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मस्जिद में लगेगी आग तो मंदिर भी नहीं बचेंगे (डायरी 20 अक्टूबर, 2021)
जिन दिनों भारत ने वैश्वीकरण की नीति को अपना समर्थन दिया था और जब मेरे गांव-शहर में दीवारों पर डंकल प्रस्ताव के खिलाफ नारे...
बचाव के लिए रखा हथियार भी आदमी को हिंसक बनाती है ( डायरी 17 अक्टूबर, 2022)
हस्तीमल हस्ती का एक शेर है–बैठते जब हैं खिलौने वो बनाने के लिए, उन से बन जाते हैं हथियार ये किस्सा क्या है। यह...
दिल्ली दंगा और यादव बनाम ब्राह्मण जज ( डायरी 15 अक्टूबर, 2021)
समाज को कैसे देखा और समझा जाय, इसका निर्धारण समाज के मानदंडों से ही होता है और ये मानदंड वे बनाते हैं जो समाज...
आधुनिक भारत में ब्राह्मणों और राजपूतों के बीच ऐसे हो रही लड़ाई (डायरी 14 अक्टूबर, 2021)
भारत के शासकों ने देश के अखबारों के जैसे अपनी परिभाषा बदल ली है। यह बिल्कुल वैसा ही है जैसे इस देश के पुलिस...
सुप्रीम कोर्ट का प्रेशर कुकर बन जाना ( डायरी 7 अक्टूबर, 2021)
मुझे याद नहीं है कि प्रेशर कुकर मैंने पहली बार कब देखा। मेरे घर में कुकर जैसा कोई बर्तन नहीं था। मेरा गांव बिहार...
एमके स्टालिन : बहुजनों के मोदी !
हाल के दिनों में तमिलनाडु के स्टालिन सरकार से जुड़ी कोई भी खबर फेसबुक पर लोगों को खूब आकर्षित कर रही है। इसी क्रम...
आपकी स्वतन्त्रता ही हमारी गुलामी है – राजेंद्र यादव
(राजेंद्र यादव को दिवंगत हुये आठ वर्ष हो गए। बेशक इन आठ वर्षों में सुसंबद्ध और निर्भीक ढंग से भारत की संघर्षशील जनता की...
फुले-अंबेडकरवादी आंदोलनों के बहुस्तरीय विकास को समर्पित जीवन
कॉमरेड विलास सोनवणे का निधन पूरे देश में दलित-ओबीसी-पसमांदा आंदोलन के लिए एक बहुत बड़ी क्षति है। वह उन गिने-चुने लोगों में से एक...
सामाजिक संगठनों से लोगों का भरोसा क्यों टूटता है?
गाँवों में अभी भी जातीय अस्मिताओं से ऊपर उठकर बौद्धिक ईमानदारी से काम करने की आवश्यकता है। तभी हम दलित-पिछड़ों पर हो रहे अत्याचारों के विरुद्ध एक बेहतर विकल्प खड़ा कर पायेंगे। नहीं तो समाज में शोषण की प्रक्रिया जारी रहेगी और साहित्य और राजनीति मात्र अपनी छिपी हुई महत्वाकांक्षायों की पूर्ति का साधन भर रहेगा जिसमें असल मुद्दे गायब रहेंगे।