‘मुमताज अब तीन साल की है, यास्मीन चार साल की और इम्तियाज तथा नियाज पांच और सात साल के हैं। मैं अपने बच्चों से बहुत प्यार करता हूं। इसलिए एक मां की तरह उनका ख्याल रखता हूं। हालांकि उनकी मां अभी जीवित है, लेकिन वह बच्चों की परवरिश करने की स्थिति में नहीं है। दिन भर बच्चे अपनी मां के सामने मिट्टी में खेलते रहते हैं। लेकिन वह एक मां का कर्तव्य पूरा करने में असमर्थ है। इसलिए मैं ही इन बच्चों का पिता हूं और मैं ही मां भी हूं। गुलाम मुहम्मद तीन साल की मुमताज को गोद में लेकर एक बार फिर बच्चों की देखभाल करते हुए कहते हैं, ‘मैं घर का काम करने के बाद सुबह-सुबह काम पर निकल जाता हूं। बच्चे दिन भर असहाय रहते हैं। काम के दौरान भी मुझे इनकी चिंता रहती है। लेकिन अगर मैं काम पर नहीं जाऊंगा, तो बच्चों को कैसे खिलाऊंगा?’
जम्मू-कश्मीर के सीमावर्ती जिला पुंछ के दर्रा दलियां गांव के निवासी 40 वर्षीय गुलाम मुहम्मद दैनिक मजदूर हैं। वह मिट्टी के एक कच्चे घर में अपनी पत्नी परवीन अख्तर और चार बच्चों के साथ रहते हैं। उनकी शादी लगभग सोलह साल पहले परवीन के साथ हुई थी। शादी के बाद काफी समय तक उनकी कोई संतान नहीं हुई। फिर जब उनके घर बेटी का जन्म हुआ तो उनके जीवन में खुशियां लौट आई। लेकिन ये ख़ुशी ज़्यादा दिनों तक टिक नहीं पाई। ग़ुलाम मुहम्मद कहते हैं कि कुछ समय बाद उनकी बेटी की अचानक मौत हो गई। जिसका सदमा उनकी पत्नी परवीन बर्दाश्त नहीं कर पाईं और अपना मानसिक संतुलन खो बैठी। हालाँकि उसके बाद उनके चार बच्चे भी पैदा हुए, लेकिन परवीन अख्तर आज तक इस सदमे से उबर नहीं पाई है। मानसिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण वह अपने बच्चों की उचित रूप से देखभाल करने में असमर्थ हैं।
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गुलाम मुहम्मद कहते हैं कि मैंने पत्नी के इलाज में कोई कमी नहीं छोड़ी। अपनी हैसियत से बढ़कर अच्छे डॉक्टर और बड़े अस्पताल में इलाज कराया। जिसमें अब तक बारह लाख रुपये खर्च हो चुके हैं। लेकिन कोई फायदा नहीं मिल सका। इलाज के लिए उन्हें सरकार या प्रशासन से कोई मदद नहीं मिली है। वह कहते हैं, ‘मैं इस बात से हैरान हूं कि इतना पैसा खर्च करने के बाद भी मुझे अपनी पत्नी की सेहत में कोई सुधार क्यों नहीं दिख रहा है? लेकिन मैंने अभी भी हार नहीं मानी है। मैं अभी भी उसे वापस पाने की कोशिश कर रहा हूं।’
इस संबंध में गुलाम मुहम्मद के पड़ोस में रहने वाली 35 वर्षीय परवीन बीबी कहती हैं कि ‘पहले गुलाम मुहम्मद की पत्नी पूरी तरह से स्वस्थ और मानसिक रूप से ठीक थी। वह घर को बहुत अच्छे से संभालती थी। दोनों पति-पत्नी सुखी जीवन जी रहे थे। लेकिन बेटी की अचानक मृत्यु के बाद उनका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा। जिसके कारण उनका मानसिक संतुलन ठीक नहीं रह सका। मैं अक्सर उनके घर के कामों में मदद कर देती हूं।’ परवीन का कहना है कि गुलाम मुहम्मद अपनी पत्नी की खराब सेहत के कारण उन्हें कोई काम करने नहीं देते हैं और खुद बच्चों की देखभाल करते हैं।
अफसाना और फरजाना दोनों बहनें भी गुलाम मुहम्मद के पड़ोस में रहती हैं। वे दोनों अक्सर उनकी अनुपस्थिति में उनके बच्चों को अपने घर बुला लेती हैं और उन्हें खाने पीने की चीजें देती रहती हैं। वह इन बच्चों के मनोरंजन के लिए घर में कुछ मिठाइयां रखती हैं। दोनों बहनें इन चारों असहाय बच्चों की देखभाल करती हैं। वह बताती हैं कि जब गुलाम मुहम्मद स्वयं घर पर होते हैं तो खुद से अपने बच्चों की देखभाल करते हैं। वह उनके लिए भोजन पकाते हैं और अन्य जरूरतों का ख्याल रखते हैं।
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एक अन्य पड़ोसी 65 वर्षीय सादिक हुसैन शाह बताते हैं कि ‘गुलाम मुहम्मद अपनी पत्नी और बच्चों की बहुत अच्छी देखभाल करते हैं। उनकी पत्नी कई सालों से बीमार हैं। उन्होंने अपनी पत्नी के इलाज में कोई कमी नहीं छोड़ी है। जहां भी किसी ने उसे किसी अच्छे डॉक्टर का पता बताया, वह इलाज के लिए ले गया, लेकिन अब तक कोई सुधार नहीं हुआ है। सादिक हुसैन बताते हैं कि वह अपनी पत्नी के इलाज के लिए कड़ी मेहनत करते हैं। पिछले कई सालों से उन्होंने एक दिन की भी मजदूरी नहीं छोड़ी है। जरूरत पड़ने पर सभी पड़ोसी मिलकर उनकी आर्थिक मदद करते हैं। यदि प्रशासन से उन्हें किसी योजना के अंतर्गत लाभ मिल जाता तो उनकी आर्थिक समस्या दूर हो सकती है।
वह बताते हैं कि गुलाम मुहम्मद अपने बीमार जीवनसाथी के प्रति बहुत दयालु हैं। वह अपने बच्चों की अच्छी देखभाल करते हैं, उनके लिए खुद से खाना बनाते हैं, नहलाते हैं और उनके जीवन के हर पहलू का ख्याल रखते हैं। उनकी पत्नी परवीन अख्तर बीमारी के कारण बच्चों की देखभाल नहीं कर पा रही हैं। लेकिन दोनों पति-पत्नी हर हाल में जीने की कोशिश कर रहे हैं। पड़ोसी भी उनकी जिंदगी की मिसाल देते हैं। गुलाम मुहम्मद ने अपनी पत्नी के इलाज पर लाखों रुपये खर्च किए लेकिन नतीजा अब तक शून्य है। इसके बावजूद उन्हें उम्मीद है कि एक दिन उनकी पत्नी अवश्य ठीक हो जाएंगी और अपने बच्चों की देखभाल खुद कर सकेगी।
वास्तव में, एक गरीब मजदूर गुलाम मुहम्मद का अपने जीवनसाथी के प्रति यह भावना समाज के लिए एक बड़ी मिसाल है। एक तरफ जहां एक महिला को अक्सर दर्द या बीमारी के कारण अकेले ही तमाम तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है वहीं दूसरी तरफ उसी समाज में गुलाम मुहम्मद जैसे लोग भी हैं, जो अपने बीमार जीवनसाथी की देखभाल और चार बच्चों का पालन-पोषण करते हुए किसी भी स्थिति में जीने का साहस रखते हैं। हालांकि सरकार की ओर से गरीबों के इलाज के लिए आयुष्मान जैसी कई योजनाएं चलाई जा रही हैं। लेकिन गुलाम मुहम्मद जैसे लोग इसका लाभ उठाने से वंचित हैं। ऐसे में अगर प्रशासनिक स्तर पर उन्हें मदद मिले तो निश्चित रूप से उनके दिल का वह सपना जिसमें वह अपने जीवनसाथी के स्वस्थ्य होने की उम्मीद कर रहे हैं, एक दिन पूरा हो सकता है। (सौजन्य से चरखा फीचर)