पेरियार और डॉ. आंबेडकर के मामले में एक अंतर यह है कि आरएसएस डॉ. आंबेडकर का प्रतीकात्मक दुरुपयोग आसानी से कर सकता है (वह कर भी रहा है), लेकिन वह पेरियार के मामले में ऐसा नहीं कर सकता। इसकी बड़ी वजह पेरियार के विचार रहे। इस बात को ऐसे भी समझा जा सकता है कि डॉ. आंबेडकर को उनकी जयंती और महापरिनिर्वाण दिवस के मौके पर आरएसएस के बड़े नेता भी उनकी तस्वीरों पर फूल चढ़ाते हैं, लेकिन पेरियार के मामले में ऐसा नहीं है। यह केवल आरएसएस का मामला भी नहीं है। कांग्रेस के लोग भी पेरियार को पसंद नहीं करते हैं। कल मुझे एक आश्चर्यजनक जानकारी मिली रामलखन चंदापुरी की किताब भारत में ब्राह्मणराज और पिछड़ा वर्ग आंदोलन के जरिए। चंदापुरी जी, जिन्हें मैं बिहार का आंबेडकर ही मानता हूं, ने इस बात का उल्लेख किया है कि 1986 में पेरियार की 108वें जन्मदिवस के मौके पर एक समारोह में तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने भाग लेते हुए राष्ट्रपति पद की गरिमा बढ़ाई थी।
यह जानकारी इसलिए भी अलहदा है क्योंकि किसी भी राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ने पेरियार की जयंती व महापरिनिर्वाण दिवस के मौके दो शब्द कहने का साहस नहीं दिखाया है।
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रामलखन चंदापुरी को संक्षेप में आरएल चंदापुरी भी कहते हैं और जो समाजवादी राजनीति का इतिहास जानते-समझते हैं, उनके बीच वह इसी नाम से लोकप्रिय हैं। कल उनकी किताब पढ़ रहा था। इस किताब को पढ़ने के पीछे मेरी मंशा यह समझने की थी कि उन्होंने जो पिछड़ा वर्ग आंदोलन शुरू किया था, आखिर उसमें चूक कहां रह गई। क्या वह कोई नॅरेटिव सेट करने में असफल रहे?
दरअसल, चंदापुरी ने बिहार में जो पहल की, उसे मैं त्रिवेणी संघ का ही विस्तार मानता हूं। यह कितना अद्भुत था, इसका अनुमान इसी मात्र से लगाया जा सकता है कि चंदापुरी जी के निमंत्रण पर डॉ. आंबेडकर पटना पहुंचे और उन्होंने वहां गांधी मैदान में एक जनसभा को संबोधित किया। चंदापुरी जी ने पेरियार को भी बिहार आमंत्रित किया था। अपनी किताब में वह इसका जिक्र करते हैं– ‘यहां पर मैं उल्लेख करना चाहता हूं कि पेरियार नायक को बिहार राज्य में दौरा करने की प्रबल इच्छा थी। इसके लिए 1961 ई. में मेरे एक पत्र के जवाब में उन्होंने पिछड़ी जातियों की सभाओं के आयोजन के लिए लिखा था। उस समय बिहार में पिछड़ा वर्ग आंदोलन तूफानी दौर से गुजर रहा था और मुझ पर जानलेवा आक्रमण हो चुका था। दौरा के लिए उस समय परिस्थितियां अनुकूल नहीं थीं और नायकर बिहार नहीं आ सके थे।’
खैर, चंदापुरी जी किताब भारत में ब्राह्मणराज और पिछड़ा वर्ग आंदोलन एक दस्तावेज की तरह है। यही खासियत रही है उस दौर के सामाजिक आंदोलनों की कि लगभग सभी ने जमकर आंदोलन किया और जमकर लिखा भी। यही काम फुले ने किया,पेरियार ने किया, डॉ. आंबेडकर ने किया, डॉ. लोहिया ने किया और आर एल चंदापुरी ने भी यही किया। वह दस्तावेजीकरण का महत्व समझते थे और नॅरेटिव बनाना चाहते थे ताकि समाज में जो वंचित वर्ग है, उसे वाजिक हक मिले।
पेरियार नायक को बिहार राज्य में दौरा करने की प्रबल इच्छा थी। इसके लिए 1961 ई. में मेरे एक पत्र के जवाब में उन्होंने पिछड़ी जातियों की सभाओं के आयोजन के लिए लिखा था। उस समय बिहार में पिछड़ा वर्ग आंदोलन तूफानी दौर से गुजर रहा था और मुझ पर जानलेवा आक्रमण हो चुका था। दौरा के लिए उस समय परिस्थितियां अनुकूल नहीं थीं और नायकर बिहार नहीं आ सके थे।
नॅरेटिव से एक बात याद आयी। घटना कल की ही है। रायपुर में कार्यरत एक वरिष्ठ मित्र ने कल फोन किया और मिलने की इच्छा व्यक्त की। हम मंडी हाउस मिले। फिर हमारी योजना बनी प्रेस क्लब जाने की। एक ऑटो में बैठे और करीब साढ़े तीन किलोमीटर की इस दूरी को तय करने के दौरान हमलोगों ने देश और दुनिया की बात की। मैं तब चौंक गया जब ऑटो चालक ने इस बात पर गर्व व्यक्त किया कि भाजपा ने एकनाथ शिंदे को महाराष्ट्र का सीएम बना दिया, जो कि पहले ऑटो चालक थे।
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बाद में जब हम प्रेस क्लब के सामने उतरने लगे तो उस ऑटो चालक ने हमसे सवाल पूछा कि हमारे हिसाब से देश सही दिशा में जा रहा है या गलत दिशा में। जवाब मेरे मित्र ने दिया और वे जो बोलते ऑटो चालक उसका काट करता। वह यह मानने को तैयार ही नहीं था कि देश में परिस्थितियां किस तरह विषम हो रही हैं। हद तो तब हो गई जब उसने यह कहा कि कभी समय होगा तो आ जाइएगा मैदान में। हमदोनों मित्र हंस पड़े।
खैर, उस ऑटो चालक ने बताया था कि वह बघेल जाति का है, जो कि पिछड़ा वर्ग में शामिल है। प्रेस क्लब में बैठकर मैं यही सोच रहा था कि पिछड़ा वर्ग आंदोलन को कमजोर किसने किया और क्या भविष्य में यह वर्ग अपने हितों के बारे में सोच सकेगा?
नवल किशोर कुमार फ़ॉरवर्ड प्रेस में संपादक हैं।
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त्यागमूर्ति आर एल चंदापुरी जी ने ही बाबा साहेब से मिल कर पिछड़े वर्ग के छात्रों के लिए संविधान में आरक्षण का प्रावधान करवाया था साथ ही पिछड़ा वर्ग आंदोलन के सूत्रधार भी वही थे जिस आंदोलन की वजह से बिहार में पिछड़ों को आरक्षण सर्वप्रथम मिला और सीएम भी पिछड़े वर्ग का सर्वप्रथम चंदा पूरी जी के आंदोलन से ही बने आज दुर्भाग्य है कि त्यागमूर्ति जी की प्रतिमा स्थापना के लिए सरकार उदासीन है