बचपन बार-बार याद आता है। इसकी एक वजह तो यही है कि बचपन के अनुभव एकदम अलहदा होते हैं। बचपन में जो हम देखते-समझते हैं या फिर हमें जो दिखाया-समझाया जाता है, उसे ही हम सच मानते हैं। मान्यताओं की शुरुआत भी ऐसे ही होती है। बात उन दिनों की है जब टीवी पर ‘रामायण’ धारावाहिक का प्रसारण होता था। तब गजब का क्रेज हुआ करता था। इसके क्रेज को बनाने में तब अखबारों की भूमिका भी अहम होती थी। रविवार को इस धारावाहिक का प्रसारण होता था और इसके एक दिन पहले अखबारों में यह छापा जाता था कि अगले एपिसोड में क्या दिखाया जाएगा।
अब सोचता हूं तो यह बात समझ में आती है कि ‘रामायण’ का प्रसारण एक सोची-समझी राजनीतिक साजिश थी। इसका मकसद हिंदुत्व का प्रसार ही था। लेकिन जब अबोध था तब सब देखना अच्छा लगता था। एक प्रसंग याद आ रहा है। तब राम अपनी पत्नी सीता के कहने पर एक हिरण का शिकार करने निकल पड़ता है। लेकिन इसके पहले वह अपने भाई लक्ष्मण को आदेश देता है कि वह सीता का ध्यान रखे। दिखाया तो यह जाता है कि लक्ष्मण सीता को अपनी माता के समान मानता था। लेकिन इसके भी कई पेंच थे। पेरियार की सच्ची रामायण में इसकी जबरदस्त व्याख्या की गई है।
[bs-quote quote=” क्या अपने पति के प्राण संकट में महसूस होता देख कोई महिला खुद न जाने की बजाय अपने देवर को कहेगी कि वह जाकर देखे या फिर वह अपने देवर के साथ वह खुद भी दौड़ पड़ेगी? लेकिन वाल्मीकि और तुलसीदास दोनों के लिए रामायण लोगों को बेवकूफ बनाने का तरीका मात्र था।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
खैर, मैं रामानंद सागर द्वारा बनाये गये धारावाहिक की बात कर रहा था। रामानंद सागर एक अच्छे फिल्मकार थे। उनकी कई फिल्में मुझे आज भी अच्छी लगती हैं। हालांकि फिल्मों के मामले में बेहद सतही जानकारी रखते थे। ‘रामायण’ धारावाहिक में वह दिखाते हैं कि हिरण हिरण ना होकर कोई मायावी था और वह भ्रम फैलाने के लिए बचाओ लक्ष्मण बचाओ लक्ष्मण चिल्लाया। उसकी आवाज सुनकर सीता घबरा गई और उसने लक्ष्मण से कहा कि वह जाकर देखे कि उसके पति किस संकट में हैं।
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रामायण भी गजब की कहानी है। हकीकत से इसका कोई वास्ता भी नहीं। सामान्य मामले में क्या हो सकता है, जरा इसकी कल्पना करिए। क्या अपने पति के प्राण संकट में महसूस होता देख कोई महिला खुद न जाने की बजाय अपने देवर को कहेगी कि वह जाकर देखे या फिर वह अपने देवर के साथ वह खुद भी दौड़ पड़ेगी? लेकिन वाल्मीकि और तुलसीदास दोनों के लिए रामायण लोगों को बेवकूफ बनाने का तरीका मात्र था। तो दोनों ने यह बताया कि सीता के कहने पर लक्ष्मण उस ओर चला जाता है, जिधर से राम की आवाज आ रही थी। लेकिन इसके पहले वह कुटिया के आगे एक रेखा खींच देता है। इसे लक्ष्मण रेखा कहा गया। रामानंद सागर ने इस प्रसंग का फिल्मांकन बेहद इंटरटेनिंग स्टाइल में किया। धनुष की नोंक से लक्ष्मण एक वृताकार आकृति बनाता है और सीता को उसके अंदर रहने को कहता है।
[bs-quote quote=”आलोचना की भी हो लक्ष्मण रेखा।’ मामला उमर खालिद से जुड़ा है। दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और जस्टिस रजनीश भटनागर की खंडपीठ ने कल तो कमाल ही कर दिया। हुआ यह कि खंडपीठ ने उमर खालिद के वकील त्रिदीप पेस से पूछा कि क्या जुमला शब्द का उपयोग करना उचित है? गोया जुमला शब्द अवैधानिक हो और इससे राजद्रोह की बू आती हो!” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
सचमुच में धारावाहिक में ऐसे दृश्य बड़े कमाल के थे। धनुष भी कमाल के थे। रेखा खींचे जाने पर वह दृश्य भी थे। तभी रावण आता है और वह अपने तरीके से सीता का अपहरण करता है। हालांकि मुझे नहीं लगता है कि वह सीता का अपहरण था।
बहरहाल, मेरा मकसद रामायण की धज्जियां उड़ाना नहीं है। रामायण में ऐसा कुछ है ही नहीं कि धज्जियां उड़ाने की आवश्यकता हो। मैं तो दिल्ली हाईकोर्ट की बात करना चाहता हूं। कल उसने ‘लक्ष्मण रेखा’ शब्द का उल्लेख किया है। इस संबंध में ‘आरएसएस सत्ता’ (जनसत्ता) ने एक खबर प्रकाशित किया है– ‘आलोचना की भी हो लक्ष्मण रेखा।’ मामला उमर खालिद से जुड़ा है। दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और जस्टिस रजनीश भटनागर की खंडपीठ ने कल तो कमाल ही कर दिया। हुआ यह कि खंडपीठ ने उमर खालिद के वकील त्रिदीप पेस से पूछा कि क्या जुमला शब्द का उपयोग करना उचित है? गोया जुमला शब्द अवैधानिक हो और इससे राजद्रोह की बू आती हो!
ऐसे ही एक सवाल खंडपीठ ने यह भी पूछा कि ‘उमर खालिद कौन है जो भाषण में कह रहे हैं कि ऊंट पहाड़ के नीचे आ गया?’ खंडपीठ ने ऊंट और पहाड़ की परिभाषा भी पूछी। दिलचस्प यह कि त्रिदीप पेस ने खंडपीठ के सारे सवालों के जवाब दिये।
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सचमुच बहुत मासूम है न्यायपालिका, जो ‘लक्ष्मण रेखा’ शब्द का उपयोग तो करती है, लेकिन जुमला, ऊंट और पहाड़ जैसे शब्द व मुहावरों का अर्थ नहीं समझती? लेकिन क्या वाकई वह नहीं समझती है?
तो इसका जवाब है नहीं। न्यायपालिका सारे संदर्भों को बखूबी समझते हैं। फिर कौन नहीं समझता है, यह भी दिल्ली हाईकोर्ट पर छोड़ता हूं और उम्मीद करता हूं कि साढ़े पांच सौ से अधिक दिनों से जेल की सजा काट रहे उमर खालिद के केस में इंसाफ होगा।
नवल किशोर कुमार फ़ॉरवर्ड प्रेस में संपादक हैं।
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