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मेरी लड़ाई जनता की लड़ाई है

आज से 8 साल पहले की बात है जब मैंने फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हार्ट इंस्टिट्यूट नई दिल्ली को छोड़कर बीएचयू, वाराणसी में आकर काम करने का निर्णय किया था। तब मेरे शुभचिंतकों और मित्रों का कहना था कि मैं अपनी जिंदगी का सबसे गलत निर्णय ले रहा हूँ। यहाँ आने के बाद मुझे महसूस हुआ कि […]

आज से 8 साल पहले की बात है जब मैंने फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हार्ट इंस्टिट्यूट नई दिल्ली को छोड़कर बीएचयू, वाराणसी में आकर काम करने का निर्णय किया था। तब मेरे शुभचिंतकों और मित्रों का कहना था कि मैं अपनी जिंदगी का सबसे गलत निर्णय ले रहा हूँ। यहाँ आने के बाद मुझे महसूस हुआ कि वे क्या कहना चाह रहे थे? उनके कहने का मतलब शायद यह था कि मैं काँटों भरा ताज पहनने जा रहा हूँ। एक शुभचिंतक होने के नजरिये से उनकी चिंता जायज थी, परंतु अपने छोटे से जीवनकाल में मैंने सीधे-साधे रास्ते पर चलने की कभी कोशिश भी नहीं की है, क्योंकि मेरी माँ मुझसे हमेशा कहा करती थीं ‘बेटा काँटों में ही गुलाब खिलते हैं’।

हृदय रोग विभाग किसी भी संस्थान के हृदय के रूप में जाना जाता है, जिससे उस संस्थान का मान-सम्मान और वैभव सीधे-सीधे जुड़ा होता है। बड़े दुःख की बात थी कि बीएचयू, वाराणसी भारतवर्ष के सबसे पुराने (100 साल) विश्वविद्यालय में से एक होने के बावजूद इस संस्थान के हृदय के रूप में परिलक्षित हृदय विभाग में 2011 तक एंजियोप्लास्टी जैसी मूलभूत सुविधाएँ उपलब्ध नहीं थी। जिससे पूरे देश में इसकी साख लगातार नीचे गिर रही थी।

ऐसे समय में मैंने यहाँ अकेले दम पर प्रशासन के विरूद्ध लड़कर 100 साल में पहली एंजियोप्लास्टी से लेकर Bifurcation एंजियोप्लास्टी, LMCA एंजियोप्लास्टी तक का सफ़र तय किया और फिर CTO एंजियोप्लास्टी से लेकर पेसमेकर और बच्चों के दिलों के छेद को बंद करने तक का सफ़र मात्र 100 दिनों में पूरा कर दिया था, जिनकी वजह से आजतक हज़ारों जरूरतमंद और गरीब लोगों की जानें बचाई जा चुकी हैं। मेरे द्वारा बीएचयू में एंजियोप्लास्टी शुरू करने का ही नतीजा है कि आज न सिर्फ पूर्वांचल में कई निजी संस्थानों में भी एंजियोप्लास्टी की शुरूआत हो पायी, बल्कि पटना से भी एंजियोप्लास्टी के लिए लोगों का दिल्ली पलायन रुक गया। आज 5 साल के अंदर ही पूर्वांचल में लगभग 10 पैथलैब दिन-रात लोगों की निरंतर सेवाओं के लिए उपलब्ध हैं ।

[bs-quote quote=”आज भी काशी में गरीबों के लिए ‘एम्स की स्थापना’ तथा पूरे देश की जनता के लिए ‘स्वास्थ के अधिकार’ की मेरी जंग जारी है जिसे प्रधानमंत्री महोदय ने कभी गम्भीरता से नहीं लिया और उल्टे BHU को एम्स जैसे संस्थानों में विकसित करने का नारा देकर उसके एक भाग का निजीकरण कर दिया, जिसका बदला इस चुनाव में उनसे लिया जाना चाहिए! इसलिए पुनः एक बार हमलोगों के पास नए सिरे से बृहद क्रांति के आगाज़ के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

 

मेरे इन मानवीय कार्यों के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन ने मुझे उपहारस्वरुप न सिर्फ 14 महीने का बनवास (निलंबन) दिया, बल्कि अमानवीयता और दानवता की सारी हदें भी तोड़ डाली। मेरे साथ ऐसा-ऐसा अमानवीय व्यवहार किया गया जैसा हमारा कानून किसी आतंकवादी के साथ भी करने की इजाजत नहीं देता। यही नहीं मेरे निर्दोष होने के बावजूद प्रशासन ने जिस तरह मेरे विरुद्ध सामंती सोच से प्रेरित होकर (मुझे निचा दिखाने के लिए) कारवाही करने का गैरकानूनी और भेदभावपूर्ण निर्णय लिया, वह घोर निंदनीय होने के साथ-साथ अपराध की श्रेणी में भी आता है जो महामना की इस बगिया के काले अध्याय के तौर पर हमेशा ही दर्ज रहेगा। इन्हीं वजहों से मेरे प्रमोशन को भी रोका गया!

बीएचयू, प्रशासन द्वारा मुझे दी गयी सामाजिक, पारिवारिक, मानसिक तथा आर्थिक यातनाओं की जितनी भी निंदा की जाये वह बहुत ही कम है, लेकिन फिर भी मैंने कभी (बिना विचलित हुए) पीछे मुड़कर नहीं देखा। इस देश और पूर्वांचल की करोड़ों गरीब जनता को दी गयी मेरी ये छोटी सी भेंट, मेरे ऊपर बीएचयू प्रशासन द्वारा ढाये गए हज़ारों अमानवीय जुल्मों की अपेक्षा, कई गुना ज्यादा सुखदायी है।

आज भी काशी में गरीबों के लिए ‘एम्स की स्थापना’ तथा पूरे देश की जनता के लिए ‘स्वास्थ के अधिकार’ की मेरी जंग जारी है जिसे प्रधानमंत्री महोदय ने कभी गम्भीरता से नहीं लिया और उल्टे BHU को एम्स जैसे संस्थानों में विकसित करने का नारा देकर उसके एक भाग का निजीकरण कर दिया, जिसका बदला इस चुनाव में उनसे लिया जाना चाहिए! इसलिए पुनः एक बार हमलोगों के पास नए सिरे से बृहद क्रांति के आगाज़ के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है।

डॉ. ओमशंकर

डॉ. ओमशंकर सर सुन्दरलाल अस्पताल के मशहूर हृदय रोग विशेषज्ञ और सामाजिक कार्यकर्ता हैं।

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