एच एल दुसाध
लेखक बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं.
राजनीति
क्या राहुल गांधी ने खुद को मजबूत कर भाजपा के सामने खड़ी की चुनौती
राहुल गांधी को राजनीति विरासत में मिली, जिसके चलते उन्हें तुरंत ही सबके प्रिय और बड़े नेता बन जाना था लेकिन ऐसा हुआ नहीं। अपने को साबित करने के लिए उन्होंने खुद को पूरी तरह झोंक दिया। 2014 के बाद भाजपा ने गोदी मीडिया के माध्यम से पूरी तरह से उन्हें एक कमजोर, अपरिपक्व और नासमझ नेता बताते हुए प्रचार-प्रसार किया। राहुल ने हार नहीं मानी। जनता के बीच लोकप्रिय होने के साथ ही, सड़क से संसद तक अपने को साबित किया।
राजनीति
भारत बंद से पुराने फॉर्म में लौटीं मायावती क्या अपनी बिखरी राजनीति को समेट पाएँगी
भारत बंद की सफलता के बाद जहां अधिकांश राजनीतिक विश्लेषकों ने दलित आंदोलनकारियों के व्यवहार में आए बड़े बदलाव को देखते हुए भविष्य में धरना- प्रदर्शनों के सैलाब आने की संभावना जाहिर किया, वहीं दलित आंदोलनकारी अपनी बहन जी को पुराने रूप में लौटते देख खुशी से झूम उठे। सबसे बड़ी बात तो यह है कि जिस कांशीराम का नाम लेकर मायावती राजनीति करती रही हैं, लोग राहुल गांधी में अब कांशीराम की छवि देखने लगे हैं। यदि कांशीराम के रूप में राहुल गांधी की छवि स्थापित हो जाती है, तब पहले से ही काफी हद तक अपना वोटबैंक गवां चुकी मायावती का राजनीतिक भविष्य का क्या होगा?
सामाजिक न्याय
वंचितों के लिए न्याय के एजेंडे पर हो भारत बंद
एक अगस्त को आए कोर्ट के फैसले बाद उपवर्गीकरण में लाभ देख रहे समूहों में आरक्षण के कथित हकमारों के प्रति जो शत्रुता का भाव पनपा है, वह प्रायः स्थाई हो गया है। इसलिए कोर्ट का फैसला पलटने से भी एकता के मोर्चे पर बहुत लाभ नहीं होगा, क्योंकि अनग्रसर समूहों मे अग्रसर समूहों को हकमार वर्ग के रूप में देखने की मानसिकता विकसित हो चुकी है, जिसमें निकट भविष्य में बदलाव आता कठिन लग रहा है।
सामाजिक न्याय
बहुजनों के समक्ष शेष विकल्प आज़ादी की लड़ाई
आज दूर-दूर तक ऐसा कोई नहीं दिखता जो लोकतान्त्रिक क्रांति के अनुकूलतम हालात का सद्व्यवहार कर सके। जिनमें संभावना थी, वे अब शासकों के दलाल में रूप में तब्दील होते नज़र आ रहे हैं। इससे निश्चय ही ही बहुजनों के आजादी की लड़ाई प्रभावित होगी। लेकिन नेतृत्व की कमी को यदि बहुजन बुद्धिजीवी, एक्टिविस्ट चाहें तो दूर कर सकते हैं। इसके लिए उन्हे अतिरिक्त बोझ वहन करना पड़ेगा।
सामाजिक न्याय
क्रीमीलेयर मामला : बहुजन भागीदारी के खिलाफ एक और ब्राह्मणवादी षड्यंत्र
एससी-एसटी समुदाय के आरक्षण में क्रीमीलेयर लागू करने के फैसले से सरकारी नौकरियों में आरक्षण व्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त करने की साजिश भाजपा ने की है। सुप्रीम कोर्ट के कंधे पर बंदूक रखकर भाजपा ने यह गोली चलाई है। प्राचीनकाल से ब्राह्मणवादी व्यवस्था समाज पर हावी है, जिसे डॉ. आंबेडकर के प्रयासों के बाद पूना पैक्ट से आधुनिक मानवतावादी आरक्षण की शुरुआत हुई, जो संविधान का हिस्सा बनी। लेकिन एक अगस्त को आए फैसले का, इस वर्ग ने विरोध करते हुए 21 अगस्त को भारत बंद की घोषणा की है
सामाजिक न्याय
आज की स्थिति में आधी आबादी को आर्थिक-सामाजिक समानता मिलना दूर की कौड़ी
किसी भी देश की आर्थिक असमानता उस देश के सामाजिक जीवन को पूरी तरह से प्रभावित करती है। भारत जैसे बड़े लोकतान्त्रिक देश में वर्ल्ड इनइक्वालिटी लैब की ताजी रिपोर्ट से यह बात सामने आई है कि पिछले दस वर्षों में सवर्णों की संपत्ति में हिस्सेदारी उत्तरोत्तर बढ़ती गई है, जबकि ओबीसी और एससी की हिस्सेदारी में हर वर्ष गिरावट आई है। जब तक स्थिति यही रहेगी, कभी भी समानता की कल्पना नहीं की जा सकती।
विचार
सामाजिक न्याय की केंद्रीयता ही कांग्रेस की ताकत बढ़ा सकती है
लोकसभा चुनाव 2024 में 400 के पार का नारा देने वाली भाजपा बहुमत भी नहीं ला सकी। इसके विपरीत कांग्रेस ने भारत जोड़ो न्याय यात्रा कर जनता से सीधे जुड़ते हुए सामाजिक न्याय व समान भागीदारी पर सवाल खड़ा किया। कांग्रेस के घोषणा पत्र में वे सभी बिन्दु शामिल किए गए, जो पिछ्ले दस वर्षों में जनता की जरूरत थे। सवाल यह उठता है कि आने वाले दिनों में कांग्रेस किस तरह अपना वर्चस्व हासिल कर पाएगी।
विचार
क्या रायसीना हिल्स पर कब्जा जमाने में सफल होगा इंडिया गठबंधन?
चौथे चरण का वोट खत्म होते-होते राहुल गांधी एक आंधी में तब्दील हो गए। भीषण गर्मी की उपेक्षा कर इंडिया की सभाओं में जो भीड़ उमड़ी, वह अभूतपूर्व है। कई लोगों को संदेह है कि यह भीड़ शायद वोट में तब्दील न हो। लेकिन भीड़ के अन्दर जो जुनून देखा जा रहा है वह इंडिया गठबंधन की कामयाबी की पटकथा को व्यक्त कर रहा है।
विचार
मुसलमानों को आरक्षण का हकमार बताने का भाजपाई अभियान मुंह के बल गिरेगा
भाजपा मुसलमानों को आरक्षण का हकमार बताए जा रही है, उसके पीछे का सबसे बड़ा कारण यह है कि वह आरक्षण के असल हकमार वर्ग से राष्ट्र का ध्यान भटकाए रखना चाहती है। चूँकि वह चुनाव में मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाकर ही कामयाबी हासिल करती रही जिसे वह आगे भी जारी रखना चाहती है।
सामाजिक न्याय
लैंगिक असमानता और आर्थिक व सामाजिक विषमता से पार पाने का एक अभिनव विचार!
संविधान में समानता के चाहे जितने कानून बने हो लेकिन व्याहारिक जीवन में जेंडर गैप दिखाई देता है। भारत में आर्थिक और सामाजिक असमानता का सर्वाधिक शिकार महिलाएँ हैं और महिलाओं में भी सर्वाधिक शिकार क्रमशः दलित और आदिवासी महिलाएँ हैं। जहां सवर्ण समुदाय की महिलाओं को आर्थिक समानता अर्जित करने में 300 साल लग सकते हैं, वहीं दलित महिलाओं को 350 वर्ष लग सकते हैं।
विचार
आंबेडकरी आरक्षण को ख़त्म करने की कोशिश में लगे मोदी अवतारी पुरुष कहलाने के हकदार हैं?
सदियों से गुलामी और पिछड़ेपन की शिकार रही दलित और पिछड़ी जातियों को आंबेडकरी आरक्षण से कुछ लाभ हुआ लेकिन मोदी ने आते ही आरक्षण पर कैची चलाना शुरू कर दिया। ऐसे में कुछ लोग मोदी को अवतारी पुरुष कहने लगे जिस पर बड़ा प्रश्न खड़ा होता है।
विचार
आखिर प्रगतिशील विचारों से क्यों जलती है भाजपा?
जब भी भाजपा के समक्ष संकट आता है तो वह सांप्रदायिकता की पनाह में चली जाती है। चूंकि कोई भी चुनाव आसान नहीं होता, इसलिए भाजपा मण्डल के उत्तरकाल के हर चुनाव में राम नाम जपने और मुस्लिम विद्वेष के प्रसार के लिए बाध्य रही।
विविध
कांग्रेस को लेकर दूसरे दलों में पनप सकती है असुरक्षा की भावना
राहुल गांधी की तारीफ में भाजपा के नेता भारतरत्न लालकृष्ण आडवाणी का यह कहना कि इस व्यक्ति में निर्णय लेने की गजब की क्षमता तो है ही साथ ही इस देश को आगे ले जाने की भी अपार क्षमता है, इससे भाजपा के लोग ही नहीं बल्कि इंडिया गठबंधन के भी कई नेता सकते में आ गए हैं।
विचार
धार्मिक सेक्टर में अवसरों का पुनर्वितरण बने चुनावी मुद्दा
आज हमारे देश के मंदिरों में अकूत संपत्ति पड़ी हुई। इस संपत्ति का भोग एक खास वर्ग ब्राम्हण ही कर रहा है। यदि धार्मिक सेक्टर में जितनी आबादी-उतना हक का सिद्धांत लागू हो जाता है तो मंदिरों के ट्रस्टी बोर्ड से लेकर पुजारियों की नियुक्ति में अब्राह्मणों का वर्चस्व हो जाएगा और वे मठों–मंदिरों की बेहिसाब संपदा के भोग का अवसर भी पा जाएंगे और आर्थिक रूप से मजबूत भी होंगे।
राजनीति
भारत में समतामूलक समाज निर्माण की उम्मीद जगाता कांग्रेस का घोषणापत्र
सदियों से शक्ति के समस्त स्रोतों पर सवर्णों का अधिकार रहा है। देखा जाय तो भेदभाव और अवसरों की कमी झेलने वाली 70 प्रतिशत आबादी को असमानताताओं के दल-दल से निकालने के जरूरत है। कांग्रेस का घोषणा पत्र इस दिशा में उम्मीद की एक किरण बना हुआ है।
विचार
नफरत की राजनीति की हदें पार करती भाजपा क्या चार सौ पार पहुँचेगी या गर्त में जाएगी?
चुनावों में जब भी भाजपा के समक्ष संकट आता है तो वह सांप्रदायिकता की पनाह में चली जाती है। चूंकि कोई भी चुनाव आसान नहीं होता, इसलिए भाजपा मण्डल के उत्तरकाल के हर चुनाव में राम नाम जपने और मुस्लिम विद्वेष के प्रसार के लिए बाध्य रही।
विचार
कांग्रेस के घोषणापत्र पर सिर्फ आंबेडकरवाद की छाप है
कांग्रेस का घोषणा पत्र पूरी तरह से आंबेडकरवाद से प्रभावित है। इस घोषणा पत्र में दलित, आदिवासी,पिछड़ों के उत्थान के मार्ग को प्रशस्त करने का खाका खीचा गया है। इसी कड़ी में विविधता आयोग की स्थापना करने का वादा कर कांग्रेस ने आंबेडकरवाद को सम्मान देने का ऐतिहासिक कार्य भी किया है।
सामाजिक न्याय
संविधान और आरक्षण के मुद्दे पर विश्वास लायक नहीं हैं संघ और मोदी
लोकसभा चुनावी भाषणों में अराक्षण और संविधान को लेकर मोदी और संघ के सुर इधर बदले हुए सुनाई दे रहे हैं लेकिन वास्तविकता यही है कि आरएसएस और भाजपा का निर्माण हिंदुत्ववादी विचारधारा को आगे बढ़ाने के लिए हुआ। इस कारण संघ अपने जन्मकाल से लेकर आज तक लोकतंत्र, संविधान, सामाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्षता का स्वाभाविक हिमायती न बन सका। आज भी 400 सीट पाने का मुख्य उद्देश्य आसानी से संविधान में बदलाव करते हुए आरक्षण को पूरी तरह से खत्म करना है।
राजनीति
Lok Sabha Election : संविधान और आरक्षण की रक्षा बन गया है सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा, राहुल गांधी के साथ एकजुट हो रहा बहुजन...
कुछ भाजपा नेताओं द्वारा 400 पार के पीछे संविधान बदलने की मंशा जाहिर किए जाने के बाद संविधान और आरक्षण बचाना चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा बन गया है, जिस कारण आरक्षित वर्ग गर्मी की परवाह किए बिना वोट देने के लिए निकल रहा है।
विचार
धन-दौलत के पुनर्वितरण की घोषणा और मोदी की तिलमिलाहट का राज
पहले चरण के चुनाव के बाद से बीजेपी को हार का डर सताने लगा है। इसीलिए देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी खुलकर हिन्दू -मुस्लिम की बातें कर रहे हैं। हद तो तब हो गयी जब राजस्थान के बांसवाड़ा के चुनावी सभा में प्रधानमंत्री ने कहा, ‘कांग्रेस का घोषणापत्र माओवादी सोच को धरती पर उतारने की है।
विचार
मोदी तो गयो : लोकसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान का संदेश
अबकी बार का चुनाव आम चुनाव न होकर बाबा साहब का संविधान बचाने का चुनाव बन गया है। लोग समझ चुके हैं कि इस बार एकजुट होकर भाजपा के खिलाफ वोट नहीं किया तो बीजेपी हमें कहीं का नहीं छोड़ेगी। पढ़िए एच एल दुसाध का यह लेख।
विविध
बहुजन डाइवर्सिटी मिशन की अपील : लोकसभा का यह चुनाव भारतीय लोकतंत्र और संविधान को बचाने का आखिरी मौका
बहुजन डाइवर्सिटी मिशन ने लोगो से अपील करते हुए कहा है कि भारतीय लोकतंत्र और संविधान को बचाए रखने के लिए आप लोगों के पास यह आखिरी मौका है।अगर हिन्दुत्ववादी भाजपा सरकार फिर सत्ता में आती है तो संविधान का जनाजा निकलने के साथ आप दलित, आदिवासी, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों का विशुद्ध गुलामों की स्थिति में पहुंचना तय सा हो जायेगा।
राजनीति
Lok Sabha Election : क्या संविधान को बचाने से बढ़कर इस बार कोई दूसरा बड़ा चुनावी मुद्दा है?
नरेंद्र मोदी 400 सीट जीतने के बाद संविधान बदलने की बात कई बार कह चुके हैं लेकिन इधर मोदी कह रहे हैं कि इस चुनाव में उन लोगों को सजा मिलेगी जिन्होंने संविधान के खिलाफ जाकर काम किया। ऐसे में मतदाता यह समझ लें कि कौन संविधान विरोधी है और किसे सजा दी जाये।
विविध
भारतीय संविधान के यम : नरेंद्र मोदी
सरकारी शिक्षण संस्थाओं को निजी हाथों में सौंपने के बाद देश के प्रधानमंत्री अब आरक्षण और संविधान को ही खत्म कर देने पर तुले हुए हैं। इसके लिए भाजपा को 400 के आंकड़े को पार करना होगा। भाजपा इसमें कितना कामयाब होती दिख रही है... पढ़िए एच एल दुसाध का लेख
विविध
जयंती विशेष : आम्बेडकरवाद की रक्षा का आखिरी अवसर है लोकसभा चुनाव 2024
यह तय है कि यदि मोदी तीसरी बार सत्ता में आते हैं तो वह हिन्दू राष्ट्र की घोषणा के साथ बाबा साहेब का संविधान बदल कर मनु का विधान लागू कर देंगे, जिसमें उच्च वर्ण के लोग शक्ति के स्रोतों का भोग करने के अभ्यस्त तो शुद्रातिशूद्र दैविक सर्वस्वहारा के रूप में जीवन जीने के लिए अभिशप्त होंगे।
राजनीति
Loksabha Chunav : सबको न्याय, सम्मान और रोजगार देने की बात करता कांग्रेस का घोषणा पत्र
कांग्रेस पार्टी का चुनावी घोषणापत्र जारी होने के बाद चर्चा में है, इस घोषणा पत्र में पाँच न्याय और 25 गारंटियाँ हैं। युवा, आदिवासी, दलित, श्रमिक, किसान, महिला और पिछड़ों को ध्यान में रखते हुए इसे जारी किया गया है। कांग्रेस के इस घोषणा पत्र से चुनाव में क्या प्रभाव पड़ेगा? यह 4 जून को ही सामने आएगा।
विचार
विमर्श : सामाजिक न्याय के विरोधी आनंद शर्मा जैसे नेता कांग्रेस की समस्या बन चुके हैं
इंडिया गठबंधन एकजुट होकर चाहे तो बीजेपी को पस्त कर सकता है लेकिन वह असली मुद्दों से भटका हुआ नजर आ रहा है। बीजेपी की पोल खोलने के लिए उसके पास बहुत सारे मुद्दे पड़े हुए है।
कांग्रेस नेतृत्व को आनंद शर्मा का आभारी होना चाहिए कि उन्होंने पार्टी नेतृत्व को पत्र लिखकर संगठन पर हावी प्रभुवर्ग के नेताओं के मंसूबों से आगाह कर दिया। आनंद शर्मा के पत्र के बाद राहुल गांधी को इस बात को अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए कि कांग्रेस में छाए आनंद शर्मा जाति जनगणना और पाँच न्याय से खौफ़जदा होकर, इसे फेल करने में जुट गए हैं।
विचार
चुनावी बॉण्ड का जाति शास्त्र
भारत में भ्रष्टाचार के खात्मे के लिए जाति की सही भागीदारी बहुत आवश्यक है। सवर्णों के हाथों में पाॅवर होने के कारण उनके अन्दर का भय खत्म हो गया है। ऐसे में शक्ति के स्रोतों में विविधता नीति लागू होने पर भ्रष्टाचार तो पूरी तरह खत्म नहीं होगा पर उसके प्रभाव क्षेत्र में 80-85 प्रतिशत की गिरावट आ जाएगी।
सामाजिक न्याय
सामाजिक न्याय के लिए जरुरी है सबकी सहभागिता
किसी भी देश का विकास तब तक संभव नहीं है जब तक कि वहां के किसानों, मजदूरों, आदिवासियों और महिलाओं की आर्थिक उन्नति नहीं होती और उनकी आर्थिक उन्नति के लिए जरूरी है, उनकी सामाजिक सहभागिता। बहुजन डाइवर्सिटी मिशन’(बीडीएम) ने इस क्षेत्र में प्रयास शुरू किए हैं।
विचार
क्या कांग्रेस के जयचंदों के निकलने-उतरने से पार्टी की नाव भंवर से पार हो जाएगी?
कांग्रेस के प्रवक्ता मोदी को इस बात के लिए धन्यवाद दे रहे हैं कि वह कांग्रेस का कूड़ा-कचड़ा साफ कर रहे हैं। बहरहाल कांग्रेस के लोग भले ही अपने दल के प्रतिक्रियावादी नेताओं के पलायन को कूड़ा-कचड़ा मानकर संतोष कर लें, किन्तु खुद कांग्रेस समर्थक राजनीतिक विश्लेषकों में चिन्ता की लहर दौड़ गई है।
सामाजिक न्याय
सामंती दमन के खिलाफ 18 वर्ष चले मुकदमे में जीत, संघर्ष की मिसाल हैं डॉ विजय कुमार त्रिशरण
आज दलितों के ऊपर जो भी अत्याचार हो रहे हैं, उसका मूल कारण उनका आर्थिक रूप से कमजोर होना है। वर्तमान बीजेपी की सरकार के कार्यकाल में दलितों के ऊपर अत्याचार की घटनाओं में इजाफा हुआ है ।
राजनीति
लोकसभा चुनाव : हिन्दुत्व के नाम पर एकतरफा जीत के लिए भाजपा मुस्लिमों को टिकट ही नहीं देती
भाजपा की ओर से मुसलमानों को नहीं के बराबर टिकट देना, उसकी चुनावी रणनीति का एक खास अंग रहा है, जिसका उसे भारी लाभ मिलता है। भाजपा की चुनावी सफलता में मुस्लिम उम्मीदवारों की अनदेखी उसकी सफलता संभवतः सबसे बड़ा कारण बनती है।
विचार
क्या क्रॉस वोटिंग के पीछे सिर्फ भाजपा के प्रति बढ़ती आस्था है या कुछ और है?
इस बार के 12 राज्यों के 56 राज्यसभा सीटों के लिए चुनाव का गणित क्रॉस वोटिंग के जरिए पूरी तरह बदल गया। विशेषकर उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश में यह खेल हुआ। क्रॉस वोटिंग के पीछे स्व-हित के बजाय वर्गीय हित दिखाई देता है।
विचार
क्या राहुल गांधी के सामाजिक न्याय की बात देश में लोकतान्त्रिक क्रांति का सबब बनेगी
राहुल गाँधी की निखरती इस छवि के कारण पूरी यात्रा में उन्हें देखने-सुनने वालों की भीड़ कदम-कदम पर बढ़ती जा रही है। सामाजिक बदलाव के लिए वे जिस तरह लोगों को ललकार रहे हैं, क्या उसका प्रभाव लोगों पर पड़ेगा ?
विचार
क्या असर होगा राहुल की घोषणापत्र का बहुजन राजनीति पर
देश की राजनीति मे युगांतरकारी बदलाव लाने वाली चुनिंदा राजनीतिक यात्राओं मे शुमार की जा रही राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा 14...
विचार
अपने नेताओं के बीजेपी में शामिल होने से क्यों बेपरवाह है कांग्रेस
जहां भारत जोड़ो न्याय यात्रा से राहुल गांधी की लोकप्रियता चरम पर है, वहीं काँग्रेसी, पार्टी छोडकर बीजेपी में शामिल हो रहे हैं। लेकिन कांग्रेस का आला कमान इस खबर से बेपरवाह है। ऐसे में उनकी सामाजिक पृष्ठभूमि को खंगाला जाये तो ये वही दो प्रतिशत लोग हैं, जिनका देश की संपदा-संसाधनों, उद्योग-धंधों, मीडिया, उच्च शिक्षण संस्थाओं, न्यायपालिका, शासन-प्रशासन सहित समस्त स्रोतों पर एकाधिकार है
विचार
इंडिया के खिलाफ मनोवैज्ञानिक युद्ध है ‘इस बार 400 पार’ का दावा जबकि सामाजिक न्याय के मुद्दे पर हार सकती है भाजपा
अबकी बार 400 पार का' जो नारा उछाला, उसका समर्थन करते हुए अमित शाह से लेकर भाजपा के बाकी कनिष्ठ-वरिष्ठ नेताओं ने शोर मचाना शुरू कर दिया कि आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा को 370 और राजग 400 से अधिक सीटें मिलेंगी और देश, विश्व की तीसरी अर्थव्यवस्था बनेगा। मोदी के दावे के बाद मीडिया में सर्वेक्षणों की बाढ़ भी आ गई, जिसमें उनके दावे को सही ठहराने का बलिष्ठ प्रयास हुआ। दरअसल मोदी ने 400 पार के ज़रिए विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' के खिलाफ एक मनोवैज्ञानिक युद्ध छेड़ा है। भाजपा के लिए 2024 में 200 सीटें पाना भी मुश्किल है। उनके दावे को खारिज़ करने वालों का मानना है कि चूंकि मोदी ने राजसत्ता का बेइंतहा दुरुपयोग किया है और हारने पर उनकी मुश्किलें बढ़ सकती हैं, इसलिए जीतने के लिए उद्भ्रांत होकर एक मनोवज्ञानिक युद्ध छेड़ा है।
विचार
क्या आडवाणी को सामाजिक न्याय की राजनीति को चुनौती देने का इनाम है भारतरत्न
मोदी सरकार ने इस वर्ष सामाजिक न्याय के महान योद्धा कर्पूरी ठाकुर के बाद भाजपा के वयोवृद्ध नेता और रामरथ के सारथी लालकृष्ण आडवाणी...
सामाजिक न्याय
सामाजिक न्याय के पक्ष में बड़ी भूमिका है डाइवर्सिटी के वैचारिक आन्दोलन की
15 मार्च, 2007 को बीडीएम की स्थापना हुई, हमलोगों ने मध्य प्रदेश में लागू हुई सप्लायर डाइवर्सिटी से प्रेरणा लेने के लिए भविष्य में भी डाइवर्सिटी डे मनाते रहने का निर्णय लिया। इस तरह बीडीएम के जन्मकाल से ही हर वर्ष 27 अगस्त को देश के जाने-माने बुद्धिजीवियों की उपस्थिति में डाइवर्सिटी डे मनाने को जो सिलसिला शुरू हुआ ,वह आजतक जारी है और आज दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में 17 वें डाइवर्सिटी डे का आयोजन होने जा रहा है।
सामाजिक न्याय
पुस्तक सप्लाई में लागू हो सामाजिक विविधता
बिहार विधानसभा में भाजपा विधायक ललन पासवान ने जो आवाज उठायी है, वह महाराष्ट्र में भी गूँजनी चाहिए और राजस्थान में भी। दोनों राज्यों में परस्पर विरोधी सरकारें हैं। कांग्रेस के भीतर का ब्राह्मणवादी तंत्र और उसके दरवाजे पर दस्तक दे रहा ब्राह्मणवादी तंत्र बहुत आसानी से इस लड़ाई में कांग्रेस को साथ नहीं आने देगा। लेकिन जाति और धर्म से ऊपर कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व शायद इस मुहीम को समझे। आंबेडकर-फुलेवादी साथी जहां हैं वहां की सरकारों के विपक्ष के जरिये इस मुद्दे को उठाएं: दलगत सीमाओं से ऊपर जाकर।