Sunday, July 6, 2025
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पर्यावरण

स्वास्थ्य और पर्यावरण को बेहतर बनाने के लिए मोटे अनाज की खेती और मांग फिर बढ़ गई

आज से 45-48 वर्ष पहले तक मोटे अनाज की पर्याप्त खेती होती थी और भोजन में इसका भरपूर उपयोगकिया जाता था। लेकिन हरित क्रांति के बाद खेतों में गेंहूँ, धान की बुवाई ज्यादा की जाने लगी और हाइब्रिड बीज के माध्यम से अधिक पैदावार के नाम पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने परंपरागत खेती को प्रभावित किया है। परिणामतः किसानों को खेती करने के लिए बाजार पर निर्भरता बढ़ गई। वह मोटे अनाज की खेती छोड़ नकदी फसलों के उत्पादन पर जोर देने लगे। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा वर्ष 2023 को अंतरराष्ट्रीय मिलेट वर्ष घोषित करने के बाद से किसान एक बार फिर से इसकी खेती की ओर प्रोत्साहित हो रहे हैं।

जयपुर : शहर से बाहर स्लम बस्तियों में रहने वालों को कब मिलेगा पीने का साफ पानी

देश में 76 प्रतिशत लोग पहले ही पानी की कमी से जूझ रहे हैं। जिसकी वजह से स्लम बस्तियों में रहने वाले लोग साफ पानी के अभाव में जीवन गुजारने को मजबूर हैं। आने वाले वर्षों में यह समस्या और बढ़ सकती है , इस बात को देखते हुए ऐसी योजनाओं पर काम करने की जरूरत है , जिससे सभी को साफ पानी उपलब्ध कराया जा सके।

बिहार : देश में स्वच्छता अभियान का असर स्लम बस्तियों पर दिखाई नहीं देता

देश के प्रधानमंत्री ने देश को साफ-सुथरा रखने के लिए स्वच्छ भारत अभियान चलाया। इस अभियान के तहत घर-घर कूड़ा इकट्ठा करने के लिए गाडियाँ जाने लगीं। लेकिन इसके बाद भी हर शहर के कुछ हिस्से ऐसे हैं जहां न कूड़ा लेने वाली गाड़ियां जाती हैं न ही साफ-सफाई वाले आते हैं। ऐसे में वहाँ रहने वाले गंदगी में रहने को मजबूर हैं। इससे एक बात सामने आती है कि केवल कुछ इलाकों को साफ किया जाता है बाकी को नहीं।

अरुणाचल में मेगा बांध परियोजनाओं में प्रस्तावित और तैयार बांध प्रकृति के लिए खतरा – सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया)

इधर लगातार बारिश से पहाड़ी इलाकों में तबाही की स्थिति बढ़ती ही जा रही है। इसके बावजूद अरुणाचल प्रदेश में 169 से ज़्यादा प्रस्तावित बांध हैं, जो प्रकृति का दोहन करेंगे और लोगों के लिए ख़तरा बनेंगे। सरकार को वहाँ के नागरिकों की सुरक्षा को लेकर सतर्क होना जरूरी है।

उत्तराखंड : विकास के जुनून में पर्यावरण और स्थानीय आबादी को बर्बाद करने की परियोजना

प्राकृतिक रूप से समृद्ध उत्तराखंड के जंगल प्राकृतिक आपदाओं के साथ मनुष्यजनित नुकसान के कारण खत्म होते जा रहे हैं। जिसकी वजह से हिमालय की तराई वाले क्षेत्रों में इस बार गर्मी मैदानी इलाकों के जैसे ही पड़ी। गर्मियों में सबसे ज्यादा खतरनाक जंगलों में आग लगना है, जिसके कारण जंगल में रहने वाले जीव-जन्तु तो मरते ही हैं, मनुष्य का जीवन भी खतरे में पड़ जाता है। उत्तराखंड के जंगलों से विद्याभूषण रावत की ग्राउन्ड रिपोर्ट

बढ़ता जा रहा है सोरघाटी का जल संकट, गायब हो रही जैव विविधता

पश्चिमी हिमालय में आने वाले कुमाऊँ क्षेत्र के पिथौरागढ़ और यहाँ रहने वाले लोगों का गला अब सूखने लगा है। पानी का बिल चुकाते...

शुद्ध पेयजल के गम्भीर संकट से गुजर रहे हैं बस्ती के लोग

बस्ती जनपद में हैंडपंप खराबी के चलते लोगों को पानी की गंभीर समस्या से जूझना पड़ रहा है। जनपद के ज्यादातर हैंडपंप खराब हैं...

रूफ टॉप रेन वाटर हार्वेस्टिंग प्रणाली की स्थापना हेतु बैठक

मीरजापुर। मुख्य विकास अधिकारी (CDO) श्रीलक्ष्मी वीएस ने विकास भवन सभागार में मीरजापुर में रूफ टॉप रेन वाटर हार्वेस्टिंग प्रणाली की स्थापना हेतु चयनित...

चिंता का विषय है पहाड़ों पर कूड़े का ढेर

हल्द्वानी (उत्तराखंड)। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी हमेशा स्वच्छता पर ज़ोर देते रहे। बापू का एक ही सपना था कि 'स्वच्छ हो भारत अपना।' वर्तमान की...

बनारस में भी साइक्लोन बिपरजॉय का असर, हल्की बूंदाबांदी के साथ बादलों ने दी दस्तक

साइक्लोन बिपरजॉय के कारण अच्छा बना रहेगा मौसम, तब तक 25-26 तक मानसून भी जाएगा : एसएन पांडेय वाराणसी/ लखनऊ। अरब सागर से बीते छह...

ठीक नहीं है पहाड़ों के पर्यावरण की उपेक्षा

कपकोट (उत्तराखंड)। समय पूर्व तैयारियों ने हमें चक्रवाती तूफ़ान बिपरजॉय से होने वाले नुकसान से तो बचा लिया लेकिन यह अपने पीछे कई सवाल...
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