Thursday, November 14, 2024
Thursday, November 14, 2024




Basic Horizontal Scrolling



पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

होमविचारजिंदगी, इश्क, संघर्ष और नया साल (डायरी 1 जनवरी, 2022)

इधर बीच

ग्राउंड रिपोर्ट

जिंदगी, इश्क, संघर्ष और नया साल (डायरी 1 जनवरी, 2022)

अहा! एक नया साल हमारे सामने है। हम सभी ने कोरोना महामारी के दूसरे लहर की वीभिषिका और सरकारी बदइंतजामियों को पीछे छोड़ आए हैं और हम जिंदा हैं। हालांकि खतरा अभी टला नहीं है। कोरोना का नया वैरिएंट ओमीक्रॉन अब हमारे सामने है। कई सारे सवाल फिर से हैं कि आखिर पहले जो वैक्सीन […]

अहा! एक नया साल हमारे सामने है। हम सभी ने कोरोना महामारी के दूसरे लहर की वीभिषिका और सरकारी बदइंतजामियों को पीछे छोड़ आए हैं और हम जिंदा हैं। हालांकि खतरा अभी टला नहीं है। कोरोना का नया वैरिएंट ओमीक्रॉन अब हमारे सामने है। कई सारे सवाल फिर से हैं कि आखिर पहले जो वैक्सीन के दो-दो डोज लेने पड़े, उनमें ऐसी क्या कमी थी कि अब फिर से एक नया डोज लेने की सलाह दी जा रही है। आखिर कमियां कहां रह जाती हैं।

मेरे हिसाब से साल का बदलना एक मानसिक सुख देता है। चूंकि दिन और महीने तो हमेशा एक जैसे रहते हैं लेकिन साल बदल जाने का प्रमाण देता साल संख्यात्मक रूप में हमें आश्वस्त करता है कि जो था, वह अतीत था और अब जो है वह वर्तमान है। हालांकि ध्यान से देखिए तो संख्यारूपी साल का यह योगदान कम नहीं है। हम इसके सहारे बुरी बातों को भूल सकते हैं और इसके जरिए अच्छी बातों को याद भी रख सकते हैं। जैसे कि यह कोई नहीं भूलेगा कि वर्ष 2021 में भारतीय किसानों ने जनतांत्रिक तरीके से एक बड़ी लड़ाई जीती और केंद्र की भाजपा सरकार को अपने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए मजबूर किया। जनतांत्रिक मूल्यों में विश्वास करने वाले हर व्यक्ति के लिए यह एक महत्वपूर्ण घटना थी।

तो मेरा तो यही मानना है कि साल का बदलना हमें एक पैरामीटर तय करने का मौका देता है। हम यह तय कर सकते हैं कि इस साल हम क्या करेंगे। इसके जरिए हम अपने जीवन को कैसे आगे बढ़ाएंगे यह भी तय करते हैं। मैं तो यही करता हूं। जब कभी साल का पहला दिन आता है, मैं बीते हुए साल में खुद के द्वारा किए गए कार्यों का मूल्यांकन करने की कोशिश करता हूं। अनेकानेक मामलों में विफल भी होता हूं क्योंकि खुद के किए कार्यों का मूल्यांकन खुद करना अतिरेक जैसा लगता है। लेकिन यह भी सही है कि आदमी खुद ही खुद का सर्वश्रेष्ठ आलोचक होता है। वह जानता है कि वह क्या कर सकता था और उसने क्या नहीं किया। इसके साथ ही मैं पूर्व की त्रुटियों को नहीं दुहराने की संकल्प भी लेता हूं। और इसी सब में 31 दिसंबर की रात गुजर जाती है। कल भी यही हुआ। हालांकि यह पहली बार है जब पहली जनवरी के दिन अपने परिजनों के साथ नहीं हूं तो थोड़ा सा अटपटा भी लग रहा है। लेकिन एक फायदा यह हुआ है कि मैं आत्म अवलोकन अच्छे तरीके से कर पा रहा हूं। परिजनों के साथ रहने पर यह इतना आसान नहीं होता।

[bs-quote quote=”साल का बदलना हमें एक पैरामीटर तय करने का मौका देता है। हम यह तय कर सकते हैं कि इस साल हम क्या करेंगे। इसके जरिए हम अपने जीवन को कैसे आगे बढ़ाएंगे यह भी तय करते हैं। मैं तो यही करता हूं। जब कभी साल का पहला दिन आता है, मैं बीते हुए साल में खुद के द्वारा किए गए कार्यों का मूल्यांकन करने की कोशिश करता हूं।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

खैर, कल एक बहुत अच्छी खबर मिली। खबर यह कि उत्तराखंड की सरकार ने उस दलित महिला रसोइया सुनीता देवी को फिर से नियुक्त कर लिया है, जिसकी 13 दिसंबर, 2021 को सवर्ण छात्रों द्वारा जातिगत दुर्भावना से बहिष्कार किया गया था और इसके मद्देनजर सरकार ने सुनीता देवी को नौकरी से निकाल दिया था। मैं नहीं जानता कि यह किसके दबाव के कारण हुआ। मुमकिन है कि उत्तराखंड सरकार पर वहां के जन संगठनों ने दबाव बनाया हो। लेकिन यह जिसके दबाव के कारण हुआ, स्वागतयोग्य कदम है।

एक दूसरी खबर और है। यह अच्छी भी है और थोड़ी सी सचेत करनेवाली भी। दरअसल कल तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन ने भारतीय मौसम विभाग के संबंध में चिता व्यक्त की कि उसने 30 दिसंबर को चेन्नई में अचानक हुई तेज (करीब 20 सेमी) बारिश का अनुमान नहीं किया। यह एक ऐसी चिंता है, जिसके बारे में संज्ञान लिया जाना चाहिए। वजह यह कि स्टालिन ने उपकरणों के पुराने होने तथा टेक्नोलॉजी के अप्रासंगिक होने का सवाल उठाया है। चूंकि यह मामला केंद्र सरकार से जुड़ा है तो भारतीय मौसम विभाग ने यह कहकर अपना पल्ला झाड़ा है कि तकनीकी कारणों से हमेशा सटीक अनुमान लगाना संभव नहीं होता।

दरअसल, स्टालिन यह कह रहे हैं कि इस देश को वैज्ञानिक सोच के साथ आगे बढ़ना होगा। विज्ञान प्रदत्त चीजों का विस्तार हो। लेकिन भारतीय हुकूमत यानी नरेंद्र मोदी सरकार के एजेंडे में पाखंड और अंधविश्वास का विस्तार है। वह हरसंभव कोशिश कर रहे हैं कि लोग अवैज्ञानिक और मूर्ख बने रहें।

यह भी पढ़ें :

सोवियत संघ के विघटन के बाद की दुनिया, मेरा देश और मेरा समाज  (डायरी 26 दिसंबर, 2021) 

भाजपा के इस षडयंत्र में उसके सहयोगी दलों के नेतागण भी साथ दे रहे हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने परसों मुजफ्फरपुर में तथाकथित समाज सुधार कार्यक्रम में सरकारी राशि पानेवाली जीविकाकर्मियों को (आम जनता नदादर) को संबोधित करते हुए यह कहा कि शराब पीने से एड्स फैलता है। इसके पहले उन्होंने यह कहा था कि शराब पीनेवाले काबिल नहीं होते।

निस्संदेह शराब पीना अच्छी बात नहीं है। लेकिन यदि कोई पीता है तो वह नाकाबिल कैसे हो सकता है। मुझे तो अपनी एक रपट याद आ रही है। वह साल 2013 का था। मार्च के महीने में बजट सत्र के पहले दिन सुशील कुमार मोदी जो कि वित्त मंत्री थे, ने आर्थिक सर्वेक्षण रपट को सदन में प्रस्तुत किया था। मुझे उसी में यह आंकड़ा मिला था कि वर्ष 2011-12 में बिहार में शराब की कितनी खपत हुई थी और उसका मूल्य क्या था। उन आंकड़ों के आधार पर मैंने लिखा था कि – ‘प्रतिदिन 1200 करोड़ रुपए की शराब रगटक जाते हैं बिहारी।’ हालांकि सीएजी रिपोर्ट में अनियमितता का भी मामला था। सीएजी ने कहा था कि आबकारी विभाग की नाकामियों के चलते राज्य सरकार को हर साल करीब 25 हजार करोड़ का नुकसान हो रहा है।

खैर, जिस शराब को आज नीतीश कुमार कोस रहे हैं, उसे बिहार के लोग पीया करते थे (पीते तो आज भी हैं, लेकिन सरकारी खजाने के बजाय वहां के अधिकारियों की जेबें गरम हो रही हैं), तो क्या सबके सब नाकाबिल थे और क्या नाकाबिलों के वोट से नीतीश कुमार सीएम हैं?

[bs-quote quote=”स्टालिन यह कह रहे हैं कि इस देश को वैज्ञानिक सोच के साथ आगे बढ़ना होगा। विज्ञान प्रदत्त चीजों का विस्तार हो। लेकिन भारतीय हुकूमत यानी नरेंद्र मोदी सरकार के एजेंडे में पाखंड और अंधविश्वास का विस्तार है। वह हरसंभव कोशिश कर रहे हैं कि लोग अवैज्ञानिक और मूर्ख बने रहें। ” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

वैसे नीतीश कुमार से आगे बढ़कर कल बिहार के डीजीपी ने अवैज्ञानिक बात कही है और वह भी उनके सामने ही समाज सुधार कार्यक्रम को संबेधित करते हुए। डीजीपी एस के सिंघल का कहना है कि बिहार के लड़कियां प्रेम विवाह ना करें, क्योंकि इससे उनके वेश्यावृत्ति में संलिप्त होने की संभावना बढ़ जाती है। (मैं सिंघल के कहे को हू-ब-हू नहीं लिख सकता क्योंकि बेहुदगी को जस का तस नहीं लिखा जा सकता)

बहरहाल, यह सब चलता रहेगा। सरकारें अपना काम करेंगीं और मैं खबरनवीस अपना काम करता रहूंगा। कुछ खास किताबें हैं इस साल, जिनके उपर काम करना है। खबरें और विश्लेषण के अलावा किस्से-कहानियां भी रहेंगीं। एक चिंता है माता-पिता की। बस वे स्वस्थ रहें। घर के अन्य परिजन भी अपना ध्यान रखें तो मुझे अपना काम करने में सहुलियत मिलेगी। हालांकि हमेशा ऐसा होता कहां है। संघर्घ चलता रहता है जीवन में। और मैं तो इश्क का आदमी हूं। इश्क और संघर्ष दोनों के बीच अन्योन्याश्रय संबंध है। तो इस साल भी इश्क मेरी पहली प्राथमिकता में है।

सभी को नये साल की खूब सारी बधाई।

जिंदाबाद!

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस में संपादक हैं।

अगोरा प्रकाशन की यह किताब अब किन्डल पर भी उपलब्ध :

गाँव के लोग
गाँव के लोग
पत्रकारिता में जनसरोकारों और सामाजिक न्याय के विज़न के साथ काम कर रही वेबसाइट। इसकी ग्राउंड रिपोर्टिंग और कहानियाँ देश की सच्ची तस्वीर दिखाती हैं। प्रतिदिन पढ़ें देश की हलचलों के बारे में । वेबसाइट को सब्सक्राइब और फॉरवर्ड करें।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here