Wednesday, July 3, 2024
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वाराणसी: भूजल का लेवल प्रभावित कर रहे RO वॉटर प्लांट, कमा रहे मुनाफा, विभागों के पास कोई डाटा ही नहीं

वाराणसी। गर्मी के मौसम में हुकुलगंज के आरडी वर्मा के घर में लगा सबमसिर्बल पम्प जमीन का पानी छोड़ देता है। ढाई सौ फीट बोरिंग के बावजूद लगभग आठ वर्षों से वर्मा जी परेशान हैं। वह बताते हैं, ‘घर से कुछ मीटर की दूरी पर आठ वर्ष पहले एक मकान में आरओ वॉटर प्लांट लग […]

वाराणसी। गर्मी के मौसम में हुकुलगंज के आरडी वर्मा के घर में लगा सबमसिर्बल पम्प जमीन का पानी छोड़ देता है। ढाई सौ फीट बोरिंग के बावजूद लगभग आठ वर्षों से वर्मा जी परेशान हैं।

वह बताते हैं, ‘घर से कुछ मीटर की दूरी पर आठ वर्ष पहले एक मकान में आरओ वॉटर प्लांट लग गया है, तब से मुझे पानी की किल्लत हो रही है।’

उन्होंने बताया कि ‘गर्मी में हर बार हजारों रुपये खर्च करने पड़ते हैं। बोरिंग की पाइप को जमीन में नीचे धकेलवाना पड़ता है, तब जाकर पानी नसीब होता है।’

हुकुलगंज के आरडी वर्मा की तरह ही सिद्धगिरी बाग के जीतेंद्रानंद्र, पांडेयपुर के रोशन, महमूरगंज के शिवनारायण, सिगरा के बबलू जायसवाल व वीर सिंह बग्गा, अस्सी के सागर सिंह, रामनगर के मोहन वर्मा सहित अनेक लोग गर्मियों में पानी की किल्लत से परेशान होते हैं।

गाँव के लोग डॉट कॉम के एक सर्वे में यह बात विशेष रूप से सामने आई कि जिन-जिन घरों में गर्मियों के मौसम में पानी कि दिक्कतें हो रही हैं, उनके आस-पास आरओ वॉटर प्लांट लगे हुए हैं। शहर के साथ कुछ गाँवों में भी पाँच-छह वर्षों में यह समस्या सामने आ रही है।

सर्वे में यह भी पता चला कि शहर में हर चौथा-पांचवाँ परिवार आरओ प्लांट से पानी खरीदकर पी रहा है। अधिकतर लोगों की यह भी शिकायत रही कि सरकारी पाइप से आने वाले पानी में गंदगी रहती है, इसलिए आरओ प्लांट से पानी मँगवाते हैं।

दूसरी तरफ, वाराणसी शहर में दिनों-दिन बढ़ रहे जल दोहन के खिलाफ जिला भू-गर्भ जल प्रबंधन परिषद् ने अभियान चलाकर मात्र पाँच ऑटो धुलाई सेंटर और छह आरओ वॉटर प्लांट के सबमसिर्बल पम्प सीज किए हैं। जबकि शहर की गलियों में सैकड़ों वॉटर प्लांट और प्रमुख सड़कों पर 50 से अधिक ऑटो धुलाई सेंटर चल रहे हैं।

विभागीय अनदेखी आई सामने

बनारस में पानी की गंदगी की बात करें तो जलकल विभाग के अधिकारी भी आरओ वॉटर से बोतलबंद पानी खरीदकर पीते हैं।

भेलुपुर स्थित जलकल विभाग में आरओ का पानी पहुँचाता युवक। बाहर खड़ी उसकी दुपहिया।

बनारस में पानी का कारोबार लगभग 15 वर्षों से अंधाधुंध बढ़ गया है। आरओ वॉटर चलाने वाले गर्मी के एक सीजन में मशीन का दाम आसानी से निकाल लेते हैं। शादियों का मौसम आ गया तो सोने पर सुहागा हो जाता है।

हाल ही में भू-जल दोहन करने पर जिला भू-गर्भ जल प्रबंधन परिषद् के टास्क फोर्स ने अभियान चलाकर छह आरओ प्लांट के पम्प सीज किए।

इस बाबत जिला भू-गर्भ जल प्रबंधन परिषद् के एक्सईएन राहुल शर्मा ने बताया कि यह अभियान 2 अक्टूबर, 2019 से प्रभावी तरीके से चल रहा है। उत्तर प्रदेश भू-जल प्रबंधक एवं निनियमन अधिनियम के तहत कार्रवाई भी की जा रही है।

वह बताते हैं कि ‘बनारस के उन सभी संस्थाओं में पड़ताल किया जा रहा है, जहाँ कामर्शियल कनेक्शन लिए गए हैं। टास्क फोर्स के माध्यम से जिन लोगों की शिकायतें मिलीं, वह कार्रवाई की ज़द में हैं। एक्सईएन ने कहा कि आरओ प्लांट वाले बिना रजिस्ट्रेशन के चल रहे हैं, लेकिन इनका कोई डाटा विभाग के पास नहीं है।

विभाग के अनुसार, जिले में तीन बड़े आरओ वॉटर प्लांट ही रजिस्टर्ड हैं, दो करखियाँव और एक अखरी बाइपास पर। इन लोगों के अलावा जितने भी वॉटर प्लांट लगे हैं, सभी गैरकानूनी तरीके से चल रहे हैं, इनके खिलाफ भी कार्रवाई की जाएगी।

वहीं, जलकल विभाग के जेई रामअवतार ने बताया कि जो लोग सरकारी पाइप से आरओ प्लांट चला रहे हैं, उनका ही सालाना ‘बिल’ बनाया जाता है।

शहर-गाँव में चल रहे अनगिनत आरओ वॉटर प्लांट की जानकारी जलकल विभाग और जिला भू-गर्भ जल प्रबंधन परिषद् को भी नहीं है। विभाग ने नियम तो बनाया लेकिन उसका फॉलोअप नहीं किया गया।

हालत यह है कि पानी की कमी के चलते भूजल का अनियंत्रित दोहन होने से स्थिति और भी भयावह हो गई है। आने वाली गर्मियों में एक बार फिर बनारस के लोग पानी के लिए परेशान होंगे।

1000 लीटर के लिए 1500-1800 लीटर पानी होता है बर्बाद

नाम न छापने की शर्त पर आरओ प्लांट चलाने वाले एक शख्स ने बताया कि मशीन जब चलती है तो लगभग 60 प्रतिशत पानी वेस्ट हो जाता है। नियमत: इस पानी को कुएँ या पोखरे-तालाब में गिराना चाहिए, लेकिन शहर में जगह न होने के कारण वेस्टेज पानी नाली में बहा  दिया जाता है।

वह बताते हैं कि गर्मियों में दिनभर में 3000 से 4000 लीटर (120-160 बोतल) पानी बिक जाता है और सर्दियों में 1500 से 2000 लीटर (60-80 बोतल) तक की बिक्री हो जाती है।

एक बोतल बंद नॉर्मल पानी (25 लीटर) का दाम 15 रुपये है और ठंडा पानी 20 रुपये। अनुमान के मुताबिक, एक आरओ वॉटर प्लांट चलाने वाला गर्मियों में नॉर्मल पानी बेचकर 1800-2400 रुपये और ठंडा पानी बेचकर 2400-3200 रुपये प्रतिदिन कमाता है। वहीं, सर्दियों में 900 से 1200 रुपये की कमाई करता है। अगर किसी वाहन के माध्यम से ग्राहक के घर पर पानी भेजा जाता है, तो उससे पाँच रुपये प्रति बोतल एक्स्ट्रा लिए जाते हैं।

आरओ प्लांट की मशीन में एक डिवाइस होता है मेम्बरान। यह करीब 18-20 हजार रुपये का आता है। इसका उपयोग कर वेस्टेज पानी को भी पीने लायक बनाया जा सकता है, लेकिन कोई ऐसा करता नहीं है।

वजह बताते हुए प्लांट के मालिक बताते हैं कि 1000 लीटर पानी साफ करने के लिए लगभग 3000 से 3500 लीटर पानी वेस्ट (ख़राब) होता है। वेस्टेज पानी को साफ करने के लिए मेम्बरान अपनी क्षमता के विपरीत सिर्फ 10,000 लीटर पानी को ही साफ कर सकता है, उसके बाद यह खराब हो जाएगा। इसलिए आरओ वाले जमीन के पानी को ही प्लांट से साफ करते हैं। मेम्बरान के माध्यम से जमीन के पानी को साफ करने की क्षमता 10,000,00 (एक लाख) लीटर तक होती है। इससे मुनाफा और पैसे की बचत, दोनों हो जाते हैं।

बिजली विभाग को भी लगाते हैं चूना

आरओ वॉटर प्लांट चलाने वाले लोग जलकल के साथ वर्षों से बिजली विभाग को भी चूना लगाते आ रहे हैं। गाँव के लोग डॉट कॉम संवाददाता की पड़ताल में पता चला कि जिले में दर्जनों वॉटर प्लांट सिर्फ दो किलोवॉट की आपूर्ति पर ‘मैनेज’ हो रहे हैं। कटियामारी की समस्या भले ही कम हो गई है, लेकिन वॉटर प्लांट चलाने वाले लोग एक डिवाइस (पॉवर सेविंग) का उपयोग कर बिजली खपत को कम दिखा रहे हैं। उसी हिसाब से उनका ‘बिल’ भी आता है।

बजली विभाग के नियम के अनुसार, प्लांट चलाने वालों के लिए कामर्शियल कनेक्शन दिए जाते हैं।

एक बिजलीकर्मी ने बताया कि जब से ऑनलाइन सिस्टम हुआ है तब से पता ही नहीं चल पाता कि किस मकान में ज़्यादा लोड है। कामर्शियल कनेक्शन पर जो अनुमानित बिल आता है, उपभोक्ताओं से उतना ले लिया जाता है। वैसे भी बनारस में लाखों उपभोक्ता हैं, तो कैसे पता चल पाएगा कि कौन आरओ वॉटर प्लांट चला रहा है?

अंधाधुंध तरीके से हो रहा भू-जल दोहन

15 वर्ष पहले जब बनारस में दो-चार आरओ प्लांट शुरू हुए थे तब से लेकर अब तक जल संस्थानों को लाखों रुपये के राजस्व का चूना लगाया जा रहा है।

इसको लेकर जनाधिकार स्वापक निषेध अपराध नियंत्रण जाँच ब्यूरो की रचना गौड़ बताती हैं कि जलकल विभाग को जनशिकायतों के लिए एक टोल फ्री नम्बर जारी करना चाहिए।

उन्होंने बताया, ‘मेरा अनुमान है कि एक लीटर बोतलबंद पानी को पैक करने में करीब तीन लीटर पानी खर्च होता है। यह भूजल स्तर और डाउनस्ट्रीम जल आपूर्ति को कम करने में महत्वपूर्ण योगदान देता है।’

वह कहती हैं कि आरओ प्लांट चलाने वाले लोग मनुष्य को जीवन देने वाले पानी का अंधाधुंध तरीके से दोहन कर रहे हैं। इसे विभाग ने आज तक संज्ञान नहीं लिया, यह बड़ा सवाल है।

जमीन के पानी का व्यापार बनारस ही नहीं देश में भी हो रहा है। सरकार की तरफ से आए दिन नए-नए कानून बनाए जाते हैं लेकिन आरओ वॉटर प्लांट चलाने वालों को इसका भय नहीं रह गया है। ऐसे में भू-जल का लेवल भी दिनोंदिन गिरता जा रहा है।

रचना गौड़ बताती हैं कि कभी भारत में जल के बारे में छह ‘आर’ थे यानी- ‘रिस्पेक्ट ऑफ वॉटर’, ‘रोडयूज न्यूज ऑफ वॉटर’, ‘रिट्रीट-रिसाइकल-रीयूज वॉटर और रीजनरेट प्लेनेट बाइ वॉटर’। उस समय लोग पानी को ‘लाभ’ की तरह नहीं बल्कि ‘शुभ’ की तरह देखते थे। बीते कुछ वर्षों में पानी के साथ हमारा रिश्ता बुरी तरह बदला है। हमारी आँखों का पानी सूखा और फिर पीछे हमारे कुएँ-तालाब भी सूखने लगे। पानी को व्यापार की वस्तु बना दिया गया। जब जीवन से जुड़ी चीजों का व्यापार होने लगे तो उनसे ‘शुभ’ गायब हो जाता है, वे केवल ‘लाभ’ के लिए होकर रह जाती है। हमें इसी रिश्ते को फिर से जीवित करना होगा।

करोड़ों लोग पी रहे जहरीला पानी

इनर वॉयस फाउण्डेशन के एक्टिविस्ट सौरभ सिंह बताते हैं शहर में चलने वाले आरओ वॉटर प्लांट्स की सही तरीके से जाँच हो जाए तो दस में छह फ्लोराइड युक्त पानी देने वाले निकल जाएँगे। यह पानी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक ही नहीं जानलेवा भी होता है। इसमें आर्सेनिक और बैक्टिरिया की मात्रा ज़्यादा रहती है।

उन्होंने बताया कि बाज़ार में अनसर्टिफाइड बोतल बंद पानी का बहुत बड़ा व्यापार खड़ा हो गया है। इनकी बेंच मार्किंग भी नहीं होती है। यानी कोई मानक ही तय नहीं होता है। प्लास्टिक के रैपर पर सभी ‘मार्क’ पर सही का टिक लगाकर बोतलों पर चिपका दिया जाता हैं। उस पर सरकार द्वारा सर्टिफाइड भी लिख दिया जाता है।

सौरभ सिंह ने कहा कि सरकार और सम्बंधित विभागों की लचर रवैये के कारण करोड़ो लोग जहरीला पानी पानी रहे हैं।

एक नज़र भारत में खपत होने वाले बोतलबंद पानी पर

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, पेयजल सहित औसत घरेलू पानी की मांग वर्ष 2000 में 85 लीटर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन (एलपीसीडी) से बढ़कर क्रमश: 2025 और 2050 तक 125 एलपीसीडी और 170 एलपीसीडी हो जाएगी। इस बीच बोतल बंद पानी की बिक्री में बढ़ोत्तरी हुई है। ट्रेड प्रमोशन काउंसिल ऑफ इंडिया की माने तो भारत में पैकेज्ड ड्रिंकिंग वॉटर बोतल का बाजार 2020 में 36000 करोड़ रुपये का आँका गया था। 2023 के अंत तक इसके 60,000 करोड़ रुपये तक पहुँच जाने का अनुमान लगाया गया है।

अनुसंधान और विश्लेषण फर्म ‘स्टेटिस्टा’ की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2021 में भारत में बोतलबंद पानी की खपत 23,605 मिलियन लीटर वार्षिक थी, जो 2026 तक लगभग 27,444.7 मिलियन लीटर तक पहुँच जाएगी। ये आँकड़े खपत के हैं और इसमें बिना बिका हुआ माल शामिल नहीं है।

22 मार्च, 2021 को विश्व जल दिवस पर जारी संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि उस समय भारत, मूल्य के हिसाब से बोतलबंद पानी का 12वाँ और मात्रा के हिसाब से 14वाँ सबसे बड़ा उपभोक्ता था।

सवाल यह है कि यह पानी पीता कौन है?

2019 में अनुमान लगाया गया कि 12.2 प्रतिशत शहरी परिवार पीने के पानी की अपनी आवश्यकताओं के लिए बोतलबंद पानी पर निर्भर हैं, जो 10 साल पहले 2.7 प्रतिशत था। बाहर से आने वाले टूरिस्टों की बढ़ती संख्या, इसमें शामिल नहीं है, जबकि वे भी बोतलबंद पानी को ही प्राथमिकता देते हैं। रिटेलर का प्रॉफिट मार्जिन 30 से 55 प्रतिशत (कम्पनियों के अनुसार) तक प्रति बोतल होता है।

भारतीय मानक ब्यूरो के साथ पंजीकृत, पैकेज्ड पेयजल में कारोबार करने के लिए 6,000 से अधिक लाइसेंसशुदा बॉटलर्स हैं। इस संख्या में गैर ब्रांडेड और अपंजीकृत बॉटलर्स शामिल नहीं हैं। 2015 के बाद भिन्न-भिन्न स्वादों में भी बोतल बंद पानी का उत्पादन और विक्रय आरम्भ हुआ।

उत्तर भारत बोतलबंद पानी का सबसे बड़ा बाजार है (60% से ज्यादा), दक्षिण क्षेत्र में बाजार का लगभग 20% और पूर्वी क्षेत्र में सिर्फ 10% का योगदान है। हालांकि, आधे से ज्यादा बॉटलिंग प्लांट्स भारत के दक्षिणी क्षेत्र में केंद्रित हैं। भारत में बोतलबंद पानी के संयंत्रों में से 55 प्रतिशत से अधिक चारों दक्षिणी राज्यों में हैं।

उत्तर प्रदेश में 7 साल में 77 हजार कुएँ सूखे

उत्तर प्रदेश में 1 लाख 77 हजार कुएं हैं, जबकि केवल पिछले पांच साल में 77 हजार कुएँ कम हुए हैं। सिंचाई विभाग के आकड़ों के अनुसार, कुल तालाबों और पोखरों की संख्या 24,354 है, जिसमें से 23,309 तालाब व पोखरों में पानी भरना पड़ा है एवं इन्हीं पांच सालों में 1045 तालाब कम भी हुए हैं। प्रदेश में करीब 24 झीलें हैं, लेकिन पाँच साल में 12 झीलें सूखकर खत्म हो चुकी हैं।

इन भयावह आँकड़ों के बावजूद सरकार और सम्बंधित विभागें पेयजल को लेकर गम्भीर नहीं हैं।

यदि समय रहते भूजल संरक्षण पर विशेष जोर नहीं दिया गया तो भविष्य में गम्भीर खाद्य समस्या, पेयजल संकट सहित विभिन्न आपदाओं का सामना करना पड़ सकता है। फ़िलहाल, भूजल की बर्बादी पर सख्त कायदे-कानून बनाए जाने की आवश्यकता है।

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अमन विश्वकर्मा
अमन विश्वकर्मा
अमन विश्वकर्मा गाँव के लोग के सहायक संपादक हैं।

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