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हर तरफ फैला सियासी तामझाम फिर भी नहीं मिटा बनारस का जाम

वाराणसी। सरकारी विभागों के फाइलों में स्मार्ट सिटी घोषित हो चुके वाराणसी शहर की यातायात व्यवस्था अनस्मार्ट हो गई है। रुका हुआ यातायात, कुछ बंद तो चालू हालत में खड़े दो पहिये और अन्य वाहन। उसी जाम की फोटो खींचते लोग। वहीं, खड़े-खड़े उस फोटो को सोशल मीडिया के तमाम प्लेटफार्मों पर अपलोड कर अपना […]

वाराणसी। सरकारी विभागों के फाइलों में स्मार्ट सिटी घोषित हो चुके वाराणसी शहर की यातायात व्यवस्था अनस्मार्ट हो गई है। रुका हुआ यातायात, कुछ बंद तो चालू हालत में खड़े दो पहिये और अन्य वाहन। उसी जाम की फोटो खींचते लोग। वहीं, खड़े-खड़े उस फोटो को सोशल मीडिया के तमाम प्लेटफार्मों पर अपलोड कर अपना गुस्सा जताते राहगीर। उनका यह गुस्सा मौखिक भी दिख रहा था। लभगग 15 मिनट से अपने वाहनों को बंद कर खड़े लोग सरकार और प्रशासन के खिलाफ अपनी नाराज़गी जता रहे थे। कोई अपने घर फ़ोन कर कह रहा था कि ‘जल्दी नहींआ सकता हूँ अभी मैं जाम में फंसा हुआ हूँ …।’

‘अरे भाई, ई स्मार्ट सिटी हव…।’

‘अभी कोई नेता-परेता आया होता तो ये पुलिस वाले डंडा पटकर यह जाम हटवा देते, हम लोग तो VIP हैं नहीं…।’

‘ ल अब नाहीं अब बनल, इधर त आउर जाम लगल हव…’।

ऐसे ही कई लोग अपनी-अपनी बातें कह रहे थे।

इसी बीच, कुछ लोग आधा किराया देकर ऑटो और टोटो वालों से उलझ रहे थे। यह हाल बीते शनिवार की शाम नदेसर से अंधरापुल मार्ग पर देखने को मिला।

सावन का महीना होने के चलते बनारस की यातायात व्यवस्था चरमरा गई है। यह हालत आम दिनों में भी बनी रहती है। शहर के प्रमुख तिराहों-चौराहों की स्थिति यह हो चुकी है कि संकेतक बोर्ड (20 मीटर की दूरी) लगे होने के बावजूद बेतरतीब तरीके से खड़े वाहन भीषण जाम का कारण बन रहे हैं। गंभीर स्थिति उन लोगों की हो जाती है जो एम्बुलेंस या अन्य वाहनों से मरीजों को लेकर अस्पताल जाते हैं। बीएचयू अस्पताल से लेकर मंडलीय और जिला अस्पताल सहित ग्रामीण इलाकों में स्थित स्वास्थ्य केन्द्रों तक पहुंचते-पहुंचते मरीजों की स्थिति और भी गंभीर हो जाती है। कभी-कभार इसी जाम के कारण मरीजों की मौत भी हो जाती है। हालाकि, यह बात परिजनों के मौत के गम में और एक रोअन-पीटन के बीच इसकी शिकायतें नहीं हो पाती हैं। धीरे-धीरे लोग भूल भी जाते हैं कि वह मरीज को लेकर शहर के भीषण जाम में कितनी देर फंसे रहे। अभी हाल ही में एक मरीज को ले जा रही एम्बुलेंस सावनी मेले कारण दुर्गाकुंड में लगे भीषण जाम में फंस गई। एम्बुलेंस से उतर कर एक युवक ने सड़क पर खड़े ट्रैफिक पुलिस से जाम हटवाने की गुहार लगाई। इसके बाद पुलिसकर्मी अलर्ट हुए और जाम में फंसे एम्बुलेंस को रास्ता दिलवाया। स्मार्ट सिटी के जाम में हर दिन ऐसी कई दृश्य देखने को मिल जाते हैं। बनारस की हालत यह हो चुकी है कि बेहतर अवसरों के लिए लोग ग्रामीण क्षेत्रों से शहर की ओर पलायन कर रहे हैं। जिसकी वजह से शहर के जनसंख्या की दर ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में अधिक होते जा रहे हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार, वाराणसी की कुल आबादी 3,676,841 थी, लेकिन 2023 में अनुमानित आबादी अब 4,259,988 हो गई है। इस बढ़ती आबादी का असर भी ट्रैफिक पर पड़ रहा है।

नदेसर मार्ग पर लगा जाम

बीएचयू के बाहर फंस जाते हैं एम्बुलेंस

पूर्वांचल का एम्स कहे जाने वाले बीएचयू का सरसुंदरलाल अस्पताल न सिर्फ़ वाराणसी, बल्कि पूर्वांचल और उसके आस-पास के कई जिलों के लोगों के लिए इलाज का भरोसेमंद स्थान है। बेहतर इलाज के लिए हर दिन सैकड़ों मरीज दूरदराज से बीएचयू अस्पताल आते हैं, लेकिन बनारस शहर में घुसते ही यहाँ का जाम देखकर वे भी हाय-तौबा कर लेते हैं। सर सुंदरलाल अस्पताल पहुँचने से पहले बीएचयू के मेन गेट से लेकर ओपीडी और इमरजेंसी तक बेतरतीब वाहन खड़े रहते हैं। इसकी वजह से मरीजों को लेकर अस्पताल पहुँचने वाला एम्बुलेंस भी जाम में फंस जाता है। अस्पताल परिसर में भी जाम का आलम रहता है। अस्पताल के प्रवेश द्वार में घुसते ही भीषण जाम से सभी को जूझना पड़ता है। बेतरतीब खड़े वाहनों को कोई भी सहेजने वाला नहीं होता है। गार्ड सिर्फ सीटियाँ बजाते रहते हैं। हालत यह होती है कि ओपीडी के बाहर, जिसको जहाँ जगह मिलती है, वह वहीं पर गाड़ी खड़ी कर चादर बिछाकर लेट और बैठ जाता है। इस वजह से रास्ता संकरा हो जाता है, इसके बाद लगता है जाम। अस्पताल परिसर में गाड़ी खड़ी करने के लिए तीन-चार स्टैंड भी बने हैं, लेकिन लोग सड़कों पर ही गाड़ियाँ इधर-उधर ही खड़ी कर देते हैं। इसको रोकने वाला भी वहां कोई नहीं होता। गम्भीर मरीजों को इमरजेंसी तक पहुँचने में देरी हो जाती है और उनको जान का खतरा बढ़ जाता है। यह एक दिन की समस्या नहीं है।

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कैंट रेलवे स्टेशन के पास 24 घंटे जाम

अगर हम कैंट रेलवे स्टेशन जाने वाली सड़कों की बाते करें तो वहां यातायात व्यस्त मिलना तय है। नगर निगम भले ही सड़कों से अतिक्रमण हटाने का दावा करती हो, लेकिन इन मार्गों की हालत यह है कि दुकान के बाहर भी एक दुकान (अतिक्रमण) लगी रहती है। कहने का मतलब सैकड़ों ठेले-खोमचे वाले पुल के नीचे मुख्य सड़क पर ही अवैध तरीके से खड़े रहते हैं। खान-पान से लेकर लोगों की जरूरत की छोटी-मोटी चीजों को लोग सड़क पर ही किनारे बेचने में जुटे रहते हैं। बच्चों को सुबह स्कूल जल्दी जाना हो, मरीजों को अस्पताल जाना हो या फिर व्यापारियों को अपने काम पर जाना हो तो सड़क के दोनों तरफ आधी-आधी दूर तक फैले अतिक्रमण से बचकर यदि आप निकल गए तो जाम में फंसना आपकी मजबूरी है। कुछ लोग तो समस्या बन चुकी इस जाम के कारण ट्रेन पकड़ने के लिए भी घर से घंटे-दो-घंटे पहले निकल जाते हैं। वही, कैंट से लहतारा रोड पर स्थित टाटा कैंसर अस्पताल में पूर्वांचल और उसके आस-पास के कई जिलों के लोग गंभीर बीमारी का बेहतर इलाज करवाने के लिए आते हैं, लेकिन अस्पताल के मुख्य मार्ग पर ही अतिक्रमण का आलम है। कई बार आपातकालीन स्थिति में आने वाले मरीजों और तीमारदारों को काफ़ी परेशानियां होती हैं। पुलिस ने यातायात को व्यवस्थित करने के लिए यहां कंकरीट के डिवाइडर लगाए, इसके बावजूद जाम से कोई निजात नहीं मिली।

लहुराबीर से गोदौलिया मार्ग पर भी जाम 

अगर हम लहुराबीर से गोदौलिया क्षेत्र की  बात करें तो वह वाराणसी के सबसे ज्यादा भीड़-भाड़ वाले इलाके में से यह एक है। अधिकतर लोग यहां से ही मार्केटिंग करना पसंद करते हैं। यहां का एक रास्ता सीधा दशाश्वमेध घाट होता हुआ श्री काशी विश्वनाथ मंदिर जाता है। यहाँ काफी बड़ा बाजार भी लगता है, लेकिन इसके लिए आपको भीषण जाम से होकर गुजरना पड़ेगा।

इसका सबसे बड़ा कारण इस सड़क पर लगने वाली दुकानें और गोदौलिया चौराहे पर चल रहा अवैध ऑटो स्टैंड, इधर-उधर खड़े होने वाले रिक्शे, अन्य वाहन और अतिक्रमण है। इस सड़क से प्रतिदिन गुजरने वाले दस हजार से ज्यादा वाहनों को रेंगना पड़ता है। चौराहे पर जाम न लगे, इसके लिए सिविल पुलिस के दो जवान, एक टीएसआई व चार होमगा‌र्ड्स समेत दो ट्रैफिक कांस्टेबल्स की ड्यूटी यहां सुबह से रात आठ बजे तक रहती है, लेकिन कोई फायदा नहीं होता दिखता।

अजय पटेल

स्केटिंग टीचर अजय पटेल बनारस की ट्रैफिक के बारे में कहते हैं कि यहाँ सड़कों पर जाम लगना लोगों की दिनचर्या का हिस्सा बन चुका है। लेकिन इसके लिए यहां की जनता भी जिम्मेदार है। लोगों में बेसब्री इस कदर है कि चौराहे पर जाम लगने पर मोटरसाइकिल और साइकिल वाले, पैदल चलने वाले फुटपाथ से चलने में अपनी बुद्धिमानी समझते हैं। ऐसे में पैदल चलने वालों को भी रुकना पड़ जाता है, जिसके बाद वे सिग्नल बंद होने पर भी वाहनों के सामने से रास्ते को पार करने लगते हैं। नतीजतन, वाहनों को चौराहों पर एक मिनट के बजाय 30 सेकंड ही मिल पाते हैं, जो जाम की स्थिति बनाती है। इसके बाद यहां के लोगों की बनारसी अकड़, जिसमें चूर होकर कहीं भी बेतरतीब वाहनों को खड़ा करके जाम लगाते रहते हैं। ज्यादातर मामलों में मोटर साइकिल, ऑटो रिक्शा और पटरी पर छोटे दुकानदारों के अतिक्रमण से जाम लगा करते हैं।

अनूप वर्मा

अनूप वर्मा बनारस की ट्रैफिक पर कहते है, ‘पांडेपुर के क्षेत्र में हमेशा जाम देखने को मिलता है। इसके पीछे की ख़ास वजह वाहनों की बढ़ती संख्या और सड़क-पटरियों पर अतिक्रमण एवं वाहन पार्किंग की व्यवस्था का न होना है। पांडेयपुर चौराहे पर अतिक्रमण और ऑटो, ई-रिक्शा चालकों की मनमानी के चलते जाम लगा रहता है। वह कहते हैं कि पर्यटकों की आवाजाही से शहर में बाहरी वाहनों का दबाव और अधिक हो गया है। रोजाना लगभग दो लाख वाहनों की आवाजाही है। जब मैं किसी काम से लहरतारा जाता हूँ तो मुझे ओवरब्रिज से क्षेत्र के चौराहे पर पहुंचने में 20 से 25 मिनट तक लग जाते हैं। चौराहों पर ट्रैफिक पुलिस जाम छुड़ाने पर लगी रहती है, इसके बावजूद लोगों को जूझना पड़ता है। कई बार तो जाम में एम्बुलेंस भी फंसी रहती है।

इसके आलावा जाम के मामले में विशेश्वरगंज मंडी, मलदहिया, लक्सा, गिरजाघर और बांसफाटक सहित कई इलाकों में भी जाम लगा रहता है। इन इलाकों में ट्रैफिक पुलिस की मौजूदगी न के बराबर होने के कारण हालात और बिगड़ते हैं। जाम की समस्या के लिए एक नहीं कई कारण हैं। पब्लिक भी ट्रैफिक रूल्स की अनदेखी करती है, जिसके कारण जाम लगता है।

अमन विश्वकर्मा
अमन विश्वकर्मा
अमन विश्वकर्मा गाँव के लोग के सहायक संपादक हैं।
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