यादवों के कार्यक्रमों में भाषण और भोजन का टाइट इंतजाम होता है, लेकिन परिणाम आप खोजते रह जाएंगे। यादव किसी भी पार्टी या धारा का हो, यह सब पर फीट बैठता है। 21 और 22 सितंबर को राजद का प्रशिक्षण शिविर है। प्रशिक्षण में चयनित पदाधिकारियों को बुलाया गया है। कार्यक्रम की समय सारणी में संभव है, यह सब बताया गया होगा। राजद को यादवों की पार्टी माना जाता है। हालांकि कुछ लोग इस बात से सहमत नहीं होंगे।
पार्टी का एक संगठनात्मक ढांचा है। संगठन के विभिन्न पदों पर विभिन्न जाति के लोग पदाधिकारी हैं। पार्टी को अब ए टू जेड बनाने का प्रयास हो रहा है। इसके लिए नए-नए फार्मूले गढ़े जा रहे हैं। पार्टी के आर्थिक ढ़ांचे को मजबूत करने के लिए ‘मालधारियों’ को तरजीह दी जा रही है। इसके लिए जाति और राज्य की कोई सीमा नहीं है। प्रशिक्षण में कार्यकर्ताओं को बूथ मजबूत करने के टिप्स दिये जाएंगे। चुनाव में हार के कारणों की समीक्षा की जायेगी। इसके अलावा भी कई मुद्दों पर चर्चा होगी।
लेकिन राजद को अब इससे आगे सोचने की जरूरत है। अपने कार्यकर्ताओं के समाजशास्त्र और मनोविज्ञान को समझने की जरूरत है। राजनीति के गलियारे में एक नया मुहावरा प्रचलित हो गया है कि यादवों की लाठी पहले जिसकी सुरक्षा के लिए उठती थी, अब वही लाठी उन पर हमला करने के लिए उठ रही है। तीसरे चरण में हार का ठीकरा भी यादवों के माथे पर फोड़ दिया गया। कहा गया कि दो चरणों में महागठबंधन की बढ़त के रुझान के बाद यादव युवक उत्पात मचाने लगे थे। इसलिए तीसरे चरण में राजद के खिलाफ मजबूत गोलबंदी हुई और एनडीए को बढ़त मिल गयी। अंतिम चरण के मतदान के बाद चैनलों के एग्जिट पोल में महागठबंधन की बढ़त के बाद राजद के प्रदेश नेतृत्व ने कार्यकर्ताओं के लिए दिशा-निर्देश जारी कर, उनपर गढ़े गए मुहावरों पर मुहर लगा दी।
[bs-quote quote=”दरअसल 1990 और 2020 का समाज पूरी तरह बदल गया है। 1990 में मंडल आंदोलन के कारण स्वर्णों के खिलाफ मजबूत गोलबंदी का लाभ पिछड़ों को मिला था, जबकि मंडल आयोग की सिफारिशों के लागू होने बाद वह गोलबंदी दरक गयी।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
धीरे-धीरे नीतीश कुमार और रामविलास पासवान अपने-अपने कुनबे के साथ अलग होते गये। इसे पार्टी के स्तर पर विभाजन कहा जा सकता है, जबकि सामाजिक स्तर पर विभाजन की अनदेखी की गई। नीतीश कुमार या रामविलास पासवान पार्टी के स्तर पर स्वर्णों से गोलबंदी कर रहे थे। उधर, सामाजिक स्तर पर यादवों की गोलबंदी स्वर्णों के साथ हो रही थी। बदलाव के उस दौर में बड़े अपराधों में राजपूत या भूमिहार के साथ यादव साझीदार हो रहे थे। दारू और बालू के ठेके में स्वर्णों के साथ यादवों की साझेदारी हो रही थी। बड़े टेंडर, स्कूल या कॉलेज के धंधे में भी यादवों की साझेदारी सवर्णों से हो रही थी। टकराव भी हो रहा था। गैर यादव पिछड़ा राजनीतिक रूप से स्वर्णों के साथ खड़ा था, तो आर्थिक मोर्चे पर यादव स्वर्णों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने का प्रयास कर रहा था।
समाज के आंतरिक ढ़ांचे में बदलाव को समझने की जरूरत है। इस बदलाव का असर सामाजिक और राजनीतिक जीवन पर देखने की जरूरत है। वर्तमान राजनीतिक और सामाजिक परिवेश में यादव सिर्फ मतदान केंद्र पर ही स्वर्णों के खिलाफ नजर आयेगा। राजद जैसी पार्टी, जिसका मूल चरित्र ही स्वर्णों के खिलाफ रहा है, वह स्वर्णों से समन्वय की राजनीति नहीं कर सकती है। राजनीतिक स्तर पर स्वर्णों के खिलाफ उसे दिखना ही पड़ेगा। विधान सभा चुनाव परिणाम का विश्लेषण करें तो स्पष्ट होता है कि मगध, शाहाबाद, सीवान या तिरहूत के अधिकतर जिलों में महागठबंधन को बढ़त मिली है। इसकी वजह रही है कि इन जिलों में राजपूत, यादव और भूमिहारों का परंपरागत राजनीतिक वैमनस्य रहा है। इसी का लाभ महागठबंधन को मिला।
[bs-quote quote=”वामपंथी पार्टी ने इसकी ताकत को मजबूत बनाया। इसके विपरीत सीमांचल, कोसी या मिथिलांचल में राजपूत, यादव और भूमिहारों का आपसी सत्ता संघर्ष नहीं के बराबर है। इसलिए उन क्षेत्रों में महागठबंधन को हार का सामना करना पड़ा।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
वामपंथी पार्टी ने इसकी ताकत को मजबूत बनाया। इसके विपरीत सीमांचल, कोसी या मिथिलांचल में राजपूत, यादव और भूमिहारों का आपसी सत्ता संघर्ष नहीं के बराबर है। इसलिए उन क्षेत्रों में महागठबंधन को हार का सामना करना पड़ा। जिन इलाकों में यादव जाति के रूप में रहा, वहां महागठबंधन जीत गया और जिन इलाकों में यादव हिंदू हो गया, वहां एनडीए जीत गया। इसलिए राजद को यादवों को हिंदू बनने से रोकना होगा। यह तभी संभव है, जब राजद स्वर्णों के खिलाफ आक्रामक नीति अपनायेगा। ए टू जेड की रणनीति राजद के राजनीतिक पराभाव की शुरुआत है।
राजद में नेताओं या कार्यकर्ताओं से ज्यादा पार्टी नेता और विधान सभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव को प्रशिक्षण दिये जाने की जरूरत है। उनको अपनी कार्यशैली और जनसंपर्क की शैली में सुधार की जरूरत है। राजद कार्यकर्ताओं ने उन्हें अपना नेता मान लिया है, लेकिन कार्यकर्ताओं को उन्होंने अपना नहीं माना है। कार्यकर्ताओं से ‘दर्शन’ देने के अंदाज में मुलाकात कई बार बड़ा अव्यावहारिक सा हो जाता है। तेजस्वी यादव कभी अनऑफिसियल अंदाज में लोगों से नहीं मिलते हैं। वह हर समय एक खास और सीमित हावभाव के साथ लोगों से मिलते हैं। तेजस्वी हाथ मिला सकते हैं, गले नहीं लगा सकते हैं। विधान सभा में सबसे बड़ी पार्टी का सबसे बड़ा दुर्भाग्य यही है।
लेखक विरेंद्र यादव न्यूज के संपादक हैं।
अच्छा विश्लेषण.