पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इन दिनों फिर सुर्खियों में हैं। इस बार वजह उनका कांग्रेस के खिलाफ बयान देना है। अनेक राजनीतिक विश्लेषक उनके बयानों को विरोधाभास के रूप में बता रहे हैं तो कुछ ऐसे भी हैं जो उनकी अपनी महत्वकांक्षा करार दे रहे हैं। दरअसल, ममता बनर्जी के बयानों को इस आधार पर भी देखा जा रहा है, क्योंकि वह ब्राह्मण जाति की हैं। कहा यह भी जा रहा है कि वह अपने जातिगत चरित्र की वजह से आरएसएस का खुलकर विरोध नहीं कर पा रही हैं। यानी जितने मुंह, उतनी बातें।
लेकिन मेरे लिए यह बेहद सकारात्मक है। एक महिला इन दिनों सुर्खियों में है और उसने जो कामयाबी हासिल की है, वह एक ऐसी ताकत को परास्तकर हासिल की है, जिसने पश्चिम बंगाल को हिंदू-मुस्लिम एकता का श्मशान बनाने का इरादा कर लिया था। ममता बनर्जी की सफलता इसलिए भी महत्वपूर्ण रही क्योंकि उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के घमंड को चुनौती दी थी– खेला होबे।
अब यदि वह कांग्रेस की आलोचना कर रही हैं तब भी कोई ऐसी बात नहीं है कि आसमान को सिर पर उठाया जाय। ममता बनर्जी का संबंध कांग्रेस से रहा है और वह इससे पूरी तरह परिचित रही हैं। इसलिए उनके बयानों को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए। दूसरी अहम बात यह कि कांग्रेस का नेतृत्व वाकई में बहुत कमजोर है। फिर चाहे वह कोई भी सवाल रहा हो, कांग्रेस नेतृत्व स्वयं से जुझता रहा है। यहां तक कि उसके अपने बड़े नेताओं के बीच विरोधाभास रहा है। हालांकि राहुल गांधी की तारीफ की जानी चाहिए कि उन्होंने आज के दौर में भी सत्य को अपने साथ रखा है। लेकिन सियासत के रंग-ढंग अलग होते हैं। जिस तरीके से कांग्रेस ने खुद को भाजपा से अधिक हिंदू साबित करने की कोशिशें की है, वह उसके ऊपर सवाल खड़ा करता है। जबकि उसे ऐसा कुछ भी करने की जरूरत नहीं है। वह पहले से ही भाजपा से अधिक हिंदूवादी रही है।
[bs-quote quote=”तो ऐसे में जबकि यह सभी जानते हैं कि कट्टर हिंदुत्व का मुकाबला नरम हिंदुत्व से नहीं किया जा सकता है, कांग्रेस नरम हिंदुत्व का अनुपालन कर रही है और नतीजा यह कि कांग्रेस को पराजय मिल रही है। ममता बनर्जी ने जो कांग्रेस नेतृत्व की आलोचना की है, उसके पीछे वजह यही है। ” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
मसलन, यह कि अयोध्या में राम मंदिर के नाम पर आज जो राजनीति भाजपा कर रही है, उसकी शुरूआत राजीव गांधी ने की थी। तब राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे और शहबानो मामले में पूरी तरह उलझ गए थे। उन्होंने अयोध्या में रामलला नामक भूत को जिंदा किया। इसके अलावा भी कई ऐसे उदाहरण हैं, जिनके आधार पर कहा जा सकता है कि कांग्रेस भाजपा से अधिक हिंदूवादी पार्टी रही है। हालांकि उग्रता के मामले में वह भाजपा से उन्नीस अवश्य ही है।
यही हाल जाति के सवाल के मामले में भी है। कांग्रेस में जातिवाद का आलम यह रहा है कि अब भी यह खुद को ब्राह्मणों की पार्टी का तमगा हासिल करने को बेचैन है। इसके लिए प्रियंका गांधी मंदिरों में जाती हैं, राहुल गांधी जनेऊ दिखाते फिरते हैं।
तो ऐसे में जबकि यह सभी जानते हैं कि कट्टर हिंदुत्व का मुकाबला नरम हिंदुत्व से नहीं किया जा सकता है, कांग्रेस नरम हिंदुत्व का अनुपालन कर रही है और नतीजा यह कि कांग्रेस को पराजय मिल रही है। ममता बनर्जी ने जो कांग्रेस नेतृत्व की आलोचना की है, उसके पीछे वजह यही है।
दूसरी ओर ममता बनर्जी हैं, जो विजय रथ पर सवार हैं और राहुल गांधी के मुकाबले अधिक सक्षम हैं। यह उन्होंने साबित भी किया है। अब यदि वह कांग्रेस की आलोचना कर रही हैं, तो यह सियासत का हिस्सा ही है। ममता बनर्जी ने कांग्रेस की कर्जदार नहीं हैं। उन्होंने जाे हासिल किया है, वह अपने बूते किया है। रही बात भाजपा की तो, वह ममता बनर्जी की राजनीतिक कुशलता से वाकिफ है और वह तो यही चाहेगी कि ममता बनर्जी को राष्ट्रीय स्तर पर सफलता नहीं मिले। वजह यह कि यदि ऐसा हुआ तो वह नरेंद्र मोदी के मुकाबले बीस ही रहेंगीं।
कल ही महिलाओं के संबंध में एक कविता जेहन में आयी–
हर मां एक बेटी थी
हर सास एक बहू थी
हर मां एक गुलाम थी
हर सास एक गुलाम थी
दुनिया की औरतों
यह रिवाज बदलो
और तोड़ दो जंजीरें।
फिर कहना-
हर मां आजाद है
हर बेटी आजाद है
हर सास आजाद है
हर बहू आजाद है।
नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस में संपादक हैं।
अडानी से गलबहियां का क्या मतलब है, लेखक जी? ममता जी अचानक अडानी के साथ क्यों खड़ी हो गईं। मोइत्रा के ट्वीट और भाषण किधर गए?
आपने बिल्कुल सही विश्लेषण किया है तथा यह बात भी सही है कि ममता बनर्जी राष्ट्रीय स्तर पर अपना पंचम लहराने के योग्य हैं।
स्त्री पर आधारित कविता ने एक नए तथ्य को उजागर किया है।