच रखता है। मुख्यमंत्री बिरेन सिंह इन समूहों से नज़दीकी संबंध रखते हैं। दोनों समूह कुकी समुदाय को “अवैध बाहरी” और “नार्को आतंकवादी” मानते हैं। एक प्रेस इंटरव्यू में मेइतेई लेपुन के मुखिया सार्वजनिक स्तर पर यह कहने से नहीं कतराए कि मेइतेई द्वारा दावा किए गए क्षेत्र में रहने वाले कूकियों को “साफ कर देंगे”। उन्होंने कूकियों को “गैर-कानूनी”, “बाहरी”, “परिवार का सदस्य नहीं हैं”, “मणिपुर के आदिवासी नहीं हैं” और मणिपुर में “किरायेदार” बताया। इससे पहले मुख्यमंत्री ने खुद एक कुकी मानवाधिकार कार्यकर्ता को “म्यांमार निवासी” बताया था जो कि एक तरह से मेइतेई समुदाय को अशान्ति के कारण म्यांमार से आने वाले रेफ्यूजियों से खतरा होने के प्रचार को हरी झंडी दिखाता है। चूंकि यह रेफ्यूजी उन्हीं आदिवासी समुदायों से हैं जो मणिपुर में भी रहते हैं। मेइतेई बहुसंख्यक समूहों ने यह मुद्दा उठाया है कि आदिवासियों की संख्या बढ़ने से मेइतेई बहुसंख्यकों को खतरा है।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और असम के मुख्यमंत्री द्वारा असम एनआरसी अभ्यास के दौरान अल्पसंख्यक समुदाय को “अवैध” बताने वाली यह भाषा इस्तेमाल की गई थी। आज यही भाषा पूर्वोत्तर के दूसरे राज्य में फैल रही है, और भाजपा इस नफ़रत, हिंसा और विदेशियों के प्रति घृणा के उन्माद की आग को हवा दे रही है। गौर करने की बात है कि कुकी सशस्त्र दलों ने 2022 विधान सभा चुनावों में भाजपा के लिए वोट इकट्ठे किए थे, और मणिपुर विधान सभा के वर्तमान दस कुकी विधायकों में से सात भाजपा विधायक हैं। कुकी दलों का प्रचार भी भाजपा की किताब के पन्नों पर आधारित है, जिसमें ऐसी मिसालें दी जा रही हैं जहां कुकी नेताओं ने भारत के हितों का साथ दिया, और वे मेइतेईयों को भारत-विरोधी करार दे रहे हैं। समाचारों से पता चलता है कि वहाँ चल रही हिंसा में मारे गए लोगों में से अधिकांश कुकी समुदाय के हैं। खबर है कि 200 से अधिक कुकी चर्च, गोदाम और घर जला दिए गए हैं। अत्यंत दुख की बात है कि अफ़वाहें, जिन्हें आज के दिन फेक न्यूज कहा जाता है, का रणनीतिक उपयोग करके समुदायों के बीच हिंसा को बढ़ावा दिया जा रहा है और यह हिंसा औरतों के लिए और ज़्यादा खतरा बढ़ा देती है। खबरों के अनुसार, बहुसंख्यक मेइतेई समुदाय ने ऐसे ही फेक न्यूज फैलाई कि कूकियों ने मेइतेई औरतों का बलात्कार किया है और इसके आधार पर कुकी औरतों की हत्या और बलात्कार किया जा रहा है। खबरे आ रही हैं कि उन्माद भरी भीड़ नारे लगते चलती है ‘बलात्कार करो, प्रताड़ित करो’ – इसकी तहकीकात करना बहुत ज़रूरी है। हमारी मांग है कि हिंसा के इस तांडव पर तत्काल रोक लगाई जाए, और साथ ही जैसे ही यह हिंसा रुकती है, स्वतंत्र, गैर-दलीय नागरिक सदस्य इस क्षेत्र में जाकर जीवित बचे और शोक संतप्त लोगों से मिलें; हत्याओं और बलात्कारों की पुष्टि करने की कोशिश करें और अपने परिजनों, घरों और चर्चों को खोने के दुख से आघात का सामना कर रहे लोगों को एकजुटता और सहयोग दें।
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नागरिक समाज की मांगे:-
- प्रधानमंत्री को मणिपुर की इस स्थिति पर चुप्पी तोड़ते हुए इसकी ज़िम्मेदारी लेनी होगी।
- तथ्यों को स्थापित करने के लिए अदालत की निगरानी में एक ट्रिब्यूनल का गठन किया जाए और न्याय के लिए ज़मीन तैयार करते हुए, मणिपुर के समुदायों को अलग करने वाले घावों को ठीक करने के प्रयास किए जाएँ, ताकि विभाजन और नफ़रत की भावना को कम किया जा सके।
- सरकारी और गैर-सरकार्र तत्वों द्वारा यौनिक हिंसा के सभी मामलों के लिए फास्ट-ट्रैक कोर्ट स्थापित किया जाए। जैसा कि वर्मा आयोग की संस्तुति में कहा गया है कि ‘संघर्ष क्षेत्रों में यौन अपराधों के दोषी कर्मियों पर सामान्य आपराधिक कानून के तहत मुकदमा चलाया जाना चाहिए।’
- शांति कमेटियाँ लाने से पहले स्थिति को सामान्य बनाने के प्रयास किए जाएँ।
- पलायन के लिए मजबूर हुए लोगों को सरकार द्वारा राहत का प्रावधान और उनके गांवों में उनकी सुरक्षित वापसी की गारंटी। उनके घरों और जीवन का पुनर्निर्माण करवाया जाए। जिन लोगों ने परिजनों को खोया है, घायल होने वालों और घर, अनाज, पशुधन आदि का नुकसान हुए लोगों के लिए अनुग्रह मुआवज़े का प्रावधान किया जाए। वापसी, पुनर्वास और मुआवज़े की इस प्रक्रिया की देखरेख सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के एक पैनल द्वारा की जाए। जो इस क्षेत्र को करीब से जानते हैं, इस पैनल को संभवतः उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त किया जा सकता है।
मांग करने वालों में मुख्य रूप से अन्नी राजा, पीपल्स यूनियन की कविता श्रीवास्तव, अनुराधा बनर्जी, वाणी सुब्रामानियन, कविता कृष्णन, रंजना पाधी और नंदिनी राव आदि नारीवादी और मानवाधिकार कार्यकर्त्ता हैं।
नित्यानंद गायेन गाँव के लोग डॉट कॉम के संवाददाता हैं।
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