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ग्राउंड रिपोर्ट

हाथरस : लोकसभा चुनाव में बेरोजगारी नहीं,आवारा पशुओं से छुटकारा है चुनावी मुद्दा

देश में चल रहे लोकसभा चुनावों में स्थानीय मुद्दे ज्यादा उठ रहे हैं। ऐसा ही पश्चिम उत्तर प्रदेश में हाथरस और फिरोजाबाद में आवारा पशुओं से छुटकारा चुनावी मुद्दा बना हुआ है।

हाथरस/फिरोजाबाद। मौसम की मार हो या पशुओं की मार किसान हर तरफ से मारा जाता है। राज्य में जब से भाजपा की सरकार बनी है तब से आवारा पशुओं की समस्याएँ बढ़ती ही जा रही हैं।

वर्ष 2017 में जब से देश में पशु क्रूरता निवारण नियम(प्रिवेंशन ऑफ क्रूएलिटी टु एनिमल्स रुल्स) लागू हुआ है तब से यहाँ के किसानों और जनता की परेशानियाँ बढ़ गई हैं।

हाथरस और फीरोजाबाद के किसानों ने इस बार आवारा पशुओं से छुटकारा को चुनावी मुद्दा बनाया है। उनका कहना है कि आवारा पशुओं के चलते इंसान को नुकसान तो हो ही रहा साथ-साथ फसल भी नहीं बच रही है।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसानों का कहना है कि इस बार अन्य मुद्दों के साथ आवारा पशुओं की समस्या भी उनके लिये सबसे प्रमुख मुद्दों में से है।

हाथरस के पिलखना गांव के खेतों में काम करने वाले श्रमिक केशव कुमार ने कहा, ‘ जब मैं सुबह खेतों में काम करने जाता हूं तो यहां आवारा पशु हमला करने के लिए तैयार खड़े रहते हैं। एक बार मुझे चोटिल भी कर दिया था और मैं एक हफ्ते तक अस्पताल में भर्ती रहा।’

उन्होंने कहा कि इसके अलावा भी कई बार गाय और नीलगाय उन्हें दौड़ा चुकी हैं।

फिरोजाबाद के अकिलाबाद गांव के किसान धर्मेंद्र सिंह ने कहा, ‘खेत में आवारा पशुओं के घुस जाने से मेरी 30 फीसदी फसल बर्बाद हो गई है। सूखा, बेमौसम बारिश और अब आवारा पशुओं का आतंक। हम क्या करें?’

उत्तर प्रदेश में जब से बीजेपी की सरकार बनी है तब से छुट्टा पशुओं की संख्या में दिन-ब-दिन वृद्धि ही होती जा रही है। खेतों में घुसकर  फसलों को बर्बाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ते। ऐसे में जब कोई व्यक्ति अपने खेत से इन्हें भगाने का प्रयास करता है तो वह इनके हमले का शिकार होता है। कुछ ऐसा ही हाल शहरों में भी है। ये आवारा पशु सड़क पर  ट्रैफिक को जाम करते हुए दिख जाते हैं। कड़े प्रतिबंधों के चलते इनकी बढ़ती संख्या लोगों के लिए चिंता का विषय है। हालांकि सरकार की तरफ से गौशालाओं की व्यवस्था की गयी है लेकिन इन गौशालाओं  का हाल-बेहाल है। आए दिन लोगों पर आवारा पशुओं के जानलेवा हमले हो रहे है, लेकिन सरकार इस मामले पर गंभीर नहीं दिख रही है। विपक्ष के नेता अखिलेश यादव आवारा पशुओं से होने वाली घटनाओं को लेकर लगातार सरकार को घेरते रहे हैं।

हाल के नीतिगत बदलावों के कारण यह समस्या और बढ़ गई है तथा इस मुद्दे की अहमियत का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि कुछ लोगों का मानना है कि चुनावों में यह एक निर्णायक कारक हो सकता है।

राज्य सरकार ने हाल ही में अपने पुराने आदेश को फिर से लागू करने का फैसला लिया था जिसके तहत खेतों में बाड़ लगाने के लिए कंटीले तार का इस्तेमाल से परहेज करने को कहा गया है। किसान इस फैसले से भी परेशान हैं। अब, अधिकांश किसान खेतों में बाड़ लगाने के लिए सादे तार या साड़ी और दुपट्टे का उपयोग कर रहे हैं।

अकिलाबाद के किसान सिंह ने कहा, ‘वे किसी काम के नहीं हैं। हमें समझ नहीं आता कि सरकार हमारे नुकसान को क्यों नहीं समझ सकती।’

 पशु क्रूरता निवारण नियम कानून क्या है

वर्ष 2019 की पशुधन गणना के अनुसार, उत्तर प्रदेश में 1.90 करोड़ से अधिक मवेशी हैं, जिनमें 62,04,304 दुधारू गायें और 23,36,151 गैर-दुधारू गाय शामिल हैं।

आवारा पशुओं के खतरे ने किसानों की आर्थिक परेशानियों को भी बढ़ा दिया है क्योंकि उन्हें समझ नहीं आ रहा कि उन गायों का क्या किया जाए जो अब दूध नहीं दे रही हैं।

धूध नही देने वाले पशुओं को पालान और उनके द्चारा-दाना की व्यवस्था करना कठिन होता है, जिसके चलते उन्हें आवारा छोड़ दिया है।

एक किसान ने नाम नहीं उजागर करने की शर्त पर कहा, ‘ पहले हम शुरुआती भुगतान का 10-20 प्रतिशत अदा कर गैर दुधारू गाय को दे देते थे और नई गाय ले लेते थे। लेकिन नई नीति के चलते यह भी संभव नहीं है। हमारे पास उन्हें अवैध रूप से बेचने या उन्हें ऐसे ही आवारा छोड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।’

केंद्र ने मई 2017 में देशभर के पशु बाजारों में वध के लिए मवेशियों की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया था। केंद्र सरकार ने 23 मई 2017 को पशु क्रूरता निवारण नियम (प्रिवेंशन ऑफ क्रूएलिटी टु एनिमल्स रुल्स) लागू कर दिया है, जिसके तहत इस बात केल ईईए असचेत रहना होता है कि पशुओं की खरीद-फरोख्त वाढ के लिए तो नहीं हो रहा है। इस कानून का बहुत विरोध हुआ था।

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