हम दूसरों के सापेक्ष खुद का आकलन करते हैं और कसौटी के रूप में हमारे पास धर्म होता है। भारत में तो धर्म का सार ही वर्चस्ववाद है। हालांकि वैश्विक स्तर पर भी धर्म का यही मतलब है। फिर चाहे वह कोई भी धर्म हो। मैं तो बौद्ध धर्म की बात करता हूं। इस धर्म में भी एक खास तरह का वर्चस्ववाद है। ब्राह्मण धर्म तो खैर है ही वर्चस्ववाद का पर्याय।

भागवत ने कहा है कि जो समाज हिंसक रहा है, वह अपने अंतिम दिन गिन रहा है। मैं यह सोच रहा हूं कि ब्राह्मण धर्म के लोगों से अधिक हिंसक कौन है? यह धर्म तो ऐसा है जिसके सभी देवी-देवता हरवे-हथियार से लैस हैं और वजह केवल यह कि वीर्य की पवित्रता बची रहे।
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नवल किशोर कुमार फ़ॉरवर्ड प्रेस में संपादक हैं।
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