सिलचर के विदेशी न्यायाधिकरण-3 ने अवैध प्रवासी (न्यायाधिकरण द्वारा निर्धारण) अधिनियम के तहत 1998 के एक मामले की सुनवाई के दौरान कछार जिले के उधारबोंड क्षेत्र की निवासी 50 वर्षीय दुलुबी बीबी को विदेशी घोषित किया था।
न्यायाधिकरण के सदस्य बीके तालुकदार ने तब अपने आदेश में कहा था कि दुलुबी बीबी यह साबित करने में विफल रहीं कि वह और उनके पिता भारत में पैदा हुए थे और 1971 से पहले भारतीय क्षेत्र में रहते थे, लिहाजा न्यायाधिकरण की राय है कि वह अवैध रूप से भारत में आई थीं।
न्यायाधिकरण ने पाया था कि विभिन्न मतदाता सूचियों में बीबी की पहचान अलग-अलग नामों से की गई थी और उनके पिता तथा दादा के नाम भी बेमेल थे।
न्यायाधिकरण ने पुलिस को दुलुबी बीबी को गिरफ्तार करने और हिरासत में रखने का भी आदेश दिया था।
बाद में उच्चतम न्यायालय के निर्देश के बाद उन्हें हिरासत केंद्र से जमानत पर रिहा कर दिया गया। इस साल मई में, उन्होंने विदेशी न्यायाधिकरण के 2017 के आदेश को गौहाटी उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी।
जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण (डीएलएसए), कछार ने उन्हें मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान की और महितोष दास को वकील नियुक्त किया। दास ने कहा कि उच्च न्यायालय ने न्यायाधिकरण को मामले की फिर से सुनवाई करने का निर्देश दिया।
दास ने कहा, “न्यायाधिकरण की सुनवाई के दौरान, दुलुबी बीबी ने दावा किया कि उसके पास अपने दादा के साथ संबंध साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत हैं, जिनका नाम 1965 से पहले कई मतदाता सूचियों में था।”
दास ने कहा कि बीबी को उसी न्यायाधिकरण के सदस्य बी. के. तालुकदार ने भारतीय घोषित किया, जिन्होंने पहले 2017 में उन्हें अवैध अप्रवासी घोषित किया था।
वकील ने कहा कि तालुकदार पेश की गई सामग्री और उनके सामने रखी गई दलीलों से आश्वस्त हो गए और उन्होंने बीबी को भारतीय नागरिक घोषित कर दिया।
तालुकदार ने इस सप्ताह की शुरुआत में इस संबंध में आदेश जारी किया, जो बृहस्पतिवार को बीबी को उपलब्ध कराया गया।
सिलचर (भाषा)। कई मतदाता सूची में नाम बेमेल होने के कारण 2017 में असम में एक महिला को बांग्लादेश से आई अवैध अप्रवासी घोषित कर दिया गया था, जिसे छह साल बाद परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर भारतीय नागरिक के रूप में स्वीकार किया गया है। अधिकारियों ने यह जानकारी दी।