आजमगढ़ के आठ गाँव उजाड़े जाने की सरकारी कवायद चालू है लेकिन ग्रामीणों का प्रतिरोध भी अपने चरम की ओर है। रातों में ड्रोन से गाँवों की ज़मीन की पैमाइश की जाने लगी तो ग्रामीणों ने ऐतराज किया और पूछा कि यह किस बात का सर्वे है तब उन्हें कोई माकूल जवाब नहीं दिया गया। सरकारी अधिकारी-कर्मचारी गाँव के लोगों से लगातार झूठ बोलते रहे हैं। कभी वे कहते हैं फसलों की जांच कर रहे हैं जिससे किसानों को मुआवज़ा मिलेगा। कभी कहते हैं कि आप लोगों के लिए हवाई अड्डा बन रहा है। लेकिन इसके साथ ही कभी रात के अंधेरे में सर्वे कर रहे हैं तो कभी ड्रोन से पैमाइश कर रहे हैं। यहाँ की महिलाओं के अनुभव रोंगटे खड़े करने वाले हैं।
पिछले शनिवार को यहाँ महिला पंचायत का आयोजन हुआ और महिलाओं ने 12-13 अक्तूबर की रात में अपने ऊपर हुये बर्बर लाठीचार्ज, सरकारी अधिकारियों द्वारा दी गई गंदी गालियों, अपमानित करने वाली बातों के साथ अपनी तकलीफ़ों का रोंगटे खड़े करने वाले बयान दिये। साथ ही उन्होंने अपने गाँव न उजाड़ने देने के लिए सरकार और प्रशासन को खबरदार करते हुये दृढ़ता से अपनी मुट्ठियाँ लहराईं।
मैं इसी महिला पंचायत में शामिल होने आई हूँ। साथ में कई और साथी गाँव के लोग के संपादक रामजी यादव, सीजेएपी की डॉ मुनीजा रफीक खान और ऐपवा की कुसुम वर्मा और घरेलू कामगार संगठन की धनशीला भी हैं।
आजमगढ़-अयोध्या राजमार्ग पर शहर से पंद्रह किलोमीटर दूर स्थित मंदुरी गाँव के पूरब से बलिया एक्सप्रेसवे गुजरता है। कहीं जाम की समस्या नहीं दिखी। गाड़ियाँ सरपट दौड़ रही थीं। शहर से जाते हुये सड़क के बाईं ओर आजमगढ़ हवाई अड्डा दिखाई देता है और गूगल मैप में भी वह अपनी मौजूदगी का संकेत देता है। लेकिन उसे देखकर नहीं लगता कि इस पर कभी कोई जहाज उतरता होगा। लोगों से पूछने पर भी किसी ने नहीं बताया कि हाल-फिलहाल यहाँ कोई जहाज़ उतरा है। दरअसल यह राजनेताओं के हेलीकाप्टर उतरने के लिए एक हवाई पट्टी है।
मंदुरी तिराहे पर उतरते ही तहबरपुर मार्ग पर सब्जी की दुकान में मौजूद दुकानदार सोनू से मैंने जैसे ही पूछा कि हवाई अड्डा कहाँ तक बनेगा? उन्होंने छूटते ही कहा – ‘हमको हवाई अड्डा नहीं, रोजगार चाहिए। यहाँ ज़्यादातर मजदूर हैं जिनकी दिहाड़ी न हो तो घर में चूल्हा जलना मुश्किल है।’
जल्दी वहाँ से चलकर जमुआ हरिराम गाँव में पहुंचे। नहर के पास एक दुकान पर लगे फ़्लेक्स बैनर पर न जान देने न ज़मीन देंगे लिखा था। हमारी साथी कुसुम वर्मा ने उत्साह के साथ उसकी तस्वीरें खींची। मुनीज़ा रफीक खान ने लोगों से बात करना शुरू किया। यह दिन भी और दिनों की ही तरह था। गाँव में ऊपरी सतह पर सब कुछ सामान्य लग रहा था। लेकिन तभी वहाँ से कंधरापुर थाने की पुलिस जीप वहाँ से गुजरी।
हर घर में प्रशासनिक उत्पीड़न की एक कहानी थी
देखते ही देखते गाँव से बीस-बाइस महिलाएं वहाँ इकट्ठा हो गईं। उन्होंने गाँव में हमारे पहुँचने पर खुशी ज़ाहिर की और तुरंत ही बीते दिनों की घटनाओं का बयान करना शुरू किया। 12 अक्टूबर की आधी रात को गाँव की महिलाओं और लड़कियों के साथ पुलिस-प्रशासन ने जो व्यवहार किया उससे वे सभी बहुत गुस्से में थीं। महिलाओं को अपमानित किया गया, गालियाँ दी गईं और उन्हें लाठियों से पीटा गया।
इस गाँव की रहनेवाली नीलम ने बताया कि ‘बारह तारीख में दिन में दस बजे से शाम छह बजे तक सरकार के लोग आए। उसी दिन रात में जब मैं सो रही थी तो आधी रात को मेरी चचिया सास ने मुझे झकझोर कर जगा दिया और बोलीं – चलो उठो। फोन आया था। हमारे गाँव में सर्वे हो रहा है। मैं उठी और अपने आस-पास की बहनों को जगाया और बताया कि पता नहीं कैसा सर्वे हो रहा है। ब्राह्मण बस्ती में सरकारी लोग आए थे। वहाँ लोग कह रहे थे कि सर्वे हो रहा है। हमने कहा कि यह आधी रात को कौन सा सर्वे होता है। लोग कह रहे थे कि आओ सब लोग सर्वे हो रहा है। वहाँ बहुत से लोग दिख रहे थे लेकिन हमें नहीं मालूम कि वहाँ पुलिस प्रशासन था। बस्ती की दोनों तरफ से महिलाएँ आईं और सबने कहा कि पता नहीं कौन लोग हैं। इसलिए सब लोगों ने तय किया कि दोनों तरफ से हमलोग चोर-चोर चिल्लाएँ तब ये लोग सामने आएंगे। जब हम लोग चोर-चोर बोले तो वे लोग झाड़ियों में से निकलने लगे और हमलोगों को धक्के देकर खेत और सड़क पर ढकेल दिये। हमारे एक बुजुर्ग चाचा हैं उनको इतना डंडा मारा कि उनका हाथ फ्रेक्चर हो गया। मेरे घर के कई लोगों को डंडे लगे। वे लोग चिल्ला रहे थे कि तुम लोग यहाँ क्यों आई हो तो हमने पूछा कि तुमलोग क्या करने यहाँ आए हो तब बोले कि हमको ऊपर से आदेश मिला है इसलिए आए हैं। हमने कहा तो दिन में क्यों नहीं आए रात में चोरों-गुंडों की तरह क्यों आए? दो घंटे तक झगड़ा चलता रहा। एक बच्चे को उठाकर गाड़ी में डाल दिये। हमलोगों ने कहा कि बच्चे को क्यों पकड़ रहे हैं। जब उसकी माँ अपने बच्चे को छुड़ाने गई तो उसकी पीठ पर डंडे मारे।’
वहाँ मौजूद उस बच्चे की माँ ने कहा कि ‘मैं क्या करती। मेरे बच्चे को ले जा रहे थे। जब मैं गई तो दोनों ओर से घेर लिया और डंडे से पीटा।’ वहाँ मौजूद महिलाओं के भीतर इतना गुस्सा भरा था कि एक अन्य महिला ने कहा कि ‘पुलिस को महिलाओं के ऊपर डंडा चलाने का तो अधिकार नहीं है। लेकिन उन्हें हमको मारा और तब हमने कहा कि हम भी चुप नहीं रहेंगी।’ नीलम कहती हैं कि ‘तब हमने भी वहीं रखा बाँस उठा लिया कि जब ये लोग मार पीट पर ही उतरे हैं तो हमको भी पीछे नहीं रहना चाहिए।’
मौके पर लिए गए एक वीडियो में पुलिस गालियाँ देती और डंडे चलाती दिख रहे है और महिलाएं प्रतिरोध में चीख रही हैं। एक महिला उषा ने बताया कि वे लोग कह रहे थे कि हवाई अड्डा तुम्हीं लोगों के लिए तो बन रहा है। अब आप बताइये कि हमारी स्थिति रेलगाड़ी में बैठने की है नहीं। हम हवाई जहाज़ में कैसे बैठेंगे?’
जमुआ हरिराम की इन औरतों की व्यथा कथा को समझने के लिए उनकी आर्थिक-सामाजिक संरचना को समझना बहुत जरूरी है। ये सभी महिलाएँ दलित खेतिहर मजदूर हैं और इनके पास बिस्वे-दो बिस्वे से अधिक ज़मीन नहीं है लेकिन यही ज़मीन इनका अस्तित्व और अस्मिता है। इस ज़मीन पर उनके घर हैं जहां बरसों से रहते हुये वे आस-पास के बड़े किसानों के खेतों में काम करके वे जीवन निर्वाह कर रही हैं। भारत के आम ग्रामीण इलाकों की तरह इस गाँव की इस बस्ती में भी अर्द्ध बेरोजगारी और असुविधापूर्ण जीवन पसरा हुआ है। इसके बावजूद ये लोग मेहनत-मशक्कत से जी रहे हैं। ऐसे में अगर उनका घर ही खतरे में पड़ जाय तो क्या होगा?
रात में सर्वे की बात सुनकर इस बस्ती में खलबली मचना स्वाभाविक था। इसलिए अधिकतर महिलाएं इसके विरोध में वहाँ पहुँचीं और बिना किसी सूचना के आधी रात में सर्वे को लेकर उन्होंने आपत्ति जताई। लेकिन सामंतवादी-ब्राह्मणवादी मानसिकता से ग्रस्त पुलिस वालों के लिए उनका विरोध असह्य था इसलिए उन्होंने उन महिलाओं को जातिसूचक गालियाँ दी।
एक सरकारी अफसर ने कहा कि ‘तुम लोग तो घाटी समोसा और चूड़ी-बिंदी पर बिक जाती हो। तुमको क्या पता विकास क्या होता है। मोदी जी तुम लोगों के लिए हवाई जहाज़ ला रहे हैं और तुम लोग कचरे में रहना चाहते हो।’
इस व्यंग्य को आप कैसे समझेंगे? वहाँ मौजूद महिलाओं के सामने यह सवाल और संदेह खड़ा हो चुका था कि अगर इस तरह से रात में नाप-जोख और सर्वे से उनके घर उजाड़ दिये जाएँगे। इसके विरोध में जब वे बोलीं तो पुलिसवाले इसलिए उन पर लाठियाँ लेकर टूट पड़े कि वे दलित-पिछड़ी महिलाएं हैं।
हर सवाल का झूठा और अपमानजनक जवाब देते सरकारी कर्मचारी
जमुआ हरिराम सहित हवाई अड्डा विस्तारीकरण में उजाड़े जानेवाले सात अन्य गाँवों की महिलाओं में इस बात को लेकर रोष है कि बिना किसी पूर्व सूचना के रात में सर्वे करने आए और इसके बारे में पूछने पर गालियाँ दी और पीटा।
जमुआ हरिराम गाँव की की सुनीता भारती ने बताया कि 11 अक्टूबर को दोपहर में एसडीएम और पुलिस फोर्स के लोग चार गाड़ियों और तीस दोपहिये पर सवार होकर उनके गाँव पहुंचे। अचानक इतनी गाड़ियों और पुलिस-फोर्स के साथ अपने क्षेत्र के लेखपाल यशपाल गौतम के हाथ में जमीन नापने का फीता देख देखकर सुनीता के मन में संदेह पैदा हुआ और उन्होंने यशपाल गौतम से पूछा कि इतने सारे लोग यहाँ क्यों आए हैं? इस पर यशपाल गौतम ने कहा कि हम लोग देखने आए हैं कि फसल ठीकठाक हुई है या नहीं। लेकिन नापने के फीते पर सवाल उठाने पर लेखपाल ने कहा कि ‘आप लोगों को हवाई जहाज में नहीं उड़ना है क्या?’
सुनीता ने कहा कि ‘हम लोगों को दो चक्के और चार चक्के में बैठना नसीब नहीं है तो हवाई जहाज की कौन सोचे?’ वहाँ मौजूद एक कर्मचारी ने पूछा कि तुम कौन हो। किस समाज की हो? सुनीता ने कहा मैं इस गाँव की हूँ। चमार हूँ। इतना सुनने के बाद लेखपाल ने तुरंत कहा कि तुम खाने-घूमने वाली लड़की हो चुप रहो। फिर सभी लोगों ने उन्हें जाति सूचक गालियां दीं और कहा कि चमार की बेटी हो, चुप रहो। उसके बाद उनके बुजुर्ग दादा, माँ, छोटे भाई और सुनीता को लाठियों से खूब मारते हुए गालियां दीं। इस घटना की जानकारी होते ही जब ग्राम प्रधान प्रतिनिधि मनोज यादव वहाँ पहुंचे। पुलिस वाले गाँव उनके साथ पाँच अन्य लड़कों को गिरफ्तार कर धमकी देते हुए चले गए कि रात को फिर आएंगे। हिम्मती सुनीता ने डटकर जवाब दिया। कहा, ‘आइए रात को। एक इंच जमीन नापने नहीं देंगे।’
महिलाओं ने बताया कि उन्हें सामान्य जानकारी देने में भी लेखपाल, तहसीलदार, कानूनगो आदि का रवैया न केवल गैरजिम्मेदारना था बल्कि हमारा मज़ाक उड़ानेवाला और अपमानित करने वाला था। ये लोग हर व्यक्ति से झूठ बोल रहे थे। गाँव की 62 वर्षीया फूलमती ने बताया कि ‘12 तारीख थी और शाम के चार बजे थे। गाँव में लेखपाल,कानूनगो, तहसीलदार,थानेदार को मिलाकर आठ लोग नहर पर नक्शा लेकर देख रहे थे। तभी मैं वहाँ पहुंचकर लेखपाल से पूछी क्या हो रहा है?’ लेखपाल ने कहा – चाची फसल देख रहे हैं। जिसकी फसल ठीक नहीं होगी उसे मोदी पैसा देंगे। अपने गाँव में सबको आधार कार्ड और पासबुक लेकर भेजना।’ आगे उन्होंने कहा कि ‘मैंने यह बात दूसरे गाँव में रहनेवाले अपने देवर को बताई। देवर भी घबरा गया और उसने कहा हमारे गाँव में भी ये लोग जा रहे हैं।’ सभी को यह तो समझ में आ गया कि उनकी जमीनें अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट के लिए ली जाने वाली हैं जिसके लिए यह सर्वे कराया जा रहा है। सबके मन बेचैन हो उठे कि आने वाले दिनों में गाँव वालों को विस्थापित कर दिया जाएगा।
फूलमती ने कहा कि ‘मेरे देवर ने बीसियों बार लेखपाल को फोन लगाया। उसने बामुश्किल एक बार उठाया और कहा रात में 8 बजे फोन करता हूँ। लेकिन रात नौ बजे तक फोन नहीं आया।उसी बीच रात में 8-10 मोटरसाइकिल पर पुलिस वाले बार-बार आ-जा रहे थे।’ फूलमती कहती हैं –‘ मुझे समझ में नहीं आया कि गाँव में कोई भी लड़ाई-झगड़ा नहीं हुआ तब फिर इतनी पुलिस क्यों आ रही है? थोड़ी देर में दसियों गाड़ियों में महिला पुलिस, पीएसी, थाने की पुलिस पहुँच गई और जमीन नापने लगे।’
फूलमती के देवर ने एसडीएम से हाथ जोड़ कर कहा कि ‘हम गाँव वालों को एयरपोर्ट नहीं चाहिए। हमारी ज़मीनें जो हमारे पुरखों की है उसे रहने दीजिए।’ लेकिन उन्होंने एक नहीं सुनी, बल्कि पुलिस वालों ने वहाँ खड़ी लड़कियों और बहुओं को उनके रंग-रूप और शरीर को देखते हुए अश्लील टिप्पणियां की। उन्हें घाटी समोसा (स्थानीय भाषा की एक गाली) और बिंदी-टिकुली देकर पटा लेने की बात कह अपमानित किया। गालियाँ देने पर आपत्ति जताने पर फूलमती को पैरों में डंडे से मारते हुए धान के ढेर पर धक्का देकर गिरा दिया।’ अपने हाथ पैरों की चोट दिखाते हुये फूलमती का अभी भी यही कहना है कि ‘अपना घर-द्वार हम नहीं देंगे, हमें एयरपोर्ट नहीं चाहिए।’
दुबली-पतली 55 वर्षीय ज्ञानमती विधवा हैं। तीन बेटियों और दो बेटों की माँ ज्ञानमती ने रूँधे गले से बताया कि ‘गरीबी इतनी है कि शाम को कभी चूल्हा जलता है और कभी नहीं। इतना खाना नहीं जुट पाता कि पेट भर सके। उन्होंने आँखें फैलाकर और हाथ की उंगलियाँ दिखाते हुये बताया कि छः लाख का कर्जा है…. छः लाख का। पति को कैंसर था। मुंबई में छः माह तक इलाज के लिए भर्ती रहे लेकिन वे तो नहीं बच पाए पर छः लाख का कर्जा हो गया। खाने का ठिकाना नहीं है, ऐसे में कैसे चुकेगा कर्जा?’ इस बात को लेकर वे बहुत दुखी, परेशान और घबराई हुईं दिखीं। मैंने उनसे पूछा कि ‘12 अक्टूबर को क्या हुआ था?’ इतना पूछना था कि उन्होंने भरभराई आवाज़ में बताया कि ‘उस दिन जमीन की नपाई के लिए सरकारी आदमी सुबह दस बजे यहाँ आए। मैंने नपाई के लिए मना किया लेकिन वे लोग अनसुनी कर जबरदस्ती फीता निकालकर जमीन नापने लगे। मैंने फीता खींचकर हटाया। इसी बात पर उन लोगों ने मुझपर डंडे बरसाए। हाथ और पैर में बहुत चोट आई। पंजे के ऊपर टखने में आई चोट इतनी अधिक थी कि चल नहीं पा रही थी। हाथ के पंजे में पुलिस का डंडा लगने से ऐसी चोट आई कि खून बहने लगा।’
चलने में दिक्कत होने के कारण वे आज भी काम पर जाने में असमर्थ हैं। मजदूरी और लोगों की मदद से अपना जीवन मुश्किल से गुजार रही ज्ञानमतीकहते हुए की आँखें भरभरा आईं। अपने बड़े-बूढ़ों को याद करते हुए उन्होंने कहा कि ‘हम अपनी जमीन नहीं देंगे। सरकार जमीन ले लेगी तो हम कहाँ जाएंगे?’
ज़मीन की लूट और मुआवजे के खेल में लगे सेठ-साहूकार और अधिकारी-कर्मचारी
प्रतिरोध का यह जज़्बा अपने आप में अनूठा है
सावित्री, उषा, नीलम, श्याम दुलारी, सुधा और पुष्पा सभी के अनुभव ऐसे ही हैं। लेकिन ये महिलाएँ मार खाकर, गाली सुनकर और अपमानित होकर चुप नहीं बैठी हैं। वे सवाल उठा रही हैं कि हमारे पास नियमित मजदूरी नहीं है। वे अब रात में मुंह छिपाकर कायरों की तरह गाँव में आकर पैमाइश करनेवाले अफसरों और उनके इशारे पर गालियां देने और निहत्थी महिलाओं पर डंडे चलानेवाली बर्बर पुलिस और सरकार के खिलाफ तनकर खड़ी हैं। वे झूठे सपने दिखानेवाली और किसानों-मजदूरों को उजाड़कर पूँजीपतियों की तिजोरी भरनेवाली सरकार के किसी झाँसे में नहीं आने वाली हैं।
स्कूल के पास टेंट लगाकर बनाए गए धरना स्थल पर जुटते हुये महिलाओं का हुजूम प्रतिरोध की एक नई इबारत लिख रहा है। हर घर से आती हुई महिला के हाथ में अपने हाथ से बनी और लिखी तख्तियाँ थीं। जिस पर अपनी ‘जमीन और खेत-खलिहान न देने’ के नारे लिखे हुए थे। हर दिशा से चार-चार, पाँच-पाँच के समूह में आती हुईं महिलाएं दिख रही थीं। साथ में हर उम्र के बच्चे भी थे जो अक्सर इस तरह के आयोजन को अपने खेल की जगह समझ दौड़ते-भागते आते-जाते दिखते हैं, जिन्हें आंदोलन की समझ लगभग नहीं होगी, लेकिन आज के ये बच्चे समूह द्वारा लगाए जा रहे नारों में अपना-पूरा दमखम लगा रहे थे।
उनमें आंदोलन की समझ भले न हो लेकिन उनकी अपनी ज़मीनें सरकार द्वारा हड़प लिए जाने की बात उन्हें पता है। हमसे मिलने के बाद सभी ने कहा कि ‘चलिए मैडम जी आंदोलन वाली जगह पर आपसे मुलाकात होगी।’
इस बीच सभी अपने घर, खेत-बाड़ी के जरूरी काम निपटा रहे थे, क्योंकि हर कोई आंदोलन का प्रत्यक्ष हिस्सा बनना चाह रहा था। सभी में आंदोलन स्थल पर जाने और अपने अधिकार के लिए आवाज बुलंद करने का उत्साह तो था लेकिन सरकार द्वारा अपनी जमीन अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा के विस्तार में जाने की गहरी पीड़ा भी थी। लेकिन आँखों में ज़मीन नहीं देने की दृढ़ता और गतिविधियों में जुनून दिख रहा था।
महिला पंचायत शुरू होने में अब कुछ ही देर है!