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बाढ़ की विभीषिका से खानाबदोश हो जाती है जिंदगी, थम जाता है गाँव का विकास

मुजफ्फरपुर जिले में बाढ़ से तबाही के आंकड़े को देखें तो साहेबगंज प्रखण्ड में लगभग 10 पंचायत हैं, जो नदी के किनारे आबाद हैं। उसमें हुस्सेपुर रत्ती में लगभग 4000 हजार मवेशियों को बाढ़ आने के बाद काफी परेशानी होती है। इन पंचायतों में एक बड़ी आबादी नदी किनारे जीवन यापन करती है।

अमूमन हर वर्ष जुलाई-अगस्त का महीना आते ही उत्तर प्रदेश, बिहार और उत्तर पूर्वी राज्य बाढ़ की चपेट में आ जाते हैं। जनजीवन बिल्कुल अस्त-व्यस्त हो जाता है। समस्या केवल आदमी तक सीमित नहीं है, बल्कि पशुओं के दाना-साना से लेकर चारागाह और चिकित्सा तक की रहती है। बाढ़ आते ही किसानों की फसल बर्बाद हो जाती है। सामान्यतः ऐसा माना जाता है कि अत्यधिक वर्षा के बाद प्राकृतिक जल संग्रहण स्रोतों व मार्गों में जल धारण करने की क्षमता में कमी हो जाती है। पानी उन स्रोतों से निकलकर सूखी भूमि को डुबो देता है। यह ध्यान देने वाली बात है कि बाढ़ हमेशा भारी वर्षा के कारण नहीं आती, अपितु यह प्राकृतिक और मानव निर्मित भी है। जैसे- मौसम संबंधी तत्व, बादल फटना, नदियों में गाद की अधिकता, मानव निर्मित अवरोध, वनों की अंधाधुंध कटाई आदि प्रमुख कारण माने जाते हैं। इन राज्यों के किसानों को कर्ज लेकर खेती करनी पड़ती है। बाढ़ आते ही फसल बर्बाद हो जाती है और फिर साहूकार से सूद के पैसे अथवा मवेशियों को बेचकर क़र्ज़ चुकाना पड़ता है। बाढ़ के उपरांत भोजन-पानी के अभाव में या बीमारी से असंख्य लोगों और पशुओं की मृत्यु भी हो जाती है।

मुजफ्फरपुर जिला मुख्यालय से करीब 60 किमी दूर दियारा क्षेत्र प्रत्येक साल बाढ़ की त्रासदी झेलने को मजबूर है। आजादी के बाद से लेकर अब तक कितनी सरकारें बदली, परंतु इस इलाके की हालत नहीं बदली। बाढ़ के लिए ज़िम्मेदार बूढ़ी गंडक नदी के किनारे स्थित हजारों हेक्टयर उपजाऊ भूमि इसमें आने वाली बाढ़ की भेंट चढ़ जाता है। केवल मुजफ्फरपुर ही नहीं, बल्कि बूढ़ी गंडक वाला क्षेत्र पश्चिमी-पूर्वी चंपारण, सीवान और गोपालगंज जिले भी इसमें आने वाली उफान की भेंट चढ़ जाते हैं। स्थानीय बुज़ुर्ग बताते हैं कि आज़ादी के दो दशक बाद तक यह बाढ़ नदी किनारे स्थित सैकड़ों गांव के लिए वरदान साबित होती थी, क्योंकि यह खेतों के लिए उपजाऊ गाद लेकर आती थी। ग्रामीण बूढ़ी गंडक में आने वाली बाढ़ को उत्सव की तरह मनाते थे। बाढ़ का पानी कुछ दिनों में ताल-तलैया, पोखर-पाइन, नहर आदि से होते हुए आगे निकल जाता था। इसके जाते ही खरीफ फसलें लहलहा उठती थीं, लेकिन आज स्थिति बिल्कुल विपरीत हो गई है। आज मनुष्य अपने फायदे के लिए नदियों और पर्यावरण का इस कदर दोहन करने लगा है कि वह वरदान की जगह जानलेवा बन गई हैं।

बाढ़ के लिए होने लगी तैयारी, गाँव में चलने लगते हैं नाव

मुजफ्फरपुर जिले में बाढ़ से तबाही के आंकड़े को देखें तो साहेबगंज प्रखण्ड में लगभग 10 पंचायत हैं, जो नदी के किनारे आबाद हैं। उसमें हुस्सेपुर रत्ती में लगभग 4000 हजार मवेशियों को बाढ़ आने के बाद काफी परेशानी होती है। इन पंचायतों में एक बड़ी आबादी नदी किनारे जीवन यापन करती है। इनकी रोजी-रोटी नदी के पास की उपजाऊ जमीन और पशुपालन पर निर्भर है। बाढ़ आने के बाद इनके सारे सपने चकनाचूर हो जाते हैं। शादी, अनुष्ठान, आयोजन और कई ऐसे शुभ कार्य बरसात के बाद टालने पड़ते हैं या अन्यत्र करने की मजबूरी हो जाती है। सबसे अधिक महिलाओं, किशोरियों, बच्चों व बुजुर्गों को बाढ़ का कोपभाजन होना पड़ता है। भोजन, पानी, आवास, शौचालय, सड़क, बिजली, पीएचसी, स्कूल आदि बिल्कुल प्रभावित हो जाते हैं। परिणामतः एक बड़ी आबादी को कुछ महीने के लिए घर से बेघर होना पड़ता है।प्रभावित लोगों को बांध, पड़ोसी गांव, रिश्तेदारों एवं जान-पहचान के लोगों के पास समय व्यतीत करना पड़ता है। इस बीच पूरी जिंदगी खानाबदोश हो जाती है।

गरीब परिवारों को जिनके घर फूस (झोपड़ी) के बने होते हैं, उन्हें काफी परेशानी होती है। मुख्य रूप से जमीन (भूमि) की कमी और परिवार में जनसंख्या का अधिक होना बड़ी समस्या है। लोगों को साल में मात्र चार से पांच माह ही स्थानीय स्तर पर मजदूरी मिलती है। दियारा क्षेत्र के शिवचंन्द्र राय कहते हैं कि बाढ़ प्रभावित लोग बाढ़ उपरांत अन्य राज्यों में मजदूरी करने चले जाते हैं, लेकिन बाढ़ से पहले अपने घर वापस आकर परिवार को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी निभाते हैं। तटबंध पर अस्थायी घर बनाते हैं। वर्ष 2022 में बाढ़ से इतनी तबाही हुई थी कि लोग डर से एक वर्ष तक अपने घर नहीं लौट सके थे। इस इलाके के कुछेक सम्पन्न परिवार बाढ़ आने पर शहर चले जाते हैं। प्रभावित लोगों के लिए सबसे बड़ी समस्या बेरोजगारी होती है। इस क्षेत्र में स्थित विद्यालयों में पानी भर जाने की वजह से महीनों तक बच्चों की पढ़ाई बाधित रहती है। चारों तरफ पानी लग जाने से शौच के लिए सुरक्षित स्थान नहीं मिल पाता है। तटबंध पर लोगों का बसेरा होने की वजह से महिलाओं एवं किशोरियों को खुले में शौच जाने में परेशानी होती है।

अस्थाई आवास में जीवन-यापन करते हैं ग्रामीण

हुस्सेपुर रत्ती के मुखिया कमलेश राय कहते हैं कि बाढ़ के दौरान आवगमन ठप्प हो जाता है। बच्चों की पढ़ाई-लिखाई, भोजन, शुद्ध पेयजल, शौचालय आदि की कुव्यवस्था से कई बीमारियां पनपने लगती हैं। हालांकि, सरकारी स्तर पर भोजन की व्यवस्था की जाती है, तो वहीं पंचायत स्तर पर जनप्रतिनिधियों द्वारा भी बाढ़ प्रभावित लोगों के लिए भोजन, तिरपाल आदि की व्यवस्था की जाती है। इस बावत जिला पार्षद सुरेन्द्र राय कहते हैं कि सरकार द्वारा जो भी सहायता बाढ़ पीड़ितों को मिलती है, वह अस्थायी है। इस समस्या के हल के लिए सरकार के पास कोई ठोस रणनीति नहीं है। वहीं, चांदकेवारी पंचायत की पूर्व मुखिया गुड़िया कुमारी का कहना है कि सरकार को चाहिए कि जिसका घर हर साल बाढ़ की चपेट में आता है, उसे प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत ऊंचे स्थानों पर स्थायी आवास उपलब्ध कराया जाए।

सोहांसा गांव के 30 वर्षीय बब्बन सिंह कहते हैं कि नदी के किनारे घर है, खेतीबाड़ी है। इसे छोड़कर हमलोग कहीं नहीं जा सकते हैं। आपदा के समय पीड़ितों को सरकारी आहार समय पर नहीं मिलता है। हालांकि, पारु के अंचलाधिकारी अनिल भूषण के अनुसार, बाढ़ आने से पूर्व सरकार अपने स्तर से पीड़ितों की मदद के लिए हर तरह की सुविधा उपलब्ध कराती है। तिरपाल, दवाई, आहार, नाव आदि की व्यवस्था की जाती है। इसके अलावा आपदा से निपटने के लिए ज़रूरत पड़ने पर राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएम) और राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (एनडीआरएफ) की मदद ली जाती है, जो संकट और आपदा के दौरान बचाव एवं राहत कार्य को प्रभावी ढंग से पूरा करती है।

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विशेषज्ञों का मानना है कि बाढ़ के नुकसान से बचने के लिए जल निकास तंत्र में सुधार, बाढ़ पूर्व तैयारी को पुख्ता करना, वाटर शेड सिस्टम, मृदा संरक्षण, नदियों की उराही, कमजोर तटबंधों की समय पर मरम्मत और नदी जोड़ों परियोजना आदि पर पूरी गंभीरता से काम करने की जरूरत है। नियोजित विकास, शहरी क्षेत्रों में हरित पट्टी को बढ़ाना, जन-स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करना, वैक्सिन एवं दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करना, अतीत की बाढ़ की त्रासदी की समीक्षा करना, कौशल आधारित प्रशिक्षण देना, महिलाओं, किशोरियों व बच्चों की सेहत की समुचित देखभाल करना, पशुओं के लिए टीककरण और सुरक्षित स्थान की व्यवस्था करके ही सरकार बाढ़ की विभीषिका से जानमाल की क्षति को कम कर सकती है।

 

गाँव के लोग
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1 COMMENT
  1. बिल्कुल सही बाढ़ का स्थाई समाधान होना ही chahie

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