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ग्राउंड रिपोर्ट

Lok Sabha Election : क्या संविधान को बचाने से बढ़कर इस बार कोई दूसरा बड़ा चुनावी मुद्दा है?

नरेंद्र मोदी 400 सीट जीतने के बाद संविधान बदलने की बात कई बार कह चुके हैं लेकिन इधर मोदी कह रहे हैं कि इस चुनाव में उन लोगों को सजा मिलेगी जिन्होंने संविधान के खिलाफ जाकर काम किया। ऐसे में मतदाता यह समझ लें कि कौन संविधान विरोधी है और किसे सजा दी जाये।

यह लेख जब तक पाठकों तक पहुंचेगा, उस समय तक लोकसभा चुनाव 2024 के पहले चरण का चुनाव शुरू हो चुका होगा। अब यदि यह जानने का प्रयास हो कि इस चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा क्या है तो जवाब होगा – संविधान की रक्षा! इंडिया गठबंधन को नेतृत्व दे रहे कांग्रेस के राहुल गांधी बहुत पहले से कहते रहे हैं कि हम लोकतंत्र और संविधान बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। लोकसभा चुनाव दो विचारधाराओं के बीच की लड़ाई का चुनाव है। एक तरफ विपक्षी गठबंधन(इंडिया) संविधान और लोकतंत्र बचाने के लिए लड़ रहा है, वहीं दूसरी ओर भाजपा संविधान और लोकतंत्र को खत्म कर देना चाहती है।

 संविधान के खात्मे से भयाक्रांत कांग्रेस अध्यक्ष मलिकार्जुन खड़गे तो लगातार कहे जा रहे है कि हो सकता है यह आखिरी चुनाव हो! इस विषय में लालू प्रसाद यादव के बयान ने अलग से ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने 15 अप्रैल को ‘एक्स’ पर अपने पोस्ट में कहा है, ‘भाजपा के नेता लगातार संविधान बदलने और समाप्त करने की बात कर रहे हैं। ऐसे लोगों के खिलाफ न प्रधानमंत्री और न भाजपा के शीर्ष नेता कोई कार्रवाई कर रहे हैं। उलटे उन्हें चुनाव लड़वा रहे हैं। संविधान को बदलकर भाजपा इस देश से समता, स्वतंत्रता, बंधुत्व, सामाजिक न्याय और आरक्षण खत्म करना चाहती है। लोगों को आरएसएस और पूँजीपतियों का गुलाम बनाना इनका मकसद है। संविधान की ओर किसी ने आँख उठाकर देखा तो दलित,पिछड़े, आदिवासी और गरीब लोग मिलकर भाजपा नेताओं की आँखें निकाल लेंगे!‘

 लालू प्रसाद यादव के बयान के अगले दिन प्रधानमंत्री मोदी ने इंडिया गठबंधन को निशाने पर लेते हुए बिहार के गया में कहा, ‘यह चुनाव उन लोगों को सजा देने के लिए लिए है, जो संविधान के खिलाफ हैं। मैं गरीब घर से निकलकर आपके आशीर्वाद से यहां तक पहुंचा हूँ! यह डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के नेतृत्व व बाबा साहब डॉ. भीमराव आंबेडकर के संविधान की देन है। विपक्ष संविधान को राजनीतिक हथियार न बनाए। घमंडिया गठबंधन के लोग झूठ फैलाना बंद करें। यह महान है, इसे कोई नहीं बदल सकता!’ उन्होंने यह भी याद दिलाया कि वही संविधान दिवस मनाने के लिए लोकसभा में प्रस्ताव लाए थे। बहरहाल मोदी जितना भी सफाई दें कि खुद बाबा साहब भी आ जाएं और संविधान बदलने की कोशिश करें तो वह भी सफल नहीं हो सकते, लेकिन सच बात तो यह है कि देश में बहुत शिद्दत से संदेश चला गया है कि तीसरी बार सत्ता में आने पर मोदी संविधान बदल सकते है। खुद कई राजनीतिक विश्लेषकों ने पहले चरण का चुनाव खत्म होने पर माना है कि मजबूती से तीसरी बार सत्ता में आने पर मोदी देश में मनुस्मृति का विधान लागू कर सकते हैं! बहरहाल अगर चुनावी फिजा में यह संदेश चला गया कि मोदी तीसरी बार सत्ता में आने पर संविधान बदल सकते हैं तो इसके लिए जिम्मेवार खुद मोदी ही हैं!

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जहां तक संविधान के प्रति श्रद्धा प्रदर्शित करने का सवाल है, निश्चय ही मोदी ढेरों नेताओं को पीछे छोड़ चुके हैं।  इस मामले में 26 नवम्बर, 2015 एक खास दिन बन चुका है। उस दिन मोदी ने बाबा साहेब डॉ.भीमराव आंबेडकर की 125 वीं जयंती वर्ष को स्मरणीय बनाने के लिए 26 नवम्बर को ‘संविधान दिवस’ घोषित करने के बाद 27 नवम्बर को लोकसभा में राष्ट्र के समक्ष एक मार्मिक अपील करते हुए कहा था –‘26 नवम्बर इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना है। इसे उजागर करने के पीछे 26 जनवरी को नीचा दिखाने का प्रयास नहीं है। 26 जनवरी की जो ताकत है, वह 26 नवम्बर में निहित है, यह उजागर करने की आवश्यकता है। बाबा साहेब आंबेडकर की 125 वीं जयंती जब देश मना रहा है तो उसके कारण संसद के साथ जोड़कर इस कार्यक्रम(संविधान दिवस ) की रचना हुई. लेकिन भविष्य में इसको लोकसभा तक सीमित नहीं रखना है। इसको जन-सभा तक ले जाना है।

इतना ही नहीं उस अवसर पर संविधान निर्माण में डॉ.आंबेडकर की भूमिका की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए उन्होंने यहां तक कह डाला था – ‘अगर बाबा साहब आंबेडकर ने इस आरक्षण की व्यवस्था को बल नहीं दिया होता, तो कोई बताये कि मेरे दलित, पीड़ित, शोषित समाज की हालत क्या होती? उन्हें अवसर देना हमारा दायित्व बनता है- ‘उनके उस भावुक आह्वान को देखते हुए ढेरों लोग उम्मीद कर रहे थे कि वे आने वाले दिनों में कुछ ऐसे ठोस विधाई एजेंडे पेश करेंगे जिससे संविधान के उद्देश्यिका की अब तक हुई उपेक्षा की भरपाई होगी: समता तथा सामाजिक न्याय की डॉ.आंबेडकर की संकल्पना को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी। किन्तु जिस तरह सत्ता में आने के पहले प्रत्येक व्यक्ति के खाते में 15 लाख रूपये जमा कराने का उनका वादा जुमला साबित हुआ, उसी तरह उनका डॉ.आंबेडकर और संविधान के प्रति प्रतिबद्धता दिखाना भी जुमला साबित हुआ।

उनके कार्यकाल में टॉप की 1 प्रतिशत आबादी की दौलत सन 2000 में 37 प्रतिशत से बढ़कर 2016 में 58.5 प्रतिशत तक पहुंची थी, वह सिर्फ एक साल में 2017 में 73 प्रतिशत पहुँच गयी थी।  आज टॉप की 10 प्रतिशत आबादी का  90 प्रतिशत से ज्यादा धन-दौलत पर कब्ज़ा हो चुका है, जो सरकारी नौकरियां अरक्षित वर्गों,  विशेषकर दलितों के बचे रहने का एकमात्र स्रोत थी, वह ख़त्म सी हो गईं।  इसका खुलासा खुद मोदी सरकार के वरिष्ठ मंत्री नितिन गडकरी 5 अगस्त, 2018 को कर दिया था। उन्होंने उस दिन कहा था कि सरकारी नौकरियां ख़त्म हो चुकी हैं। इसलिए अब आरक्षण का कोई अर्थ नहीं रह गया है। जाहिर है मोदी की सवर्णपरस्त नीतियों के कारण ही आरक्षण लगभग कागजों की शोभा बनकर रह गया है।

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मोदी ने न सिर्फ अल्पजन विशेषाधिकारयुक्त वर्ग के हित में रेलवे स्टेशनों, हॉस्पिटलों आदि को निजीक्षेत्र में देने में सर्वशक्ति लगाया है, बल्कि देश की पांच दर्जन टॉप की यूनिवर्सिटियों को स्वायत्तता प्रदान कर उन्हें निजी हाथों में देने का भी उपक्रम चलाया है। धर्म-सत्ता पर विशेषाधिकार युक्त वर्ग का पहले से शतप्रतिशत कब्ज़ा था ही, आज उनकी सवर्णपरस्त नीतियों के चलते इस वर्ग का अर्थ-सत्ता, राज सत्ता, ज्ञान-सत्ता पर भी 90 प्रतिशत से ज्यादा कब्ज़ा हो चुका है। ऐसे में अल्पजन सुविधाभोगी वर्ग का शक्ति के स्रोतों पर औसतन 90 प्रतिशत से ज्यादे कब्जे के फलस्वरूप संविधान की उद्देश्यिका में वर्णित तीन न्याय – सामाजिक,  आर्थिक और राजनीतिक पूरी तरह सपना बन चुका जो इस बात संकेतक है कि संविधान अपने मूल उद्देश्य में विफल हो चुका है। और आज की तारीख में इस विफलता में मोदी की भूमिका का आंकलन करते हुए यह खुली घोषणा की जा सकती है कि संविधान के उद्देश्यों को व्यर्थ करने वालों में प्रधानमंत्री मोदी ही टॉप पर रहे। ऐसे में अगर मोदी कह रहे हैं कि यह चुनाव उन लोगों को सजा देने के लिए है, जो संविधान के खिलाफ हैं तो उन्हें मानकर चलना चाहिए कि चुनाव में जनता उन्हें ही सजा देगी! क्योंकि वह और उनका पितृ संगठन आरएसएस ही सबसे अधिक संविधान के खिलाफ रहा है!

राजनीति के प्राइमरी स्तर तक के विद्यार्थी को भी इस बात का इल्म है कि जिस संघ से प्रशिक्षित होकर प्रधानमन्त्री की कुर्सी तक मोदी पहुंचे हैं, उस संघ का लक्ष्य हिन्दू राष्ट्र की स्थापना रहा है। हिन्दू राष्ट्र की स्थापना का मतलब एक ऐसा राष्ट्र निर्माण करना है, जिसमें देश आंबेडकरी संविधान नहीं, उन हिन्दू धार्मिक कानूनों द्वारा चलेगा, जिसमें शूद्रातिशूद्र अधिकारविहीन नर-पशु एवं शक्ति के समस्त स्रोतों – आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षिक और धार्मिक- से पूरी तरह बहिष्कृत रहे।

हिन्दू राष्ट्र के स्थापना की आड़ में मोदी के पितृ संगठन का चरम लक्ष्य हिन्दू धर्मशास्त्रों  द्वारा शक्ति के समस्त स्रोतों के भोग के अधिकारी उच्च वर्णों के हाथ में संपदा-संसाधन इत्यादि सारा सौंपना है। संघ का एकनिष्ठ सेवक होने के नाते मोदी हिन्दू राष्ट्र से अपना ध्यान एक पल के लिए भी नहीं हटाए और 2014 में सत्ता में आने के बाद से ही अपनी समस्त गतिविधियां इसी पर केन्द्रित रखे।

सत्ता में आने के बाद मोदी जिस हिन्दू राष्ट्र को आकार देने में निमंग्न हुए, उसके मार्ग में सबसे बड़ी बाधा रहा संविधान! संविधान इसलिए बाधा रहा क्योंकि यह हिन्दू धर्म के वंचितों, शूद्रातिशूद्रों को उन सभी पेशे/कर्मों में हिस्सेदारी सुनिश्चित कराता है, जो पेशे/कर्म हिन्दू धर्म-शास्त्रों द्वारा सिर्फ हिन्दू ईश्वर के उत्तमांग (मुख-बाहु-जंघे) से उत्पन्न उच्च वर्ण के लोगों के लिए आरक्षित रहे। संविधान के रहते इनका शक्ति के स्रोतों पर वैसा एकाधिकार कभी नहीं हो सकता, जो अधिकार हिन्दू धर्मशास्त्रों में उन्हें दिया गया है। किन्तु संविधान के रहते हुए भी हिन्दू ईश्वर के उत्तमांग से जन्मे लोगों का शक्ति के स्रोतों पर एकाधिकार है, जहां संविधान प्रभावी नहीं है, तो इस बात को ध्यान में रखते हुए ही मोदी जिस दिन से सत्ता में आए, ऊपरी तौर पर संविधान के प्रति अतिशय आदर व्यक्त करते हुए भी, लगातार इसे व्यर्थ करने में जुटे रहे।

देश की जिन जातियों को संविधान के जरिए प्रगति और उन्नति का मुंह देखने तथा राष्ट्र की मुख्यधारा से जुड़ने का अवसर मिला, वे निश्चय ही इस चुनाव में संविधान की खिलाफ़त करने में चैंपियन रहे संघ के राजनीतिक संगठन भाजपा को सजा देने का मन बनायेंगी।

एच एल दुसाध
एच एल दुसाध
लेखक बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं.

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