बचाव के लिए रखा हथियार भी आदमी को हिंसक बनाती है ( डायरी 17 अक्टूबर, 2022)

नवल किशोर कुमार

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हस्तीमल  हस्ती  का एक शेर है–बैठते जब हैं खिलौने वो बनाने के लिए, उन से बन जाते हैं हथियार ये किस्सा क्या है। यह कब पढ़ा और कहां पढ़ा, याद नहीं है। वैसे अब बहुत सारी बातें याद नहीं हैं। अनेक ऐसी यादें हैं जिन्हें भूल जाना चाहता हूं। वजह यह कि सभी यादें सकारात्मक नहीं होतीं। कुछ यादें बहुत बुरी होती हैं और मन चाहता है कि उन्हें भूला दिया जाना ही बेहतर है। ऐसी ही एक याद है उन दिनों की जब मेरी उम्र 15-16 साल की रही होगी। तब मेरे घर में हालात अच्छे नहीं थे। मेरे पापा जगलाल राय तब बहुत परेशान रहा करते थे। उनकी परेशानी की वजह उनके तीन भाई थे। मेरे पापा से बड़े रामलाल राय जो कि अब दुनिया में नहीं हैं, उन दिनों बहुत झगड़ालू थे। मेरे पापा के बाद के दोनों भाई शिवरतन राय और रतन राय भी झगड़ने में बहुत आगे रहते थे। मेरी पांच बहनें हैं और हम दोनों भाई सबसे अंत में। तो मेरे चाचाओं को लगता था कि वे मेरे पापा को परेशान कर सकते हैं। कई मौके आए जब पापा ने बर्दाश्त किया। यह मैंने अपनी आंखों से देखा है। वे झगड़े से बचना चाहते थे। लेकिन मैं तो किशोर हो चुका था। मुझसे बर्दाश्त होता नहीं था।
एक बार चचेरे भाई जयगोविंद राय (यह भी दुनिया में नहीं हैं) से झगड़ा हो गया। वे और उनके बेटे मेरी मां और मेरी बहनों को गालियां दे रहे थे। उस दिन एक पत्थर उठाकर मैंने जयगोविंद भैया को मार दिया। पत्थर सीधे उनके माथे पर लगा और खून बहने लगा। तब मैं अकेला था। वे और उनके बड़े बेटे महानंद ने मुझे बहुत पीटा। कुछेक मुक्के मैंने भी उन दोनों को मारे। लेकिन मेरे हाथ मजबूत नहीं थे। मेरी उम्र भी कम थी। उस दिन मुझे बहुत गुस्सा आया था। पापा देर रात ड्यूटी से लौटे। मां ने उन्हें सारी घटना के बारे में बताया। फिर अगले दिन पापा ने भी मुझे खूब डांटा। उनका कहना था कि मेरा काम पढ़ना है। उनकी तरह अनपढ़ नहीं रहना है।

पापा ने अचानक मुझसे पूछा कि तुमने छुरी खरीदी है? मैं सकपका गया। वजह यह कि मेरे पास छुरी है, यह बात तो मैंने किसी से कहा ही नहीं है, फिर पापा को यह जानकारी कैसे मिल गयी। मेरे पास तब झूठ बोलने का कोई विकल्प नहीं था। चुपचाप छुरी उनके सामने रख दिया। उन्होंने बताया कि बेटा, तुम्हारे हाथ में कलम अच्छी लगती है। हथियार चाहे कोई भी हो, उसके अपने पास रखने से ही आदमी हिंसक हो जाता है और हिंसक आदमी पशु के सामान होता है।

 

सच कहूं तो उस दिन पापा की बात अच्छी नहीं लगी थी। मुझे लगा था कि जाने किस मिट्टी के बने हैं मेरे पापा। कोई मेरे सामने मेरी मां-बहन को गाली दे तो मैं कैसे बर्दाश्त कर सकता हूं। क्या मैं अपने कान बंद कर लूं? फिर उन दिनों मेरे मन में इच्छा हुई कि अपने पास भी कुछ होना चाहिए। कुछ का मतलब कोई हथियार। मेरे पापा अपने पास छुरी रखते थे। अंतिम छुरी जिसका मुठ पीतल का है, आज भी उनके पास ही होगी। पापा तब कहते थे कि यह वे इसलिए रखते हैं ताकि कोई अचानक हमला कर दे तो अपना बचाव किया जा सके। वैसे छुरी का उपयोग एक यह भी था कि तब हम बांसवाड़ी से दतवन काटा करते थे।
तो मेरे मन में भी इच्छा हुई कि एक छुरी अपने पास भी रखूं। तब मैं दारोगा प्रसाद राय हाईस्कूल में दसवीं का छात्र था। अपने सहपाठी दोस्त प्रेमचंद गोस्वामी के साथ चितकोहरा बाजार गया। वहां छुरी, पिंरदाई, अन्य आवश्यक गृह-उपयोगी सामान बेचने वाले के पास गया। हालांकि मुझे झूठ बोलना पड़ा कि मां ने छुरी मंगायी है। छुरी मुझे मिल गयी। अब समस्या यह थी कि उस पर सान चढ़वाना था। सान मतलब धार। वहीं चितकोहरा में ही चिलबिल्ली गांव के एक लोहार की दुकान थी। वे मेरे पापा को चाचा कहते थे और मैं उन्हें भैया। उनकी वह दुकान आज भी होगी शायद।
मैं उनके पास गया। उनसे भी झूठ कहा। अब एकदम धार वाली छुरी मेरे पास थी। मैं उसे हमेशा अपने पास रखता था और मन में रहता था कि अब कोई मुझसे लड़कर देखे।
करीब छह महीने बाद की बात है। पापा ने अचानक मुझसे पूछा कि तुमने छुरी खरीदी है? मैं सकपका गया। वजह यह कि मेरे पास छुरी है, यह बात तो मैंने किसी से कहा ही नहीं है, फिर पापा को यह जानकारी कैसे मिल गयी। मेरे पास तब झूठ बोलने का कोई विकल्प नहीं था। चुपचाप छुरी उनके सामने रख दिया। उन्होंने बताया कि बेटा, तुम्हारे हाथ में कलम अच्छी लगती है। हथियार चाहे कोई भी हो, उसके अपने पास रखने से ही आदमी हिंसक हो जाता है और हिंसक आदमी पशु के सामान होता है।

लालू प्रसाद मेरे सामने थे तब मैंने यह पांचवां सवाल किया। आपने बिहार के दलितों-पिछड़ों को बंदूक रखने का लाइसेंस देने की बात कही थी। लेकिन आपने इसे पूरा क्यों नहीं किया? तब लालू प्रसाद ने कहा कि उनका यह ऐलान सामंती ताकतों को चेतावनी देना था कि अब दलित और पिछड़े चुप नहीं बैठेंगे। वहीं दलितों और पिछड़ों को यह संदेश देना था कि यह सरकार उनकी है और उनके साथ खड़ी है। लेकिन हथियार का लाइसेंस देने का मतलब था बिहार को गृहयुद्ध में झोंक देना। तो जो काम नक्सली कर रहे थे, वह हर दलित-पिछड़ा करने लगता। एक मुख्यमंत्री का काम राज्य में अमन कायम रखना है।

 

एक घटना और है। वर्ष 2015 में मैं बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद से लंबे साक्षात्कार की तैयारी कर रहा था। उनसे अतीत से जुड़े कुछ सवाल करना चाहता था। मसलन, भूमि सुधार और बिहार में भूमि संघर्ष आदि को लेकर। पटना के सिन्हा लाइब्रेरी में बैठकर अखबारों को पलटा तब जानकारी मिली कि 1991 में मधुबनी में एक नरसंहार के बाद लालू प्रसाद ने बतौर मुख्यमंत्री विधानसभा में ऐलान किया था कि वे सभी दलितों-पिछड़ों को बंदूक रखने का लाइसेंस देंगे।
तो जब लालू प्रसाद मेरे सामने थे तब मैंने यह पांचवां सवाल किया। आपने बिहार के दलितों-पिछड़ों को बंदूक रखने का लाइसेंस देने की बात कही थी। लेकिन आपने इसे पूरा क्यों नहीं किया?
तब लालू प्रसाद ने कहा कि उनका यह ऐलान सामंती ताकतों को चेतावनी देना था कि अब दलित और पिछड़े चुप नहीं बैठेंगे। वहीं दलितों और पिछड़ों को यह संदेश देना था कि यह सरकार उनकी है और उनके साथ खड़ी है। लेकिन हथियार का लाइसेंस देने का मतलब था बिहार को गृहयुद्ध में झोंक देना। तो जो काम नक्सली कर रहे थे, वह हर दलित-पिछड़ा करने लगता। एक मुख्यमंत्री का काम राज्य में अमन कायम रखना है। हथियार हर सवाल का जवाब नहीं होते।
दरअसल, मैं यह सोच रहा हूं सिंघु बार्डर पर जो बीते दिनों हुआ है कि एक निहंग ने एक दलित को तलवार से काट डाला और उसे पुलिस बैरिकेड से लटका दिया, की वजह क्या रही?
मुझे लगता है कि सिक्ख धर्म के लोगों को मेरे पापा की और लालू प्रसाद की बात को ध्यान से समझने की कोशिश करनी चाहिए। हथियार चाहे छोटा हो या बड़ा, उसके रखने मात्र से ही आपकी प्रवृत्ति हिंसक हो जाती है।
खैर, मैं यह मानता हूं कि यह उनके धर्म से जुड़ा मसला है। लेकिन धर्म भी तो जड़ नहीं होता। और यदि कोई धर्म जड़ है तो उसके औचित्य पर सवाल उठना लाजमी है। फिर चाहे वह हिंदू धर्म हो या इस्लाम।
करूणा से बढ़कर कोई भावना नहीं है। क्षमादान करने से बड़ा कोई दान नहीं है। मैं तो इसी बात में विश्वास रखता हूं। यही संस्कार मुझे मेरे महान पिता ने दिया है और इसी कारण से मैं उन्हें सबसे अधिक प्यार करता हूं।

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस में संपादक हैं ।

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