ब्राह्मण धर्म और उसकी देवियां (डायरी 5 फरवरी, 2022)

नवल किशोर कुमार

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हिंदू धर्म कोई धर्म नहीं है। यह ब्राह्मणों का धर्म है। ऐसा इसलिए कि ब्राह्मणों ने अपने लिए इस धर्म की स्थापना की है। अपने वर्चस्व को बनाए रखने के लिए एक से एक अश्लील मिथकों की रचना की है। ब्राह्मण धर्म के ध्वजवाहक आलोचनाओं से नहीं डरते। वे तो चाहते हैं कि लोग उनकी आलोचना करें। उनका सीधा मानना है कि लोग जितना उनके धर्म की आलोचना करेंगे, उनके लिए उतना ही बेहतर होगा। उन्होंने कबीर को नहीं रोका। रैदास को अपने धर्म की आलोचना करने दिया। दरअसल, ब्राह्मण धर्म के ठेकेदार यह जानते हैं कि दुनिया के किसी और धर्म में ऐसी बात हो ही नहीं सकती, जो उनके धर्म में है।

मेरे हिसाब से धर्म का अभाव, दुख और संकट से बहुत गहरा रिश्ता है। आदमी का स्वभाव ही ऐसा है कि वह विषम परिस्थितियों में सहारे की तलाश करता है। ब्राह्मण धर्म आदमी के इसी स्वभाव का दुरुपयोग करता है। उसने हर तरह की परिस्थिति के लिए मिथकों का निर्माण कर रखा है और सर्वत्र भौकाल बनाकर रखा है। मसलन, यदि किसी को रात में राह चलते डर लगे तो उसके लिए बजरंग बली का मिथक है। कहने को तो यह मिथकीय पात्र एक बंदर है, लेकिन ब्राह्मण धर्म कहता है कि तुम बंदर का स्मरण करो, डर जाता रहेगा। इसे लोकप्रिय बनाने के लिए ब्राह्मणों ने अभिनव प्रयोग किये हैं। कुछ ही दिन हुए मैं हिंदी में एक हॉरर फिल्म खोज रहा था। फिल्म मिली– 1920। इस फिल्म में तो ब्राह्मणों ने पूरी ताकत झोंक दी है यह साबित करने के लिए कि उनका धर्म ही सबसे बेहतर धर्म है। मतलब यह कि नायिका जिसके उपर एक प्रेत का साया है, उसे प्रेत से मुक्ति ईसाई धर्मावलंबी पादरी भी नहीं दिला पाता है और अंतत: प्रेत के द्वारा मारा जाता है। नायिका को प्रेत से मुक्ति तब मिलती है जब नायक हनुमान चालीसा का पाठ करता है।

यदि कोई गरीब है तो उसके लिए लक्ष्मी का मिथक है। यह मिथक गरीब-अमीर दोनों के लिए है। गरीब लक्ष्मी को इसलिए याद करता है ताकि उसके पास धन की आमद हो और अमीर इसलिए कि धन पर उसका अधिकार बना रहे। आप ही सोचकर देखिए क्या इस्लाम में ऐसी कोई अवधारणा है? ईसाईयत में है? बौद्ध धर्म में है? यह तो छोड़िए ज्ञान के लिए भी ब्राह्मण धर्म में एक मिथक है– सरस्वती।

संकटों के हिसाब से ऐसे ही बहुत सारे मिथक हैं। मसलन, यदि कोई गरीब है तो उसके लिए लक्ष्मी का मिथक है। यह मिथक गरीब-अमीर दोनों के लिए है। गरीब लक्ष्मी को इसलिए याद करता है ताकि उसके पास धन की आमद हो और अमीर इसलिए कि धन पर उसका अधिकार बना रहे। आप ही सोचकर देखिए क्या इस्लाम में ऐसी कोई अवधारणा है? ईसाईयत में है? बौद्ध धर्म में है? यह तो छोड़िए ज्ञान के लिए भी ब्राह्मण धर्म में एक मिथक है– सरस्वती।

सरस्वती शब्द से एक बात याद आयी। बात बचपन की ही है। जिस नक्षत्र मालाकार हाई स्कूल, बेऊर, पटना में मैं पढ़ता था, उसके प्रिंसिपल भले ही प्रगतिशील थे, लेकिन देवी-देवताओं के परम अनुरागी थे। काली के इतने बड़े भक्त कि अपने दिन की शुरुआत ही वह काली को प्रसन्न करके करते थे। इसके लिए वह एक घंटा समय लगाते थे और जब अपने विशेष कक्ष से बाहर निकलते तब उनके माथे पर गोल बड़ा सा टीका होता था। कई बार मैं उनके कक्ष में भी गया था। वहां काली की तस्वीर के अलावा दुर्गा की बहुत सुंदर तस्वीर थी। हनुमान और कुछ अन्य देवगण भी मौजूद थे। मतलब यह कि काली के अनन्य भक्त होने के बावजूद उन्हें केवल काली पर विश्वास नहीं था। अन्य देवताओं का आश्रय भी उनके लिए अनिवार्य था।

ब्राह्मण धर्म के ध्वजवाहक आलोचनाओं से नहीं डरते। वे तो चाहते हैं कि लोग उनकी आलोचना करें। उनका सीधा मानना है कि लोग जितना उनके धर्म की आलोचना करेंगे, उनके लिए उतना ही बेहतर होगा। उन्होंने कबीर को नहीं रोका। रैदास को अपने धर्म की आलोचना करने दिया।

खैर, सरस्वती पूजा हमारे स्कूल में खूब धूमधाम से होती। अनिसाबाद के रघुनाथ टोला से सरस्वती की मूर्ति लायी जाती और उसे स्कूल परिसर में स्थापित किया जाता। सारे बच्चे अपनी कॉपी-किताबें उसके चरणों में रख देते। मैं अलग था। मुझे लगता कि यह मिट्टी की प्रतिमा क्या किसी का ज्ञानवर्द्धन करेगी। फिर मुझे उसके नाम से आश्चर्य होता था। मैं तब हिंदी व्याकरण के हिसाब से सोचता था। सरस्वती का मतलब वह जिसके पास रस हो। ऐसे अनेक शब्द मिले थे तब। जैसे कि रसीली, रसदार। ‘वती’ और ‘वान’ तो गजब के हैं। धन के साथ वान जोड़ दें तो धनवान और बल के साथ जोड़े जाने पर बलवान। वैसे सौभाग्य के साथ वती को जोड़ दें सौभाग्यवती और पुत्र के साथ जोड़ दें तो पुत्रवती। ऐसे ही सरस्वती।

सरस्वती कौन है? हालांकि यह मैं पढ़ चुका था कि सरस्वती ब्रह्मा की कौन थी। वह ब्रह्मा की मानस पुत्री भी थी और पत्नी भी। यह एक अजीबोगरीब रिश्ता था। फिर एक सवाल जेहन में आया कि जैसे शंकर-पार्वती का मिथक है और दोनों एक साथ तस्वीरों में दिखाए जाते हैं, वैसे ब्रह्मा और सरस्वती को क्यों नहीं दिखाया जाता। शंकर और पार्वती के अलावा गणेश की तस्वीर तो आज भी असंख्य घरों में आनंद से रहे रहे दांपत्य जीवन का प्रतीक है। तो क्या ब्रह्मा और सरस्वती का दांपत्य जीवन ठीक नहीं था?

सवाल कई थे और जवाब के लिए एकमात्र प्रिंसिपल अरविंद प्रसाद मालाकार सर। उनसे पूछा तो खूब डांट मिली। लेकिन सवाल तो सवाल थे। डांट उनका जवाब नहीं था।

ब्राह्मण धर्म तो ऐसा है कि उसने महिलाओं को उनके प्रकृति प्रदत्त अधिकार से वंचित कर दिया है। कहने का मतलब यह कि संतानें महिलाएं जनती हैं और ब्राह्मण धर्म के ठेकेदार कहते हैं कि उनका जन्म किसी महिला की योनि से नहीं, ब्रह्मा के शरीर से हुआ है। गाेया ब्रह्मा उभयलिंगी हो।

मुझे लगता है कि ऐसे ही कितने सारे सवाल हैं, जो कि ब्राह्मण धर्म से जुड़े हैं और जवाब केवल ब्राह्मणों के पास है। लेकिन वे जवाब नहीं देना चाहते। सवालों से उनकी भावनाएं आहत हो जाती हैं। वे कानून की दुहाई देने लगते हैं और हमारे देश की धर्मपरायण पुलिस उनकी भावनाओं की रक्षा के लिए कार्रवाईयां करती है।

वैसे पुलिस शासन का हिस्सा ही है। जैसा शासन होगा, पुलिस भी वैसी ही होगी और भारत में तो शासन का मतलब ही ब्राह्मण धर्म है। आप यदि इस धर्म को मानते हैं तो आप शासन का हिस्सा हैं और नहीं मानते हैं तो आप देशद्रोही करार दिए जा सकते हैं, आतंकी कहे जा सकते हैं, और अर्बन नक्सली की संज्ञा भी आपको दी जा सकती है।

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लेकिन मेरा मानना है कि सवाल जरूर पूछे जाने चाहिए। हर सवाल का जवाब हमें ब्राह्मण धर्म पर आधारित समाज से दूर समतामूलक समाज की तरफ ले जाता है। ब्राह्मण धर्म तो ऐसा है कि उसने महिलाओं को उनके प्रकृति प्रदत्त अधिकार से वंचित कर दिया है। कहने का मतलब यह कि संतानें महिलाएं जनती हैं और ब्राह्मण धर्म के ठेकेदार कहते हैं कि उनका जन्म किसी महिला की योनि से नहीं, ब्रह्मा के शरीर से हुआ है। गाेया ब्रह्मा उभयलिंगी हो।

बहरहाल, मैं अपने जीवन में ब्राह्मण धर्म के देवी-देवताओं के बगैर खुश हूं। प्रेम में यकीन रखता हूं जिसका आधार ही समानता है। कल अपनी प्रेमिका से मैंने कहा–

आज कुछ खास नहीं

सांझ की इस बेला में तुम्हारे लिए।

तुम अगर कहो तो

नजर कर दूं

वह सब जो मेरे सामने है।

फिर एक फैसला तुम करना

क्योंकि मैं चाहता हूं कि

फैसला तुम करो

और मैं तुम्हारे फैसले के साथ रहूंगा।

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस में संपादक हैं ।

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