किसानों को लाभकारी मूल्य पर अपनी फसल बेचने की सहूलियत देने के लिए कृषि उपज मंडियों का निर्माण किया गया था, जिसका उद्देश्य था कि घोषित समर्थन मूल्य से कम पर यहां किसानों के फसल की खरीदी नहीं होगी। लेकिन अब देश में ऐसी कोई भी मंडी नहीं है, जहां इस बात की गारंटी हो। अनाज व्यापारियों को मंडियों से ही खरीदने की बाध्यता खत्म कर दिए जाने के बाद अब ये मंडियां बीमार हो गई है। इस तरह किसानों को न तो खरीद की, न समर्थन मूल्य की और न ही वितरण व्यवस्था की कोई गारंटी प्राप्त है। किसान लगातार परेशान हैं और आत्महत्या जैसा घातक कदम उठाने को मजबूर हैं।
घरघोड़ा से पेलमा तक रेल लाइन बिछाने के लिए 21 गांवों में 600 किसानों की ज़मीनें जाएंगी और 3 हजार की आबादी विस्थापित होगी। इस इलाके में आदिवासियों का निवास है। जिनकी अपनी थोड़ी सी खेती-किसानी है और इनका पूरा जीवनयापन जंगलों पर निर्भर है।
नयी दिल्ली,(भाषा)। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के पोलित ब्यूरो ने बुधवार को अडाणी मामले में उच्चतम न्यायालय के फैसले को ‘निराशाजनक’ करार देते हुए कहा...
मोदीजी, उनकी सरकार, उनका संघ परिवार, इतना ज्यादा काम क्यों करते हैं? बताइए, दिल्ली वाले केजरीवाल ने तो सीधे-सीधे मोदीजी के अठारह-बीस घंटे काम करने पर ही आब्जेक्शन उठा दिया।
मगर चूंकि तानाशाह खुद मूलतः एक भद्दा मजाक और जीता-जागता चुटकुला होते है, इसलिए यह असहनीय काल कुछ हंसाने और गुदगुदाने वाले सच्चे/ गढ़े चुटकुलों का काल भी होता है। तानाशाह इतिहास के गटर में समा जाते हैं, मगर चुटकुले रह जाते हैं।
क्रोनी कैपिटलिज्म (परजीवी पूंजीवाद) में कॉरपोरेट किस तरह फल–फूल रहे हैं और प्राकृतिक संसाधनों को लूट रहे हैं, इसका जीता-जागता उदाहरण छत्तीसगढ़ में कोयले...
रायगढ़ जिले के तमनार और घरघोड़ा ब्लॉक में कोयले की अनेक खदानें हैं। उन कोयला संसाधनों पर सैकड़ों गाँव बसे हुए हैं। लगातार खनन के लिए लोगों का विस्थापन कंपनी अपनी शर्तों पर कर रही है। गाँव के विस्थापन का मतलब गाँव का नक्शे से खत्म हो जाना और विस्थापित व्यक्ति के लिए यह एक तरीके से मौत है। जिसे अपनी जमीन से विस्थापित कर दिया जाता है, संबंध उस जगह से उसका भावनात्मक जुड़ाव और रिश्ता होता है।
हमारी लड़ाई किसी व्यक्ति या पार्टी के खिलाफ नहीं बल्कि सरकार के खिलाफ है। हमारी लड़ाई अडानी, अम्बानी के हाथों देश सौंपने की साजिश के खिलाफ है। अब देश फैसला करे कि अडानी, अम्बानी क्या देश चलायेंगे। उन्होंने कहा कि कृषि कानूनों के लागू होने से देशभर में मण्डियां और एफसीआई के गोदाम बंद हो जायेंगे। अनाज और सब्जियों की खरीद एवं बिक्री की नीतियां पूंजीपति घराने तय करेंगे।
किसान को पिज्जा खाते, जींस पहने हुए या एसी में देखकर दलाल और कोर्पोरटी किस्म के लोगों से सहन नहीं होता और उन्हें वे किसान मानने से इंकार करते हैं लेकिन अमिताभ बच्चन किसान हो सकता है भले उन्हें किसानी का क भी न आए। ऐसे दलाल लोग के साथ सरकार भी चाहती है कि देश की कृषि व्यवस्था कॉर्पोरेट के हाथ मे चले जाये और कृषि के यह तीन कानून इसी व्यवस्था को मजबूत करने की साजिश है।