Tuesday, August 26, 2025
Tuesday, August 26, 2025




Basic Horizontal Scrolling



पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

होमTagsKisan

TAG

kisan

सूखे से राहत के लिए किसानों ने सरकार से अपील की

संयुक्त किसान मोर्चा ने राज्य में सूखे पर व्यक्त की चिंता, तीन सितम्बर को किसान समस्याओं पर होगा सम्मेलन संयुक्त किसान मोर्चा के छत्तीसगढ़ राज्य...

संयुक्त किसान मोर्चा ने गांवों में चलाया अभियान

प्रयागराज। प्रयागराज और कौशांबी में एआईकेएमएस के नेतृत्व में दबाव बनाने के लिए गांव-गांव में एक व्यवस्थित अभियान चलाया जा रहा है। जिन मांगो को...

गंगानगर में बुनियादी सुविधाएं और बेरोजगारों को रोजगार देने की मांग

15 जून को गेवरा एसईसीएल का घेराव करेगी माकपा गेवरा (कोरबा)। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और छत्तीसगढ़ किसान सभा ने घाटमुड़ा से विस्थापित और गंगानगर में...

आजमगढ़ किसान आंदोलन को व्यापक बनाने के लिए होगा क्रमवार सत्याग्रह

जमीन अधिग्रहण के खिलाफ किसान आन्दोलन को व्यापक बनाने के लिए पूर्वांचल एक्सप्रेस वे के अगल-बगल के गावों में क्रमवार सत्याग्रह किया जाएगा।

कृषि योजनाओं के बावजूद हो रही किसानों की दुर्दशा

किसान और कृषि विभाग में तालमेल का अभाव है। किसानों का आरोप है कि पदाधिकारी जान-पहचान वाले लोगों को किसान बताकर किसान श्री सम्मान और अन्य कृषि लाभ देते रहते हैं। कागजी खानापूर्ति करके किसी तरह योजनाओं का बंदरबांट हो जाता है। दूसरी ओर, वास्तविक किसानों को मौसम की मार ओलावृष्टि, कभी बाढ़, कभी सुखाड़ की मार झेलनी पड़ती है। फसल भंडारण की कोई उचित व्यवस्था नहीं है।

राज्य महिला आयोग के निर्देश पर दर्ज हुआ महिलाओं का बयान

जमुआ हरिराम गांव की महिलाओं से सीओ सीटी ने सुना उत्पीड़न का पूरा मामला। दो दलित महिलाओं ने कंधारपुर थाने के एसआई रतन कुमार सिंह पर आरोप लगाया कि वह खिरिया बाग आकर महिलाओं पर अभद्र टिप्पणी करते हैं।

अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट का पीटा जा रहा ढिंढोरा, प्रशासन कह रहा ऐसी कोई परियोजना है ही नहीं

किसान मजदूर 8 महीने से अधिक समय से धरने पर बैठे हैं। यह धरना तब शुरू हुआ जब 12-13 अक्टूबर को एसडीएम सगड़ी, कंधरापुर थानाध्यक्ष व अन्य राजस्वकर्मीयों द्वारा भारी पुलिस बल के साथ जबरन गांव में बिना किसी सूचना के सर्वे किया जाने लगा। गैरकानूनी कार्यवाई का ग्रामीणों ने विरोध किया तो महिलाओं, बुजुर्गों को बुरी तरह से मारा-पीटा गया और दलित महिलाओं को जाति सूचक गालियां दी गईं।

अंडिका बाग में किसान मजदूर पंचायत शनिवार को

दिन में 12 बजे से जुटेंगे जन आंदोलन का राष्ट्रीय समन्वय, पूर्वांचल किसान यूनियन, जनवादी किसान सभा, सावित्रीबाई फुले बाल पंचायत, सोशलिस्ट किसान सभा...

जन्म से लेकर मृत्यु के बाद तक किसानों का खून चूसता था ब्राह्मण

आज से डेढ़ सौ वर्ष पहले किसानों के ब्राह्मणवादी शोषण के खिलाफ मराठी में एक किताब आई थी जिसका नाम शेतकऱ्यांचा आसूड  (हिंदी...

बारिश से बर्बाद हुई किसानों की फसल से किसे खुशी होती है

अभी 8 मार्च को किसानों ने नवउन्मूलन का पर्व मनाया था और इस इंतजार में थे कि कुछ ही दिनों में फसलें पककर तैयार...

आंदोलन के बाद पेड़ों के मुआवजे का आश्वासन

कोरबा में छत्तीसगढ़ किसान सभा के नेतृत्व में कल 20 जनवरी को पुरैना मड़वाढोढा के पास तीन गांवों के आक्रोशित ग्रामीणों ने मिलकर गेवरा-पेंड्रा...

किसान आत्महत्या के सरकारी रिपोर्ट्स के दावे झूठे

कृषि क्षेत्र में रोजगार लगातार घट रहा है। भारत में 1972-73 में कृषि क्षेत्र में 74 प्रतिशत लोगों को रोजगार देता था, वहीं 1993-94 में 64 प्रतिशत और अब केवल 54 प्रतिशत लोगों को रोजगार देता है। इसी तरह, सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का हिस्सा 1972-73 में 41 प्रतिशत, 1993-94 में 30 प्रतिशत और अब घटकर मात्र 14 प्रतिशत रह गया है।

छोटे किसान क्यों लगातार बनते जा रहे हैं मजदूर

शहरों में बैठे जिन लोगों को लगता है कि खेती करना बहुत आसान है, ऐसे लोगों को प्रेमचंद की कहानी पूस की रात जरूर...

बजट में मोदी सरकार ने फिर से किसानों को निराश

कहां की फसल की लागत मूल्य पर डेढ़ गुना बढ़ाने का दावा पहले भी कर दिए गए हैं, यह जानते नहीं कि फसल की लागत कितनी है। पहले सीमांत तथा लघु सीमांत किसानों की श्रेणी का पता नहीं चलता, जबकि अब यह पैमाना देखना होगा कि कितनी लागत फसल में लगी है। जिसके लिए सबसे पहले तो कृषि को उद्योग का दर्जा मिलने सहित किसान आयोग का गठन होना चाहिए। स्वामीनाथन आयोग के सिफारिशो को तत्काल लागू करना चाहिए। जिससे किसानों को कृषि में लाभ मिले।

तीनों काले कृषि कानून वापस के साथ-साथ प्रधानमंत्री मोदी ने किसानों से माफी मांगी

किसान आंदोलन को शुरू हुए साल भर पूरा हो गया। किसानों ने अपनी मांगों को स्पष्ट रूप से सरकार के सामने रखा, लेकिन सरकार...

तीनों कृषि कानूनों की वापसी : किसानों की जीत या सरकार की हार

आज भारत सरकार ने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा की। साल भर से चल रहे किसान आन्दोलन को आज खत्म करने...

कितना झूठा था गाँव का मंजर

कभी गाँव को सहज, सरल और स्वाभाविक मानते हुए यह किवदंती प्रचलित हो गई थी कि भारत की आत्मा गांवों में निवास करती है।...

दूर-दूर से लाई गई किराये की भीड़ और बनारस के लोग नज़रबंद किये गए

चुनाव का प्रचार एवं रैली कितनी आवश्यक है इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की रैली के...

क्या महत्वपूर्ण मुद्दों पर बैठकें दिशाहीन हो चुकी हैं

पूर्वांचल में किसानों की समस्याएं पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों की समस्याओं से कहीं ज्यादा हैं लेकिन उनका कोई मुकम्मल संगठन नहीं होने की वजह से उनका गुस्सा और उनकी तकलीफें उनके और उनके परिवार तक सीमित हो गई हैं। पूर्वांचल में किसान संगठनों के नाम पर राजनीतिक पार्टियों के आनुषांगिक संगठन ही केवल काम कर रहे हैं, इसलिए किसानों का झुकाव भी इन संगठनों के प्रति अपनापन का नहीं है। संयुक्त किसान मोर्चा की पूर्वांचल इकाई की संरचना भी कुछ ऐसी ही दिखाई दे रही है। शायद इस वजह से पूर्वांचल में कोई बड़ा किसान आंदोलन खड़ा नहीं हो पा रहा है। 

गांव के लोग न्यूज अपडेट

केरल के श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर के ट्रस्ट के 25 सालों के खातों की विशेष ऑडिट काराने का सुप्रीम कोर्ट ने दिया आदेश, कुछ सालों...

ताज़ा ख़बरें

Bollywood Lifestyle and Entertainment