Tuesday, December 3, 2024
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पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

अपर्णा

अपर्णा गाँव के लोग की संस्थापक और कार्यकारी संपादक हैं।

सामाजिक संवाद की कड़ियाँ टूटने से अकेले पड़ते जा रहे हैं बुजुर्ग

औसत उम्र में वृद्धि होने के बाद देश में बुजुर्गों की संख्या में वृद्धि हुई है। लेकिन सामाजिकता में लगातार कमी आई है, जिसकी वजह से बुजुर्गों में अकेलेपन की समस्या बढ़ गई है। इस बढ़ती हुई समस्या के लिए  विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सामाजिक संपर्क के लिए एक आयोग की स्थापना तीन वर्षों के लिए की है। स्वास्थ्य संगठन की चिंता वाजिब है लेकिन सवाल यह उठता है कि इस तरह की सामाजिकता  से क्या हल निकल पायेगा या यह केवल खानापूर्ति ही साबित होगा।

भदोही में आबादी की ज़मीन का मामला : एक व्यक्ति की हत्या हुई और हमलावर खुलेआम घूम रहे हैं

भदोही जिले के सराय होला गाँव में आबादी की ज़मीन के झगड़े में विरोधियों की जानलेवा पिटाई से एक व्यक्ति की मृत्यु हो चुकी है लेकिन उसके परिजनों को इसकी एफआईआर लिखवाने में नाकों चने चबाना पड़ा। मौत के छह दिन बाद एसपी ऑफिस में गुहार लगाने के बाद ही एफआईआर दर्ज़ हो पायी। योगी आदित्यनाथ की पुलिस की कार्यशैली के ऐसे अद्भुत नमूनों के कारण ही हमलावर न केवल खुले घूम रहे हैं बल्कि अपने विरोधियों को औकात में ला देने का दावा भी ठोंक रहे हैं। भदोही से लौटकर अपर्णा की रिपोर्ट।

मनरेगा की अकथकथा : गाँवों में मशीनों से काम और भ्रष्ट स्थानीय तंत्र ने रोज़गार गारंटी का बंटाढार किया

मनरेगा की शुरुआत सौ दिन की मजदूरी के गारंटी के साथ हुई थी लेकिन बीस वर्ष भी नहीं बीते कि अब यह योजना मजदूर विरोधी गतिविधियों में तब्दील हो गई। गाँव में ज्यादातर काम मशीनों से कराया जा रहा है, जिसके बाद मस्टर रोल में नाम मजदूरों के चढ़ाए जा रहे हैं और उनसे अंगूठा लगवाकर मजदूरी प्रधान और रोजगार सेवक हड़प रहे हैं। इस तरह मजदूरों को काम से वंचित किया जा रहा है। हमने वाराणसी के कपसेठी ब्लाक के नवादा नट बस्ती में पता किया, जिसमें यह बात सामने आई कि वर्ष भर में मुश्किल से उन्हें 10 दिन ही काम मिलता है और मजदूरी आने में महीनों लग जाते हैं। इस तरह देखा जाए तो मजदूरों के लिए मनरेगा दु:स्वप्न बनकर रह गया है। नवादा नट बस्ती से लौटकर अपर्णा की रिपोर्ट

खबर का असर : वाराणसी के सजोई गाँव की आंगनवाड़ी केंद्र की कार्यकर्ता समय से आने लगी

वाराणसी के हरहुआ ब्लाक के सजोई गाँव में मुसहर बस्ती में चलने वाले आंगनवाड़ी केंद्र की शिकायत हमारी रिपोर्ट में मुसहर समुदाय के लोगों ने की थी । इस आंगनवाडी केंद्र की संचालिका द्वारा समय से आंगनवाडी केंद्र न खोले जाने की बात कही थी । दिनांक 26 अगस्त को गाँव के लोग यूटयूब चैनल में अपर्णा ने आंगनवाडी कार्यकर्ता पुष्पा राजभर की गाँव वाले व बच्चों के प्रति की जा रही लापरवाही प्रमुखता से उठाया था, इस खबर का असर यह हुआ कि सितम्बर से संचालिका ने आगंवादी केंद्र समय पर खोल अपने काम को सही तरीके से कर रही हैं ।

रोज़गार और निवाले के संकट से जूझता वाराणसी का मुसहर समुदाय

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र होने के कारण वाराणसी हमेशा चर्चा में रहता है क्योंकि अक्सर यहाँ से हजारों करोड़ की विकास परियोजनाएं लांच की जाती हैं लेकिन ये योजनाएं भरे पेट वालों का राजनीतिक गान भर हैं। वास्तविकता यह है कि हाशिये पर रहनेवाले समाजों के लिए इनका अर्थ एक जुमला भर है। वाराणसी समेत पूर्वांचल की बहुत बड़ी आबादी अपने रोजगार से हाथ धोती जा रही है। आंकड़ों के अनुसार उत्तर प्रदेश में गरीबी रेखा से नीचे रहनेवाले सवा चार करोड़ लोग हैं। अर्थात उत्तर प्रदेश का हर पाँचवाँ व्यक्ति गरीबी रेखा के नीचे है। न उसके पास रोजगार है, न जमीन है, न शिक्षा और न ही अच्छा स्वास्थ्य है। वह आजीविका कमाना चाहता है लेकिन गांवों तक मशीनों से काम होने लगा है और इस प्रकार उनका रोजगार हमेशा के लिए छिन गया है। वाराणसी जिले के हरहुआ ब्लॉक के चक्का गाँव में रहनेवाले मुसहर समुदाय के सामने आज रोजगार और निवाले की गंभीर समस्या खड़ी है। उनकी ज़मीनों पर दबंगों का कब्ज़ा है। उनकी अनेक बुनियादी समस्याएं हैं। चक्का गाँव से अपर्णा की यह रिपोर्ट।

मिर्ज़ापुर : ढोलक बनानेवाले परिवार अच्छे दिनों के इंतज़ार में हैं

मिर्ज़ापुर के चुनार कस्बे में ढोलक बनानेवाले तीन परिवार बताते हैं कि हमारी दाल-रोटी चल जाती है लेकिन पहले वाली बात इसमें नहीं रही। इसलिए नई पीढ़ी के बच्चे अब इस काम में कोई दिलचस्पी नहीं रखते और दूसरे काम करते हैं। सामान्य आमदनी के चलते इनमें शिक्षा के प्रति ललक भी नहीं पैदा हुई इसलिए ज़्यादातर कारीगरी से विमुख हो मजदूरी की ओर जा रहे हैं।

संकट में वाराणसी के पटरी व्यवसायी : पुलिस उत्पीड़न के खिलाफ अनिश्चितकालीन धरना

यह सरकार शुरू से ही श्रमशील समाज को उजाड़ने और पूँजीपतियों को आगे बढ़ाने का काम कर रही है। जिस शहर ने मोदी पर विश्वास जताकर तीसरी बार सांसद बनाया, अब वहाँ कोई छोटा काम कर कमा नहीं सकता क्योंकि उनकी प्राथमिकता में आम जनता का रोजगार नहीं बल्कि शहर की सुंदरता है। पिछले दस वर्षों में एक-एक कर शहर की विरासत को खत्म किया। अब सर सुंदरलाल अस्पताल की दीवाल से लगी छोटी-छोटी गुमटियां चलाने वालों को वहां से हटाया जा रहा है। सवाल यह उठता है कि फिर इन पटरी व्यवसायियों का सर्वेक्षण कर रजिस्टर्ड करते हुये वहाँ रोजगार करने की स्वीकृति क्यों दी गई? फिर इन सबको बनारस में पीएम स्वनिधि लोन क्यों दिया गया?

मिर्ज़ापुर में सिलकोसिस : लाखों लोग शिकार लेकिन इलाज की कोई पॉलिसी नहीं

मिर्ज़ापुर जिले में बड़ी संख्या में लोग पत्थर खदानों में काम करते हैं और अनेक लोग कई साल तक सिलिका धूल के संपर्क में रहने के कारण सिलकोसिस के शिकार हैं। इनमें से कइयों का इलाज टीबी की दवाओं द्वारा होता रहा है। जबकि सिलकोसिस एक असाध्य बीमारी है। इस पर कोई ठोस काम करने की बजाय स्वस्थ्य विभाग और सरकार लगातार चुप्पी बनाए हुये है।

वाराणसी : आठ गांवों की जिंदगी को नारकीय बना चुका है हरित कोयला प्लांट

विकास के नाम पर पूँजीपतियों के फायदे के लिए सरकार किस हद तक जा सकती है, इसका एक उदाहरण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के गाँव रमना के नैपुरा कलां में दिखाई देता है। इस गाँव में देश का पहला कचरे से हरित कोयला बनाने का प्लांट स्थापित किया गया है, जिससे निकलने वाला जहरीला धुआँ लोगों के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा रहा है। कैसे नारकीय जीवन जीने को मजबूर हैं यहाँ के लोग, पढ़िए इस ग्राउन्ड रिपोर्ट में।

वाराणसी : ई रिक्शा चालक सीमित रूट तय होने और बार कोड की बाध्यता के विरोध में उठा रहे हैं आवाज

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र में ई रिक्शा चलाकर आजीविका चलाने वालों ने प्रशासन द्वारा एक ही थाना क्षेत्र में रिक्शा चलाए जाने के विरोध में चंदौली से समाजवादी पार्टी के सांसद वीरेंद्र सिंह से मिलकर उन्हें ज्ञापन दिया।

ई-रिक्शा चालकों का निवाला छीनने को वाराणसी प्रशासन क्यों आमादा है

प्राचीन काल से ही बनारस धार्मिक नगरी के रूप में पहचाना जाता रहा है लेकिन वर्ष 2014 के बाद, जब नरेंद्र मोदी ने यहाँ से चुनाव जीता, तब से लग रहा है कि काशी उन्होंने ही बनाई है। पक्के महाल को तोड़कर विश्वनाथ कॉरीडोर के निर्माण के चलते यह शहर पूरी दुनिया की नज़रों में आ गया। लेकिन बनारस को खूबसूरत बनाने के लिए लोगों के घरों को उजाड़ा गया। दुकानें  तोड़ी गईं। इसी तरह शहर को जाम से बचाने के लिए ई रिक्शा को बढ़ावा दिया गया तथा कंपनियों ने हजारों ई रिक्शे बेच डाले। लेकिन ई रिक्शा भी शहर को जाममुक्त नहीं कर सके और अब जाम का ठीकरा रोज कमाने-खाने वाले ई-रिक्शा चालकों पर फूटा है। नए नियम के अनुसार ई-रिक्शे का रूट मात्र 2 से 3 किलोमीटर तय कर दिया गया। इससे 25 हजार ई रिक्शा चालक भूखे मरने की कगार पर आ गए हैं।  

वाराणसी : ओडीएफ के दावे साबित हुए खोखले, लोग खुले में कर रहे हैं शौच

किसी राज्य का ओडीएफ प्लस (खुले में शौच से मुक्त राज्य) का दर्जा हासिल हो जाना हमारे देश में एक बड़ी उपलब्धि है। उत्तर प्रदेश को वर्ष 2023 में सौ प्रतिशत ओडीएफ प्लस घोषित कर दिया गया था लेकिन वास्तविकता कुछ और ही है। सरकार के दावे लगातार गलत साबित हो रहे हैं। वाराणसी के आराजी लाइन ब्लॉक का गाँव सजोई कुछ ऐसी ही तस्वीर पेश कर रहा है। पढ़िये ओडीएफ की सच्चाई की पड़ताल करती अपर्णा की ग्राउंड रिपोर्ट

आखिर कम क्यों नहीं हो रहे हैं महिलाओं के खिलाफ अपराध

कोलकाता की डॉक्टर की नृशंस तरीके से कार्यस्थल पर हत्या की गई और इसके साथ दूसरी जगहों से भी लगातार बलात्कार की खबरें आ रही हैं। आज पूरा देश डॉक्टर के न्याय के लिए उतरा है। इस तरह की घटनाओं का देशव्यापी विरोध होना इसलिए जरूरी है क्योंकि सरकार बलात्कारियों को बचाने का काम कर रही है। वैसे भी अनगिनत केस दर्ज नहीं किए जाते लेकिन जो केस दर्ज होते हैं, उन्हें भी राजनैतिक दबाव व संरक्षण के चलते सजा नहीं मिलती बल्कि स्वागत किया जाता है। उनका इस तरह खुला घूमना सरकार के साथ न्याय व्यवस्था पर भी सवाल खड़ा करता है

बनारसी साड़ी उद्योग : महंगाई से फीका पड़ रहा है तानी का रंग

पिछले कई सालों में पारंपरिक रूप से बनारस के घर-घर में चलने वाला करघा उद्योग, व्यापार, गली और मंदिर तोड़ दिए गए हैं। बनारस की समृद्ध विरासत को खत्म किया जा रहा है। बनारसी साड़ियों पर भी इसका असर देखने को मिला है। बनारसी साड़ी बनाना सामूहिक काम है, इस वजह से जब से साड़ियों का बाजार मंदा हुआ है, उससे जुड़े हर कारीगर अपनी रोजी के लिए भटक रहा है। इससे साड़ी का धागा रंगने वाले (रंगरेज) का काम भी कम हुआ है। सवाल यह है कि जब साड़ी बनाने वाले हर कारीगर मंदी की मार सह रहे हैं, ऐसे में गिरस्ता और बड़े व्यवसायी कैसे दिनों-दिन अमीर होते जा रहे हैं।?

रस्सी कूद : दुनिया में जिसकी गाथाएँ हैं वह भारत में टूर्नामेंट में भी नहीं शामिल है

रस्सी कूद एक लोकप्रिय और सबसे किफ़ायती खेल है जिसके लिए बहुत तामझाम की आवश्यकता नहीं पड़ती। खेल के इतिहास में रस्सी कूद में कई उतार-चढ़ाव आए लेकिन प्राचीनकाल से ही अनेक देशों में मौजूद यह खेल आज वैश्विक रिकॉर्ड वाला खेल बन चुका है। खेल के रूप में इसे बचाने के लिए रस्सी कूद विश्व संगठन FISAC-IRSF की स्थापना की गई जिसका उद्देश्य दुनिया भर में रस्सी कूदने के खेल को विकसित करना और लोकप्रिय बनाना था। लेकिन हमारे देश में यह खेल मर-मर कर जी रहा है। हाल के दिनों में हमने गौर किया कि मानव जीवन की दैनिक खेल गतिविधियों से कई खेल फिसड्डी होते गए हैं। इनमें रस्सी कूद भी शामिल है। अब इसे स्कूली टूर्नामेंट में भी शामिल नहीं किया जा रहा। हालांकि रोप जंप फेडरेशन ऑफ इंडिया इसके विकास के लिए लगा है। बेशक आज देश के पास इसके संस्थागत विकास के सारे संसाधन मौजूद हैं लेकिन मजबूत इच्छाशक्ति के अभाव में सारी चीजें महज़ औपचारिकता बनकर रह जा रही है।

लोकल हीरो : दो बच्चों को गोद लेने की इच्छा एक पूरे समुदाय के बच्चों का जीवन बदलने का अभियान कैसे बनी?

बनारस के कुख्यात रेडलाइट एरिया शिवदासपुर में बहुत कुछ बदल गया है। ऊपर से यह इलाका नयी इमारतों और बाज़ारों से जगमगा रहा है लेकिन असली बदलाव अंदर आ रहा है। शहर की एक महत्वपूर्ण संस्था गुड़िया ने रेडलाइट एरिया के बच्चों के जीवन में एक नयी रौशनी पैदा की है और वे पढ़ते-लिखते हुये अपने लिए एक बेहतर और सम्मानजनक जीवन जीने की तैयारी कर रहे हैं। गुड़िया संस्थान के कर्ता-धर्ता अजित सिंह और सांत्वना मंजू ने देह व्यापार के विरुद्ध भारत के सबसे बड़े अभियानों का नेतृत्व किया है। पढ़िये कैसे अनाथालय में पली-बढ़ी एक बच्ची ने अपना जीवन समाज से अपमानित और बहिष्कृत बच्चों की बेहतरी में लगा दिया।

वाराणसी की जुलाहा स्त्रियाँ : मेहनत का इतना दयनीय मूल्य और कहीं नहीं

बनारसी सदी उद्योग में आई गिरावट ने बुनकर परिवारों के सामने कई तरह के संकट खड़े कर दिये हैं। पहले जहां बुनकरों के पास लगातार काम होता था और बुनकर परिवार की महिलाओं को किनारा, दुपट्टा, शीशा लगाने आदि कामों से प्रतिदिन साठ-सत्तर रुपये मजदूरी मिलती थी वहीं अब यह बीते जमाने की बात हो चुकी है। अब वे जो काम करती हैं वह पीस के हिसाब से बहुत सस्ती दर पर करना पड़ता है और उन्हें प्रतिदिन बमुश्किल पाँच-दस रुपए ही मजदूरी मिल पाती है। गरीबी, मंदी और अर्द्धबेरोजगारी झेलते परिवार चलाने के लिए जद्दोजहद करती महिलाओं पर अपर्णा की ग्राउंड रिपोर्ट।

वाराणसी के करसड़ा के मुसहर परिवारों पर मँडराता खतरा : बगल में बरसाती नाला और ऊपर हाईटेंशन तार

प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी की राजातालाब तहसील के अंतर्गत पड़ने वाले करसड़ा गाँव के तेरह मुसहर परिवार अक्टूबर 2021 में उजाड़ दिये गए और उस जगह पर अब अटल आवासीय विद्यालय बन चुका है। बाद में पीड़ित परिवारों को बगल में स्थित बंधे के नीचे घर बनाने के लिए जगह दी गई। यह जगह एक नाले के किनारे है जो बरसात के दिनों बरसाती पानी अथवा गंगा नदी के बढ़ने से जलमग्न हो जाता है। इससे इनके घरों पर खतरा बढ़ जाता है। इसके अलावा सबसे खतरनाक यह है कि इन घरों के ऊपर से हाईटेंशन तार गुजरता है। बस्ती के लोग बताते हैं कि यहाँ हमेशा झनझनाहट महसूस होती है। राजेश कुमार नामक व्यक्ति ने कहा कि हम जहाँ रह रहे हैं यहाँ मौत का खतरा हमेशा बना हुआ है लेकिन और हम कहाँ जायेंगे। कभी-कभी दोनों हाथ सटाने पर लगता है जैसे इसमें करंट लग रहा है। कभी भी बड़ी दुर्घटना की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है। हाल ही में वहाँ जाने पर पता लगा कि अभी भी इन लोगों के घर आधे-अधूरे ही बन पाये हैं। दो साल पहले जब हमने रिपोर्टिंग की थी तब इन लोगों ने बताया कि हमारे ऊपर दबाव बनाकर स्थानीय प्रशासन मनमाने तरीके से काम करता है और हमें कहीं बोलने पर बंदिश लगाता है। आज हम अपनी जिंदगी पर मँडराते खतरे को लेकर आवाज भी नहीं उठा सकते। यहाँ के हालात पर दो साल पहले प्रकाशित ग्राउंड रिपोर्ट पुनः प्रकाशित की जा रही है।

बनारस : सैकड़ों मील दूर से पत्ते तोड़कर लाते हैं ये मुसहर परिवार

बनारस जिले के अनेक मुसहर परिवार अभी भी वनोपजीवी हैं हालाँकि अब उनके ऊपर वन विभाग की बन्दिशें लगातार बढ़ रही हैं। समुचित रोजगार के अभाव में अभी भी मुसहर समुदाय पुर्वांचल के सर्वाधिक पिछड़े और हाशियाई समुदायों में से एक है। अभी बहुत से परिवार दोने-पत्तल बनाकर और लकड़ी काटकर अपनी आजीविका चला रहे हैं। लेकिन अब ये काम भी आसान नहीं रह गए हैं। इस माध्यम से आजीविका कमाने के लिए इनको सैकड़ों किलोमीटर चलकर जंगलों की खाक छाननी पड़ती है। पढ़िये बनारस के पानदारीबा में पत्ते बेचने वाले कुछ परिवारों पर अपर्णा की पूर्व प्रकाशित ग्राउंड रिपोर्ट।

खेती पर बाज़ार की मार और सरकार की नीतियों से आक्रोश में हैं धानापुर (चंदौली) के किसान

चंदौली पूर्वांचल के सर्वाधिक पिछड़े जिलों में एक है लेकिन यहाँ धान की पैदावार समेत अनेक कृषि उत्पाद इतनी प्रचुरता में होते हैं कि वे देश के अन्य इलाकों तक भी जाते हैं। यहाँ धान की कई किस्में पैदा होती हैं जिनका एक बड़ा बाज़ार है। इसके बावजूद यहाँ के किसान बाज़ार की मनमानी और सरकारी नीतियों तथा स्थानीय विभागों से परेशान हैं। उनकी शिकायत है कि उन्हें अपनी फसल का उचित दाम नहीं मिल पाता। चंदौली के प्रमुख क्षेत्र धानापुर में सैकड़ों किसान गंगा कटान से पीड़ित हैं लेकिन जनप्रतिनिधियों ने उन्हें इस समस्या से उबारने में कोई सहयोग नहीं किया। अपनी व्यथा-कथा कहते किसान इन स्थितियों से बहुत आक्रोश में हैं।

सामाजिक न्याय और कबीर के विचारों से प्रेरित अध्यापक कुमर किशोर का प्रयाण

मधेपुरा में जन्मे और वहीं अध्यापक रहे कुमर किशोर न केवल एक अच्छे अध्यापक रहे बल्कि एक आदर्शवादी पिता भी थे। उन्होंने बहुत कठिन स्थितियों का सामना करते हुये भी अपने मूल्यों और मान्यताओं से समझौता नहीं किया। वे सामाजिक न्याय के प्रबल पक्षधर और भौतिकवादी नज़रिये से दुनिया को देखने वाले इंसान थे। कुमर किशोर हमेशा मानते रहे कि विचार केवल सजावटी अवधारणा नहीं हैं बल्कि व्यवहार में लागू किए जानेवाले सूत्र हैं। विगत दिनों बनारस में 76 वर्ष की आयु में उन्होंने दुनिया को अलविदा कहा। उनके बेटे प्रसिद्ध हृदय रोग विशेषज्ञ प्रो डॉ ओमशंकर द्वारा उनके बारे में साझा किए गए विचारों पर आधारित अपर्णा का यह स्मृतिलेख।

बलिया : ऑनलाइन खरीद के बढ़ते चलन से दुकानदारों के सामने संकट बढ़ रहा है

केवल पच्चीस वर्ष पहले जब कुछ कंपनियाँ इस क्षेत्र में सक्रिय थीं तब भी यह क्षेत्र काफी संभावनाशील था लेकिन एण्ड्राएड फोन आने के बाद तो इसमें सुनामी आ गई। बढ़ते उपभोक्ताओं की संख्या ने जहां नए-नए ब्रांड के लिए रास्ता खोला वहीं कंपनियों और डीलरों ने ग्राहकों की आर्थिक सीमाओं को देखते हुये शून्य ब्याज दर पर किश्तों पर मोबाइल उपलब्ध कराया। लेकिन अब बढ़ते ऑनलाइन बाज़ार से खुदरा व्यवसायी संकट में पड़ रहे हैं।

पिछड़ों को मुख्यधारा में शामिल करने की चुनौती और पेपरलीक के बढ़ते मामले

4 जून से पहले, चुनाव को लेकर जहां पूरे देश में अलग-अलग पार्टियों की राजनीति चर्चा केंद्र में थी, वहीं 4 जून को नीट के नतीजे आने बाद नीट पपेरलीक होने की चर्चा हो रही है। फिर 18 जून को नेट परीक्षा का पेपरलीक हो गया। परीक्षा एजेंसी ने दुबारा परीक्षा करवाने की बात जरूर कही है लेकिन क्या आने वाले दिनों में पेपरलीक नहीं होगा, इसका भरोसा युवा कैसे करें?

उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षा : प्रवेश उत्सव का रिकॉर्ड बनाने की धुन में बुनियाद से लापरवाह

हाल ही में उत्तर प्रदेश में शिक्षा विभाग के प्राथमिक शिक्षकों को दस बच्चों के एनरोलमेंट का फरमान जारी किया गया और टार्गेट पूरा न करने पर उनका इंक्रीमेंट रोक देने की धमकी दी गई। लेकिन पिछले अनुभवों के आधार पर देखा गया है कि प्रवेश देने के रिकॉर्ड अभियान को बहुत ज्यादा सफलता नहीं मिली है और बच्चे बड़ी संख्या में ड्रॉप आउट हुये हैं। इस मुद्दे पर अपर्णा की टिप्पणी।

सेना की तैयारी करनेवाले पूर्वाञ्चल के युवा अब क्या कर रहे हैं?

भाजपा सरकार द्वारा अग्निपथ योजना लाये जाने के बाद बड़े पैमाने पर सेना में जाने की तैयारी करने वाले युवाओं को निराश किया है। जिन लोगों को सांस्कृतिक रूप से सेना हमेशा अपनी ओर आकर्षित करती थी अब वे युवा अचानक दिशाहीन हो गए हैं। बलिया और गाजीपुर जिलों में सेना की तैयारी करने वाले ऐसे ही युवाओं की स्थितियों की पड़ताल करती ग्राउंड रिपोर्ट।

प्रेम कुमार नट की कहानी : संविधान ने अधिकार दिया लेकिन समाज में अभी कई पहाड़ तोड़ने हैं

नट समुदाय का नाम आते ही जेहन में रस्सी पर चलने वाले छोटे बच्चों की याद आ जाती है क्योंकि बचपन से हमने नटों का वही तमाशा देखा था। लेकिन बड़े होते-होते अब तमाशा दिखाने वाले वे लोग फिर कभी गली-चौराहे-मोहल्ले में दिखाई नहीं दिए। आज इनकी बात इसलिए याद आ गई क्योंकि हमें बेलवाँ की नट बस्ती में इस समुदाय के बारे में जानने के लिए जाना था, लेकिन वहाँ पहुँचने पर ऐसा कुछ दिखाई नहीं दिया। आम लोगों जैसे ही वे अपनी  बस्ती में मगन थे। उनको लेकर प्रचलित मिथक अब अतीत की बात हो चली है।

मिर्ज़ापुर लोकसभा : निषादों का कहना है कि वे भूमिहीन हैं लेकिन ग्रामसभा की ज़मीन का पट्टा काश्तकारों को दिया गया

जब भी हम किसी गाँव में चुनाव की ग्राउंड रिपोर्ट के लिए जाते हैं तो कुछ लोग राममन्दिर, देश की सुरक्षा और धारा 370 की बात करते हैं। ऐसे लोगों की बात से दूसरे लोग भी भ्रमित और प्रभावित होते हैं। कुछ देर बात करने के बाद ही लोगों की वास्तविक समस्याएँ सामने आती हैं। मिर्ज़ापुर जिले के सिंधोरा गाँव के लोगों में भी आर्थिक स्तर पर कई धड़े हैं जिनकी अपनी ऐसी समस्याएँ हैं कि उनका हल दूर-दूर तक निकलता नहीं दिखता। अब देखना यह है कि जिंदगी की बुनियादी चुनौतियों से जूझ रहे लोग  लोकसभा चुनाव में बदलाव लाना चाहेंगे या पुराने प्रतिनिधि पर ही भरोसा कायम करेंगे।

प्रोफेसर चौथीराम यादव : वंचितों के व्याख्याता का महाप्रयाण

हिन्दी के शीर्षस्थ आलोचक और धुरंधर वक्ता प्रोफेसर चौथीराम यादव का महाप्रयाण बहुजन आंदोलन और साहित्य के लिए बहुत बड़ी क्षति है। वह अपने दौर के शानदार अध्यापकों में रहे हैं जिनकी याद उनके विद्यार्थियों को आज भी रोमांचित करती है। उन्होंने बड़े पैमाने पर लोगों के दृष्टिकोण को उन्नत किया जिससे आज हज़ारों लोग साहित्य के इतिहास और लोकधर्मी प्रतिरोध की परंपरा को व्यापक बहुजन समाज की मुक्ति की कसौटी पर देख रहे हैं। छद्म बुद्धिजीवियों की बढ़ती कतार के बरक्स प्रोफेसर चौथीराम यादव की उपस्थिति हमेशा एक जन-बुद्धिजीवी की उपस्थिति की आश्वस्ति देती रही है।

वाराणसी: पुलिसिया दमन के एक साल बाद बैरवन में क्या सोचते हैं किसान

वाराणसी संसदीय क्षेत्र की रोहनिया विधानसभा का एक गाँव बैरवन पिछले एक साल से भय और अनिश्चितता के माहौल में जी रहा है। वाराणसी विकास प्राधिकरण द्वारा बनाए जानेवाले ट्रांसपोर्ट नगर के लिए बैरवन को भी उजाड़ा जाना है। विडम्बना यह है कि कुछ किसानों ने बहुत पहले अपनी ज़मीनों का मुआवजा ले लिया जबकि अधिसंख्य किसानों ने नहीं लिया। जिन किसानों ने मुआवजा नहीं लिया है वे आंदोलन करके आज की दर से मुआवजा और पुनर्वास की मांग कर रहे हैं। इसी रस्साकशी का फायदा उठाकर वाराणसी विकास प्राधिकरण ने पिछले साल मई महीने में ज़मीनों पर कब्जा करना शुरू किया। इसका विरोध होने पर अगले दिन पुलिस ने गाँव में घुसकर लाठीचार्ज किया। एक साल बीतने और लोकसभा चुनाव के ऐन मौके पर इस गाँव के लोग क्या सोच रहे हैं?

अर्थव्यवस्था के कुठाराघात ने बनारस में खिलौना बनानेवालों को तबाही के कगार पर ला खड़ा किया है

मो. अरशद का काम और वर्कशॉप उनके घर पर ही है। अंदर जाने पर ग्राउन्ड फ्लोर पर छोटे-छोटे दो कमरों में हाथ से चलने वाली मशीनें लगी हुई हैं। वहां उनके बेटे आदिल अकेले ही नक्काशीदार दरवाजे के हैन्डल पर फिनिशिंग का काम रहे थे। आदिल 25-26 वर्ष के हैं और बी.कॉम. करने के बाद अपने पुश्तैनी काम में लग गए हैं।

लोकविद्या भाईचारा को समर्पित ‘चित्रा सहस्रबुद्धे’ का जीवन

लोगों की चेतना जिस तरफ खुलती है, वही उनका कर्म क्षेत्र बन जाता है और फिर लोग अपना जीवन उसी में लगा देते हैं। ऐसी ही एक शख्सियत हैं चित्रा सहस्त्रबुद्धे, जिन्होंने अपना पूरा जीवन लोकविद्या जन आंदोलन के माध्यम से कारीगर समाज के पुनर्निर्माण के रास्ते बनाने के लिए लगा दिया। चित्रा जी लोकविद्या जन आंदोलन की राष्ट्रीय समन्वयक हैं। उनके अनुसार सामान्य लोगों (विशेषकर किसान, कारीगर, आदिवासी, स्त्रियाँ और छोटी पूंजी के उद्यमी आदि) के पास जो ज्ञान है, उसमें उनके और वृहत समाज के पुनर्निर्माण का आधार है। इसे ही लोकविद्या कहा जाता है और आज भी इसी में समाज के प्रत्येक व्यक्ति की सक्रियता, पहल और चेतना के पुनर्स्थापना की चाभी है।

राष्ट्रीय आय एवं योग्यता आधारित परीक्षा में भदोही के 183 बच्चों ने सफलता पाई लेकिन खाली रह गईं एसटी की सभी सीटें

छात्रवृत्ति निर्धन बच्चों के आगे की पढ़ाई के लिए बहुत बड़ा आधार होती है। राष्ट्रीय आय एवं योग्यता आधारित छात्रवृत्ति परीक्षा में सफलता पाकर बहुत से बच्चों ने अपनी मंज़िलें पाई है। विगत वर्षों की तरह इस बार भी भदोही जिले के 183 बच्चों ने सफलता पाई है। हालांकि अनुसूचित जनजाति के कोटे की चार सीटें खाली ही रह गईं।

Loksabha chunav : फ़तेहपुर जिले की विनोबानगर मलिन बस्ती के युवा और उनके अभिभावक पेपरलीक वाली सरकार बदलना चाहते हैं

जहाँ एक तरफ सरकार देश के युवाओं को रोजगार मांगने वाला नहीं बल्कि देने वाला बता रही है वहीं फतेहपुर के युवा कॉलेज से डिग्रियां लेने के बाद भी रोजगार के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं।

देवरिया: हत्या के 28 साल बाद थोक में ‘इंसाफ’, मृतक के परिजन सहित 40 लोगों को जेल

उत्तर प्रदेश और बिहार की सीमा पर स्थित एक गाँव बलुअन में 28 साल पहले हुई एक घटना के सिलसिले में 16 फरवरी को फैसला आया जिसमें 41 लोगों को दस-दस वर्ष कारावास की सज़ा हुई है। एक साथ इतने लोगों को सज़ा दिये जाने को लेकर जिले में तरह-तरह की चर्चा है। ज़्यादातर लोग इसे गलत और एकतरफा फैसला बता रहे हैं।

इलेक्टोरल बांड युग का अंत, लेकिन सरकार इकठ्ठा कर रही है हर पार्टी को मिले चंदे की जानकारी

सुप्रीम कोर्ट ने 15 फरवरी को इलेक्टोरल बांड योजना को असंवैधानिक करार देकर बंद करने का आदेश दिया, लेकिन सरकार ने अब एक ऐसा रास्ता निकाला है जिससे हर व्यक्ति, कॉर्पोरेट और संगठन द्वारा राजनैतिक दलों को दिए गए चंदे के संबंध में डेटा एकत्र किया जा सके।

दशकों पहले मृत व्यक्ति के नाम नोटिस और वर्तमान किसानों की ज़मीन को बंजर बताकर हड़पने की साज़िश

वाराणसी की सदर तहसील के एसडीएम ने वाराणसी के पूर्वी छोर पर स्थित जाल्हूपुर परगना के चार गाँवों तोफापुर, मिल्कोपुर, कोची और सरइयाँ की कुल सौ एकड़ से भी ज्यादा (109) ज़मीन को बंजर घोषित करने और कब्जे में लेने का एक फरमान निकाला। लोग कहते हैं कि यहाँ बस अड्डा बनेगा। ये गाँव रिंग रोड फेज तीन के किनारे हैं और अब यहाँ की ज़मीन काफी ऊँची कीमत पर बिक रही है।

वाराणसी : बहुत कठिन है काठ की कला में लगे हुये लोगों का जीवन

समय के साथ-साथ बहुत सी चीजें बदल रही हैं। जो चीजें कल तक अपने उठान पर थीं आज वे पीछे छूट गई हैं लेकिन...

वाराणसी : ग्राउंड रिपोर्ट का असर, बंजर होने से बच गई उपजाऊ जमीन

गाँव के लोग पर खबर प्रकाशित होने के बाद प्रभावित किसानों को अपने संघर्ष को आगे बढ़ाने की हिम्मत मिली। उन्होंने न्यायिक व्यवस्था में सरकार के प्रयास पर मजबूती से आपत्ति जताई और परिणाम यह हुआ कि किसानों की जमीन को जबरन अधिग्रहित करने की  इस खबर के असर ने वाराणसी के पूर्वी छोर पर स्थित जाल्हूपुर परगना के चार गाँवों तोफापुर, मिल्कोपुर, कोची और सरइयाँ की जमीन को बंजर होने से बचा लिया है।

यूज़ एंड थ्रो के दौर में बहुत कम हो गए चाकू-कैंची पर धार लगानेवाले

भूमंडलीकरण से पहले हर चौक, चौराहे और मोहल्ले में कैंची-चाकू पर धार लगाने वाले, पीतल के बर्तनों में कलई करने वाले, पुराने तेल के पीपे से अनाज रखने के लिए टीपे बनाने वाले, लोहे के सामान बनाने वाले, लकड़ी का काम करने वाले, जो महीने में एक बार आकर चक्कर लगाते थे लेकिन बाजार ने जैसे ही उपभोक्ताओं को अपनी गिरफ्त में लेना शुरू किया, वैसे ही छोटे-छोटे काम करने वालों की रोजी-रोटी पर गाज गिरी।

मृतक छेदी सिंह हाज़िर हों वरना उनकी ज़मीनें बंजर कर दी जाएँगी

शायद इक्का-दुक्का लोगों को ही इस बात की जानकारी थी कि उनकी जमीनों के कुछ हिस्सों को सरकार ने बंजर घोषित कर आदेश निकाल दिया है। लेकिन किसी के पास पक्की खबर नहीं थी कि वास्तव में मामला क्या है। कुछ लोगों ने बताया कि हाँ, हमारे गाँव में ड्रोन से सर्वे हुआ है। लेकिन उसका क्या उद्देश्य है इसके बारे में कुछ भी नहीं पता। रोज अखबारों में बड़ी-बड़ी परियोजनाओं की खबरें और सब कुछ को आधार-पैन से जोड़कर हर धोखाधड़ी और फर्जीवाड़े से निपटने के सरकारी दावों ने लोगों को इतना अधिक भरमा दिया है कि शायद ही किसी को चिंता हो कि उसके पाँव के नीचे से ज़मीन खिसकनेवाली है। ऐसे में यहाँ अगर ऐसी बात है कि हर कोई किसी बड़ी सरकारी कार्यवाही से अनजान है तो आश्चर्य ही क्या है।