13 दिसंबर 2023 को कुछ प्रदर्शनकारी कलर स्प्रे लेकर संसद में घुस गए थे। वे सदन के पटल पर कूद पड़े और उन्होंने स्प्रे कर दिया। संयोग की बात है कि उसमें जहरीली गैस या आंसू गैस जैसा कुछ भी नहीं था जैसा कि कुछ सांसदों को डर था। गैस भी नुकसान पहुंचाने वाली नहीं थी। प्रदर्शनकारी स्पष्ट रूप से अपनी बात रखने की कोशिश कर रहे थे न कि सदन के सदस्यों की हत्या करने की।
यह तथ्य है कि प्रदर्शनकारी 2001 में संसद पर हुए घातक हमले की बरसी पर इतनी आसानी से संसदीय सुरक्षा में सेंध लगाने में सफल रहे। 2001 के हमले में नौ लोग मारे गए (पांच आतंकवादियों को छोड़कर) थे। यह चौंकाने वाली और भयावह घटना थी। लेकिन इस बार रहस्य तब और गहरा गया जब यह पता चला कि मैसूर से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के सांसद प्रताप सिम्हा ने कथित तौर पर प्रदर्शनकारियों को संसद तक पहुंचने की इजाजत देने वाले पास दिलवाए थे।
भाजपा का तानाशाही पूर्ण रवैया
आपको क्या लगता है कि सरकार और संसद चलाने वाले संवैधानिक अधिकारियों (राज्यसभा के सभापति और लोकसभा अध्यक्ष) ने सुरक्षा के इस गंभीर उल्लंघन पर क्या प्रतिक्रिया दी? हमलावरों को पास (PASS) देने वाले सांसद को क्या निलंबित किया गया? केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से लोकसभा और राज्यसभा दोनों में बयान देकर यह बताने को कहा गया कि ऐसा हमला कैसे हो सकता है? किंतु इस सवाल का जवाब तो नहीं मिला, उलटे इस घटना का ठीकरा भी विपक्ष के सिर मथ दिया गया।
अब तक बीजेपी सांसद को भी निलंबित नहीं किया गया है। शाह ने दोनों सदनों में कोई बयान नहीं दिया। इसके बजाय, दोनों सदनों में विपक्ष के 141 सांसदों को निलंबित कर दिया गया। सांसदों ने गुस्से में प्रदर्शन करते हुए गृह मंत्री से हमले पर बयान देने की मांग की तो कोई जवाब न देकर उन्हें ही सदन से बाहर कर दिया गया। लोकसभा में विपक्ष की ताकत दो-तिहाई कम करने के साथ सरकार ने महत्वपूर्ण विधेयक पेश किए, कहा गया कि ये विधेयक देश में आपराधिक कानूनों में सुधार लाएंगे।
सुषमा स्वराज एवं अरुण जेटली के विचारों का अपमान करती सत्तालोलुप भाजपा
भारत के इतिहास में इससे पहले कभी भी दो-तिहाई विपक्ष को निलंबित नहीं किया गया था। यह है हमारे आज के लोकतंत्र की नई हकीकत। संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) के दौरान यह बीजेपी ही थी जो नियमित रूप से संसद को बाधित करती थी। यह कोई अजीब दुष्ट तत्वों का काम नहीं था। लोकसभा में बीजेपी की तत्कालीन विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने 2012 में खुद कहा था. ‘संसद को चलने न देना भी किसी अन्य रूप की तरह लोकतंत्र का एक रूप है।’ राज्यसभा में विपक्ष के तत्कालीन नेता अरुण जेटली के इस बयान पर गौर फरमाइएं, ‘कई बार, संसद का उपयोग मुद्दों को नज़रअंदाज़ करने के लिए किया जाता है और ऐसी स्थितियों में संसद में बाधा डालना लोकतंत्र के पक्ष में है। इसलिए, संसदीय कार्य में बाधा डालना अलोकतांत्रिक नहीं है।’
वर्तमान स्थिति को देखते हुए लगता है कि सुषमा स्वराज और जेटली गलत थे। इससे पहले संसदीय इतिहास में लोकसभा में सबसे बड़ा निलंबन 1989 में हुआ था। सांसद पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या पर ठक्कर कमीशन की रिपोर्ट को संसद में रखे जाने पर हंगामा कर रहे थे। जिसके बाद अध्यक्ष ने 63 सांसदों को निलंबित कर दिया था।
हालिया हालात में मोदी के सबसे चतुर राजनेता होने का एक कारण यह है कि उन्होंने इस बात पर काम
किया है कि यदि आप अपनी पार्टी को स्थायी चुनाव मोड में रखते हैं तो आप उन घनी आबादी वाले राज्यों में जनता
का समर्थन बनाए रख सकते हैं जो आपका आधार हैं। और फिर, आप लोकतंत्र की संस्थाओं के साथ जो चाहें वह कर सकते हैं।
चंडीगढ़ मेयर चुनाव ने उजागर किया भाजपा का असली चरित्र
सर्वविदित है कि चंडीगढ़ में मेयर का चुनाव होना था। अचानक चुनाव रद्द कर दिया गया। जो शायद एक-दो दिन बाद कराया गया। पूरा मामला क्या है? आखिर कैसे? क्या कारण था नगर निगम पर काबिज भाजपा का इस चुनाव से भागने का? आखिरकार चंढीगढ़ में चुनाव हुए और भाजपा को अल्पमत होते हुए भी चुनाव अधिकारी ने मनमाने ढंग से आप के 8 वोट रद्द करके भाजपा का मेयर बना दिया। मामला सुप्रीम कोर्ट गया और सुप्रीम कोर्ट ने मामला पलट दिया और इस तरह आम आदमी पार्टी का मेयर बन गया। 8 साल में बहुत ऐसे मौके आए जब कई राज्यों मैं भाजपा का बहुमत नहीं था। लेकिन बहुमत न रखते हुए भी जोड़तोड़ करके अपनी सरकार बनाई।
आजादी के बाद हमारे लोकतंत्र के उम्र 75 वर्ष होने पर हम रजत जयंती अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है। ऐसे में हमारे प्रजातंत्र को फल-फूलना चाहिए था। लेकिन हमने देखा कि 2014 के बाद जो लोग सत्ता में आए उनको चुनाव जीतने का और सत्ता में रहने का एक नशा हासिल हुआ। ये चुनाव हारते हैं तो फिर वो सत्ता किसी को मिलने नहीं देते। खुद ही सत्ता पर काबिज होने का प्रयास करते रहे हैं ।
2024 में लोकसभा चुनाव में भाजपा को बहुमत नहीं मिलता है तो क्या भाजपा सरकार बनाने के लिए चंडीगढ़ जैसा खेल कर सकती है? उल्लेखनीय है कि हमारे संविधान में एक प्रोविजन है कि जब राष्ट्रपति बीमार पड़ते हैं या
राष्ट्रपति कहीं बाहर चले जाते है तो उपराष्ट्रपति उनके अधिकारों का उपयोग कर सकते हैं। और यदि उपराष्ट्रपति
किसी न किसी तरह बीमार होकर अस्पताल में भर्ती हो जाते हैं तो फिर क्या होगा?
लेकिन मोदी जी की नए भारत में कुछ भी हो सकता है। महाराष्ट्र का उदाहरण देखिए। जब उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में महाविकास आघाड़ी की सरकार बनी थी, भाजपा ने क्या किया, शिवसेना को तोड़कर सरकार को पलट दिया गया। क्या जो महाराष्ट्र में हुआ लोकतंत्र का मजाक नहीं है? ऐसे में जो लोग संविधान की लड़ाई लड़ने का उपक्रम कर रहे हैं, उनको हर प्रकार से तैयार रहना होगा। सवाल चंडीगढ़ नगर निगम छोटा नहीं? सवाल है सोच का? सवाल है संविधान की धज्जियां उड़ाने का? सवाल है लोकतांत्रिक प्रणाली को रौंदने का। आज याद आता है उन परम्पराओं को लोकतांत्रिक मान्यताओं को बनाए रखने का हर ध्यान रखा जाता था, जो आज नहीं हैं। अटल जी क़े समय मैं अटल जी की सरकार बनाने में केवल एक सांसद की कमी थी तो प्रमोद महाजन जी ने अटल जी से कहा कि हम सरकार बनाने का प्रयास कर सकते हैं। अटल जी ने एक मना कर दिया, बोले नहीं? जनता ने जनादेश विपक्ष में बैठने का दिया है जनता के आदेश का अपमान नहीं करना है।
मीडिया पर भी पहरा
जब आपातकाल आपातकाल घोषित हुआ तो संसद से बस एक किलोमीटर दूर सब पत्रकारों ने मीटिंग लेकर रोष व्यक्त किया। और निर्णय लिया कि सब अखबार संपादकीय पेज खाली छोड़ेंगे। आपातकाल में तो अधिकार ही नहीं थे। किसी को पता नहीं था कि कितने दिन रहेगा, ये संविधान रहेगा या नहीं? पुलिस का दमन था। लेकिन 2014 के बाद क्या हुआ? नागैरत लोगो की फौज आ गई? मीडिया घुंघरू बांध सरकार के दरबार में नाच करने लगी। यूट्यूब से लेकर तमाम सोशल मीडिया के मंचों पर अभी भी कुछ लोग पत्रकारिता को जिंदा रखने का प्रयास कर रहे हैं किंतु आज सरकार द्वारा यूट्यूब पर दबाव बनाकर उन्हें या तो बंद करवाया जा रहा है या फिर डिमोनेटाइज किया जाने लगा है। बाकी बचे हुए कितने दिन तक बचे रहेंगे, इसके आशंका है। ऐसे में क्या आपको नहीं लगता है कि भारत में लोकतंत्र को गर्क में ले जाने का प्रत्येक उपक्रम किया जा रहा है।
भाजपा के मंसूबों से आगाह कर चुके हैं कई विपक्षी दल
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एवं द्रमुक अध्यक्ष एम.के. स्टालिन ने कहा था अगर भाजपा 2024 के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर सत्ता पर काबिज होती है, तो कोई भी लोकतंत्र, सामाजिक न्याय और संविधान को नहीं बचा सकता है। कावेरी डेल्टा जिलों के पार्टी के बूथ-स्तरीय पदाधिकारियों को संबोधित करते हुए स्टालिन ने कहा कि अगले साल लोकसभा चुनाव के बाद किसे सत्ता पर कब्जा करना चाहिए इसके बजाय सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि केंद्र में किसे सत्ता में नहीं रहना चाहिए। आम आदमी पार्टी (आप) ने दावा किया कि यदि विपक्षी पार्टियां 2024 के लोकसभा चुनाव में एकजुट नहीं हुईं तो संभव है कि ‘अगली बार देश में चुनाव ही न हो’।
आप के राष्ट्रीय प्रवक्ता और दिल्ली सरकार के मंत्री सौरभ भारद्वाज ने संवाददाता सम्मेलन में यह दावा भी किया कि जिस तरह से विपक्षी दलों के नेताओं के खिलाफ सीबीआई (केंद्रीय अन्वेष्ण ब्यूरो), ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) और आईटी (आय कर विभाग) के छापे मारे जा रहे हैं और उन्हें सलाखों के पीछे डाला जा रहा है, ऐसी संभावना है कि यदि नरेन्द्र मोदी 2024 में प्रधानमंत्री बनते हैं तो वह संविधान को बदल देंगे और घोषणा करेंगे कि जब तक वह जीवित हैं, वह इस देश के राजा रहेंगे। इस देश की आजादी, जिसके लिए अनगिनत लोगों ने अपने प्राण न्योछावर कर दिए, खो जाएगी। जिस तरह से विपक्षी दलों के नेताओं के खिलाफ सीबीआई (केंद्रीय अन्वेष्ण ब्यूरो), ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) और आईटी (आय कर विभाग) के छापे मारे जा रहे हैं और उन्हें सलाखों के पीछे डाला जा रहा है, ऐसी संभावना है कि यदि नरेन्द्र मोदी 2024 में (फिर से) प्रधानमंत्री बनते हैं तो वह संविधान को बदल देंगे और घोषणा करेंगे कि जब तक वह जीवित हैं, वह इस देश के राजा रहेंगे। और इस देश की आजादी, जिसके लिए अनगिनत लोगों ने अपने प्राण न्योछावर कर दिए, खो जाएगी।
द्रमुक नेता ने आरोप लगाया कि भाजपा ने देश का गठन करने वाले मौलिक विचारों को नुकसान पहुंचाया है और ‘हमें आगामी संसदीय चुनावों में इस पर पूर्ण विराम लगाना होगा, अन्यथा केवल तमिलनाडु ही नहीं, कोई भी पूरे भारत को नहीं बचा सकता। आप के ही भगवंत मान ने बीजेपी पर हमला करते हुए कहा कि अगर 2024 BJP जीती तो देश में आगे से नहीं होगा कोई चुनाव। और नरेंद्र मोदी बन जाएंगे ‘नरेंद्र पुतिन।’
सांप्रदायिकता की राजनीति विनाशकारी
पिछले कुछेक वर्षों से ये भी देखा गया है कि बीजेपी के अनेक नेता बार-बार हिंदुओं के खतरे में होने की बात को बिना किसी तर्क के जोर-शोर से प्रचारित करते रहते हैं। तो क्या आपकी नजरों में भी हिंदू खतरे में हैं? हिंदू कभी भी खतरे में नहीं था, न ही कभी रहेगा। आज तक जो शासक थे अभी 70 साल में तो हिंदू ही थे और आज भी ज्यादातर हिंदू ही हैं फिर हिंदू खतरे में हैं, यह बयानबाजी कितनी तर्कसंगत है? हाँ! ये जुमला हिंदुओं के वोट हासिल करने का सार्थक हथियार जरूर हो सकता है। वोटर लोकतंत्र के पक्ष में अपनी भूमिका निभाने के बदले सांप्रदायिकता के पक्ष में बटन दबाते हैं।
यदि आप भाजपा के बहकावे में आकर किसी भगवान या धर्म के लिए बटन दबाते हैं तो आप भविष्य के लिए अपने सारे रास्ते बंद कर रहे हैं। खैर! यह मानने में कोई शंका नहीं है कि नेता वही करते हैं जो उनकी राजनीति को बनाए रखने में हितकर हो, यह भी कि समाज जिस तरह का होता है, वह उसी तरह का नेता भी चुनता है। तो समाज का भविष्य किस तरह का बनेगा, इसका फैसला आपको करना है। यथोक्त के आलोक में, यूँ तो माहिलाओं के साथ दुर्व्यवहार, दलितों के साथ अत्याचार, अलप्संख्यकों के प्रति सामाजिक अवहेलना, इलेक्ट्रोरल बॉन्ड के जरिए बड़े-बड़े उद्योग घरानों से धन उगाही, पीएम केयर फंड के जरिए एकत्र फंड का जनता के सामने हिसाब-किताब न रखना, आरएसएस अर्थात बीजेपी की पैत्रिक संस्था की तर्ज पर समाज में हिंदु-मुसलमान का विद्वेष उत्पन्न करना, सरकारी जाँच एजेंसियों का बीजेपी के पक्ष में और विपक्ष के विरोध में अनैतिक रूप से प्रयोग करना, चुनाव आयोग को बेदम करना जैसे जाने कितने ही मसले हैं जो बीजेपी सरकार की नीयत की पोल खोलने का काम करते दिख रहे है लेकिन इस सब समस्याओं का एक ही लेख में वर्णन करना व्यावाहरिक रूप से संभव नहीं हैं। इस लेख में बस इतना ही। आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार ही नहीं रहेगा अपितु पाठकों से ये उम्मीद भी रहेगी कि समाज की वर्तमान स्थितियों के अनुसार अपनी नई सरकार चुनने में सार्थक और सामाजिक समानता, सद्भावना, बंधुता बनाए रखने के पक्ष में सकारात्मक भूमिका निभाने के आग्रह का सम्मान करेंगे।