मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव कॉमरेड सीताराम येचुरी का फेफड़ों की बीमारी से 72 साल की उम्र में कल निधन हो गया। यह मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के लिए बहुत बड़ी क्षति है। न सिर्फ पार्टी के लिए बल्कि पूरे देश की सर्वहारा राजनीति के भी यह बहुत बड़ा नुकसान है। इसके साथ ही एक महत्वपूर्ण बात यह है कि पिछले एक दशक से सेक्युलरिज्म जिस संकट के दौर से गुजर रहा है वह भी सीताराम येचुरी के जाने से कुछ और संकट में पड़ा है। हम सभी जानते हैं कि सेक्युलरिज़्म को बचाने के लिए चल रही लड़ाई में जिन राजनीतिक नेताओं की भूमिका रेखांकित करने योग्य है उनमें सीताराम येचुरी की बहुत महत्वपूर्ण जगह है। अभी देश की राजनीति को उनकी जरूरत थी लेकिन इस तरह कल चले जाने से सिर्फ वामपंथी आंदोलन का ही संपूर्ण देश के जनतांत्रिक, परिवर्तनशील, धर्मनिरपेक्ष तथा समतामूलक समाज बनाने की लड़ाई का बहुत बड़ा नुकसान हुआ है।
कॉमरेड सीताराम येचुरी अपने दौर के तेज और बुद्धिमान विद्यार्थी थे। उन्होंने जेएनयू में अर्थशास्त्र में बी ए और एम ए में मेरिट में कामयाबी हासिल की थी। पढ़ाई के साथ-साथ 70-80 के दशक के विद्यार्थियों के आंदोलन में नेतृत्व में भी उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। वह शुरू से ही मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के छात्र संगठन स्टूडेंट्स फेडरेशन के साथ जुड़े हुए थे। जेएनयू के विद्यार्थियों के नेता के रूप में दो बार जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष चुने गए थे।
सीताराम येचुरी ने विद्यार्थियों के नेता के साथ अपनी पढ़ाई को भी बराबर का महत्व दिया जिसकी वजह से वह अर्थशास्त्र जैसे कठिन विषय में ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन की परीक्षाओं में मेरिट में आए। 70-80 का दशक विद्यार्थियों के आंदोलन का दशक था। इस कारण सीताराम मेरिट में पास होने के बावजूद अपने व्यक्तिगत करियर को छोड़कर पार्टी के विद्यार्थी संगठन के कामों में जुट गए। इसलिए उन्हें दो बार स्टूडेंट फेडरेशन का अध्यक्ष चुना गया था। फिलहाल पिछले नौ वर्षों से लगातार मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव पद पर निर्विरोध बने रहे।
भारत के दक्षिणी राज्य प्रदेश आंध्र प्रदेश में जन्मे, लेकिन जेएनयू में पढ़ने की वजह से वह बहुत ही अच्छी हिंदी बोलते थे। अंग्रेजी में तो उनको महारत हासिल थी ही। भारत जैसे देश में राजनीतिक-सामाजिक क्षेत्र में काम करने के लिए किसी भी एक्टिविस्ट को अंग्रेजी और हिंदी का बेहतर ज्ञान होने से काम करने में काफी सुविधा होती है। इसलिए सीताराम येचुरी टी वी कार्यक्रमों से लेकर अखबारों में तथा पत्रिकाओं में लेख लिखने का काम अंग्रेजी तथा हिंदी में अच्छे से करते थे।
उनकी सबसे बड़ी खूबी यह थी कि वह आम बुद्धिजीवियों की तरह नीरस और घमंडी बिलकुल नही थे। सही मायने में सर्वहारा वर्ग के नेता की तरह बहुत ही विनम्र और सभी के साथ बराबरी से बातचीत करने वाले दुर्लभ कम्युनिस्ट नेता थे। अन्यथा उनसे पहले के मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव बेहद रुखे, नीरस और घमंडी रहे हैं। उनके मुक़ाबले सीताराम येचुरी बहुत ही विनम्र और मिलनसार थे।
अपने व्यक्तिगत अनुभवों से मैंने पाया कि वह और भी कई मायनों में विलक्षण थे। वे बहुत लोकतान्त्रिक व्यवहार वाले व्यक्ति और नेता था। सबको बोलने का मौका देते थे। राष्ट्र सेवा दल का दिल्ली कार्यालय विठ्ठलभाई पटेल हाउस के अहाते में है जहां कई इमारतों का कांप्लेक्स है। उसमें एक 13 नंबर की इमारत है। राष्ट्र सेवा दल का कार्यालय और सीताराम येचुरी का निवास स्थान उसी बिल्डिंग में था। इसलिए हम लोग अक्सर एक दूसरे से मिलते रहते थे।
फिलहाल हिन्दू फासीवाद का रूप ले चुकी सांप्रदायिकता के सवाल पर हम दोनों अस्सी के दशक से ही बहुत चिंतित थे। उन्होंने तभी आरएसएस के बढ़ते हुए खतरे के बारे में चिंता जताई थी और कहा था कि इसके मुकाबले हमारे लेफ्टिस्ट लोगो का कोई भी संगठन नहीं है। तब मैंने कहा कि ‘यह जो राष्ट्र सेवा दल का बोर्ड आप देख रहे हैं। यह महाराष्ट्र में संघ के खिलाफ जनमानस तैयार करने के लिए ही शुरू किया गया संगठन है, जिसमें से मधु लिमए, मधु दंडवते, मृणाल गोरे, प्रमिला दंडवते, बैरिस्टर नाथ पै, हमीद दलवई, मैं, मेधा पाटकर, स्मिता पाटील जैसे लोग बचपन से ही शामिल हुये थे और सबने इसमें बहुत काम किया। इसी वजह से हम लोग आज भी यह काम कर रहे हैं।
उन्होंने मुझे मुसकराकर देखा और फिर राष्ट्र सेवा दल के बारे में काफी देर तक बातचीत करते रहे। मुझे लेफ्टिस्ट लोगों में वह पहले नेता मिले जिनकी समझ में राष्ट्र सेवा दल का महत्व आया और उन्होंने कहा कि यह संगठन सचमुच ही संघ के खिलाफ एक महत्वपूर्ण मंच बन सकता है। महासचिव बनने के बाद वह और राष्ट्र सेवा दल का अध्यक्ष बनने के बाद मैं भी इस पहल के लिए कुछ करना चाहते थे। उन्होंने बाकायदा दिल्ली के सीपीएम मुख्यालय एके गोपालन भवन में कुछ साथियों के साथ एक बैठक आयोजित की थी और जब मैंने वहाँ राष्ट्र सेवा दल के बारे में बताया तो उपस्थित लोगों में से सबसे सकारात्मक प्रतिसाद सिर्फ सीताराम येचुरी का ही मिला था।
लेकिन दो साल के बाद सेवा दल के अध्यक्ष पद से मेरे हटने के बाद वह प्रक्रिया ठप्प हो गई, अन्यथा सीताराम येचुरी ने कहा था कि ‘हम लोग भारत की सभी सेक्युलर पार्टियों के नेताओं की एक बैठक बुला कर संघ के खिलाफ एक विकल्प के रूप में राष्ट्र सेवा दल के काम को अंजाम देने के लिए कोशिश करेंगे।’ लेकिन सब कुछ आधा-अधूरा ही रह गया।
भारत की वर्तमान सांप्रदायिक समस्या के ऊपर सीताराम येचुरी ने दो किताबें भी लिखी है। वह चाहते थे कि भाजपा के खिलाफ सभी सेक्युलर विचारों के राजनितिक दल तथा संगठनों को मिलकर साझा मोर्चा बनाना चाहिए। इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने अपने तरफ से पूरी कोशिश की थी। इसका नतीजा इंडिया गठबंधन के निर्माण के रूप में हुआ था। कांग्रेस के बड़ी पार्टी होने की वजह से सबसे ज्यादा राहुल गांधी का नाम आता रहता है, लेकिन मेरे हिसाब से सीताराम येचुरी इस मुद्दे पर राहुल गांधी के आने के काफी पहले से ही और लगातार काम कर रहे थे।
इन्हीं कारणों से वर्तमान समय में सीताराम येचुरी जैसी सूझबूझ और प्रतिबद्धता वाले लोगों की सबसे अधिक आवश्यकता है। ऐसे समय में उनकी मृत्यु मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव के रूप में पार्टी के लिए तो बहुत नुकसानदेह है ही, पर भाजपा के खिलाफ राजनीतिक विकल्प के लिए दिलोजान से मेहनत करने वाले लोगों ने भी अपना बहुत ही महत्वपूर्ण नेता खो दिया है।
कॉमरेड सीताराम येचुरी को मेरा क्रांतिकारी अभिवादन।