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मणिपुर : लगातार उलझती जा रही समस्या का कब निकलेगा समाधान

मैतई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने के विरोध में पिछले डेढ़ वर्षों से लगातार आदिवासी समूहों में संघर्ष चल रहा है, जिसमें सैकड़ों लोग मारे जा चुके हैं। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी आज तक मणिपुर नहीं गए, न ही समस्या के हल के लिए कभी कोई चर्चा ही की। इस प्रदेश में नागा एवं कुकी मैतेई द्वारा अनुसूचित जनजाति के दर्जे की मांग के खिलाफ हैं। मैतेई एवं नागा कुकी के अलग प्रशासन की मांग के खिलाफ हैं। मैतेई वृहत्तर नागालिम की मांग के खिलाफ हैं। सवाल उठता है कि कैसे और कब इस समस्या का कोई हल निकलेगा। 

मिजोरम के मुख्यमंत्री लालडूहोमा के अमरीका में कुछ समय पहले एक बयान दिया था कि ‘कुकी लोग जो तीन देशों – भारत, बंग्लादेश व म्यांमार में विभाजित हैं को एक नेतृत्व के नीचे होना चाहिए, भले ही इसके लिए उन्हें राष्ट्रीय सीमाओं के पार जाना पड़े’। इस बयान का मणिपुर के मुख्यमंत्री बिरेन सिंह ने इसकी आलोचना करते हुए कहा कि वे भारत एवं मणिपुर की अखण्डता के लिए प्रतिबद्ध हैं।

31 अक्टूबर, 2024 को पाउमाई नागा जनजाति के दो युवाओं के साथ इम्फाल के लामशांग इलाके में उग्रवादी मैतेई संगठन अरमबाई टेनगोल ने मारपीट की एवं उन्हें लूटा, जिसकी यूनाइटेड नागा काउंसिल ने भर्त्सना की।

लियांगमाई नागा काउंसिल ने भारत के राष्ट्रपति को एक ज्ञापन देकर कुकी संगठन कमेटी ऑन ट्राइबल यूनिटी पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है क्योंकि पड़ोसी जिले सेनापति में एक नागा कार्यक्रम में भाग लेने पर मुख्य मंत्री बिरेन सिंह को घुसपैठिया और खतरनाक उत्तेजना पैदा करने वाला बताया, जिससे नागा व कुकी लोगों में तनाव बढ़ गया।

1 नवम्बर को गुवाहाटी में आयोजित एक सम्मेलन में थाडोऊ जनजाति के लोगों ने एक प्रस्ताव पारित कर यह कहा कि वे कुकी से पृथक एवं स्वतंत्र एक जनजाति हैं। 5 नवम्बर को कांगपोकपी स्थित थाडोऊ जनजाति के एक शिखर संगठन थाडोऊ इन्पी ने गुवाहाटी में पारित प्रस्ताव को खारिज करते हुए ऐलान किया कि वह एक भावनात्मक विस्फोट था। ज्ञात हो कि विभिन्न कुकी बिरादरियों में थाडोऊ जनजाति की आबादी सबसे अधिक है।

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7 नवम्बर को मैतेई उग्रवादियों के हमले में जिरीबाम जिले के जायराॅन मार गांव में छह घर जला दिए गए एवं सांगकिम नामक महिला को मार डाला गया। दो दिन बाद कुकी उग्रवादियों ने बिशनुपुर जिले के सायटन गांव में 34 वर्षीय सापाम सोफिया की हत्या कर दी। जबकि सी.आर.पी.एफ. को जिरीबाम में कुकी-मार महिलाओं के आक्रोश का निशाना बनना पड़ा, कोआर्डिनेटिंग कमेटी ऑफ मणिपुर इण्टीग्रिटी की किसान इकाई ने बी.एस.एफ. को सापाम सोफिया की जान न बचा पाने के लिए जिम्मेदार ठहराया।

अवैध आवागमन, नशीली दवाओं व खतरनाक हथियारों, जो मैतेई समुदाय द्वारा वर्तमान में चल रहे संघर्ष की मूल वजह माना जा रहा है, को रोकने के लिए केन्द्र सरकार की रुपए 31,000 करोड़ की भारत-म्यांमार की 1,643 किलोमीटर सीमा पर तार लगाने की परियोजना के विरोध में तथा सीमा से 16 किलोमीटर दोनो तरफ बिना रोक-टोक आने-जाने की व्यवस्था को स्थगित करने के विरोध में 7 नवम्बर को उखरूल व कामजोंग जिले के जिलाधिकारियों द्वारा बुुलाई गई बैठक का तंग्खुल नागा लाॅंग से जुड़े गांव के मुखिया लोगों ने यह कहते हुए बहिष्कार कर दिया कि ये सीमा पार उनके सांस्कृतिक, सामाजिक व आर्थिक सम्बंधों के लिए अवरोधक हैं।

कुकी आर्गनाइजेशन फाॅर ह्यूमन राइट्स ट्रस्ट की एक याचिका पर 8 नवम्बर को सर्वोच्च न्यायालय बिरेन सिंह की कुकी व मैतेई के बीच साम्प्रदायिक हिंसा भड़काने में भूमिका पर एक आडियो रिकार्डिंग सुनने के लिए तैयार हो गया है।

8 नवम्बर को नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालिम (आइसैक-मुइवाह) के महासचिव मुइवाह ने चेतावनी दी है कि यदि भारत सरकार उनकी अलग झण्डे व अलग संविधान की मांग पर तैयार नहीं होता तो वे 1997 के युद्ध-विराम को भंग कर देंगे। मणिपुर के लोगों को लगता है कि इस संगठन के वृहत्तर नागालिम की मांग मणिपुर की अखण्डता के लिए खतरा है।

मणिपुर सरकार द्वारा 8 दिसम्बर, 2016 को जो सात नए जिले बनाए गए थे, जिसमें नागा लोगों को लगता है कि उनके हितों को नजरअंदाज करते हुए कुकी हितों को साधा गया है, के निर्णय को वापस लेने की मांग पर पांच वर्ष बाद पुनः यूनाइटेड नागा काउंसिल, भारत सरकार व मणिपुर सरकार के बीच वार्ता शुरू हो रही है।

दस कुकी विधायकों ने सर्वोच्च न्यायालय में भारत के सालिसिटर जनरल तुषार मेहता द्वारा उनकी मुख्यमंत्री के साथ हुई शांति हेतु वार्ता की बात को झूठा बताया है।

10 नवम्बर को चार राहत शिविरों के विस्थापितों द्वारा प्रदर्शन कर पूछा गया कि उन्हें उनके गांव वापस भेजा जाएगा?
11 नवम्बर को दस कुकी उग्रवादियों को सी.आर.पी.एफ. ने उस समय मार गिराया जब वे जिरीबाम में हमला कर रहे थे। दो मैतेई लोगों के शव भी बरामद हुए। इसके अलावा तीन औरतें व तीन बच्चे लापता थे। यैनगांगपोकपी इलाके में कुकी उग्रवादियों ने एक नागा किसान राशोक होरम को घायल कर दिया। मैतेई व नागा समूहों ने बंद का ऐलान किया।

14 नवम्बर को इम्फाल के 19 में से 6 थानों में जहां कुछ ही समय पहले सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम हटाया गया था केन्द्र सरकार द्वारा पुनः लगा दिया गया। तुरंत ही मणिपुर सरकार ने इसे हटाने की मांग की है।

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15 नवम्बर को लापता में से एक महिला व दो बच्चों की लाशें जिरी नदी में तैरती पाई गईं। इसके बाद तो जैसे तूफान आ गया। इम्फाल पश्चिम जिले में कई नेताओं, जिसमें ज्यादातर भाजपा के विधायक हैं, के घर लोगों ने धावा बोल दिया जिसके बाद इस जिले में कर्फ्यू लग गया। सात जिलों में इण्टरनेट बंद कर दिया गया।

यह लगभग दो हफ्तों में मणिपुर की अराजकता की भयावह तस्वीर है। हिंसा रुकने का नाम नहीं ले रही और एक दूसरे के खिलाफ भावनाएं और कठोर होती जा रही हैं। ऐसा लगता है कि राज्य में एक पागलपन सवार हो गया है।

सरकार सिर्फ लाचार नहीं है, उसने समस्या का हल निकालने के लिए कोई राजनीतिक इच्छाशक्ति भी नहीं दिखाई है। राज्य के ज्यादातर नागरिक, जिसमें मैतेई भी शामिल हैं ऐसा मानते हैं कि राज्य सरकार ही समस्या का कारण है। नरेन्द्र मोदी ने तो जैसे राज्य के प्रति अपनी जिम्मेदारी से पल्ला ही झाड़ लिया है।

3 मई, 2023, जिस दिन से हिंसा की शुरुआत हुई से आज तक वे कम से कम दो दर्जन देशों की यात्रा कर चुके हैं लेकिन उनको मणिपुर आने की फुरसत नहीं मिली। न ही उन्होंने मन की बात में कभी मणिपुर की समस्या का जिक्र किया। मणिपुर भारत का अनाथ राज्य बन गया है।

लेकिन इस पहचान की राजनीति के आग्रह से बाहर निकलने का रास्ता क्या है? नागा एवं कुकी मैतेई द्वारा अनुसूचित जनजाति के दर्जे की मांग के खिलाफ हैं। मैतेई एवं नागा कुकी के अलग प्रशासन की मांग के खिलाफ हैं। मैतेई वृहत्तर नागालिम की मांग के खिलाफ हैं। विभिन्न समुदायों की मांगें मानना नामुमकिन प्रतीत होता है क्योंकि वे दूसरे समुदाय के हितों से टकराती हैं।

एक समाधान हो सकता है यदि सभी पक्षों द्वारा निम्नलिखित चार सिद्धांतों को मान लिया जाएः- (1) हिंसा एवं हथियारों का त्याग किया जाए, (2) सम्प्रभुता को भूमि से नहीं बल्कि लोगों से जोड़ कर देखा जाए, (3) विभिन्न सम्प्रभु इकाइयों के साझा भौगोलिक क्षेत्र के विचार को मान लिया जाए, (4) सभी समस्याओं का हल बातचीत द्वारा लोकतांत्रिक ढंग से निकाला जाए।

इसके पहले कि हम सम्भावित हल पर बात करें जरा तिब्बत के आंदोलन की स्थिति पर विचार करें। करीब एक लाख तिब्बती भारत में शरण लिए हुए हैं। कुछ तिब्बती दुनिया के दूसरे देशों में भी रहते हैं। हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में तिब्बत की एक संसद और निर्वासित सरकार है। संसद के सदस्य तिब्ब्त के बाहर रह रहे तिब्बती मतदान द्वारा चुनते हैं। अतः हमारे सामने एक उदाहरण है एक सम्प्रभु लोगों का जिनके पास अपनी कोई भूमि नहीं है। लोकतंत्र में लोग ही सम्प्रभु होते हैं जो एक राष्ट्र का निर्माण करते हैं। हम उम्मीद करते हैं कि एक दिन तिब्बत के सम्प्रभु लोग तिब्बत में जा कर अपना सम्प्रभु देश भी बना पाएंगे।

यदि सभी हितधारक उपरलिखित सिद्धांतों को मान लेते हैं तो कुकी लोगों के लिए अलग प्रशासन, नागा लोगों के लिए वृहत्तर नागालिम बन सकता है और मणिपुर की अखण्डता भी बरकरार रह सकती है। कुकी के पृथक प्रशासनिक क्षेत्र व मणिपुर का कुछ भौगोलिक क्षेत्र साझा होगा। इसी तरह वृहत्तर नागालिम का कुछ क्षेत्र कुकी लोगों के साथ और कुछ हिस्सा मणिपुर के साथ साझा होगा। हरेक स्वायत्त इकाई के साथ उसके नागरिकों का जुड़ाव होगा जिनके हितों को उनको ध्यान रखना होगा।

अलग-अलग इकाइयों के नागरिक अपनी अपनी सरकारें चुनेंगे। हरेक स्वायत्त इकाई अपने नागरिकों से कर लेगी। वैसे भी ज्यादातर विद्रोही संगठन अभी भी अपने समुदाय के लोगों से कर वसूल ही रहे हैं। एन.एस.सी.एन. (आई.एम.) दीमापुर से कुछ दूरी पर स्थित हेब्राॅन से अपनी समानांतर सरकार चलाता है। किसी एक साझा क्षेत्र के विद्यालय व अस्पताल जैसी सुविधाएं साझा हो सकती हैं। अंतर जिला या अंतर राज्य की सड़कें, रेल, पेट्रोल पम्प, दूर संचार, आदि बड़ी चीजें केन्द्र सरकार पर छोड़ी जा सकती हैं। राष्ट्रीय सरकारों का दायरा भी लचीला हो सकता है।

सम्प्रभु क्षेत्रों का विस्तार राष्ट्र की सीमा के बाहर भी हो सकता है। उदाहरण के लिए भारत, बंग्लादेश व म्यांमार के कुकी एक सम्प्रभु इकाई का गठन कर सकते हैं जो अलग-अलग देशों में भौगोलिक क्षेत्र साझा कर सकता है। अतः लालडूहोमा जो की रहे हैं वह कोई अटपटी बात नहीं हैं। इसी तरह वृहत्तर नागालिम के क्षेत्र का विस्तार म्यांमार में हो सकता है। दुनिया में कई अन्य समुदाय हैं जैसे बलूच या कुर्द जो विभिन्न देशों से भौगोलिक क्षेत्र साझा कर अपनी अपनी स्वायत्त इकाइयों का निर्माण कर सकते हैं।

तिब्बत चीन के साथ अपना क्षेत्र साझा कर स्वायत्त इकाई बन सकता है। कश्मीर भारत व पाकिस्तान के साथ भौगोलिक क्षेत्र साझा कर स्वायत्त इकाई बना सकता है। काॅण्डोमिनियम नामक एक अवधारणा जिसमें एक स्वायत्त इकाई का प्रबंधन एक से ज्यादा देश मिलकर करते हैं एक स्थापित विचार है।

लेकिन उपरोक्त तभी सम्भव है जब हिंसा का रास्ता छोड़ लोकतांत्रिक वार्ता का सहारा लिया जाएगा। साथ में मिलकर सहयोग की भावना से काम करने की संस्कृति जैसी संयुक्त राष्ट्र में दिखाई पड़ती है को अपनाना पड़ेगा। सभी सशस्त्र सेना व हथियारबंद संगठन समाप्त करने होंगे। यूरोपीय संघ ने इसका अच्छा नमूना पेश किया है जिसका विस्तार दुनिया में होना चाहिए।

संदीप पांडेय
संदीप पांडेय
संदीप पाण्डेय सोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया) के महासचिव हैं।

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