Monday, September 16, 2024
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पेरियार : गांव और शहर की वर्णाश्रम व्यवस्था के खिलाफ

गांवों के बारे में अपने विचार को, ‘गांव’ शब्‍द को, गांव और शहर के बीच के फर्क और दोनों में फर्क बताने वाले तरीकों को दिमाग में रखकर आप सुधार के नाम पर जो कुछ भी करेंगे, उससे आने वाला बदलाव उतना ही होगा जैसा ‘पारायर’ और ‘चकिलियार’ जातियों के नाम बदलकर ‘हरिजन’ और ‘आदि द्रविड़ार’ करने से आया है। सच्‍चा बदलाव कभी नहीं आएगा जिससे ‘पारायर’ दूसरे मनुष्‍यों के बराबर हो जाते। हो सकता है कि ‘ग्राम्‍य सुधार कार्यों की मार्फत एक गांव अच्‍छा गांव’ बन जाए, लेकिन गांव के लोगों को कभी भी शहरी लोगों जैसे अहसास या अधिकार नहीं मिल पाएगा। पेरियार का प्रसिद्ध भाषण।

वर्चस्ववादी जातियां यथास्थिति को ही बनाए रखना चाहती हैं।

जाति व्यवस्था के बारे में यह कहना प्रासंगिक नहीं होगा कि जाति से मुक्ति अथवा जाति उन्मूलन किसी प्रकार की परियोजना के तहत संभव...

अल्पसंख्यकों के खिलाफ बहुसंख्यकों को खड़ाकर समाज बांटने का काम कर रही है भाजपा

पेरियार जयंती की पूर्व संध्या पर माले नेता कॉ. जगदीश राम को भावभीनी श्रद्धांजलि दी गई लोकतंत्र की रक्षा के लिए सांप्रदायिक, जातिवादी भाजपाई राजनीति...

वायकम के मंदिर प्रवेश आंदोलन में पेरियार की भूमिका सामाजिक न्याय के इतिहास में मील का पत्थर है

यह वही त्रावणकोर राज्य था जहाँ दलित गुलामी की जिंदगी जीते थे और नाडार, शांनार, इझवा, पुलाया, पराया, जातियों की महिलाओं को ब्लाउज पहनने का अधिकार नहीं था क्योंकि ब्राह्मणवादी सत्ता ये चाहती थी कि अवर्ण समाज की महिलायें ब्राह्मणों और नायर महिलाओं की तरह नहीं दिखनी चाहिए। जातीय उत्पीड़न से तंग आकर जब इन वर्गों की महिलाओं ने क्रिश्चियानिटी को अपनाया तो कुछ बदलाव नज़र आने लगे। क्योंकि यूरोपियन सत्ता अब इसे नियंत्रण कर रही थी इसलिए महाराज 1829 में शानार महिलाओं (जो ईसाई बन गई थीं) को कूपायन यानि ऊपरी वस्त्र पहनने कि अनुमति दे दी।

बहुजन नायकों-विचारकों के प्रति उपेक्षा और चुप्पी वामपंथ के लिए घातक साबित हुई

वक्ता, चिंतक, विचारक शैलेंद्र कुमार से हुई बेबाक बातचीत का यह तीसरा और अंतिम भाग है। इसमें उन्होंने जोतिबा फुले और पेरियार की उपेक्षा...

नवजागरण काल का निहितार्थ (डायरी, 24 जुलाई, 2022)

मन का बहकना भी वाजिब है। आप इसे आवारा होना भी कह सकते हैं। मन को आवारा होना ही चाहिए। आवारा होने का मतलब...

 पिछड़ा वर्ग आंदोलन का हश्र (डायरी, 19 जुलाई, 2022) 

पेरियार और डॉ. आंबेडकर के मामले में एक अंतर यह है कि आरएसएस डॉ. आंबेडकर का प्रतीकात्मक दुरुपयोग आसानी से कर सकता है (वह...

बेवकूफ नहीं हैं नरेंद्र मोदी (डायरी 11 जुलाई, 2022) 

धर्म और संस्कृति मानव सभ्यता के अभिन्न हिस्से हैं। इससे कोई इंकार भी नहीं कर सकता है। और इस बात से भी इंकार नहीं...

अदालतों में कहानियां लिखी नहीं, गढ़ी जाती हैं (डायरी 20 मई, 2022) 

बीते 17 मई को सीनियर डिवीजन जज रवि कुमार दिवाकर ने एक आयुक्त अधिवक्ता अजय कुमार मिश्र को बर्खास्त कर दिया था और सर्वे की रपट दाखिल करने का निर्देश शेष दो आयुक्त अधिवक्ताओं को दिया था। लेकिन कल अजय कुमार मिश्र ने अपनी रपट पेश कर दी। मजे की बात यह कि अजय कुमार मिश्र ने अपनी रपट मीडिया को भी उपलब्ध करा दी, जिसमें कहा गया है कि ज्ञानवापी मस्जिद में सर्वे के दौरान हिंदू धर्म से जुड़ी कई चीजें मिली हैं। बाकायदा अजय कुमार मिश्र ने सूची दी है।

आदमी अब सामाजिक नहीं, आर्थिक प्राणी है(डायरी, 24 दिसंबर 2021) 

अक्सर यह सवाल खुद से पूछता हूं कि मुझे कैसा समाज चाहिए और जैसा समाज चाहिए उसके लिए मैं क्या कर रहा हूं। कई...

बुद्ध के सन्देश को उनकी भूमि पर जन-जन तक पहुंचाने वाला एक महास्थविर 

कुशीनगर और बौद्ध समुदाय मुख्य महापरिनिर्वाण मंदिर के प्रमुख भिक्षु  भदंत ज्ञानेश्वर महास्थिविर  का  85 वाँ जन्म दिन 10 नवम्बर को बेहद श्रद्धा के साथ मना रहा...

दलित भी विविधताओं से भरे समाज, राष्ट्र और ग्लोबल विलेज का नागरिक है

ईश कुमार गंगानिया पिछले बीस वर्षों से अम्बेडकरवादी साहित्य सृजन में लगे हैं। गंगानिया अम्बेडकरवादी पत्रिका अपेक्षा के उप सम्पादक रहे और बाद  में उन्होंने...

सियासत और समाज  ( डायरी 6 अक्टूबर, 2021)  

सियासत यानी राजनीति की कोई एक परिभाषा नहीं हो सकती है। साथ ही यह कि सत्ता पाने का मतलब केवल प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री बनना...

एमके स्टालिन : बहुजनों के मोदी !

हाल के दिनों में तमिलनाडु के स्टालिन सरकार से जुड़ी कोई भी खबर फेसबुक पर लोगों को खूब आकर्षित कर रही है। इसी क्रम...

क्षमा कीजिये। हिन्दुत्व को प्रचलन में रखकर आप कोई भी स्थायी परिवर्तन नहीं ला सकते

सन 1927 में गांधी और पेरियार ई वी रामसामी नायकर के बीच एक बातचीत इस संदर्भ में बहुत दिलचस्प है। पेरियार ने हिन्दुत्व को...

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