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संकट में वाराणसी के पटरी व्यवसायी : पुलिस उत्पीड़न के खिलाफ अनिश्चितकालीन धरना

यह सरकार शुरू से ही श्रमशील समाज को उजाड़ने और पूँजीपतियों को आगे बढ़ाने का काम कर रही है। जिस शहर ने मोदी पर विश्वास जताकर तीसरी बार सांसद बनाया, अब वहाँ कोई छोटा काम कर कमा नहीं सकता क्योंकि उनकी प्राथमिकता में आम जनता का रोजगार नहीं बल्कि शहर की सुंदरता है। पिछले दस वर्षों में एक-एक कर शहर की विरासत को खत्म किया। अब सर सुंदरलाल अस्पताल की दीवाल से लगी छोटी-छोटी गुमटियां चलाने वालों को वहां से हटाया जा रहा है। सवाल यह उठता है कि फिर इन पटरी व्यवसायियों का सर्वेक्षण कर रजिस्टर्ड करते हुये वहाँ रोजगार करने की स्वीकृति क्यों दी गई? फिर इन सबको बनारस में पीएम स्वनिधि लोन क्यों दिया गया?

वाराणसी : आठ गांवों की जिंदगी को नारकीय बना चुका है हरित कोयला प्लांट

विकास के नाम पर पूँजीपतियों के फायदे के लिए सरकार किस हद तक जा सकती है, इसका एक उदाहरण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के गाँव रमना के नैपुरा कलां में दिखाई देता है। इस गाँव में देश का पहला कचरे से हरित कोयला बनाने का प्लांट स्थापित किया गया है, जिससे निकलने वाला जहरीला धुआँ लोगों के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा रहा है। कैसे नारकीय जीवन जीने को मजबूर हैं यहाँ के लोग, पढ़िए इस ग्राउन्ड रिपोर्ट में।

वाराणसी : ई रिक्शा चालक सीमित रूट तय होने और बार कोड की बाध्यता के विरोध में उठा रहे हैं आवाज

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र में ई रिक्शा चलाकर आजीविका चलाने वालों ने प्रशासन द्वारा एक ही थाना क्षेत्र में रिक्शा चलाए जाने के विरोध में चंदौली से समाजवादी पार्टी के सांसद वीरेंद्र सिंह से मिलकर उन्हें ज्ञापन दिया।

ई-रिक्शा चालकों का निवाला छीनने को वाराणसी प्रशासन क्यों आमादा है

प्राचीन काल से ही बनारस धार्मिक नगरी के रूप में पहचाना जाता रहा है लेकिन वर्ष 2014 के बाद, जब नरेंद्र मोदी ने यहाँ से चुनाव जीता, तब से लग रहा है कि काशी उन्होंने ही बनाई है। पक्के महाल को तोड़कर विश्वनाथ कॉरीडोर के निर्माण के चलते यह शहर पूरी दुनिया की नज़रों में आ गया। लेकिन बनारस को खूबसूरत बनाने के लिए लोगों के घरों को उजाड़ा गया। दुकानें  तोड़ी गईं। इसी तरह शहर को जाम से बचाने के लिए ई रिक्शा को बढ़ावा दिया गया तथा कंपनियों ने हजारों ई रिक्शे बेच डाले। लेकिन ई रिक्शा भी शहर को जाममुक्त नहीं कर सके और अब जाम का ठीकरा रोज कमाने-खाने वाले ई-रिक्शा चालकों पर फूटा है। नए नियम के अनुसार ई-रिक्शे का रूट मात्र 2 से 3 किलोमीटर तय कर दिया गया। इससे 25 हजार ई रिक्शा चालक भूखे मरने की कगार पर आ गए हैं।  

सुल्तानपुर : बने इज्जतघर ढह रहे हैं, नए कागज़ पर बन गए हैं

सरकारी दावों के विपरीत, बनाये गए शौचालय आज जर्जर अवस्था में है। लोगों को रोजाना नित्यकर्म के लिए सड़क किनारे जाना पड़ता है। सड़क किनारे मल-मूत्र विसर्जन से गंदगी फैल रही है। लोगों का सड़क किनारे चलना दुश्वार हो गया है और रोगों के फैलने की आशंका से इंकार नही किया जा सकता है।सरकारी दावों एवं हकीकत की पड़ताल करती यह रिपोर्ट ।

‘एक देश एक चुनाव’ का जुमला लोकतंत्र को कहाँ ले जायेगा

भाजपा लगातार लोकतान्त्रिक तरीके से काम करने वाली संस्थाओं में बदलाव करने का काम कर रही है। ऐसी संस्थाओं में अपने लोगों की नियुक्ति कर, अपने तरीके से चला रही है। 'एक देश, एक चुनाव' की अवधारणा भाजपा के शासनकाल की उपज है। यह व्यवस्था देश में अधिनायकवाद या यूँ कहें कि हिटलरशाही अथवा तानाशाही को ही जन्म देगी। इस व्यवस्था के लागू होते ही देश में चौतरफा अराजकता का माहौल पैदा होने में देर नहीं लगेगी।

सरकार द्वारा बनाए गए शौचालय फेल: सामुदायिक शौचालय में 4 साल से लटका है ताला, खुले में जा रहे लोग

वाराणसी के सजोई गांव में सरकारी योजनाओं के तहत बनाए गए शौचालयों की स्थिति अत्यंत निराशाजनक है। चार साल पहले बनाए गए शौचालयों का काम अब तक पूरा नहीं हुआ है. गांव में एक सामुदायिक शौचालय भी बनाया गया था, लेकिन उसमें चार साल से ताला लटका हुआ है। यह ताला बंद होने के कारण गांव वालों के पास उस शौचालय का उपयोग करने का कोई विकल्प नहीं है। घर में शौचालय की अनुपस्थिति के कारण महिलाओं को अंधेरे में खुले में शौच के लिए जाना पड़ता है। यह स्थिति न केवल उनके स्वास्थ्य के लिए जोखिमपूर्ण है, बल्कि उनकी सुरक्षा को भी खतरे में डालती है।

वाराणसी : ओडीएफ के दावे साबित हुए खोखले, लोग खुले में कर रहे हैं शौच

किसी राज्य का ओडीएफ प्लस (खुले में शौच से मुक्त राज्य) का दर्जा हासिल हो जाना हमारे देश में एक बड़ी उपलब्धि है। उत्तर प्रदेश को वर्ष 2023 में सौ प्रतिशत ओडीएफ प्लस घोषित कर दिया गया था लेकिन वास्तविकता कुछ और ही है। सरकार के दावे लगातार गलत साबित हो रहे हैं। वाराणसी के आराजी लाइन ब्लॉक का गाँव सजोई कुछ ऐसी ही तस्वीर पेश कर रहा है। पढ़िये ओडीएफ की सच्चाई की पड़ताल करती अपर्णा की ग्राउंड रिपोर्ट

संविधान का उल्लंघन करने वाले ही घोषणा कर रहे हैं संविधान हत्या दिवस मनाने का

संविधान की धज्जियां उड़ाने वाली वर्तमान केंद्र सरकार ने 25 जून को संविधान हत्या दिवस मनाने की घोषणा की है। इनका कहना है कि 1975 में 25 जून को आपातकाल का लगाया जाना संविधान की हत्या करना ही था। यह आपातकाल एक बार लगा था लेकिन वर्ष 2014 से जब से भाजपा सरकार सत्ता में है, तब से पूरे देश में अघोषित आपातकाल लगा हुआ है और देश के संविधान के विरुद्ध ही सभी निर्णय लिए जा रहे हैं। सवाल यह है कि ऐसे में संविधान हत्या दिवस की घोषणा करना क्या उचित है?

Varanasi : देश में अमीर अरबपति हो रहा है लेकिन गरीब दो वक्त की रोटी के लिए मुहाल है

विकास के इस दौर में वाराणसी के कोटवां इलाके की महिलाएं आज भी 4 या 6 रुपए में मजदूरी करके अपना गुजारा करती हैं। देखिए ये ग्राउंड रिपोर्ट

मोदी सरकार ने जीएसटी को पीएमएलए कानून से जोड़कर व्यापारियों के गले में डाला फांसी का फंदा : शैलेन्द्र अग्रहरि

मोदी सरकार ने जीएसटी को पीएमएलए कानून से जोड़कर व्यापारियों के लिए एक मुसीबत खड़ा कर दिया है। इस कानून के कारण व्यापारियों द्वारा की गयी छोटी सी भूल उन्हें जेल तक भेज सकती है। इसे लेकर व्यापारियों में भारी रोष है और उन्होंने सरकार को चुनाव में सबक सिखाने का फैसला कर लिया है।

मिर्ज़ापुर में स्थानीय समस्याओं की अनदेखी से भाजपा सरकार के प्रति लोगों में भारी आक्रोश

देखा जाय तो मिर्जापुर जिले में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं। यहां के पीतल उद्योग को सरकार की ओर से अगर प्रोत्साहन मिलता तो यह बडे़ पैमाने पर लोगों की रोजी रोटी का साधन बनता। लेकिन दुख की बात है कि स्थनीय जनप्रतिनिधियों का जनता से कोई सरोकार नहीं है, जिसे लेकर जनता में आक्रोश भी है। इसका असर आने वाले चुनाव में भी देखने को भी मिलेगा।

Loksabha Election 2024 : PM मोदी के विकसित भारत में रोज़गार की राह देख रहे ग्रामीण !

भाजपा के 10 वर्ष के शासनकाल में गरीब जनता सुविधाओं की आस देखते हुए गरीब ही रह गई।

गैर कांग्रेसवाद के गर्भ से निकली सांप्रदायिक सरकार के मुखिया की हताशा क्या कहती है?

सन 1950 से 1977 अर्थात 27 सालों में जनसंघ को सिर्फ छह प्रतिशत मतदाताओं ने पसंद किया था लेकिन 1963 के बाद डॉ. राम मनोहर लोहिया के गैर कांग्रेसी राजनीतिक कदम के चलते शिवसेना से लेकर मुस्लिम लीग और जनसंघ जैसे घोर सांप्रदायिक दलों के साथ गठजोड़ की वजह से जनसंघ को बहुत लाभ हुआ। इस लेख में जाने-माने लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता डॉ सुरेश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राजनीतिक विरासत के बहाने उनकी हताशा पर बात कर रहे हैं।

मृतक किसानों के कंकाल के साथ किसानों ने जंतर-मंतर पर किया प्रदर्शन, मांगे पूरी न होने पर वाराणसी में पीएम मोदी के खिलाफ लड़ेंगे...

किसानों ने कहा कि पीएम ने किसानों की आय दोगुनी करने का वादा किया था, पीएम मोदी ने नदियों को जोड़ने और जल संकट से निजात दिलाने का वादा किया था लेकिन कोई वादा पूरा नहीं हुआ।

Lok Sabha Election : पीएम मोदी के नफरती भाषण के बाद 17,000 लोगों ने कार्रवाई की मांग की, निर्वाचन आयोग की भूमिका पर उठ...

मुस्लिम समुदाय के खिलाफ आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल करने के साथ ही पीएम मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के एक पुराने बयान में झूठ का तड़का लगाते हुए उसे तोड़-मरोड़कर पेश किया।

वाराणसी : पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र में निजी स्कूलों की मनमानी, बच्चों की पढ़ाई अभिभावकों के लिए बनी चुनौती

कोई भी स्कूल तभी अपने यहां फीस वृद्धि कर सकता है जब सीपीआई (उपभोक्ता सूची सूचकांक) में बढ़ोत्तरी होती है। यही नहीं कोई भी स्कूल अभिभावक को किसी भी विशेष दुकान से कापी-किताब खरीदने के लिए बाध्य नहीं कर सकता, उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा लागू किए गए अध्यादेश की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं।

Lok Sabha Election : मणिपुर में चुनाव को लेकर नहीं कोई उत्साह, क्या यह भाजपा के ‘नए मणिपुर’ के सपने का अंत है ?

8 फरवरी 2014 को भाजपा के घोषित पीएम उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने इम्फाल में 'न्यू होप, न्यू मणिपुर' रैली को संबोधित किया था। उन्होंने अपने भाषण में मणिपुर के लोगों को एक नई उम्मीद और नए मणिपुर का भरोसा दिया था।

वाराणसी : सीवर सफाईकर्मी को सुरक्षा उपकरणों के बिना ही मेनहोल में उतारा, दम घुटने से हुई मौत

देश में 2018 से नवंबर 2023 तक 400 से अधिक सफाईकर्मियों की मौत हुई है। 2018 में 76 मौतें, 2019 में 133, 2020 में 35, 2021 में 66, 2022 में 84 और नवंबर 2023 तक 49 मौतें दर्ज की गई थीं।

PM Modi के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में भी नहीं हो रही MSP पर सरसों की खरीद, किसानों में नाराजगी

पिंडरा के ही चनौली बसनी के किसान राजनाथ पटेल सवाल उठाते हैं, ‘क्या यही अच्छे दिन हैं? क्या इसीलिए जनता ने मोदी जी को चुना था? आज तो किसान बद से बदतर स्थिति में पहुंच चुका है। आज किसानों को MSP के नाम पर सिर्फ बेवकूफ बनाया जा रहा है। सरकार अगर एमएसपी दे रही है तो फसलों की खरीद के लिए क्रय केन्द्र क्यों नहीं खोल रही है।

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