Friday, November 8, 2024
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पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

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शहरों में मेहनतकशों के घरों पर बुलडोजर न्याय नहीं, आवास की भीषण समस्या पर पर्दा डालना है

मनुष्य की तीन चिंताओं रोटी कपड़ा और मकान में सब की सब किसी न किसी रूप में भयावह होती जा रही हैं। रोटी के लिए अस्सी करोड़ लोगों का सरकारी अनाज पर निर्भर होते जाना यह बताता है कि सरकार और पूँजीपति वर्ग लोगों को रोजगार देने में पूरी तरह नाकाम हो चुके हैं। कपड़े का संकट भी कम नहीं है लेकिन मकान सबसे भयावह संकट में घिरा हुआ है। बेहतर आवासीय पर्यावरण निम्नमध्यवर्ग के लिए एक दुर्लभ सपना बन चुका। ऐसे में किसी राज्य सरकार का बुलडोजर नीति में भरोसा और सत्ता की ताकत से लोगों का घर गिरा देना और उन्हें बेघर कर देना एक राजनीतिक षड्यंत्र और अक्षम्य अपराध के सिवा कुछ नहीं है। जो लोग राजसत्ता की बुलडोजर नीति की तरफ़दारी कर रहे हैं वे वास्तव में समस्या को एकांगी तरीके से देखने को अभिशप्त हो चुके हैं। अंजनी कुमार अपने इस लेख में भारत की आवास समस्या के लगातार विकराल होते जाने को ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में देख और समझ रहे हैं। उन्होंने राजनीतिक अर्थशास्त्र के नजरिये से मेहनतकश वर्ग के प्रति सरकारों और पूँजीपतियों की बेइमानियों को उजागर करने का महत्वपूर्ण प्रयास किया है।

वाराणसी : योगी सरकार में बुनकरों पर बिजली बिल की मार

बनारस के आसपास के इलाकों में रहने वाले ग्रामीण बुनकरों की समस्याओं का कोई अंत नहीं है। वे लगातार अपना काम कर रहे हैं। इसलिए कि बिना काम किए उनका गुजारा नहीं है। लेकिन अब वे अपने भविष्य को लेकर चौकन्ने हो गए हैं और इसका एक ही रास्ता दिखाई पड़ता है कि वे संगठित होकर अपनी मांगों को उठाएं। वे लगातार सरकार की निरंकुशता को झेलने को अभिशप्त रहते हैं।

कांग्रेस को हल्के में लेना भाजपा को भारी पड़ सकता है

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए, कांग्रेस और कांग्रेस की राष्ट्रीय महामंत्री उत्तर प्रदेश प्रभारी प्रियंका गांधी की चुनावी रणनीति, क्या अब भाजपा के...

लाभ, लाभार्थी और चुनावी रैलियां!

2022 में भले ही देश के पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने हैं, मगर सबसे अधिक चर्चा उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर...

अयोध्या में नौ लाख दीये जलने से प्रजापति समाज को क्या मिलेगा?

आने वाले कुछ महीनों में विधान सभा चुनाव होने को हैं, जिसको लेकर राजनीतिक पार्टियां बड़ी-बड़ी जनसभाएं कर जनता को लुभाने के प्रयास में...

लखीमपुर खीरी नरसंहार के मामले में सियासत के इस पेंच को आप समझते हैं?(डायरी 9 अक्टूबर 2021)

राजनीति की खासियत यह है कि इसकी दिशा एकदम से सीधी नहीं होती है। ऐसा इसलिए भी होता है क्योंकि राजनीति का संबंध सत्ता...

क्या महत्वपूर्ण मुद्दों पर बैठकें दिशाहीन हो चुकी हैं

पूर्वांचल में किसानों की समस्याएं पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों की समस्याओं से कहीं ज्यादा हैं लेकिन उनका कोई मुकम्मल संगठन नहीं होने की वजह से उनका गुस्सा और उनकी तकलीफें उनके और उनके परिवार तक सीमित हो गई हैं। पूर्वांचल में किसान संगठनों के नाम पर राजनीतिक पार्टियों के आनुषांगिक संगठन ही केवल काम कर रहे हैं, इसलिए किसानों का झुकाव भी इन संगठनों के प्रति अपनापन का नहीं है। संयुक्त किसान मोर्चा की पूर्वांचल इकाई की संरचना भी कुछ ऐसी ही दिखाई दे रही है। शायद इस वजह से पूर्वांचल में कोई बड़ा किसान आंदोलन खड़ा नहीं हो पा रहा है। 

सियासत और समाज  ( डायरी 6 अक्टूबर, 2021)  

सियासत यानी राजनीति की कोई एक परिभाषा नहीं हो सकती है। साथ ही यह कि सत्ता पाने का मतलब केवल प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री बनना...

अराजकता फैलती नहीं, फैलाई जाती है… (डायरी 4 अक्टूबर, 2021)

कल उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में एक नरसंहार को अंजाम दिया गया। जैसी खबरें मुझे प्राप्त हुई हैं, उनके हिसाब से चार किसान...

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