विगत 1 अक्टूबर को लखनऊ में जय प्रकाश नारायण की जयंती के मौके पर अखिलेश यादव को उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण करने से रोका गया। 2 अक्टूबर को सोनम वांगचुक को दिल्ली में महात्मा गांधी के समाधि स्थल पर जाने से रोका गया। 9 फरवरी 2024 को आरएसएस के गुंडों द्वारा पुणे में निखिल वागले पर हमला किया गया। इसी प्रकार, मराठी पत्रिका ‘चित्रलेखा’ के संपादक ज्ञानेश महाराव के कार्यालय में घुसकर उन्हें अपने बयान के लिए माफी मांगने के लिए मजबूर किया गया।
निखिल वागले ने नब्बे के दशक में ‘निर्भय बनो’ बैनर के तहत मुंबई में धर्मयुग पत्रिका के उप-संपादक गणेश मंत्री, मराठी नाटककार विजय तेंदुलकर, रत्नाकर मतकरी, मराठी नाटककार प्रोफेसर पुष्पा भावे और अन्य सहयोगियों की मदद से एक अभियान चलाया था। तब मैं एक सभा को संबोधित करने के लिए विशेष रूप से कलकत्ता से आया था। वह बैठक गोरेगांव के केशव गोरे स्मृति सभागृह में आयोजित की गई थी।
गोरेगांव रेलवे स्टेशन से उतरकर जब मैं उस मीटिंग में शामिल होने के लिए पैदल जा रहा था, तभी एक दोस्त ने मुझे बताया कि ‘मीटिंग हॉल के बाहर हजारों लोगों की जमा भीड़ ने निखिल वागले की कार पर हमला कर उसका शीशा तोड़ दिया है। गणेश मंत्री के साथ भी यही हुआ।’ उसने सलाह दी कि ‘तुम्हें नहीं जाना चाहिए।’ मैंने उनसे कहा कि ‘मैं इस कार्यक्रम के लिए ही कोलकाता से आया हूँ। क्या मुझे अपनी जिंदगी की सुरक्षा के डर से बीच रास्ते से ही वापस लौट जाना चाहिए? मुझे शर्म आनी चाहिए कि मेरे दोस्त निखिल वागले, गणेश मंत्री इस हालत में हैं। इसलिए यह मेरा नैतिक कर्तव्य है कि इस अवसर पर निर्भय बनो आंदोलन को मजबूत करूं।’
वहाँ पहुंचकर मैंने देखा कि केशव गोरे स्मृति हॉल के बाहर मध्यमवर्गीय महिलाओं की भारी भीड़ आक्रोशित होकर बैठक के विरोध में नारे लगा रही थी। जब मैंने उस भीड़ में घुसने की कोशिश की तो उन्होंने पहले मुझे धक्का देकर गिरा दिया और मुझे लाठियों से पीटने लगे। लेकिन मैं घुटनों के बल उस भीड़ में रेंगते हुए मीटिंग हॉल में पहुँचा। मेरी खादी की शर्ट के साथ ही जींस पैंट भी घुटनों से ऊपर फट चुकी थी।
मंच पर पहुँचते के बाद उसी हाल में आयोजकों ने मुझे बोलने के लिए कहा। मैंने सभा को संबोधित किया कि ‘सत्तर साल पहले जर्मनी में हिटलर के स्टॉर्म स्टॉपर्स और गेस्टापो ने मिलकर अपने विरोधियों के साथ इसी तरह का व्यवहार किया था। जिसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आज भारत में दोहरा रहा है।’ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ फासीवाद का भारतीय संस्करण है। उन्होंने हिंसा को अपने दर्शन में सम्मिलित किया है, जिसके कारण हमें महात्मा गांधी को खोना पड़ा। यही लोग हैं, जिन्होंने डॉ. नरेंद्र दाभोलकर, प्रोफेसर एम.एस. कलबुर्गी, कॉमरेड गोविंद पानसरे और गौरी लंकेश की हत्या की।
यह भी पढ़ें – सनातन के हर शोषित-पीड़ित को सनातन को उखाड़ फेंकने का अधिकार है
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने देश को क्या दिया
इसके अलावा विभिन्न दंगों में मारे गए लाखों लोगों की हत्या इन्हीं लोगों ने की है। पुणे की घटना उसी श्रृंखला की एक कड़ी है क्योंकि इस घटना पर संघ की शाखा से आये देवेन्द्र फड़णवीस और सुधीर देवधर के बयान इसी बात का संकेत दे रहे हैं। निखिल वागले पर जानलेवा हमला होने के बावजूद हमलावरों पर कार्रवाई करने की बजाय निखिल वागले को गिरफ्तार करने की बात की जा रही है। और तो और ये लोग यहां तक कह रहे हैं कि सस्ती लोकप्रियता के लिए निखिल वागले ने खुद पर यह हमला करवाया है।
डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार, डॉ. बी.जे. मुंजे और उनके कुछ दस-पंद्रह करीबी सहयोगियों ने मिलकर 27 सितम्बर, 1925 को दशहरे के दिन पुराने नागपुर के महल नामक मोहल्ले में मोहिते के वाड़े (पुराने जमींदारों के बड़े घर को मराठी में वाड़ा कहा जाता है) के प्रांगण में दस-पंद्रह लोगों के साथ एक फासीवादी संगठन की शाखा शुरू की। इसमें मुख्य रूप से खेल, व्यायाम, गायन, परेड और हिन्दुओं के खेल जैसे मैदानी कार्यक्रम आयोजित किए जाते थे। सबसे खास बात यह थी कि स्वयंसेवकों को मुस्लिम राजाओं के समय में हिन्दुओं पर किए गए अत्याचारों के बारे में बढ़ा-चढ़ाकर सही और गलत बताया जाता था।
सन 1950 में जनसंघ के नाम से एक राजनीतिक पार्टी की नींव रखी गई और 1980 में इसे भारतीय जनता पार्टी के रूप में बदल दिया गया। उसके बाद (1985-86) राम मंदिर के नाम पर भाजपा ने लगातार माहौल बिगाड़ने का काम किया।
हालांकि 1756 में प्लासी के युद्ध के बाद 1857 के विद्रोह के साथ ही मुस्लिम राजाओं और साम्राज्य के अवशेषों का शासन लगभग समाप्त हो चुका था। अंग्रेजों का शासन दो सौ से अधिक वर्षों तक चला लेकिन संघ की शाखा या बौद्धिक गीतो में अंग्रेजों का कहीं कोई जिक्र नहीं है। इसी वजह से 1947 में संघ की स्थापना के बाइस साल होने के बावजूद स्वतंत्रता आंदोलन में इसकी भागीदारी का एक भी रिकॉर्ड नहीं है।
यह सांप्रदायिक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अगले साल इसी दिन यानी 2025 में 100 साल पूरे कर रहा है। लेकिन तथाकथित हिंदुत्व संघ के सौ साल की उपलब्धि के रूप में नरेंद्र मोदी और अमित शाह जैसे स्वयंसेवकों ने अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ जहरीला प्रचार करने के साथ सांप्रदायिक राजनीति को मजबूत करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारत को किसी भी हालत में गुरु गोलवलकर का तथाकथित हिंदू राष्ट्र बनाने के निरंतर प्रयास चल रहे हैं।
यह भी पढ़ें –मिर्ज़ापुर में सिलकोसिस : लाखों लोग शिकार लेकिन इलाज की कोई पॉलिसी नहीं
राष्ट्रीय सेवक संघ अल्पसंख्यकों, किसानों को रखा निशाने पर
पूरे देश में किसी न किसी तरीके से अल्पसंख्यकों को निशान बना रहे हैं। कश्मीर में धारा 370 को खत्म कर दी, समान नागरिक संहिता, एनआरसी, सीएए आदि को खत्म करके वे पूरे देश को सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की मानसिकता से ध्रुवीकृत करने का काम कर रहे हैं। इस तरह से उत्तर प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और जहां-जहां भाजपा की सरकारें हैं, उन सभी राज्यों में 30-35 करोड़ से अधिक अल्पसंख्यक समुदाय के साथ बहुत ही अमानवीय तरीके से व्यवहार कर रहे हैं। यह बहुत ही चिंता का विषय है।
उत्तर प्रदेश में रात के अंधेरे में पुलिस के भेष में आरएसएस के गुंडे मुजफ्फरनगर से लेकर सहारनपुर, मुरादाबाद, लखनऊ से लेकर इलाहाबाद, अलीगढ़, आजमगढ़, कानपुर, बनारस, इलाहाबाद आदि कई मुस्लिम बहुल इलाकों में चुन-चुनकर बुलडोजर चलाकर मुसलमानों की संपत्तियों को ध्वस्त कर रहे हैं। किस कानून के तहत?
विधानसभा में आदित्यनाथ इसकी तुलना रामराज्य से कर रहे हैं। मुझे राम की जगह रावण राज्य नज़र आ रहा है। वे निडर हो सांप्रदायिक नाच कर रहे हैं। गोदी मीडिया को हिंदुत्ववादियों की खबर देने का समय नहीं है। सोशल मीडिया और यू ट्यूबरों के माध्यम से खबरें सामने आ रही हैं।
वर्ष 2022 में मध्य प्रदेश के निमाड़ क्षेत्र में खरगोन नामक स्थान पर दुर्गा पूजा के दौरान हुए दंगों के बाद अल्पसंख्यक समुदायों की बस्तियों पर बुलडोजर चलाए गए। फिर उसके बाद वहां के कलेक्टर ने हिंदू और मुस्लिम बस्तियों के बीच कंक्रीट की दीवारें खड़ी कर दीं। इसके बाद कलेक्टर साहब ने इंडियन एक्सप्रेस के प्रतिनिधि से बात करते हुए कहा कि, ‘ये दीवारें दोनों समुदायों के बीच शांति और सद्भावना के लिए बनाई जा रही हैं।’
कलेक्टर साहब किस स्कूल में पढ़े हैं? मुझे नहीं पता। लेकिन इस दंगे में अल्पसंख्यक समुदाय पर बुलडोजर चलाने वाले वे पहले व्यक्ति थे। अब उन्होंने स्थायी शांति के लिए दो कॉलोनियों के बीच दीवार बनवा दी। यह 100% सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने का कार्यक्रम है, जिसकी शुरुआत अमित शाह ने की। गुजरात विधानसभा चुनाव प्रचार में बीजेपी ने नरोदा पाटिया दंगों में शामिल दोषियों में से एक की बेटी पायल कुलकर्णी को अपना उम्मीदवार बनाया है और पायल इस समय गुजरात विधानसभा में भारी मतों से जीतकर विधायक हैं। उन्होंने चुनाव के दौरान नरोदा पाटिया विधानसभा इलाके में अपने भाषण में कहा ‘गुजरात दंगों में स्थायी शांति के लिए उपाय करने के लिए दंगे ज़रूरी थे।’
मैंने ऐसा दृश्य दस साल पहले फिलिस्तीन की अपनी यात्रा के दौरान देखा था। फिलीस्तीन के गाजा पट्टी और पश्चिमी तट क्षेत्र में मैंने फिलीस्तीन के अरबों और इजराइल के यहूदियों की बस्तियों के बीच इजराइली सरकार द्वारा 25-30 फीट ऊंची कंक्रीट की दीवारों से घिरा हुआ क्षेत्र देखा है। फिलीस्तीन और इजराइल के बीच कितनी शांति और सद्भावना स्थापित हुई है? यह पूरी दुनिया जानती है। वर्तमान में वे गाजा पट्टी को लगभग नष्ट करने पर तुले हुए हैं।
हिंदू और मुसलमान हजारों वर्षों से भारत में एक साथ रह रहे हैं। लेकिन पिछले कुछ समय से सांप्रदायिक तत्वों के कारण कलह पैदा होने लगी है। यह जानबूझकर तुच्छ वोट बैंक की राजनीति के लिए पैदा की जा रही है। इसके लिए सबसे बड़ा जिम्मेदार संगठन आरएसएस और उसकी राजनीतिक इकाई भाजपा और विहिप, श्रीराम सेना, बजरंग दल, हिंदू वाहिनी जैसी अत्यंत सांप्रदायिक ताकतों में ऑक्टोपस जैसे मोहरे जिम्मेदार हैं।
संघ पिछले सौ सालों से अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ बदनामी का अभियान चलाकर एक दूसरे के बीच मानसिक दीवारें खड़ी करने में सफल रहा है। अब वे बची हुई कसर दृश्यमान दीवारें खड़ी करके पूरी कर रहे हैं। इसका मतलब यह है कि एक दूसरे की बस्तियों के बीच दीवारें खड़ी करने से सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की आग में घी डालने का ही काम होगा। यह काम सांप्रदायिक तत्वों द्वारा लगातार किया जा रहा है।
संघ परिवार के पागलपन के कारण मौजूदा सरकार के सत्ता में आने के बाद लगातार तीन तलाक, 370, राम मंदिर, लव जिहाद, गोहत्या प्रतिबंध, हिजाब और अब नागरिकता के नाम पर मुसलमानों के मन में असुरक्षा की भावना पैदा करने का प्रयास कार रहा है।
भारतीय जनता पार्टी देश के महत्वपूर्ण मुद्दों से लोगों का ध्यान भटकाना है क्योंकि वे सबका साथ सबका विकास का नारा लेकर आए थे। 2014 से 2024 तक क्या हुआ? सभी जानते हैं कि किसका विकास हुआ? वे किसका समर्थन कर रहे हैं?
कुछ उद्योगपतियों की संपत्ति कितनी बढ़ गई है? आम नागरिकों के हिस्से में क्या आया है? हमारा सकल राष्ट्रीय उत्पाद आधे से भी कम हो गया है। हम महंगाई की मार झेल रहे हैं। हर साल दो करोड़ रोजगार देने का वादा करने वाली सरकार, दस वर्षों में भी दो करोड़ रोजगार भी नहीं दे पाई है। इसके विपरीत नई नौकरियां तो दूर, कितने पुराने लोगों की नौकरियां चली गई हैं। छोटे उद्यमी लगभग खत्म हो चुके हैं। बची हुई कसर नोटबंदी और जीएसटी ने पूरी कर दी। इसके बाद भी वे बेशर्मी से कह रहे हैं कि बेरोजगार लोग भजिया तलना शुरू कर दें।
कोरोना के नाम पर जल्दबाजी में लॉकडाउन लगाकर करोड़ों ग्रामीण मजदूरों की जिंदगी से खिलवाड़ किया और सौ से ज्यादा लोगों को मौत के मुंह में धकेल दिया है। मानो इतना ही काफी नहीं था। वे किसानों के पीछे पड़ गए।
तीन कृषि कानून लाकर वे कृषि क्षेत्र को बर्बाद करने पर तुले रहे और सबसे बड़ी बात, वे कहते हैं कि हम ये कानून किसानों के कल्याण के लिए लाए हैं। किसानों की राय लिए बिना जिस तरह से उन्होंने कोविड की आड़ में संसद में इन विधेयकों को पारित करने का तमाशा किया, इसे पूरी दुनिया ने देखा और संसद की बची-खुची इज्जत भी तार-तार हो गई है। एक डिग्री सेल्सियस से भी कम तापमान में लाखों किसान राजधानी के इर्द-गिर्द बैठे रहे। भारत के किसान आंदोलन में ऐसा पहली बार हुआ है कि किसान एक वर्ष से ज्यादा समय तक धरने पर बैठे रहे। मेरी राय में दुनिया के किसी भी आंदोलन के इतिहास में भी ऐसा ही हुआ है। लाखों किसानों का लगातार एक साल तक संघर्ष, दुनिया के इतिहास में पहली बार दर्ज हुआ है।
अब एक बार फिर किसान अपनी मांगों को लेकर दिल्ली आने की कोशिश कर रहे थे, तब वे पहले से भी ज्यादा सख्ती से पेश आए, जिसमें दो किसानों की मौत हो गई और सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि इजरायल द्वारा फिलिस्तीनी लोगों के खिलाफ इस्तेमाल की जाने वाली पेलेट गन का इस्तेमाल किसानों पर किया गया क्योंकि पिछली बार उत्तर प्रदेश के चुनावों को ध्यान में रखते हुए नरेंद्र मोदी ने अपनी चिरपरिचित रणनीति के तहत दिल्ली के रकाबगंज गुरुद्वारे में जाकर माथा टेककर माफी मांगी और रोने का नाटक करते हुए बिल वापस लेने की घोषणा की थी। लेकिन जमीनी हकीकत वही है। किसानों की फसलों के दाम और सरकार द्वारा किए गए वादे पूरे नहीं हो रहे हैं। क्योंकि अडानी ने अरबों रुपए के कोल्ड स्टोरेज और बड़े-बड़े गोदाम बना लिए हैं। आम लोगों से वोट मांगकर सत्ता में आने के बावजूद सरकार सिर्फ उद्योगपतियों के हित में काम कर रही है।
किसानों की आत्महत्या की ख़बरें देना अख़बारों और टीवी चैनलों ने बंद कर दिया है। आत्महत्याओं की संख्या घटने की बजाय बढ़ती ही जा रही है। इसका कारण है कि किसानों की फसल उत्पादन को औने-पौने दाम पर बेचकर उन्हें नुकसान पहुंचाना। महाराष्ट्र में प्याज की फसल के साथ मंडियों में जो हो रहा है मैंने उसे देखा है। इसी तरह कश्मीर के किसानों की सेब की फसल को नष्ट कर दिया गया। उद्योगपति घराने किसानों से औने-पौने दाम पर फल खरीदकर अपना ब्रांड लगाकर ऊंचे दामों पर बेच रहे हैं। यह काम सेब से लेकर संतरा, टमाटर तक हर फसल के साथ जारी है।
यह भी पढ़ें – प्रोफेसर जीएन साईबाबा असंवेदनशील न्याय-व्यवस्था के शिकार हुए
अब तक 10 लाख से ज़्यादा किसान आत्महत्या कर चुके हैं। जबकि संघ के लोग विश्व गुरु का नाम जप रहे हैं। अगर यही विश्व गुरु का असली रूप है तो हमें ऐसा विश्व गुरु नहीं चाहिए। इस सरकार ने अच्छे दिनों का सपना दिखाया और 300 रुपये का गैस सिलेंडर 1200 रुपये में बेच रही है। इनका दावा है कि इन्होंने हर दिन 40 किलोमीटर सड़क बनाई है। कौन सी सड़कें? यदि सड़कें बन रही हैं तो फिर गाँव पहुँचने वाली सड़कें कहाँ गायब हो गईं? लोगों के लिए योजनाओं के आंकड़े देखकर सिर चकरा जाते हैं। लेकिन इन घोषित योजनाओं का सारा पैसा और फायदा किसे मिल रहा है, यह एक रहस्य है।
ऑस्ट्रेलिया में दखल रखने वाली सरकार, अडानी ग्रुप के लिए महंगा कोयला आयात करती है, जो भारत से कई गुना महंगा है। भारतीय उद्योगों को इसे कई गुना अधिक कीमत पर खरीदने के लिए मजबूर किया जाता है। मुख्य रूप से ताप विद्युत उत्पादन परियोजनाओं को। एक उद्योगपति के मुनाफे के लिए अपने ही देश के लोगों को महंगी बिजली खरीदने के लिए मजबूर करना किस तरह का अच्छा दिन लाना है?
यह भी सुनने में आया है कि जिन परियोजनाओं ने इसकी उच्च लागत के कारण कोयला खरीदने से इनकार किया, उनकी मालगाड़ियों के माध्यम से आने वाले सरकारी कोयले की आपूर्ति रोक दी जाती है। उन्हें ऑस्ट्रेलिया से लाए गए अडानी के महंगे कोयले को खरीदने के लिए मजबूर किया जा रहा है। इसीलिए अब भारत में बिजली की कीमत कई गुना बढ़ाने का फैसला लिया गया है। उन राज्यों में इसकी खरीद के कारण ग्राहकों का विरोध हो रहा है।
भारत हमेशा की तरह सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति करने के लिए स्वतंत्र है। आखिर वह जी-20 का मेजबान बना। भारत की आजादी के 75 साल होने के बावजूद आधी आबादी को पीने का पानी ठीक से नहीं मिल पा रहा है। आज भी 25 प्रतिशत से ज्यादा बच्चों का 5 साल से ज्यादा उम्र तक जीवित रहना संभव नहीं है क्योंकि वे कुपोषण का शिकार हो रहे हैं। शायद ही कोई सेकंड ऐसा जाता हो जिसमें महिलाओं की इज्जत न लूटी जा रही हो और वह भी आदिवासी या दलित समुदाय से।
आज भारत दुनिया के विकासशील देशों की सूची से बाहर हो चुका है। गरीब देशों की सूची में बांग्लादेश और पाकिस्तान से भी नीचे आ चुका है। यह राष्ट्रीय अपमान है। वर्तमान सरकार को एक पल के लिए भी सत्ता में बने रहने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है लेकिन इन सब बातों से ध्यान भटकाने के लिए NRC जैसे मुद्दों के साथ धार्मिक आधार पर बिल लाया गया। इसके पीछे मकसद है कि देश में धार्मिक भावनाओं का इस्तेमाल कर अराजकता का माहौल बनाए ताकि उनकी नाकामी के बारे में कहीं कोई चर्चा न हो। इसीलिए वे देश को NRC जैसी बेमतलब की बातों में उलझाना चाहते हैं।
नरेंद्र मोदी ने 2002 में गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए भारतीय राजनीति के इतिहास में पहली बार राज्य में प्रायोजित दंगे भड़काकर खुद को हिंदू हृदय सम्राट के रूप में स्थापित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। गुजरात दंगों के बाद सैकड़ों रिपोर्टों और किताबों ने इसका पर्दाफाश किया। इनमें से किसी भी किताब या रिपोर्ट को चुनौती देना तो दूर, इसके विपरीत नरेंद्र मोदी ने बार-बार दावा किया है कि ‘मेरे आलोचक मुझे प्रचारित करने का सबसे अच्छा काम कर रहे हैं।’ विगत 27 फरवरी, 2024 को गुजरात दंगों को 22 साल हो चुके हैं। भारत जैसे बहुआयामी संस्कृति वाले देश के लिए यह बहुत चिंता की बात है कि भारत जैसे देश की बागडोर किसी ऐसे पुरुष या महिला के हाथ में चली जाए जो किसी विशेष धर्म या संस्कृति पर जोर देता हो। ऐसा इसलिए है क्योंकि सांप्रदायिकता या नस्लीय श्रेष्ठता पर जोर देने वाले लोगों की वजह से दुनिया में बहुत हिंसा हुई है।
यही वजह है कि नरेंद्र मोदी लाखों पसमांदा मुसलमानों से प्यार करने की बात कर रहे हैं लेकिन असुरक्षित माहौल में रहने वाले लोगों के लिए उनसे प्यार करना भी एक बुरे सपने जैसा है। गौर करने की बात है कि 22 साल पहले गुजरात में नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में इसी पसमांदा मुस्लिम समुदाय के लोगों के साथ क्या हुआ था? आज भी ऐसे लोग हैं जो इसे याद करते हैं। और 2014 में सत्ता में आने के तुरंत बाद गाय के नाम पर कितने पसमांदा लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है क्योंकि पसमांदा मुस्लिम समुदाय गाय खरीदने से लेकर उससे जुड़े तमाम मामलों से अपनी आजीविका चलाता हैं। और आज भी तथाकथित हिंदुत्ववादी हर दिन किस तरह का जहर उगल रहे हैं? क्या नरेंद्र मोदी इन सब बातों से अनजान हैं? यह तो मुंह में राम और बगल में छुरी जैसा है!
देश अनजाने में ही ऐसे षड्यंत्रकारी गिरोह के हाथों में पड़ गया है। ठीक वैसे ही जैसे द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद! 100 साल पहले जर्मनी में भी यही स्थिति थी! और उसका फायदा उठाकर हिटलर नाम के तानाशाह ने! 25 साल तक जर्मनी पर जुल्म ढाए। आज भारत में भी वही इतिहास दोहराया जा रहा है। हिटलर के पीछे भी जर्मन पूंजीपतियों ने अपनी पूंजी लगाई। जर्मनी का पूरा मीडिया भी और आज के समय में भारत का लगभग पूरा मीडिया। (कुछ अपवादों को छोड़कर) मौजूदा सरकार से सहमत होने में व्यस्त है।
हिंडनबर्ग रिपोर्ट में एक बहुत छोटी-सी बात सामने आई है। यह मेरा व्यक्तिगत आरोप है कि,’नरेंद्र मोदी और अडानी कनेक्शन की जांच की जरूरत है’ क्योंकि पिछले दस सालों में नरेंद्र मोदी द्वारा भारत और विदेश में की गई यात्राओं में लगभग हर देश में इस उद्योगपति के लिए कुछ न कुछ उपकार करने के उदाहरण हैं। आज भारत की आधी से ज्यादा बिजली अडानी को दी जा रही है। देश की रेल, हवाई यातायात, पानी और औद्योगिक प्रतिष्ठानों को बेचने के बावजूद भाजपा के बड़बोले लोग कह रहे हैं कि राहुल गांधी विदेशी धरती पर भारत को बदनाम कर रहे हैं। लेकिन क्या विदेश जाकर अडानी उद्योग को बढ़ावा देने का काम, खासकर सरकारी स्तर पर, देशभक्ति का बड़ा योगदान कहा जाएगा?
इस बात की जांच जरूरी है कि गौतम अडानी ने क्यों नरेंद्र मोदी को 2014 के लोकसभा चुनाव में 400 से ज्यादा सभाएं करने के लिए अपना प्राइवेट जेट प्लेन दिया था? रायबरेली के चुनाव में श्रीमती इंदिरा गांधी ने कंबल बांटने के मुद्दे पर छह साल के लिए अपनी लोकसभा सीट खो दी थी। यहां नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के लिए गौतम अडानी के प्राइवेट जेट प्लेन का इस्तेमाल किया था। चुनाव प्रचार में भाजपा के पास इतना पैसा कहां से आया? क्योंकि भाजपा खुद को ‘पार्टी विद डिफरेंस’ कहते नहीं थकती। तो फिर अंतर क्या है? देश की जनता को पता होना चाहिए।