वाराणसी। रुढ़िवादी समस्याओं से जूझते हुए माता सावित्रीबाई फुले ने लड़कियों के लिए पहला स्कूल खोला और खुद पहली महिला शिक्षिका बनीं। इस काम में उनके साथ कदम से कदम मिलाकर चल रहे थे उनके पति जोतिराव फुले। देश के इन महान शख्सियतों को सादर नमन।
उक्त बातें बनारस के रीवा घाट पर दखल संगठन की इंदु पांडेय ने व्यक्त किए। मौका था सावित्री बाई फुले जयंती की श्रद्धांजलि सभा का। कार्यक्रम में सामाजिक कार्यकर्ताओं व छात्र-छात्राओं ने भी अपने-अपने विचार व्यक्त किए।
इंदु पांडेय ने बताया कि स्त्रियों की शिक्षा जिस दौर में निषिद्ध थी, तब एक महिला ने लड़कियों को पढ़ाने का जोखिम लिया। उन्होंने देश का पहला बालिका विद्यालय 1 जनवरी, 1848 को खोला था।
जागृति राही ने कहा हिंदू धर्म, समाज व्यवस्था और परम्परा में शूद्रों-अतिशूद्रों और महिलाओं के लिए तय स्थान को आधुनिक भारत में पहली बार जिस महिला ने संगठित रूप से चुनौती दी, उनका नाम सावित्री बाई फुले है। वे आजीवन शूद्रों-अतिशूद्रों और महिलाओं की मुक्ति के लिए संघर्ष करती रहीं।
उनका जन्म महाराष्ट्र के सतारा जिले के नायगाँव में 3 जनवरी, 1831 को हुआ था। वे खंडोजी नेवसे पाटिल की बड़ी बेटी थीं, जो वर्णव्यस्था के मुताबिक, शूद्र जाति के थे। वे जन्म से शूद्र और स्त्री दोनों एक साथ थीं, जिसके चलते उन्हें दोनों प्रकार के भेदभाव और उत्पीड़न जन्मजात मिले थे।
कहा कि ऐसे समय में जब शूद्र जाति के किसी लड़के के लिए भी शिक्षा लेने की मनाही थी, उस समय एक लड़की के लिए शिक्षा पाने का कोई सवाल ही नहीं उठता। वे घर के काम करती थीं और पिता के साथ खेती के काम में सहयोग करती थीं। नौ वर्ष की उम्र में उनकी शादी 13 वर्षीय जोतिराव फुले के साथ हुई।
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जोतिराव फुले सावित्री बाई फुले के जीवनसाथी होने के साथ ही उनके शिक्षक भी बने। जोतिराव और सगुणा बाई की देख-रेख में प्राथमिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद औपचारिक शिक्षा अहमदनगर में ग्रहण की। उसके बाद उन्होंने पुणे के अध्यापक प्रशिक्षण संस्थान से प्रशिक्षण लिया।
इस प्रशिक्षण स्कूल में उनके साथ फातिमा शेख ने भी अध्यापन का प्रशिक्षण लिया। यहीं उनकी गहरी मित्रता कायम हुई। फातिमा शेख उस्मान शेख की बहन थीं, जो जोतिराव फुले के घनिष्ठ मित्र और सहयोगी थे। बाद में इन दोनों ने एक साथ ही अध्यापन का कार्य भी किया।
फुले दम्पति ने 1 जनवरी, 1848 को लड़कियों के लिए पहला स्कूल पुणे में खोला। जब 15 मई, 1848 को पुणे के भीड़वाडा में जोतिराव फुले ने दूसरा स्कूल खोला, तो वहाँ सावित्री बाई फुले मुख्य अध्यापिका बनीं। इन स्कूलों के दरवाजे सभी जातियों के लिए खुले थे। जोतिराव और सावित्री बाई फुले द्वारा लड़कियों की शिक्षा के लिए खोले जा रहे स्कूलों की संख्या बढ़ती जा रही थी। इनकी संख्या चार वर्षों में 18 तक पहुँच गई।
इससे विशेष वर्ग के एकाधिकार को चुनौती मिल रही थी, जो समाज पर उनके वर्चस्व को भी तोड़ रहा था। पुरोहितों ने जोतिराव फुले के पिता गोविंदराव पर कड़ा दबाव बनाया। इस कारण उन्हें घर से निकाल दिया गया। परिवार से निकाले जाने बाद ब्राह्मणवादी शक्तियों ने सावित्री बाई फुले का पीछा नहीं छोड़ा। जब सावित्री बाई फुले स्कूल में पढ़ाने जातीं, तो उनके ऊपर गाँव वाले पत्थर और गोबर फेंकते। ऐसी दिक्कतों से जूझते हुए उन्होंने लड़कियों के लिए स्कूल खोला।
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ऐसे समय में शिक्षा की जो चिंगारी उन्होंने लगाई थी, समय बदलने पर वह रौशनी बन गई। समाज की मुख्यधारा से उपेक्षित महिला, दलित, पिछड़ी जातियों को भी पढ़ने का मौका मिला। उन्हें मानवोचित अधिकार मिले। लेकिन आज भी राह चलती लड़कियों से छेड़छाड़ बलात्कार की घटनाएँ हो रही हैं।
आईआईटी बीएचयू जैसे शिक्षा के मंदिर में छात्रा के साथ गैंगरेप किया जा रहा है। इसी बनारस में सिटी स्टेशन पर चार साल की मासूम मुसहर लड़की के साथ बलात्कार करके उसकी हत्या कर दी जाती है। मणिपुर में पुरुषों की भीड़ महिला को निर्वस्त्र करके घुमाती हैं। देश के लिए ओलम्पिक मेडल लाने वाली महिला खिलाड़ियों के साथ उत्पीड़न करने वाले आरोपी संसद सदस्य हैं और सत्ताधारी पार्टी के भी। ऐसे लोगों के खिलाफ कोई कठोर कार्रवाई नहीं की जा रही है।
जाती, धर्म, लिंग आधारित भेदभाव उत्पीड़न के खिलाफ सावित्री बाई फातिमा शेख के व्यक्तित्व को याद करते हुए प्रेरणा लेते हुए हमें आगे की राह बनाने की जरूरत है। हमे समतामूलक समाज बनाने के लिए संकल्पबद्ध होने की जरूरत है। कार्यक्रम संचालन दखल संगठन की नीति ने किया। इस दौरान मैत्री, रणधीर, सना, शिवांगी, रैनी, अनुज, परीक्षित इत्यादि शामिल रहे।
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