नफरत की आग में जला दिए गए दो आदिवासी (डायरी 4 मई, 2022) 

नवल किशोर कुमार

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बुद्ध ने जिन दो खतरों की बात कही थी, उनमें से एक आग थी और दूसरा खतरा पानी का था। बचपन में कई बार सोचता था कि आग और जल वही हैं, जो हम दैनिक जीवन में उपयोग करते हैं। लेकिन वह तो बचपना था। उतना ही समझ पाता था, जितना समझाया जाता था। यह तो बाद में जानकारी मिली कि आग और पानी दो बिंब हैं। निस्संदेह इनमें आग और पानी का वह स्वरूप भी शामिल है, जिनसे रोज हमारा वास्ता पड़ता है। मैं तो बिहार का रहनेवाला हूं और यह वह प्रदेश है जो हर साल पानी के कारण संकट का शिकार होता रहता है। हमारे यहां पानी के संकट के दो रूप हैं। एक बाढ़ और दूसरा सुखाड़। करीब डेढ़ साल पहले की एक पंक्ति याद आ रही है– कतहीं दहाड़ बा, कतहीं सुखाड़ बा, बिहार में ए भाई, बहारे-बहार बा। यह एक भोजपुरी गीत है। इसके रचयिता का नाम याद नहीं।

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खैर, आज मैं आग के बारे में सोच रहा हूं। आग केवल वह नहीं है जो चूल्हे में जलती है या फिर जैसे जंगलों में आग लगती है। आग से एक बात अभी-अभी जेहन में आ रही है। अभी थोड़ी ही देर पहले मनाली से दिल्ली वापस लौटा हूं तो रास्ते में उत्तरी दिल्ली में कचरे का पहाड़ दिख गया। ऐसा ही एक पहाड़ गाजियाबाद में भी है। तो रास्ते में जो कचरे का पहाड़ दिखा, उसमें आग लगी है और धुआं निकल रहा है। मैं यह सोच रहा हूं कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यून, जिसके आला अधिकारी दिल्ली में ही बैठते हैं, उनके संज्ञान में यह बात है या नहीं? यह मुमकिन है कि यह उनके संज्ञान में नहीं हो, क्योंकि जिन इलाकों में कचरे के ये पहाड़ हैं, उनमें अधिकांश गरीब लोग रहते हैं।

यह नफरत की आग है जिसे आरएसएस रोज भड़काता जा रहा है। यहां तक कि सत्ता के शीर्ष पर बैठा व्यक्ति भी इस नफरत में रोजाना घी उड़ेलता है। मैं तो पिछले 5 वर्षों से ऐसी घटनाओं पर निगाह रख रहा हूं और यह देख रहा हूं कि इस आग के शिकार होनेवाले में केवल पसमांदा मुसलमान ही नहीं, बल्कि दलित और आदिवासी भी हैं। आनेवाले समय में इस आग की चपेट में ओबीसी भी आएंगे ही आएंगे।

बहरहाल, आग केवल वह नहीं है जो जलाती है। एक तरह की आग और होती है और मुझे लगता है कि बुद्ध जिस आग की बात कहते थे, वह यही आग है। इसे आप चाहें तो नफरत की आग भी कह सकते हैं। अभी करीब एक महीना पहले ही नफरत की आग का शिकार एक दलित राजेंद्र राम हुआ था, जिसकी हत्या पीट-पीटकर द्वारका के एक फार्म हाउस में कर दी गयी थी। अब एक खबर मध्य प्रदेश के सिवनी जिले से आयी है, जहां बीते सोमवार को दो आदिवासियों की पीट-पीटकर हत्या कर दी गयी। वहीं एक आदिवासी युवक बुरी तरह घायल है। घटना सिवनी जिले के कुरई थाना क्षेत्र के सेमरिया गांव की है।

खबर के मुताबिक, बजरंग दल के गुंडों ने पंद्रह-बीस की संख्या में मिलकर तीन आदिवासी युवकों को धर दबोचा। बजरंग दल के ये गुंडे इस आरोप में उन्हें मारने लगे कि उन्होंने गाय की हत्या की है। आजकल की पत्रकारिता की भाषा में इसे मॉब लिंचिंग कहा जाता है। मॉब लिंचिंग यानी ‘उन्मादी भीड़ द्वारा की गयी हिंसा’।

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दरअसल, यह नफरत की आग है जिसे आरएसएस रोज भड़काता जा रहा है। यहां तक कि सत्ता के शीर्ष पर बैठा व्यक्ति भी इस नफरत में रोजाना घी उड़ेलता है। मैं तो पिछले पांच वर्षों से ऐसी घटनाओं पर निगाह रख रहा हूं और यह देख रहा हूं कि इस आग के शिकार होनेवाले में केवल पसमांदा मुसलमान ही नहीं, बल्कि दलित और आदिवासी भी हैं। आनेवाले समय में इस आग की चपेट में ओबीसी भी आएंगे ही आएंगे।

निस्संदेह इसका समाधान फुलेवाद और आंबेडकरवाद है, जिसके मूल में बुद्ध के संदेश निहित हैं। लेकिन यह तभी संभव है जब दलित, पिछड़े, आदिवासी और पसमांदा मुसलमान यह समझ लें कि उनका दुश्मन केवल एक है और वह है– ब्राह्मणवाद। जब तक वे समझेंगे नहीं, तब तक आग फैलती ही जाएगी।

बहरहाल, यह आग अत्यंत ही भयानक है। इसने हमारे देश की धर्म निरपेक्षता को नुकसान पहुंचाना शुरू कर दिया है। लेकिन इसका समाधान क्या है?

निस्संदेह इसका समाधान फुलेवाद और आंबेडकरवाद है, जिसके मूल में बुद्ध के संदेश निहित हैं। लेकिन यह तभी संभव है जब दलित, पिछड़े, आदिवासी और पसमांदा मुसलमान यह समझ लें कि उनका दुश्मन केवल एक है और वह है- ब्राह्मणवाद। जब तक वे समझेंगे नहीं, तब तक आग फैलती ही जाएगी। मॉब लिंचिंग का यह सिलसिला रुकेगा नहीं, क्योंकि ऐसी घटनाओं को रोकने की सरकार की नीयत ही नहीं है। मसलन, सिवनी जिले की उपरोक्त घटना को ही देखें तो इस मामले में वहां के एडिशनल एसपी एस.के. मरावी हैं, ने केवल घटना की पुष्टि की है। दूरभाष पर उन्होंने इसकी जानकारी नहीं दी है कि दो दिन बीतने के बाद भी किसी की गिरफ्तारी हुई है या नहीं।

नवल किशोर कुमार फ़ॉरवर्ड प्रेस में संपादक हैं।

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