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क्या है उत्तराखंड का यूसीसी बिल?

यूसीसी विधेयक आदिवासी समुदाय को छोड़कर राज्य के सभी निवासियों पर लागू होता है। राज्य में आदिवासी पूरी आबादी का 2.9% हैं और शुरू से ही यूसीसी के ख़िलाफ़ रहे हैं।

नई दिल्ली। 7 फरवरी को उत्तराखंड विधानसभा ने समान नागरिक संहिता (यूसीसी) विधेयक पारित किया, जो स्वतंत्र भारत में ऐसा कानून पारित करने वाली पहली विधायिका बन गई, जो शादी, तलाक, संपत्ति की विरासत और लिव-इन रिलेशनशिप पर सामान्य नियमों का प्रस्ताव करती है। यह राज्य के सभी नागरिकों के लिए समान है चाहे वे किसी भी धर्म के हों।

यह संविधान के अनुच्छेद 44 (राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत) से उपजा है जो हालांकि लागू करने योग्य नहीं है, फिर भी राज्य को इस तरह के एक समान कानून को लागू करने का प्रयास करने के लिए बाध्य करता है। विधेयक को अब राष्ट्रपति की सहमति के लिए उनके पास भेजा जाएगा। राष्ट्रपति की सहमति मिलते ही यह कानून बन जाएगा।

विधेयक किस पर लागू है?

यह विधेयक आदिवासी समुदाय को छोड़कर राज्य के सभी निवासियों पर लागू होता है। राज्य में आदिवासी पूरी आबादी का 2.9% हैं और शुरू से ही यूसीसी के ख़िलाफ़ रहे हैं।

धारा 2 में कहा गया है “इस संहिता में निहित कोई भी बात भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के साथ पढ़े गए अनुच्छेद 366 के खंड (25) के अर्थ के भीतर किसी भी अनुसूचित जनजाति के सदस्यों और उन व्यक्तियों और व्यक्तियों के समूह पर लागू नहीं होगी जिनकी प्रथागत अधिकार भारत के संविधान के भाग XXI के तहत संरक्षित हैं।

यह लिव-इन रिलेशनशिप को कैसे कंट्रोल करता है?

विधेयक के अनुसार राज्य में रहने वाले सभी विषमलैंगिक जोड़ों (चाहे वे उत्तराखंड के निवासी हों या नहीं) को संबंधित रजिस्ट्रार के पास एक “बयान” दर्ज करा कर अपने लिव-इन रिलेशनशिप को रजिस्टर कराना होगा। अगर ऐसा रिश्ता खत्म भी हो जाए तो भी रजिस्ट्रार को इसकी सूचना देनी होगी। यदि दोनों में से किसी एक साथी की उम्र 21 वर्ष से कम है, तो घोषणा उनके माता-पिता या अभिभावकों को भी भेजी जाएगी।

इसके बाद, रजिस्ट्रार यह सुनिश्चित करने के लिए एक “सारांश जांच” करेगा कि यह रिश्ता धारा 380 के तहत उल्लिखित किसी भी निषिद्ध श्रेणी के अंतर्गत नहीं आता है या नहीं, की कहीं कोई साथी विवाहित है या किसी और रिश्ते में है, यदि वह नाबालिग है या उसकी सहमति “जबरदस्ती, धोखाधड़ी या गलत बयानी” से ली गई है। इसके बाद रजिस्ट्रार को 30 दिनों के भीतर फैसला लेना होगा। अगर रिश्ता रजिस्टर करने से इनकार कर दिया जाता है, तो कारण लिखित रूप में बताना होगा।

अगर किसी महिला को उसका लिव-इन पार्टनर छोड़ देता है तो उस स्थिति में वो महिला अपने भरण-पोषण का दावा भी कर सकती है।

(‘द हिंदू’ में प्रकाशित खबर पर आधारित।)

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